Chandr Gahna Se Lauti Ber Question Answer
प्रश्न 1. ‘इस विजन में………… अधिक है’ पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों?
उत्तर – इन पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का आक्रोश व्यक्त हुआ है क्योंकि वहाँ के अत्यधिक व्यस्त एवं प्रतियोगितापूर्ण और भौतिकवादिता से युक्त जीवन में प्रेम जैसी कोमल और प्राकृतिक भावनाओं के लिए कोई स्थान नहीं है। दूसरी ओर, ग्रामीण अंचल के एकांत जीवन में प्रेम का संचार पूर्ण रूप से दिखाई देता है। इसलिए कवि का आक्रोश नगरीय संस्कृति व जीवन के प्रति व्यक्त हुआ है।
प्रश्न 2. सरसों की ‘सयानी’ कहकर कवि क्या कहना चाहता होगा ?
उत्तर – सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि यह कहना चाहता होगा कि सरसों अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक ऊँची हो गई है। ”सयानी’ शब्द से एक अर्थ यह भी निकलता है कि वह विवाह के योग्य हो गई है।
प्रश्न 3. अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – अलसी चने के पौधे के पास उगी हुई है और उनसे दूर नहीं होती। इसलिए उसके हठीली होने के भाव को व्यक्त किया गया है। दूसरी ओर, उसने अपने आपको नीले फूलों से सजाया हुआ है और कहती है कि जो उसको स्पर्श करेगा, उसे ही वह अपना हृदय दान में दे देगी अर्थात उससे प्रेम करेगी।
प्रश्न 4. अलसी के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है ?
उत्तर – वस्तुतः अतसी चने के पौधों के बिल्कुल पास उगी हुई है। उसके आस-पास चारों ओर चने के पौधे हैं, फिर भी वह अपने स्थान को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए कवि ने उसके लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग किया है।
प्रश्न 5. ‘चाँदी का बड़ा-सा गोत संभा’ में कवि की किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है ?
उत्तर – कवि ने तालाब के पानी में चमकते हुए सूर्य के प्रतिबिंध को देखकर पानी में ‘चांदी का बड़ा-सा गोल खंभा की सूक्ष्म एवं सजीव कल्पना की है।
प्रश्न 6. कविता के आधार पर ‘हरे चने’ का सौंदर्य अपने शब्दों में चित्रित कीजिए।
उत्तर – कविता में बताया गया है कि चने का पौधा केवल बालिश्त भर ऊंचा है अर्थात उसका कद छोटा है। उसने हरे पत्तों रूपी वस्त्र धारण किए हुए हैं और अपने सिर पर गुलाबी फूलों रूपी मुकुट धारण किया हुआ है। वह एक दुल्हे की भाँति सज-धज कर बड़ा हुआ है।
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प्रश्न 7. कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कहाँ-कहाँ किया है ?
उत्तर – प्रस्तुत कविता में कवि ने कई स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया है। सर्वप्रथम कवि ने चने के पौधों का मानवीकरण किया है। तत्पश्चात अलसी को ‘हठीली’ और ‘हृदय का दान करने वाली’ बताकर उसका मानवीकरण किया है। सरसों का ‘सयानी’ व पीले हाथ करना’ आदि के माध्यम से मानवीकरण किया है। तालाब के किनारे रखे पत्थरों को पानी पीते हुए से दिखाकर उनका भी मानवीकरण किया है।
प्रश्न 8. कविता में से उन पंक्तियों को ढूँढ़िए जिनमें निम्नलिखित भाव व्यंजित हो रहा है-
और चारों तरफ सूखी और उजाड़ जमीन है लेकिन वहाँ भी तोते का मधुर स्वर मन को स्पंदित कर रहा है।
उत्तर –
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रीवा के पेड़
कांटेदार कुरूप खड़े हैं।
सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें;
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चोरता,
चंद्र गहना से लौटती बेर कविता प्रश्न उत्तर
प्रश्न 9. ‘और सरसों की न पूछो इस उक्ति में बात को कहने का एक खास अंदाज़ है। हम इस प्रकार की शैली का प्रयोग कब और क्यों करते हैं?
उत्तर – और सरसों की न पूछो जैसी शैली का प्रयोग हम वहाँ करते हैं, जहाँ कोई व्यक्ति आशा से अधिक कार्य करता हो, जैसे रमेश की तो बात मत कीजिए, वह तो आजकल बहुत बड़ा अफसर बना हुआ है। बुरे अर्थ में भी इस शैली का प्रयोग किया जाता है। मोहन की क्या बात बताऊँ, उसने कुल की नाक कटवा दी।
प्रश्न 10. काले माये और सफेद पंखों वाली चिड़िया आपकी दृष्टि में किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है ?
