ल्हासा की ओर पाठ का सार
ल्हासा की ओर पाठ श्री राहुल सांकृत्यायन की प्रथम तिब्बत यात्रा है जो उन्होंने 1929-50 में नेपाल के रास्ते से की थी। उस समय भारतीयों को तिब्बत यात्रा की अनुमति नहीं थी। इसलिए राहुल जी ने यह यात्रा भिखमंगे के छद्मवेश में की थी। इसमें उन्होंने तिब्बत की राजधानी ‘ल्हासा’ की ओर जाने वाले दुर्गम रास्तों का वर्णन अत्यंत रोचकतापूर्ण किया है। जब राहुल जी ने यह यात्रा की थी, तब फरी-कलिड्योड़ का मार्ग नहीं खोला गया था। इसलिए भारत की वस्तुएँ नेपाल होकर ही तिब्बत जाती थीं।
इसे सैनिक व व्यापारिक रास्ता भी कहा जाता था। मार्ग में स्थान-स्थान पर चीनी सेना की चौकियाँ और किले बने हुए थे जिनमें चीनी पलटन के सैनिक रहते थे। किन्तु आजकल वे दुर्ग गिर चुके हैं और उनमें किसान रहते हैं। मार्ग में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वहाँ जातिगत भेदभाव नहीं है और न ही स्त्रियों वहाँ परदा करती हैं। वे आपके लिए निःसंकोच खाना पका देंगी व चाय बना देंगी। वे यात्रियों की खूब सेवा करती हैं।
परित्यक्त चीनी किले से चाय पीने के पश्चात् जब लेखक आगे बढ़ा तो उन्हें राहदारी देनी पड़ी। उसी दिन वे बोला के पहले के अंतिम गाँव में पहुँच गए। वहाँ उनके सहायक सुमति के जान-पहचान के आदमी थे। भिखमंगे के वेश में होने पर भी उन्हें रहने के लिए अच्छी जगह मिली। लेखक पाँच वर्ष पश्चात् एक यात्री के रूप में इस स्थान से गुजरा था, किन्तु तब उसे किसी ने अच्छी जगह नहीं दी थी। यह वहाँ के लोगों की मनोवृत्ति पर निर्भर करता है।
लेखक की अब सबसे खतरनाक मार्ग डाँड़ा थोड्ला पार करना था। तिब्बत में सबसे खतरनाक स्थान डाँड़ है। यहाँ दूर-दूर तक मार्ग के दोनों ओर कोई गाँव नहीं है। डाकुओं के लिए यह सबसे अच्छी जगह है। ऐसे स्थान पर हुए खून की वहाँ परवाह नहीं की जाती और न ही सरकार इस ओर कोई ध्यान देती है। हथियार का कानून न होने के कारण वहाँ लाठी की भाँति लोग पिस्तौल व बंदूक रखते हैं। इस मार्ग पर अनेक खून हो चुके थे, किन्तु लेखक को खून की कोई परवाह नहीं थी क्योंकि वह भिखमंगे के वेश में था। पहाड़ की ऊँची चढ़ाई और पीठ पर सामान लदा हुआ था। अगला पड़ाव भी 16-17 मील की दूरी पर था। लेखक के सहायक ने दो घोड़े लेने की सलाह दी।
Lhasa ki aur Summary
अगले दिन वे घोड़ों पर सवार होकर चले और दोपहर तक डाँड़े से ऊपर जा पहुँचे। वहीं हजारों मील तक पहाड़-ही-पहाड़ थे। भीटे की ओर दिखाई देने वाले पहाड़ तो बिल्कुल नंगे थे। डाँड़े के सबसे ऊँचे स्थान पर वहाँ के देवता का स्थान था, जो पत्थरों के ढेर, जानवरों के सींगों और रंग-बिरंगे कपड़ों की झाड़ियों से सजाया हुआ था। लेखक के साथ कुछ और गुड़सवार भी चल रहे थे। अब चढ़ाई कम थी, किन्तु उतराई अधिक थी। लेखक का घोड़ा बहुत सुस्त पड़ गया था।
