मेघ आए कविता का सार
मेघ आए कविता में कवि ने आकाश में मेघ के आने का वर्णन गाँव में आए शहरी अतिथि के रूप में किया है। संपूर्ण वर्णन में कवि ने रूपक बाँध दिया है। मेघ आने पर ठंडी वायु बहने लगती है। लोग दरवाजे-खिड़कियाँ खोल देते हैं। पेड़ भी हरे-भर दिखाई देने लगते हैं। ऐसा लगता है कि मानों वे झुककर मेहमान का आदर कर रहे हो।
वर्षा आने पर मूल भरी आंधियों समाप्त हो जाती हैं। नदियों व तालाबों में पानी भर जाता है। गरमी के कारण पीपल भी मुरझा गया था, किंतु मेघ आने पर वह भी हरा-भरा होकर आगे बढ़कर मेघ का स्वागत करते हुए उसे उपालंभ देता है कि एक वर्ष बाद हमारी सुध ली है। जिस प्रकार पति-पत्नी में वियोग के कारण भ्रम की गाँठ पड़ जाती है
तथा मिलन पर वह गाँठ खुल जाती है और वे गले मिलकर आँसू बहाते हैं, वैसे ही मानों आकाश और पृथ्वी गले मिलते-से प्रतीत होते हैं और वर्षा की बूँदें टप टप करके गिरने लगती हैं। कवि ने बताया है कि जिस प्रकार गाँव में पाहुन आने पर प्रसन्नता का वातावरण छा जाता है, उसी प्रकार जाकाश में मेघ छा जाने पर चारों ओर खुशी एवं सुख का वातावरण बन जाता है।
मेघ आए कविता व्याख्या
मेघ आए बड़े बन-ठन के सेंवर के।
आगे-आगे नाचती गाती बयार चली,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लग गली-गली,
पाहुन यों आए हों गाँव में शहर के
मेघ आए बड़े बन-ठन के सेंवर के।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ कक्षा नोवी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग-1 में संकलित कविता मेघ आए से ली गयी है। इसके कवि श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी हैं।
व्याख्या – कवि ने बादलों के आने का वर्णन करते हुए लिखा है कि आज बादल बहुत ही बन-संवरकर आए हैं अर्थात आकाश में छाए हुए हैं। बादलों के स्वागत में मानों बादलों के आगे-आगे नाचती गाती हुई ठंडी एवं सुगंधित वायु चली आ रही है। जिस प्रकार शहरी मेहमान को देखने के लिए लोग खिड़कियों व दरवाजे खोल देते हैं, ठीक उसी प्रकार आकाश में बादल छा जाने से लोग बादलों को देखने के लिए घरों के दरवाजे व खिड़कियाँ खोल देते हैं। कहने का तात्पर्य है कि बादल छा जाने से वातावरण प्रसन्नतामय बन जाता है।
भावार्थ – इन पंक्तियों में ग्रामीण संस्कृति एवं वहाँ की सद्भावना का संजीव अंकन किया गया है।
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ग्राम श्री कविता व्याख्या व सार
पेड़ झुक झांकने लगे गरदन उचकाए,
आंधी चली, चूल भागी पापरा उठाए,
बाँकी चितवन उदा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े वन-टन के सेंवर के।
व्याख्या – कवि का कथन है कि जब आकाश में बादल छा गए तो ऐसा लगने लगा कि गाँव के लोगों की भांति पेड़ गरदन उठाकर तथा कुछ शुरू-शुककर बादलों को देखने लगे । जिस प्रकार मेहमान के आने की सूचना देने के लिए कोई किशोरी पावरा संभालती हुई भागती है;
उसी प्रकार धूल भरी आंधी भी बादलों के आने की सूचना देने के लिए बहने लगी। नदी भी अपने प्रवाह को रोककर मेघों को देखने के लिए कुछ देर के लिए रुकी हुई-सी लगी। उसने अपने मुख से मानों घूँघट सरका दिया हो और वह सजे हुए बादलों को देखने लगी हो जैसे युवतियों मेहमान को ठिठकर देखने लगती हैं। मेघ वन-संवरकर अर्थात नए रूप में आकाश में छा गए हैं।
भावार्थ – प्रस्तुत पद्यांश में आकाश में पटाओं के छा जाने से प्रकृति में हुए परिवर्तन का सुंदर एवं सजीव चित्रण किया गया हैं।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
“बरस बाद सुधि लीन्हीं”
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के
मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के
व्याख्या – कवि का कथन है कि मेहमान रूपी बादल सज-धज कर आ गए हैं। जिस प्रकार गाँव के बड़े-बड़े झुककर मेहमान का स्वागत करते हैं, उसी प्रकार पीपल के पेड़ ने बादलों का स्वागत किया। जिस प्रकार मेहमान की विरहिणी पत्नी किवाड़ की ओट में छिपकर पति की बहुत दिन बाद आने का उपालंभ देती है, उसी प्रकार प्यासी लता ने बादलों को उलाहना देते हुए कहा कि पूरे एक वर्ष बाद हमारी सुध ली है। मेहमान रूपी बादल के आने की प्रसन्नता में तालाब रूपी परिवार का सदस्य पानी की परात भरकर में आया अर्थात तालाब पानी से लबालब भर गया।
भावार्थ – कवि ने ढूंढ़े पीपल के मानवीकरण के माध्यम से ग्रामीण अंचल में बड़े-बूढ़ों द्वारा अतिथियों को लगाए जाने वाली जुहार का उल्लेख किया है। लता के माध्यम से पति के वर्ष बाद आने पर पत्नी द्वारा दिए गए उपालंभ का वर्णन किया है।
चितिज अटारी गराई दामिनि दमकी,
‘खमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’,
बी टूटा स्वर मिलन के अनु डरके।
मेघ आए बड़े बन-दन के संदर के
व्याख्या – कवि ने बताया है कि मेघ क्षितिज रूपी अटारी पर पहुँच गए अर्थात जैसे अतिथि को देखने के लिए लोग अटारी पर जमा हो जाते हैं, वैसे ही बादलों के गहराने से उनमें बिजली चमकने लगती है। प्रकृति के विविध उपादान मानो मेघ से कह रहे हों कि हमें क्षमा करना। हमारे मन में जो भ्रम था कि तुम वर्षा नहीं करोगे, अब यह दूर हो गया है अर्थात वर्षा हो गई है।
झर-झर की आवाज करती हुई बुँदे गिरने लगीं। पति-पत्नी के संदर्भ में बहुत दिनों के बाद पति-पत्नी घर की छत पर मिले। गले मिले, शिकवा शिकायतें की और आपसी भ्रम दूर हो जाने पर पत्नी पति से गले मिलकर रोने लगी। उसकी आंखों से झर-झर आँसू बहने लगे।
भावार्थ – इन पक्तियों में कवि ने वर्षा के प्रभाव का सजीव चित्रण किया है।