आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के प्रमुख कथन – आदिकाल के संदर्भ में
हिंदी विषय के सभी छात्रों ने आचार्य रामचंद्र शुक्ल का नाम तो अवश्य ही सुना होगा। इनके द्वारा लिखा गया हिंदी इतिहास बहुत ही प्रसिद्ध है तथा उसका नाम हिंदी साहित्य का इतिहास के नाम से जाना जाता है। आज के इस पोस्ट में हम शुक्ल द्वारा आदिकाल के संबंध में कहे गए कथनों को शामिल कर रहें है। यह सामग्री आपके हिंदी विषय के नेट/जेआरफ़ में काफी उपयोगी है।
- प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव माना जा सकता है।
- हिन्दी साहित्य का आदिकाल संवत् 1050 से लेकर संवत् 1375 तक अर्थात् महाराज भोज के समय से लेकर हम्मीरदेव के समय के कुछ पीछे तक माना जा सकता है।
- राजाश्रित कवि और चारण जिस प्रकार नीति, श्रृंगार आदि के फुटकल दोहे राज सभाओं में सुनाया करते थे, उसी प्रकार अपने आश्रयदाता राजाओं के पराक्रमपूर्ण चरितों या गाथाओं का वर्णन भी किया करते थे। यही प्रबन्ध परम्परा ‘रासो’ के नाम से जानी जाती है जिसे लक्ष्य करके इस काल को हमने ‘वीरगाथा काल’ कहा है।
- अपभ्रंश नाम पहल बलभी के राजा धारसेन द्वितीय के शिलालेख में मिलता है जिसमें उसने अपने पिता गुहसेन (वि०सं० 650 के पहले) को संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों का कवि कहा है। सिद्धों की उद्धृत रचनाओं की भाषा देशभाषा मिश्रित अपभ्रंश या पुरानी हिन्दी की काव्यभाषा है।
- पुरानी हिन्दी की व्यापक काव्यभाषा का ढाँचा शौरसेनी प्रसूत अपभ्रंश अर्थात् ब्रज और खड़ी बोली (पश्चिमी हिन्दी) का था।
- आध्यात्मिक रंग के चश्में आजकल बहुत सस्ते हो गये हैं। उन्हें चढ़ाकर जैसे कुछ लोगों ने ‘गीतगोविन्द’ के पदों को आध्यात्मिक संकेत बताया है, वैसे ही विद्यापति के इन पदों को भी।