इसलिए लेखक अन्य सवारों से पिछड़ गया था। आगे चलकर दो मार्ग फूट रहे थे। लेखक गलत मार्ग पर चल पड़ा। एक डेढ़ मील चलकर पता चला कि वह गलत मार्ग पर जा रहा है। उसने लौटकर सही मार्ग पकड़ा गाँव से मील भर की दूरी पर लेखक सुमति से सांय के चार-पाँच बजे मिला। वह उस पर लाल-पीला हो उठा। किन्तु लेखक ने घोड़े की धीमी गति का बहाना बताकर उसे शांत कर दिया। लङ्कोर में वे एक अच्छी जगह पर ठहरे थे। पहले उन्होंने चाय-सत्तू खाया और रात को गरमागरम चुक्पा मिला।
अंततः लेखक तिरी के विशाल मैदान में पहुँच गया जो पहाड़ों से घिरा टापू-सा लगता था। उसमें एक छोटी-सी पहाड़ी दिखाई देती थी। उसी पहाड़ी का नाम ‘तिश्री समाधि-गिरि’ था। वहाँ सुमति के अनेक यजमान थे जिनके पास वह जाना चाहता था। किन्तु लेखक ने उसे जाने की आज्ञा नहीं दी। हाँ, इतना अवश्य कहा कि जिस गाँव में वे रुके थे, उसी गाँव के यजमानों में वह गड बाँट सकता है। सुमति ने यह बात स्वीकार कर ली। दूसरे दिन उन्हें कोई भरिया नहीं मिला।
वे सुबह ही आगे चल दिए। तिब्बत में 10-11 बजे तक धूप बहुत तेज हो जाती है। वे दो बजे तक सूरज की ओर मुँह करके चलते रहे। ललाट धूप से जलता रहा। तिब्बत की जमीन बहुत-से छोटे-बड़े ज़मींदारों में बंटी हुई है। प्रत्येक जमींदार अपनी-अपनी जमीन पर खेती स्वयं कराते हैं, जिसके लिए मजदूर बेगार में मिल जाते हैं। खेती का प्रबंध देखने के लिए किसी भिक्षु को भेज दिया जाता है। वह किसी राजा से कम नहीं होता। सुमति के यजमान शेकर की खेती का मुखिया भिक्षु बहुत अच्छा व्यक्ति था।
वह लेखक के भिखारी के वेश में होने पर भी बहुत प्रेम से मिला। वहाँ उन्हें एक मंदिर में ठहराया गया। इस मंदिर में कन्जुर (बुद्धवचन अनुवाद) की हस्तलिखित 103 पोथियाँ रखी हुई थीं। वे मोटे और अच्छे कागज पर लिखित थीं। एक-एक पोथी का बोझ 15-15 सेर से कम न था। लेखक उनमें रम गया तथा सुमति दूसरे दिन तक अपने यजमानों से मिलकर लौट आया। तिरी गाँव वहाँ से दूर नहीं था। उन्होंने अपना-अपना सामान पीठ पर लादा और अपने मार्ग पर चल दिए।
ल्हासा की ओर पाठ प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. बोड़ला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्रवेश भी उन्हें उचित स्वान नहीं दिला सका। क्यों ?
उत्तर – लेखक जब पहली बार तिब्बत की यात्रा पर गया तो एक भिखारी के वेश में था। यात्रा के समय मार्ग में उसकी मुलाकात मंगोल जाति के बौद्ध भिक्षु से हुई थी। जिसे लेखक ने सुमति का नाम दिया। सुमति को तिब्बत के गाँवों में बहुत जान-पहचान थी। वहीं के लोग उसका बहुत सम्मान करते थे। उसके साथ होने के कारण ही लेखक को भिखारी के वेश में भी ठहरने का उचित स्थान मिला. था। किन्तु दूसरी बार वह एक सम्मानित यात्री के रूप में संध्या के समय तिब्बत पहुँचा था। उस समय वहाँ के लोग नशीला पदार्थ पीने के कारण नशे की अवस्था में थे। इसलिए उसे ठहरने के लिए कोई उचित स्थान नहीं मिला था।
प्रश्न 2. उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था ?
