सत्यजित राय का जीवन परिचय | Satyajit Ray Ka Jivan Parichay

सत्यजित राय जीवन परिचय

श्री सत्यजित राय को भारतीय सिनेमा जगत में अत्यंत सम्माननीय स्थान प्राप्त है। इनका जन्म सन् 1921 में पश्चिम बंगाल (कोलकाता) में हुआ था। ये फिल्म निर्देशन के लिए ही नहीं अपितु पटकथा लेखन, संगीत संयोजन में भी निपुण थे। इन्होंने अपनी इस निपुणता का प्रमाण अनेक फिल्मों में दिया है। इन्होंने अपना पूर्ण जीवन फिल्म जगत में समर्पित किया हुआ था। आरंभ में नौकरी करते थे तथा बीच-बीच में समय मिलने पर ही फिल्म बनाने का काम करते थे।

सन् 1955 में इनके निर्देशन में पहली फीचर फिल्म बनी जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पसंद किया गया। श्री सत्यजित राय ने अपनी फिल्मों के माध्यम से फिल्म विद्या को ही उन्नत नहीं किया अपितु निर्देशकों और आलोचकों के बीच एक समझ विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। इन्होंने अधिकांश फिल्में साहित्यिक कृतियों पर बनाई है। बांग्ला के विभूति भूषण बंद्योपाध्याय से लेकर हिंदी के प्रेमचंद तक साहित्यकारों की कृतियों पर इन्होंने फिल्में बनाई हैं। श्री सत्यजित राय की फिल्म जगत में और बाहर भी अनेक महान पुरस्कारों से पुरस्कृत किया गया। सन् 1992 में इनका देहांत हो गया।

प्रमुख रचनाएँ

श्री सत्यजित राय का नाम साहित्य लेखकों में भी आदर से लिया जाता है। इन्होंने किशोरों के लिए साहित्य अत्यंत सफलता से लिखा है। इन्होंने अनेक कहानियां लिखीं। इन कहानियों में जासूसी रोमांच के साथ-साथ पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों के लिए स्थान भी रहता है।

प्रमुख कहानियां -‘प्रो० शंकु के कारनामे’, ‘सोने का किला’, ‘जहाँगीर की स्वर्ण मुद्रा’, ‘बादशाही अंगूठी’ आदि इनकी सुप्रसिद्ध रचनाएँ हैं।

प्रमुख फिल्में – अपराजिता’, ‘पथेर पांचाली (बांग्ला)’, ‘अपू का संसार’, जलसाघर’, ‘देवी चारुलता’, ‘महानगर’, ‘गोपी गायेन बाका वायेन’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘सद्गति’ (हिंदी) आदि प्रमुख फिल्म है।

साहित्यिक विशेषताएँ

श्री सत्यजित राय सफल निर्देशक के साथ-साथ सहृदय साहित्यकार भी थे। इन्होंने समाज को खुले दिल से देखने व परखने का प्रयास किया है और उसमें व्याप्त बुराइयों की ओर अपनी रचनाओं में संकेत किए हैं ताकि उन्हें समय रहते दूर किया जा सके। बाल मनोविज्ञान पर भी इनकी मजबूत पकड़ थी। इन्होंने अपनी रचनाओं में उन विषयों को स्थान दिया है जो किशोरों को आकृष्ट कर सके और उन्हें पढ़ने से उनका मानसिक विकास सही दिशा में ही सके।

इन्होंने अपने युग के सामाजिक जीवन के विविध पक्षों का यथार्थ चित्रण भी अपनी कृतियों में किया है। इन्होंने अपनी फिल्मों के निर्माण को लेकर अनेक संस्मरणों की रचना भी की है। इन संस्मरणों को पढ़कर हमें फिल्म निर्माण की कला के साथ-साथ फिल्म निर्माण में आने वाली कठिनाइयों का बोध भी होता है। फिल्मों के निर्माण के अनुभवों को जगत के समक्ष प्रस्तुत करके उन अनुभवों एवं स्मृतियों की सहज ही अमरता प्रदान की है।

भाषा-शैली

निर्माण से संबंधित होने के कारण उन्होंने फिल्मी जगत की तकनीकी शब्दावली का अत्यंत सहज एवं स्वाभाविक प्रयोग किया है। यया, सीन, रिटेक, कट-कट, साउंड, शूटिंग, शॉटस आदि। श्री राय ने कहीं-कहीं अंग्रेजी व तत्सम शब्दावली का भी विषयानुकूल सफल प्रयोग किया है।

सामान्य तौर पर इनकी रचनाओं की भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक हैं। ये कठिन से कठिन विषय को भी सहज एवं सरल भाषा में कहने की कला में सक्षम हैं। श्री सत्यजित राय ने अपनी रचनाओं में वर्णनात्मक, व्याख्यात्मक आदि शैलियों का भी सुंदर एवं सफल प्रयोग किया है।

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