उत्तर – काले माथे और सफेद पंखों वाली चिड़िया एक चालाक एवं चतुर व्यक्तित्व की प्रतीक हो सकती है, जो अवसर मिलते ही अपना वार कर देते हैं।
परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. चंदना से लोटती ने कविता का उद्देश्य स्पष्ट करें।
अथवा
“चंद गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर – “चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता एक सोद्देश्य रचना है। इस कविता में ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक छटा का उल्लेख करना ही प्रमुख लक्ष्य है। कविता संपूर्ण रूप से ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक सुषमा पर केंद्रित है। कपि च गहना नामक स्थान से लौट रहा था। लौटते समय कवि का मन गाँव के खेत में खड़ी फसल में रम जाता है। कवि की पैनी दृष्टि की प्राकृतिक सुंदरता को पहचानने में देर नहीं लगाती कविता है कि उसने चने के खेत देखे।
उसमें बलिश्त भर का चने का पौधा गुलाबी फूलों से लदा हुआ था। उसके बीच-बीच में अलसी के पौधे उगे हुए थे। उस पर नीले रंग के फूल खिले हुए थे। गुलाबी, नीले और हरे रंग के एक साथ होने से दृश्य अत्यन्त मनोरम बना हुआ था। इन अनुपम दृश्य को उजागर करना ही कवि का लक्ष्य रहा है। गेहूं के खेत में सरसों उगी हुई थी और आस पर पीले फूल लगे हुए थे। उसे देखकर कवि के जहन में विवाह मंडप की कल्पना उभर आती है। उसे लगा कि सरसों मानो अपने हाथ पीले करके मध्य में आ गई हो।
इसी प्रकार कवि ने फागुन के महीने में प्रकृति पर दीवन के आने की ओर संकेत किया है। गाँव के तालाब के आस-पास के एकांत एवं शांत वातावरण को शब्दों में सजीवतापूर्वक अंकित करना भी कविता का लक्ष्य है। विभिन्न पक्षियों की व्यक्तियों को ध्वन्यात्मक शब्दों में ढालकर एक मधुर वातावरण का निर्माण किया गया है। गाँव से थोड़ी दूरी पर रेत के बड़े-बड़े टीले थे, यहाँ का वातावरण पूर्णतः शून्यता से परिपूर्ण था।
उन टीलों के बीच से रेल की पटरी गुजर रही थी। जब रेल वहाँ से गुजरती होगी तो वातावरण की एकांतता को तोड़कर एक अनोखी हलचल मचा देती होगी। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत कविता का मूल भाव प्रकृति की छटा का वर्णन करना है। कवि अपने इस लक्ष्य में पूर्णतः सफल रहा है।
प्रश्न 2. निम्नांकित काव्य-पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
और सरसों की न पूछो-
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह मंडप में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
उत्तर – प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में कवि ने सरसों के विकास और उस पर फूल लग जाने के कारण उसमें उत्पन्न प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण किया है। कवि उसका मानवीकरण करते हुए कहते हैं कि वह ‘सयानी” अर्थात युवती बन गई है और वह अपना शृंगार करके मानों विवाह के मंडप पर आ गई है। कवि ने फागुन मास को फाग गीत गाने वाला बताकर फागुन मास के आने की सूचना भी दी है। कहने का भाव है कि प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में फागुन मास के आने पर सरसों के फूलने का सुंदर वर्णन किया है।
प्रश्न 3. पठित कविता के आधार पर केदारनाथ अग्रवाल की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – केदारनाथ अग्रवाल की काव्य-भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है। उनकी छोटी-छोटी कविताएँ चिंचों को ताजगी के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी काव्य-भाषा शुद्ध, साहित्यिक एवं व्याकरण सम्मत है। अनेक कविताओं में उनकी भाषा गद्यमय बन गई है, किंतु उसमें तप एवं प्रवाह सर्वत्र बना हुआ है। उन्होंने तत्सम शब्दों के साथ-साथ पोखर, मुरेटर, ठिगना, बटुल आदि लोकभाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया है। लोक-प्रचलित मुहावरों का प्रयोग करके भाषा को सारगर्भित भी बनाया है।
उनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है कि वह जीवन से उपजी हुई भाषा है और जीवन की रागात्मकता से जुड़ी रहती है। अनेक स्थलों में श्री केदारनाथ अग्रवाल ने अंग्रेजी व उर्दू-फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया है। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि केदारनाथ अग्रवाल को काव्य भाषा सरल, सहज एवं शुद्ध साहित्यिक भाषा है, जिसमें भावों की अभिव्यक्त करने की सहज क्षमता है। गंभीर-से-गंभीर भाद को सरल भाषा में व्यक्त करने की कला में अग्रवाल जी निपुण हैं।