अलंकार किसे कहते हैं ? Alankar Kise Kahte Hain

नमस्कार प्यारे दोस्तों ! आपका हमारे ब्लॉग पोस्ट पर एक बार फिर से स्वागत है। आज के इस पोस्ट में आप अलंकार किसे कहते हैं (Alankar Kise Kahte Hain) को पढ़ सकते हैं। यह टॉपिक हिंदी भाषा में बहुत ही उपयोगी स्थान रखता है। यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहें है तो यह आपके लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाला है। इसलिए आपको इसे अच्छे से पढ़ लेना चाहिए।

अलंकार किसे कहते हैं

अलंकार शब्द का शब्द का अर्थ है— आभूषण या गहना। जिस प्रकार स्री के सौंदर्य-वृद्धि में आभूषण सहायक होते है, उसी प्रकार काव्य में प्रयुक्त होने वाले अलंकार शब्दों एवं अर्थो में चमत्कार उत्पन्न करके काव्य-सौंदर्य में वृद्धि करते हैं; जैसे –

“खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा।
किसलय का आँचल डोल रहा।”

Alankar Kise Kahte Hain

साहित्य में अलंकारों का विशेष महत्व है। अलंकार प्रयोग से कविता सज-धजकर सुंदर लगती है। अलंकारों का प्रयोग गध और पध दोनों में होता है। अलंकारों का प्रयोग सहज एवं स्वाभाविक रुप में होना चाहिए। अलंकारों को जान-बूझकर लादना नहीं चाहिए। 

अलंकार के भेद 

साहित्य में शब्द और अर्थ दोनों का महत्व होता है। कहीं शब्द-प्रयोग से तो कहीं अर्थ-प्रयोग के चमत्कार से और कहीं-कहीं दोनों के एक साथ प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि होती है। इस आधार पर अलंकार के तीन भेद माने जाते हैं—

1. शब्दालंकार

2. अर्थालंकार

3. उभयालंकार 

शब्दालंकार– जहाँ शब्दों के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य वृद्धि होती है, वहाँ शब्दलंकार होता है ; जैसे– 

“चारु-चन्दर की चंचल किरणें
खेल रही है जल-थल में।’’

अर्थालंकर– जहाँ शब्दों के अर्थो के कारण काव्य में चक्कर एवं सौंदर्य उत्पन्न हो, वहाँ अर्थालंकार होता है ;

जैसे– “चरण-कमल बंदौं हरी राई।’’

उभयालंकार– जिन अलंकारों का चमत्कार शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित होता है, उन्हें उभयालंकार कहते हैं; 

“नर की अरु नल-नीर की,गति एकै कर जोई।
 जैतो नीचौ ह्वै चलै, तेतौ ऊँचो होइ।।”

अनुप्रास अलंकार

जहां व्यंजनों कि बार-बार आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहां अनुप्रास अलंकार होता है;

 जैसे- (क)  मुदित महीपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत्रु बोलाए॥ 

यहाँ ‘मुदित’ ‘महीपति’ तथा ‘मंदिर’ शब्दों में ‘म’ व्यंजन की और ‘सेवक’ , ‘सचिव’ तथा ‘सुमंत’ शब्दों में ‘स’ व्यंजन की आवृत्ति है। अतः यहाँ अनुप्रास अंलकार है। 

(ख) सत्य सनेह सील सागर। 

(‘स’ की आवृत्ति) 

(ग) मैया मैं नहिं माखन खायो। 

 (‘म’ की आवृत्ति)

यमक अलंकार

जहाँ किसी शब्द या शब्दांश का एक से अधिक बार भिन्न-भिन्न अर्थो प्रयोग, वहाँ यमक अलंकार होता है;

कनक कनक तैं सौ गुनी, मादकता अधिकाइ।
उहिं खायें बौरतु है,इहिं पाएँ बौराई।।

इस दोहे में ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। एक ‘कनक’ का अर्थ— सोना और दूसरे ‘कनक’ का अर्थ है– धतूरा। एक ही शब्द का भिन्न-भिन्न अर्थो में प्रयोग होने के कारण यहाँ यमक अलंकार हैं।