उत्तर – उस समय जब लेखक में तिब्बत की यात्रा की थी तब वहाँ हथियार का कानून न होने के कारण लोग लाठियों की भाँति पिस्तौल और बंदूक उठाए फिरते थे। उस समय एकात मार्ग पर चलते समय डाकुओं का भव सदा बना रहता था कि कहीं कोई डाकू उनका खून न कर डाले। कहने का भाव है कि यात्रियों के साथ लूटपाट व उनकी हत्या होने का भय बना रहता था।
प्रश्न 3. लेखक लड़कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया था ?
उत्तर – लेखक के अपने साथियों से पिछड़ने के मुख्यतः दो कारण थे
(1) उसका घोड़ा बहुत धीमी चाल से चल रहा था।
(2) दूसरा कारण था कि लेखक रास्ता भूल गया था। उसे एक-डेढ़ मील चलने पर पता चला था कि वह गलत मार्ग पर जा रहा है। वहां से लौटने में भी उसे देरी हो गई थी।
प्रश्न 4. लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका, परन्तु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया ?
उत्तर – शेकर बिहार में लेखक मित्र सुमति अपने यजमानों को, जो आसपास के गांवों में रहते थे, मिलना चाहता था। लेखक ने उसे इसलिए रोका क्योंकि यह अपने यजमानों से मिलने में कई दिन लगा देता और यात्रा में और भी विलंब हो जाता। दूसरी बार लेखक ने सुमति को यजमानों से मिलने के लिए इसलिए नहीं रोका क्योंकि लेखक मंदिर में रखी हस्तलिखित कन्जुर (बुद्धवचन-अनुवाद) की पोथियों को पढ़ना चाहता था। उसके जाने पर उसे उन पोवियों को पढ़ने का समय मिल जाता।
प्रश्न 5. अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
उत्तर – लेखक को पहाड़ों पर पैदल चलना पड़ा था। इसके साथ ही लेखक को अपना सामान भी स्वयं उठाना पड़ा था। दूसरी बड़ी कठिनाई यह रही कि लेखक साधारण यात्री के वेश में नहीं था। उसने भिखमंगे का रूप धारण किया हुआ था जबकि तिब्बत में भिखमंगों के प्रति आदर का भाव नहीं रखा जाता था। इसलिए लेखक को कदम-कदम पर संदेह की दृष्टि से देखा जाता था। लेखक को भार दोने वाला व्यक्ति न मिलने पर भी यात्रा में कठिनाई का सामना करना पड़ा। एक स्थान पर जब लेखक ने भार उठाने और सवार होने के लिए घोड़ा लिया तो वह बहुत ही धीमी गति से चला, फलस्वरूप लेखक अपने अन्य साथियों से पिछड़ गया। निर्जन मार्ग पर चलते समय डाकुओं द्वारा लूटने व हत्या होने का भय भी लेखक के मन में था।
प्रश्न 6. प्रस्तुत यात्रा-वृतांत के आधार पर बताइए कि उस समय का तिब्बती समाज कैसा था ?
