लॉटरी कहानी सार/सारांश | Lottery Kahani Summary : Munshi Premchand

मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में जहाँ किसान, महाजन, नारी, जमींदारी आदि समस्याओं को उठा है यहाँ उन्होंने मध्यवर्ग के पारिवारिक समस्याओं के साथ बहुत कम समय में अमीर बनने या अधिक से अधिक धन कमाने की लालसा के परिणामों पर भी विचार किया है। मध्य वर्ग के रातों-रात अमीर बनने की ख्वाहिश का इस कहानी में लेखक ने सजीव चित्रण किया है।

लॉटरी कहानी सार

लेखक के मित्र विक्रम के परिवार के बड़े ठाकुर, छोटे ठाकुर, बड़ी ठकुराईन, उसका बड़ा भाई प्रकाश और बहन कुंती आदि प्रमुख पात्र हैं। इस परिवार का हर सदस्य जल्द से जल्द धन कमाने का इच्छुक है। इसलिए लॉटरी का टिकट खरीदा गया है।

विक्रम जो लेखक का मित्र है, उसे शंका है कि जिसके नाम से लॉटरी के पैसे निकलेंगे फिर शायद वह किसी को न पूछे। अगर पूछेंगे भी तो दस-पाँच हजार ही तो देंगे। यद्यपि उसके जीवन के अनेक स्वप्न है। सारे जगत् का तसल्ली के साथ भ्रमण करने के बाद एक बहुत बड़ा पुस्तकालय भी बनवाना है। छोटी-छोटी जरूरत की वस्तुएँ भी तो लेनी हैं। यह सब तो तभी संभव होगा जब उसके नाम लॉटरी निकले। किन्तु टिकट खरीदने के लिए दस रुपये की आवश्यकता है। घरवालों से कोई उम्मीद न देखकर उसने लेखक के साथ मिलकर टिकट लेने का निश्चय किया। वह अपनी अंगूठी बेचने को तैयार हो गया। किन्तु लेखक की सलाह मानकर उसने पुरानी किताबें बेचकर टिकट खरीद लिया। लॉटरी के दस लाख को पाँच-पाँच लाख बाँटने की बात तय की गई।

लॉटरी का टिकट खरीदते ही दोनों ने अपने-अपने भविष्य के ख्वाब देखने आरम्भ कर दिये। विक्रम अपनी विश्वयात्रा और पुस्तकालय के सपने देखने लगा और लेखक भी अपना पारिवारिक बोझ कम करने की कल्पना करने लगा। उन्होंने यह निश्चय किया कि लॉटरी में मिली रकम खर्च करने की अपेक्षा लेन-देन के कार्य में लगाई जाएगी। धन जमा होने पर पहले से बनाई गई योजना पर ध्यान दिया जाएगा। अब समस्या यह थी कि लॉटरी का टिकट किसके नाम से खरीदा जाए। विक्रम की जिद के कारण लेखक को सहमत होना पड़ा कि टिकट विक्रम के नाम से ही खरीदा जाएगा। यद्यपि उसे सन्देह था कि बिना लिखा-पढ़ी किये बाद में कठिनाई उत्पन्न हो सकती है। विक्रम और लेखक आपस में पड़ोसी थे और आमतौर पर विक्रम के घर में दोनों मिलकर लॉटरी से मिली रकम को लेकर घंटों बातें करते थे। इसी सन्दर्भ में जब शादी की बात चली तो विक्रम बोल उठा कि वह शादी के झंझट में नहीं पड़ना चाहता। पत्नी के नाज-नखरे में ही बहुत से पैसे खत्म हो जाएँगे जबकि लेखक का मत था कि सुख-दुःख में पत्नी ही अच्छे मित्र की भाँति साथ देती है।

कई दिनों तक वे इसी प्रकार कल्पना के मनसूबे बांधते रहे। एक दिन जब वे विक्रम के घर के कमरे में अपने सपने संजो रहे थे कि विक्रम की बहन कुंती वहाँ आ धमकी। पहले विक्रम ने उसे डांट दिया किन्तु जब कुंती ने यह बताया कि वह अम्मा की लॉटरी निकलने के लिए प्रार्थना करने जा रही है और फिर कुंवारी लड़कियों की प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती तो उन दोनों ने उसे प्रलोभन देकर अपनी-अपनी लॉटरी के लिए भी प्रार्थना करने के लिए कहा। दोनों मित्रों ने उससे वह भी अनुरोध किया, वह उनकी लॉटरी के टिकट की बात किसी से नहीं कहेगी। किन्तु कुंती के पेट में भला ऐसी बात कब पचती थी। उसने घर में जाकर तुरंत उनकी सारी योजना सब को बता दी। फिर क्या था सबने विक्रम को जमकर भला-बुरा कहा और साथ लेखक की भी अच्छी प्रकार खबर ली।