माला फेरत युग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।।

इस दोहे में ‘फेर’ और ‘मनका’ शब्दों का भिन्न-भिन्न अर्थो में प्रयोग हुआ है। ‘फेर’ का पहला अर्थ है— माला फेरना और दूसरा अर्थ है— भ्रम। इसी प्रकार से ‘मनका’ है— ह्रदय और माला का दाना। अत:  यमक अलंकार का सुंदर प्रयोग है।

श्लेष अलंकार

जहाँ एक शब्द के एक ही बार प्रयुक्त होने पर दो अर्थ निकले, उसे श्लेष अलंकार कहते हैं। 

नर की अरु नल-निरु की, गति एकै कर जोय।
जेते निचो ह्वै चलै, तेतौ ऊँचो होय।।

मनुष्य और नल के पानी की समान ही स्थिति है, जितने निचे होकर चलेंगे, उतने ही ऊँचे होंगे। अंतिम पंक्ति में बताया गया सिंद्धांत नर और नल-नीर दोनों पर समान रूप से लागु होता है, अत: यहा श्लेष अलंकार है। 

मधुवन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ।

यहाँ ‘कलियाँ’ शब्द का प्रयोग एक बार है किंतु इसमें की भिन्नता है। 

खिलने से पूर्व फूल की दशा।
यौवन पूर्व की अवस्था।

उपमा अलंकार

जहाँ किसी वस्तु,पदार्थ या व्यक्ति के गुण,रूप,दशा आदि का उत्कर्ष बताने के लिए किसी लोक-प्रचलित या लोक-प्रिसिद्ध व्यक्ति से तुलना की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है। 

जैसे— ‘उसका ह्रदय नवनीत सा कोमल है।’

इस वाक्य में ‘ह्रदय’ उपमेय ‘नवनीत’ उपमान, ‘कोमल’ साधारण धर्म तथा ‘सा’ उपमावाचक शब्द है। 

लघु तरण हंसनि-सी सुंदर,
तिर रही खोल पालों के पर।

यहाँ छोटी नौका की तुलना हंसनि के साथ की गई है। अत: ‘तरण’ उपमये, ‘हंसनि’ उपमान, ‘सुंदर’ गुण और ‘सी’ उपमावाचक शब्द चारो अंग है। 

रूपक अलंकार

जहाँ अत्यंत समानता दिखाने के लिए उपमये और उपमान में अभेद बताया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है ;

जैसे— चरण कमल बन्दौं हरि राई। 

उपर्युक्त पंक्ति में ‘चरण’ और ‘कमल’ में अभेद बताया गया है, अत: यहाँ रूपक अलंकार का प्रयोग है। 

मैया मैं तो चंद-खिलौना लैहों। 

यहाँ भी ‘चंद’ और ‘खिलौना’ में अभेद की स्थापना की गई है। 

उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते हैं

जहाँ समानता के कारण उपमये में उपमान की संभावना या कल्पना की जाती है;

सोहत ओढैं पितु पटु, स्याम सलौने गात।
मनौ नीलमणि सैल पर,आतपु, परयौ प्रभात।।

यहाँ श्रीकृष्ण के साँवले रूप तथा उनके पिले वस्रों में प्रात:कालीन सूर्य की धूप से सुशोभित नीलमणि पर्वत की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है। 

उस काल मारे क्रोध के,तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से, सोता हुआ सागर जगा।।

यहाँ से काँपता हुआ अर्जुन का शरीर उपमये है तथा इसमें सोए हुए सागर को जगाने की संभावना की गई है। 

मानवीकरण अलंकार

यहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप हो, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।

लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी। 

यहाँ लतिका में मानवीय क्रियाओं का आरोप है, अत: लतिका में मानवीय अलंकार सिद्ध है। मानवीकरण अलंकार के कुछ उदाहरण हैं –

मेघमय आसमान से उतर रही
संध्या सुंदरी परि-सी धीरे-धीरे,
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

अतिशयोक्ति अलंकार

उत्तर— जहाँ किसी बात को लोकसीमा से अधिक बढ़ाकर कहा जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है;

आगे नदिया पड़ी अपार,घोडा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।।

यहाँ  सोचने से पहले ही क्रिया पूरी हो गई जो लोकसिमा का उल्ल्घंन है। 

उदाहरण :-

(1). बालों को खोलकर मत चला करो दिन में
रास्ता भूल जाएगा सूरज। 

(2). हनुमान की पूँछ को लग न पाई आग।
लंका सिगरी जल गई,गए निसाचर भाग।।

निष्कर्ष

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