उत्तर – जिस समय लेखक ने तिब्बत की पात्रा की थी, उस समय तितका सामाजिक डॉ या स्थित था। यहाँ पर जातिगत भेदभाव नहीं किया जाता था। सब एक-दूसरे को समान समझते थे स्वियों भी परदा नहीं करती थी। मिलमंगों को छोड़कर सभी का आदर या सम्मान किया जाता था किन्तु हथियार रखने का कानून न होने के कारण वहाँ प्र येक व्यक्ति लाठी की भाँति हथियार (पिस्तोल व बंदूक उठाए फिरता था। निर्जन मार्ग में डाकुओं का भय भी था। तिब्बत में जागीरदारी व्यवस्था थी यहाँ छोटे बड़े सभी प्रकार के जागीरदार थे, किन्तु अधिकांश जागीर बौद्ध विहारों के पास थीं। खेतों में काम करने वाले मजदूरों का शोषण कि जाता था। जागीरों में बौद्ध भिक्षुओं को राजा के समान आदर दिया जाता था।
प्रश्न 7. ‘में अब पुस्तकों के भीतर था।’ नीचे दिए गए विकल्पों में से कौन-सा इस वाक्य का अर्थ बतलाता है
(क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।
(ख) लेखक पुस्तकों की शैल्फ के भीतर पता गया।
(ग) लेखक के चारों जोर पुस्तकें ही थीं।
(घ) पुस्तक में लेखक का परिचय और चित्र छपा था।
उत्तर – (क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 8. सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिले। इस आधार पर आप सुमति के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का चित्रण कर सकते हैं ?
उत्तर – सुमति के यजमान और अन्य परिचितों का हर गाँव में मिलने से पता चलता है कि वह बहुत ही मिलनसार व्यक्ति है। वह सबके भले की कामना करता है, तभी उसे हर गाँव में सम्मान दिया जाता है। वह परोपकारी व्यक्ति है। यह हमारे लेखक के लिए तिब्बत में प्रवेश की राहदारी बनवाता है और अपने परिचितों के यहाँ ठहराता है। वह थोड़ा-सा लालची प्रवृत्ति का भी है क्योंकि वह हर गाँव में अपने यजमानों को गंडे देना चाहता है क्योंकि उसके बदले में यजमान उसे दान-दक्षिणा अवश्य देते हैं।
प्रश्न 9. हालांकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी खयाल करना चाहिए था उक्त कवन के अनुसार हमारे आचार-व्यवहार के तरीके वेशभूषा के आधार पर तय होते हैं आपकी समझ से यह उचित है अथवा अनुचित, विचार व्यक्त करें।
उत्तर – हमारे आचार-व्यवहार के तरीकों का वेशभूषा के आधार पर तय होना उचित नहीं है क्योंकि किसी भी व्यक्ति की वेशभूषा को देखकर उसके अच्छे-बुरे का निर्णय करना अथवा उसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए इसका अंदाजा लगाना उचित नहीं है। अतः हमें किसी की वेशभूषा की अपेक्षा व्यक्ति के गुणों को देखकर ही उसके साथ व्यवहार करना चाहिए।
प्रश्न 10. यात्रा-वृत्तांत के आधार पर तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का शब्द-चित्र प्रस्तुत करें। वहाँ की स्थिति आपके राज्य/शहर से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर –तिब्बत पहाड़ों में बसा एक देश है। वहीं ऊँचे ऊँचे पर्वत हैं तथा उनको काटती हुई अनेक जल की धाराएँ बहती हैं। वहाँ के कुछ पहाड़ों पर कुछ हरे-भरे वृक्ष बर्फ से ढके हुए हैं तो कुछ बिल्कुल नंगे हैं। कहीं कहीं थोड़ी-बहुत समतल भूमि भी है। कहीं-कहीं तो पहाड़ों से घिरा हुआ टापू-सा लगता है। कहीं-कहीं पहाड़ों की ढलानों पर छोटे-छोटे गाँव बसे हुए हैं। पहाड़ों को काटकर छोटे-छोटे मार्ग व सड़कें बनाई हुई हैं। पहाड़ी की चढ़ाई कहीं-कहीं सरल है तो कहीं-कहीं अत्यंत सीधी और कठिन है। हमारे हरियाणा राज्य से तिब्बत की भौगोलिक स्थिति पूर्णतः भिन्न है। यहाँ की भूमि सर्वत्र समतल है और चारों और हरे-भरे खेत लहराते हैं। सिंचाई के अनेक साधन हैं। आवागमन के लिए सड़कों व रेल की पटरियों का जाल बिछा हुआ है।