उधर बड़े ठाकुर व छोटे ठाकुर साहब जो ईश्वर और पूजा में कभी विश्वास न करते थे किन्तु अब घंटों ईश्वर वंदना व पाठ-पूजा में लगा देते थे। बड़े ठाकुर साहब ने प्रातःकाल ही गंगा में स्नान करके राम-नाम का पाठ रटना आरम्भ कर दिया। छोटे ठाकुर ने राम-नाम लिखना आरम्भ कर दिया। शाम की भी पाठ-पूजा व ज्ञान-ध्यान का एक निश्चित कार्यक्रम बन गया था। विक्रम के बड़े भाई ने साधु-महात्माओं की शरण ले ली थी। विक्रम की माता ने साज-श्रृंगार को त्यागकर तपस्विनी का रूप धारण कर लिया था। पूरे परिवार में लॉटरी के निकलने के लिए अलग-अलग ढंग से प्रार्थनाएं की जा रही थीं।

एक ओर जब लॉटरी के निकलने का समय समीप आ रहा था दूसरी ओर लेखक की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उन्हें संदेह था कि लॉटरी पर नाम तो विक्रम का होगा, कोई लिखा-पढ़ी भी नहीं की गई थी कि जो आधा हिस्सा लेखक को मिलेगा। इस बात की आशंका की पुष्टि विक्रम ने खुद कर दी। दोनों मित्रों में खूब फजीहत हुई। वाद-विवाद के बीच उन्होंने देखा कि बड़े ठाकुर और छोटे ठाकुर के बीच भी कुछ ऐसा ही विवाद चल रहा था। मामला पूरे जोर पर था। बड़े ठाकुर का मानना था कि लॉटरी जिसके नाम निकलेगी रकम उसे ही मिलेगी, उसमें किसी का सांझा नहीं होगा। जबकि छोटे ठाकुर का जवाब था कि सम्मिलित परिवार में ऐसा वैयक्तिक कुछ नहीं होता। ठकुराइन ने जब इन दोनों भाइयों की इस झड़प को सुना तो बीच-बचाव करने की कोशिश की ।

घर में लॉटरी को लेकर विवाद चल रहा था कि तभी विक्रम का भाई प्रकाश वहाँ पहुँचा तो उसके कपड़ों पर खून लगा हुआ था और उसके सिर पर चोट लगी हुई थी। किन्तु उसके चेहरे पर किसी प्रकार की शिकन नहीं थी। उसके चेहरे पर प्रसन्नता की झलक थी। जब उससे चोट के बारे में पूछा तो उसने कहा कि चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। एक झक्कड़ बाबा है जिन्हें भीड़ पसंद नहीं है। भीड़ को देखते ही वे जाग-बबूला हो उठते हैं और भीड़ को भगाने के लिए पत्थर मारने लगते हैं, जो उनके पत्थर की मार को सह जाएगा उसका भाग्य जाग पड़ेगा। प्रकाश के माता-पिता ने जब यह बात सुनी तो वे उसकी आवभगत में जुट गए। छोटे ठाकुर की इच्छा भी वहाँ जाने की थी। अपने ताऊ के मन के भाव को ताड़कर प्रकाश ने झक्कड़ बाबा के ऐसे किस्से सुनाएँ कि उनकी वहाँ जाने की हिम्मत ही नहीं हुई।

अन्ततः लॉटरी का दिन आ गया। ठाकुरों ने प्रातः जल्दी उठकर गंगा स्नान किया, मन्दिर में पूजा की। पुजारी ने दोनों ठाकुरों को विजयी होने का आशीर्वाद दिया। प्रकाश ने भी गरीबों में मिठाई बांटी। विक्रम भी तैयार होकर डाकखाने की ओर गया ताकि लॉटरी के परिणाम का पता चल सके। डाकखाने से लौटते समय विक्रम के चेहरे की मुस्कान को देखकर सबने उसकी जय-जयकार के नारे लगाने आरंम्भ कर दिये। लोगों के इस भाव को विक्रम ने और बढ़ावा दिया। उसने कहा कि सबसे पहले मैं एक लाख रुपया लूंगा तब नाम बताऊँगा कि किसके नाम से लॉटरी निकली है। सबके मन में जिज्ञासा उत्पन्न करके उसने कहा कि इस महाद्वीप में किसी का नाम नहीं निकला, अपितु अमेरिका के हब्शी को ईनाम मिला है। उसकी बात पर किसी को विश्वास नहीं हुआ। छोटे ठाकुर को बड़ा पछतावा हुआ कि व्यर्थ तीन मास तक तपस्या की।

प्रकाश भी सोच रहा था कि व्यर्थ ही झक्कड़ बाबा की मार खाई। वह हाथ में लाठी लेकर झक्कड़ बाबा की खोज में निकल पड़ा। प्रकाश की माँ का मत था कि सबके मन में धोखा एवं बेईमानी थी, इसलिए लॉटरी नहीं निकली। ठाकुर ने तुरन्त पुजारी को मन्दिर से निकाल बाहर किया। घर में मातम छाया रहा। खाना भी नहीं बना। विक्रम को खाना बाहर ही खाना पड़ा। लेखक ने विक्रम से पूछा कि डाकखाने से निकलते समय वे इतने खुश क्यों थे? उसने कहा कि वह इसलिए खुश था कि जब यहाँ के डाकखाने में इतनी भीड़ है तो सारी दुनिया में कितनी भीड़ होगी। उसे महसूस हुआ कि उसकी आशा का पर्वत तो राई के समान है। परिवार के लोग व्यर्थ में ही हाय तोबा मचा रहे थे। काल्पनिक संसार में और यथार्थ में बहुत बड़ा अन्तर होता है।

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