चाँद से थोड़ी-सी गप्पें कविता का सार
‘चाँद से थोड़ी-सी गप्पें कविता के कवि श्री शमशेर बहादुर सिंह हैं। प्रस्तुत कविता में कवि ने बाल-सुलभ कल्पनाओं का अत्यंत सुंदर एवं सजीव वर्णन किया है। चाँद से बच्चों ने अनेक ढंग से अपना रिश्ता जोड़ रखा है। इस कविता में ग्यारह वर्षीय एक बालिका ने आकाश को चाँद का वस्त्र समझा है।
उस वस्त्र पर अनेक सितारे जड़े हुए हैं। सितारों से जड़ा हुआ आकाश रूपी चाँद का यह वस्त्र सभी दिशाओं में फैला हुआ है। चमकते हुए वस्त्र में केवल चाँद का गोरा चिट्टा मुँह ही दिखाई देता है। वह बालिका चाँद के आकार में परिवर्तन (घटने-बढ़ने) को एक बीमारी बताती है, जो कभी भी ठीक होने वाली नहीं है। आप चाँद से थोड़ी-सी गप्पें कविता की व्याख्या को भी पढ़ सकते है।
अभ्यास के सभी प्रश्नों के उत्तर
प्रश्न 1. ‘आप पहने हुए हैं कुल आकाश’ के माध्यम से लड़की कहना चाहती है कि
(क) चाँद तारों से जड़ी हुई चादर जोड़कर बैठा है।
(ख) चाँद की पोशाक चारों दिशाओं में फैली हुई है।
तुम किसे सही मानते हो?
उत्तर- हम चाँद की पोशाक चारों दिशाओं में फैली हुई है को सही मानते हैं क्योंकि चंद्रमा की चांदनी सभी दिशाओं में फैलती है।
प्रश्न 2. कवि ने चाँद से गप्पे किस दिन लगाई होगी? इस कविता में आई बालों की मदद से अनुमान लगाओ और उसका कारण भी बताओ।
उत्तर – | दिन | कारण |
शुक्ल पक्ष | पूर्णिमा
प्रथमा से अष्टमी के बीच अष्टमी से पूर्णिमा के बीच
|
इस दिन चाँद पूरा गोल दिखाई देता है।
चाँद का आकार धीरे-धीरे बढ़ता जाता है और अष्टमी के दिन यह आमा गोल हो जाता है। चाँद का आकार धीरे-धीरे बढ़ता जाता है और पूर्णिमा के दिन वह पूरा गोल हो जाता है। |
कृष्ण पक्ष | अमावस्या
प्रथमा से अष्टमी के बीच अष्टमी से पूर्णिमा के बीच |
इस दिन चाँद का आकार बिल्कुल दिखाई नहीं पड़ता।
चाँद का आकार धीरे-धीरे घटने लगता है और आधा रह जाता है। चाँद का आकार बिल्कुल पतला-सा होते हुए दिखाई नहीं पड़ता। |
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प्रश्न 3. नयी कविता में तुक या छंद के बदले बिंग का प्रयोग अधिक होता है। बिंब यह तस्वीर होती है जो शब्दों को पढ़ते समय हमारे मन में उभरती है। कई बार कुछ कवि शब्दों की ध्वनि की मदद से ऐसी तस्वीर बनाते हैं और कुछ कवि अक्षरों या शब्दों को इस तरह छापने पर बल देते हैं कि उनसे कई चित्र हमारे मन में बने इस कविता के अंतिम हिस्से में चाँद को एकदम गोल बताने के लिए कवि ने वि स कुल शब्द के अक्षरों को अलग-अलग करके लिखा है। तुम इस कविता के और किन शब्दों को चित्र की आकृति देना चाहोगे? ऐसे शब्दों को अपने ढंग से लिखकर दिखाओ।
उत्तर- गोरा-चिह्न
गोरा-चिट्टा – गो-रा-चि-ट्-टा
गोल-मटोल – गो-ल-म-टो-ल
वाह जी वाह – वा-ह-जी-वा-ह
बढ़ते – ब-ढ़-ते
घटते – घ-ट-ते।
अनुमान और कल्पना
प्रश्न 1. कुछ लोग बड़ी जल्दी चिढ़ जाते हैं। यदि चाँद का स्वभाव भी आसानी से चिढ़ जाने का हो तो वह किन बातों से सबसे ज्यादा चिढ़ेगा? चिढ़कर वह उन बातों का क्या जवाब देगा? अपनी कल्पना से चाँद की ओर से दिए गए जवाब लिखो।
उत्तर- चाँद के घटने-बढ़ते आकार को कभी न अच्छा होने वाला मरजू कहने की बात पर वह (चाँद) सबसे ज्यादा चिढ़ेगा। वह जवाब देगा, मुझे कोई बीमारी नहीं है। में तो एकदम ठीक हूँ। बीमारी तुमको होगी मैं तो अपनी इच्छा के अनुसार छोटा-बड़ा हो सकता हूँ। जबकि तुम्हारे में यह गुण नहीं है।
प्रश्न 2. यदि कोई सूरज से गप्पें लगाए तो वह क्या लिखेगा? अपनी कल्पना से गया या पथ में लिखो। इसी तरह की कुछ और गप्पें निम्नलिखित में से किसी एक या दो से करके लिखो –
पेड़, बिजली का खंभा, सड़क, पेट्रोल पंप
उत्तर – सूरज से गप्पें – लगाने पर सूरज आप गर्मी के दिनों में तो हमेशा ही गुस्से में रहते हो सुबह-शाम तो कम दोपहर में तो आग बरसाते हो। हमें भागकर छाया में ही शरण लेनी पड़ती है। रात के समय तुम पता नहीं कहीं छिप जाते हो। रात्रि के अंधकार पर तुम्हारा कोई जोर नहीं चलता। परंतु सर्दी के दिनों में तुम्हारी किरणें सुख देने वाली बन जाती हैं। अतः तुम्हारा स्वभाव तो दुःखदायक एवं सुखदायक दोनों ही है।
पेड़ से गप्पे – पेड़ तुम्हारा स्वभाव कितना अच्छा है। तुम हर प्रकार से हमारी भलाई करते हो तुम हमें मीठे-मीठे फल देते हो। तुम्हारी छाया में बैठकर लोग अपनी थकान मिटाते हैं। चिड़ियाँ तुम्हारी डालों पर बैठकर मधुर गीत सुनाती हैं। तुम हमेशा सर्दी, गर्मी, बरसात सहते रहते हो। तुम अपने लिए पर क्यों नहीं बनाते ? हो, मगर तुम्हारा आकार इतना बड़ा है कि उसके लिए घर बनाना मुश्किल है।
सड़क से गप्पें – हे सड़क सहनशीलता का पाठ तो कोई तुमसे सीखे। सब तुम्हें पैरों से कुचलते हैं, फिर भी तुम बुरा नहीं मानती। सभी लोगों को तुम उनकी मंजिल तक पहुँचाती हो। परंतु तुम कभी कहीं नहीं जाती हो। लोग कहते हैं कि यह सड़क किसी दूसरे शहर तक जाती है, परंतु तुम तो हमेशा वहीं रहती हो।