फूल के लायक़ फ़ज़ा रखनी ही थी / अब्दुल्लाह जावेद

फूल के लायक़ फ़ज़ा रखनी ही थी
डर हवा से था हवा रखनी ही थी

गो मिज़ाजन हम जुदा थे ख़ल्क़ से
साथ में ख़ल्क़-ए-ख़ुदा रखनी ही थी

यूँ तो दिल था घर फ़क़त अल्लाह का
बुत जो पाले थे तो जा रखनी ही थी

तर्क करनी थी हर इक रस्म-ए-जहाँ
हाँ मगर रस्म-ए-वफ़ा रखनी ही थी

सिर्फ़ काबे पर न थी हुज्जत तमाम
बाद-ए-काबा करबला रखनी ही थी

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