आत्मा का ताप’ शीर्षक पाठ का सार | 11th Class Hindi NCERT Chapter 10

Aatma Ka Taap Summary

आत्मा का ताप पाठ का सार

सैयद हैदर रज़ा द्वारा लिखित ‘आत्मा का ताप’ एक आत्मकथात्मक विधा है। अपनी आत्मकथा में उन्होंने अपने जीवन के कुछ संघर्षपूर्ण अंश प्रस्तुत किए हैं। लेखक नागपुर में जब स्कूल में पढ़ता था तो वह कक्षा में प्रथम आया। उन दिनों उनके पिता रिटायर हो चुके थे और उन्हें नौकरी की तलाश थी। उन्हें मुंबई में एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियो में डिजाइनर की नौकरी मिल गई। लेखक आगे अध्ययन करना चाहते थे। उन्हें ‘जे०जे० स्कूल ऑफ आर्ट में अध्ययन के लिए मध्य प्रांत की सरकारी छात्रवृत्ति मिली। जब वे बंबई पहुंचे, तब तक जे०जे० स्कूल में दाखिला बंद हो चुका था। दाखिला हो भी जाता तो उपस्थिति का प्रतिशत पूरा न हो पाता।

डिज़ाइनर की नौकरी के दौरान एक टैक्सी ड्राइवर ने लेखक को रहने की जगह दे दी। टैक्सी ड्राइवर सल्फ की टैक्सी में किसी ने एक सवारी की छुरा मारकर हत्या कर दी थी तब लेखक ने टैक्सी ड्राइवर द्वारा दिया गया कमरा छोड़ दिया। जब ब्लॉक स्टूडियों के मालिक जलीत साहब ने लेखक को आर्ट डिपार्टमेंट में कमरा दे दिया। कुछ महीने बाद उन्होंने लेखक ये अपने चचेरे भाई के छठी मंजिल के फ्लैट का एक शानदार कमरा रहने के लिए दे दिया। यहाँ पर लेखक लगन से कार्य करता रहा जिसके परिणामस्वरूप सन् 1948 में बॉम्बे आट्स सोसाइटी का स्वर्ण पदक लेखक को मिला। दो साल बाद फ्रांस सरकार ने लेखक को छात्रवृति दी। लेखक के पहले दो चित्र नवंबर 1943 में आर्ट्स सोसाइटी ऑफ इंडिया की प्रदर्शनी में प्रदर्शित हुए। अगले दिन लेखक ने ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रदर्शनी की समीक्षा पढ़ी

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कला-समीक्षक रुडॉल्फ वॉन लेडेन ने लेखक के चित्रों की काफी तारीफ की थी। दोनों चित्र 40-40 रुपए में बिक गए। लेखक को एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियोज़ में आठ-दस घंटे रोज काम करने के बाद भी महीने भर में इतने रुपए नहीं मिल पाते थे। वेनिस अकादमी के प्रोफेसर वाल्टर लंगहमर ने भी लेखक के कार्य की प्रशंसा की। वियना के एक कला-संग्राहक एमानुएल श्लेसिंगर लेखक के कार्य की प्रशंसा करते थे। प्रोफेसर लैंगहॅमर ने लेखक को काम करने के लिए अपना स्टूडियो दे दिया। लगहमर ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में आर्ट डायरेक्टर थे। वे उसके चित्र खरीदने लगे। लेखक भी नौकरी छोड़कर कला के अध्ययन में जुट गया। सन् 1947 में लेखक जे०जे० स्कूल ऑफ आर्ट का नियमित छात्र बन गया।

NCERT 11th Class Hindi Chpater 10

सन् 1947 और सन् 1948 में दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ लेखक के जीवन में घटी वे थी एक तो उनके माता-पिता का देहांत और दूसरी सन् 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति और देश का विभाजन तथा सन् 1948 में महात्मा गाँधी की हत्या आदि घटनाएँ। सन् 1948 में लेखक श्रीनगर गया। उस समय ख्वाजा अहमद अब्बास भी वहीं थे। लेखक के पास कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला द्वारा लिखित पत्र था, जिसमें लिखा था कि सैयद हैदर रज़ा एक भारतीय कलाकार हैं, इन्हें जहाँ चाहे वहाँ जाने दिया जाए और इनकी हर संभव सहायता की जाए। पत्र दिखाकर लेखक कश्मीर में सभी जगह बेफिक्र होकर घूमता था ।

श्रीनगर की इसी यात्रा के दौरान लेखक की मुलाकात प्रख्यात फ्रेंच फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-ब्रेसों से हुई। उन्होंने लेखक को सुझाव दिया कि वह सेज़ों का काम ध्यान से देखें व सीखें। बंबई लौटकर लेखक ने फ्रेंच सीखने के लिए अलयांस फ्रांसे में दाखिला ले लिया। सन 1950 में एक गंभीर वार्तालाप के दौरान फ्रेंच दूतावास के सांस्कृतिक सचिव ने लेखक से पूछा कि वह फांस जाकर कला का अध्ययन क्यों करना चाहता है। लेखक ने उसे बताया कि फ्रेंच कलाकारों का चित्रण पर अधिकार है। उसके पसंदीदा कलाकार सेजों, चॉन गॉग, मातीस, गोगा पिकासो, शागात और ग्रॉक हैं।

जब फ्रेंच दूतावास के सांस्कृतिक सचिव ने लेखक से पूछा कि उसका पिकासो के बारे में क्या विचार है ? लेखक ने कहा पिकासो जीनियस है। यह सुनकर सचिव बहुत खुश हुआ। उसने लेखक को एक के बजाय दो साल के लिए छात्रवृत्ति दी 2 अक्तूबर, 1950 को लेखक मार्सेई पहुँचा जहरा जाफरी का उदाहरण देते हुए लेखक ने बताया कि चित्रकला व्यवसाय नहीं, अंतरात्मा की पुकार है। जहरा जाफरी दमोह शहर के आसपास के ग्रामीणों के साथ काम करती थी। उसमें काम करने की लगन थी। लेखक अपने परिवार के लोगों को मेहनत करने का संदेश देता है। संपन्न परिवारों के लोग संभावनाओं के बावजूद कोई काम नहीं करते, लेकिन लेखक में अब भी काम करने का संकल्प है। अंत में लेखक ने पाठकों को संदेश दिया है कि पैसा कमाना महत्त्वपूर्ण है लेकिन उससे महत्त्वपूर्ण है, मनुष्य के मन में काम करने का संकल्प होना। 

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