प्रश्न 11. आपने भी किसी स्थान की यात्रा अवश्य की होगी, यात्रा के दौरान हुए अनुभवों को लिखकर प्रस्तुत करें।
उत्तर – मैंने छोटी-छोटी कई यात्राएं की हैं। उनमें से एक यात्रा के दौरान हुए अनुभवों का वर्णन इस प्रकार है। में अपने स्कूल के बच्चों के साथ गर्मियों के अवकाश में कुल्लू-मनाली गया था। स्कूल की ओर से एक प्राइवेट बस का प्रबंध किया गया। हम लगभग 40 विद्यार्थी और दो अध्यापक उस यात्रा में थे सबसे रोचक अनुभव मेरे लिए यह रहा कि मैंने प्रथम बार रात को यात्रा की थी। प्रातः होते ही हम कुल्लू पहुँच गए थे। वहाँ से नाश्ता करने के पश्चात् हमारी बस मनाली के लिए चल पड़ी।
मार्ग में घुमावदार पहाड़ी सड़कों से जाते पहाड़ों एवं नदी-नालों के दृश्य देखते ही बनते हैं। मनाली हिमाचल प्रदेश का सबसे सुंदर पर्यटन
दल है। यहाँ हम एक दिन ठहरे तथा आस-पास के सुंदर स्थान एवं प्राकृतिक दृश्य देखे। अगले दिन हमने रोहतांग दर्रा देखने का निश्चय किया और कई छोटी बस किराए पर को आस-पास के पूरे क्षेत्र में बर्फ दिखाई दे रही थी। वहीं का तापमान बहुत कम था। वहाँ पर अनेक विदेशी पर्यटक भी घूमने के लिए आए हुए थे। कुछ ही दूरी पर चीन का बार्डर दिखाई दे रहा था।
हम रोहतांग दर्श देखकर लौट रहे थे कि एक बर्फीला तूफान आ गया। पहले तो में घबरा गया कि हम अपने दारने के स्थान पर कैसे पहुंचेंगे। किन्तु बस के ड्राइवर ने हमें साहस दिलाया और कहा कि यह तूफान थोड़ी देर में निकल जाएगा सफान खत्म होने पर हम फिर चल पड़े और सूर्य छिपते- विपते उम मनाली लौट आए। अगले दिन प्रातः यहां से वापस चल पड़े और अपनी यात्रा के सट्टे-मीठे अनुभवों के साथ पर पहुँच गए।
प्रश्न 12. यात्रा-वृत्तांत गद्य साहित्य की एक किया है। आपकी इस पाठ्यपुस्तक में कौन-कौन सी विधाएं हैं? प्रस्तुत दिया उनसे किन मायनों में अलग है ?
उत्तर – हमारी पाठ्यपुस्तक में कहानी, निबंध, यात्रा, संस्मरण, रिपोर्ताज, व्यंग्य आदि गद्य साहित्यिक विधाऐं संकलित हैं। प्रत्येक विद्या का अपना-अपना महत्व है ‘यात्रा’ विधा इन सभी विधाओं से अलग है। कहानी में कथानक, पाच, संवाद, देशकाल और वातावरण प्रमुख होता है। निबंध विचारों का गुफन होता है और संस्मरण में पूर्व जीवन में बीती बातों को अनुभव के साथ लपेटकर प्रस्तुत किया जाता है तो व्यंग्य में किसी प्रवृत्ति पर करारा व्यंग्य करके उसकी वास्तविकता को नंगा करने का प्रयास किया जाता है।
किन्तु यात्रा में यह सब कुछ नहीं होता यात्रा में देखी और अनुभव की हुई बातों के साथ प्राकृतिक दृश्यों, स्थान-विशेष की भौगोलिक स्थितियों, यहाँ की संस्कृति, सामाजिक जीवन, रीति-रिवाजों आदि को यथार्थ रूप से साहित्यिक भाषा में प्रस्तुत किया जाता है। यह कल्पना की अपेक्षा तथ्यों पर आधारित होती है। रोचकता का तत्व इसमें आदि से अंत तक बना रहता है। अतः स्पष्ट है कि यात्रा-वृत्तांत गद्य साहित्य की एक स्वतंत्र विधा है।
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प्रश्न 1. यह यात्रा राहुल जी ने 1930 में की थी। आज के समय यदि तिब्बत की यात्रा की जाए तो राहुल जी की यात्रा से कैसे भिन्न होगी है।
उत्तर – जब राहुल जी ने यह यात्रा की थी तब आवागमन के साधन नहीं थे और न ही तिब्बत जाने वाला मार्ग “फरी कतिड्पीड’ खुला था इसलिए उस समय की यात्रा और आज की जाने वाली यात्रा में निश्चित रूप से अंतर होगा उस समय कोई मोटरगाड़ी आदि यहाँ नहीं चलती थी। इसलिए उन्हें यात्रा पैदल व घोड़ों पर करनी पड़ी थी। मार्ग में चोर डाकुओं का भी डर निरंतर बना रहता था, किन्तु आजकल तिब्बत में आने-जाने के साधन उपलब्ध है। चोर डाकुओं का भी कोई डर नहीं है। कहने का तात्पर्य है कि आज की तिब्बत यात्रा राहुल जी की 1930 में की गई यात्रा से अत्यंत सरल एवं आरामदायक होगी।
प्रश्न 3. अपठित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
उत्तर – आम दिनों में समुद्र किनारे के इलाके बेहद खूबसूरत लगते हैं। समुद्र लाखों लोगों को भोजन देता है और लाखों उससे जुड़े दूसरे कारोबारों में लगे हैं। दिसंबर 2004 को सुनामी या समुद्री भूकंप से उठने वाली तूफानी लहरों के प्रकोप ने एक बार फिर सावित कर दिया है कि कुदरत की यह देन सबसे बड़े विनाश का कारण बन सकती है। प्रकृति कब अपने ही ताने-बाने को उलटकर रख देगी, कहना मुश्किल है।
हम उसके बदलते मिजाज को उसका कोप कह लें या कुछ और मगर यह अबूझ पहेली अकसर हमारे विश्वास के चीथड़े कर देती है और हमें यह अहसास करा जाती है कि हम एक कदम आगे नहीं, चार कदम पीछे हैं। एशिया के एक बड़े हिस्से में आने वाले उस भूकंप ने कई द्वीपों को इधर-उधर खिसकाकर एशिया का नक्शा ही बदल डाला। प्रकृति ने पहले भी अपनी ही दी हुई कई अद्भुत चीजें इंसान से वापस ले ली हैं जिसकी कसक अभी तक है।
दुख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है। वह हमारे जीवन में ग्रहण लाता है, ताकि हम पूरे प्रकाश की अहमियत जान सकें और रोशनी को बचाए रखने के लिए जतन करें। इस जतन से सभ्यता और संस्कृति का निर्माण होता है। सुनामी के कारण दक्षिण भारत और विश्व के अन्य देशों में जो पीड़ा हम देख रहे हैं, उसे निराशा के चश्मे से न देखें। ऐसे समय में भी मेघना, अरुण और मैगी जैसे बच्चे हमारे जीवन में जोश, उत्साह और शक्ति भर देते हैं 13 वर्षीय मेघना और अरुण दो दिन अकेले खारे समुद्र में तैरते हुए जीव-जंतुओं से मुकाबला करते हुए किनारे आ लगे।
इंडोनेशिया की रिजा पड़ोसी के दो बच्चों को पीठ पर लादकर पानी के बीच तैर रही थी कि वह विशालकाय सौंप ने उसे किनारे का रास्ता दिखाया। मछुआरे की बेटी मैगी ने रविवार को समुद्र का भयंकर शोर सुना, उसकी शरारत को समझा, तुरंत अपना बेड़ा उठाया और अपने परिजनों को उस पर बिठा उतर आई समुद्र में, 41 लोगों को लेकर महज 18 साल की यह जलपरी चल पड़ी पगलाए सागर से दो-दो हाथ करने। दस मीटर से ज्यादा ऊँची सुनामी लहरें जो कोई बाधा, रुकावट मानने को तैयार नहीं थीं, इस लड़की के बुलंद इरादों के सामने बौनी ही साबित हुई।
जिस प्रकृति ने हमारे सामने भारी तबाही मचाई है, उसी ने हमें ऐसी ताकत और सूझ दे रखी है कि हम फिर से खड़े होते हैं और चुनौतियों से लड़ने का एक रास्ता ढूंढ निकालते हैं। इस त्रासदी से पीड़ित लोगों की सहायता के लिए जिस तरह पूरी दुनिया एकजुट हुई है, वह इस बात का सबूत है कि मानवता हार नहीं मानती।
(1) कौन-सी आपदा को सुनामी कहा जाता है ?
(2) ‘दुख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है’-आशय स्पष्ट कीजिए।
(3) मैगी, मेघना और अरुण ने सुनामी जैसी आपदा का सामना किस प्रकार किया ?
(4) प्रस्तुत गद्यांश में ‘दृढ़ निश्चय’ और ‘महत्त्व’ के लिए किन शब्दों का प्रयोग हुआ है ?
(5) इस गद्यांश के लिए एक शीर्षक ‘नाराज समुद्र’ हो सकता है। आप कोई अन्य शीर्षक दीजिए।
उत्तर – (1) समुद्री भूकंप से उठने वाली तूफानी लहरों की सुनामी कहा जाता है।
(2) जीवन में आने वाले दुख व संकट का सामना करने से मनुष्य के जीवन में साहस और हिम्मत उत्पन्न होती है। उसी साहस और हिम्मत के बल पर हम जीवन को और भली-भाँति जीने का प्रयास करते हैं। अतः यह कहना ठीक है कि दुख जीवन को माँजता है और उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है। दुख न हो तो मनुष्य साहसी नहीं बन सकता।
(3) मैगी ने अपने बेड़े पर अपने परिवार के अतिरिक्त 41 लोगों की जानें बचाई थीं उसने समुद्र की भयंकर लहरों का सामना करके साहसी कार्य किया था।
मेघना 18 वर्षीय मेघना दो दिन अकेली समुद्र के खारे पानी में तैरती हुई और समुद्री जीव-जंतुओं का मुकाबला करती हुई समुद्र के किनारे आ लगी। अरुणा-अरुणा दो दिनों तक समुद्र की लहरों का मुकाबला करती हुई किनारे पर आ पहुँची थी। उसके साहस को देखकर अच्छे अच्छे तैराक भी अवाक रह गए थे।
(4) दृढ निश्चय और महत्त्व के लिए क्रमशः बुलंद इरादों’ और ‘अहमियत का प्रयोग किया गया है।
(5) इस गद्यांश का शीर्षक ‘नाराज समुद्र’ के अतिरिक्त ‘समुद्री प्रकोप’ भी हो सकता है।
परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘लहासा की ओर’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – लहाता की ओर एक यात्रावृत्त है। इसमें श्री राहुल सांकृत्यायन ने अपनी तिब्बत यात्रा का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया है। लेखक ने यह यात्रा नियमानुकृत नहीं की अपितु छद्मवेश में की है क्योंकि उस समय भारतीयों को तिब्बत यात्रा की अनुमति नहीं थी। इस यात्रावृत्त के लेखन का प्रमुख उद्देश्य तिब्बत के लोगों के जीवन का वर्णन करना है। साथ ही तिब्बत एक पहाड़ी क्षेत्र हैं वहाँ की प्राकृतिक छटा को दर्शाना भी लेखक के लिए मुख्य बात थी। भारत से तिब्बत तक की यात्रा करने में कैसी-कैसी कठिनाइयाँ आती हैं, दशांना भी यात्रावृत्त का लक्ष्य है तिब्बत में लोगों का जीवन कैसा है, उनके व्यवसाय, समाज, संस्कृति अर्थिक 1 “व्यवस्था आदि सभी का एक साथ वर्णन करना भी महत्त्वपूर्ण लक्ष्य रहा है।
प्रश्न 2. पठित पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि भारतीय महिलाओं की अपेक्षा तिब्बती महिलाओं की स्थिति अधिक सुरक्षित है।
उत्तर – भारत में महिलाओं को पुरुषों से परदा करना पड़ता है, जबकि तिब्बत में ऐसी कोई प्रधा नहीं है। भारत में महिलाएं अपरिचित व्यक्ति को घर में नहीं घुसने नहीं देतीं। उनके घर के अन्दर तक जाना तो और भी कठिन है। इसका कारण है कि वे असुरक्षित अनुभव करती हैं। तिब्बती महिलाएं न तो परदा करती हैं और न ही किसी अपरिचित से भयभीत ही होती हैं, अपितु अपरिचितों पर सहज विश्वास करके उनका स्वागत करती है और मुसीबत में अपनी सुरक्षा स्वयं कर लेती हैं।
प्रश्न 3. पठित पाठ के आधार पर नमुसे का परिचय देते हुए उसके जीवन की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – नम्से एक बौद्ध भिक्षु था वह तिब्बत में शेकर बिहार नामक जागीर का प्रमुख बौद्ध भिक्षु था उस जागीर में उसका खूब मान-सम्मान था। वह अत्यन्त ही भला व्यक्ति या अहंकार तो उसे छूता भी नहीं था। वह लेखक से अत्यन्त प्रेम एवं सम्मानपूर्वक मिला। यद्यपि उस समय लेखक भिखारी की वेशभूषा में था, किन्तु नमुसे ने इस और ध्यान न देकर उसका हार्दिक स्वागत किया।
प्रश्न 4. लेखक को भिखारी के वेश में तिब्बत की यात्रा क्यों करनी पड़ी ?
उत्तर – पाठ में बताया गया है कि तिब्बत के पहाड़ों में निर्जन स्थान अधिक है वहाँ लूटपाट व हत्या का भय बना रहता है। वहाँ ज्यादातर हत्याएँ धन व रुपए-पैसे लूटने के लिए की जाती हैं। लेखक ने डाकुओं से बचने के लिए यह देश धारण किया था। जब भी लेखक के सामने कोई भयानक दिखने वाला व्यक्ति आता तो यह कुची-कुची (दया- दया) एक पैसा’ कहकर भीख माँगने लगता। अतः स्पष्ट है कि लेखक ने अपने जान-माल की सुरक्षा हेतु यह उपाय किया था।
प्रश्न 5. लेखक सुमति को उसके यजमानों से मिलने को क्यों मना करता था ?
उत्तर – सुमति का स्वभाव थोड़ा लालची था। वह यजमानों के पास जाकर हफ्ता-हफ्ता आने का नाम नहीं लेता था। इतने दिनों तक लेखक को उसकी प्रतीक्षा में एक ही स्थान पर ठहरना पड़ता था। इससे उसकी यात्रा में बाधा पड़ती थी। इसलिए लेखक सुमति को उसके यजमानों से मिलने से मना करता था।
प्रश्न 6. पाठ में वर्णित ‘बोला के जंगल’ का उल्लेख सार रूप में कीजिए।
उत्तर – डाँड़ा घोड़ला का जंगल तिब्बत का खतरनाक स्थान माना जाता है यह जंगल सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित है। इन जंगलों के आस-पास कोई गाँव व बस्ती नहीं है। नदियों के मोड़ों व पहाड़ों के कारण यहाँ कोई आदमी दिखाई नहीं देता। ये जंगल डाकुओं के लिए सुरक्षित स्थल हैं। यहाँ सरकार पुलिस पर अधिक धन खर्च नहीं करती। इसलिए यहाँ आदमी की हत्या करना बहुत सरल है। डाकू पहले आदमी को मार डालते हैं फिर उसका माल लूटते हैं। यही कारण है कि लोग यहाँ अपनी सुरक्षा के लिए लाठी की अपेक्षा बंदूक व पिस्तौल लिए फिरते हैं।