आत्माराम कहानी का सार/सारांश | Atmaram Kahani Summary in Hindi

आत्माराम कहानी का सारांश

आत्माराम कहानी का सार

महान् कहानीकार मुंशी प्रेमचंद विरचित ‘आत्माराम’ एक प्रसिद्ध कहानी है ‘आत्माराम’ कहानी मानव स्वभाव तथा उससे जुड़े आध्यात्मिक पहलुओं की परख करती है। व्यक्ति जीवन की यथार्थ विषमताओं का चित्रण कर लेखक यह भाव जगाना चाहता है कि विकट आपदाओं-विपदाओं में भी व्यक्ति को अपनी आस्थाओं से नहीं डगमगाना चाहिए।

एक न एक दिन व्यक्ति के जीवन में लौकिक पारलौकिक सुख आते ही हैं। इस प्रकार के संयोगों का प्रतिपादन प्रस्तुत कहानी ‘आत्माराम’ में लक्षित किया गया है।

सुनार महादेव वेदों ग्राम का निवासी था। वह अपने आँगन में सुबह से सायं तक अंगीठी के सामने बैठा हुआ खट-खट किया करता था। यह खट-खट की ध्वनि सुनने के लोग इतने अभ्यस्त हो गए थे कि जब किसी कारण से वह बन्द हो जाती, तो जान पड़ता था, कोई चीज़ गायब हो गई है।

उसके पास आत्माराम’ नामक एक तोता था। हर सुबह तोते का पिंजरा लेकर तालाब की ओर जाना उसकी आदत थी। जब वह तालाब की तरफ जाता था तो कहता रहता था:

“सत गुरुदत्त शिवदत्त दाता
राम के चरन में चित लागा।”

महादेव का पारिवारिक जीवन सुखमय न था। उसके तीन पुत्र थे, तीन बहुएं थीं, दर्जनों नाती-पोते थे, लेकिन उसके बोझ को हल्का करने वाला कोई नहीं था। वे सब महादेव के रहते आनन्द-मीज करना चाहते थे। बेचारे महादेव की कोई सुध न लेता था। कई बार तो महादेव को निराहार (भूखा) रहना पड़ता था। उसका व्यावसायिक जीवन और ज्यादा कष्टकारक था। वह अपने कार्य में निपुण था परंतु उसका हाथ बटाने वाला कोई नहीं था। अतः आत्माराम तोता ही उसका संगी-साथी था।

इन्हें भी पढ़े :-
पंच-परमेश्वर कहानी का सार

परीक्षा कहानी का सार PDF
बड़े घर की बेटी कहानी सार

Atmaram Kahani Summary in Hindi

एक दिन किसी ने आत्माराम (तोता) का पिंजरा खोल दिया और आत्माराम (तोता) उड़ गया। जब महादेव को इसकी खबर मिली तो वह बहुत दुखी हुआ। महादेव खाली पिंजरा लेकर तोते के पीछे-पीछे पागलों की भाँति भागता रहा। यह भागते हुए कहता था – आ-आ. ‘सत गुरुदत्त शिवदत्त दाता’। तोता घर की खपरैल से उड़कर बाहर की तरफ चला गया।

महोदव भी पागल सा पीछे-पीछे दौड़ता रहा। बाहर दूर जाकर तोता आम के पेड़ की फुनगी पर बैठ गया। महादेव भी आम के पेड़ के नीचे पिंजरा लेकर उसके नीचे आने की प्रतीक्षा करता रहा। शाम हुई और फिर रात हो गई। रात में महादेव वहीं उसकी प्रतीक्षा करता रहा। वह दिनभर का भूखी था परंतु फिर भी वहीं बैठा रहा।

आधी रात का समय था। महादेव से कुछ दूरी पर पेड़ के नीचे कुछ लोग दीया जलाए बैठे थे। महादेव ने जब उनको देखा तो चिलम पीने की इच्छा से सत गुरुदत्त शिवदत्त दाता’ कहता हुआ उनकी तरफ बढ़ा। ये लोग डर कर भाग खड़े हुए। उन्हें चोर समझकर महादेव भी जोर-जोर से ‘चोर-चोर’ चिल्लाने लगा। वे सब लूटा हुआ सामान छोड़ गए थे।

जब महादेव वहाँ पहुंचा तो उसके हाथों मोहरों से भरा एक कलसा (घड़ा) लगा। अब वह धनी व्यक्ति हो गया था। सुबह तोता (आत्माराम भी पेड़ से उतरकर पिंजरे में आ बैठा।

महादेव ने उसे घर ले जाते हुए कहा, “आओ आत्माराम, तुमने कष्ट तो बहुत दिया, पर मेरा जीवन भी सफल कर दिया। अब तुम्हें चांदी के पिंजड़े में रखूंगा और सोने से मढ़ दूंगा।”

इस घटना ने महादेव के जीवन को परिवर्तित कर दिया। अब उसके जीवन से अभाव तथा निर्धनता कोसों दूर थी। उसने सत्यनारायण की कथा बड़ी धूमधाम से करवाई। सभी के सामने पवित्र और सादा जीवन जीने की घोषणा की। अपने पहले जीवन में वह गहने बनवाने बालों से धोखा-धड़ी करता था। अब यह सब उसने त्याग दिया था।

इस प्रकार परिवर्तित व्यवहार से उसने लोगों को प्रभावित किया और वह सबके आदर और श्रद्धा का पात्र बन गया था। वह साधु-सन्तों का आदर-सत्कार करने लगा था। वह सत्संग-कीर्तनों में बढ़-चढ़ कर भाग लेने लगा था। उसने गाँव में मन्दिर एवं तालाबों का निर्माण करवाया।

तोता (आत्माराम) का पिंजरा सोने का बनवाया और अचानक एक दिन अवसर पाकर बिल्ली ने तोते (आत्माराम) को मार डाला। महादेव को बहुत दुःख पहुंचा। उसने उसकी (आत्माराम) की समाधि मन्दिर के पास बनवायी। महादेव आत्माराम के वियोग में तड़पने लगा। उसने अपना घर-बार त्याग दिया और वह साधु-संन्यासियों के साथ हिमालय की ओर चला गया और फिर कभी वापस नहीं आया। आज भी उस ग्रामः के मन्दिर और तालाब के किनारे से आवाज आती है-

“सत गुरुदत्त शिवदत्त दाता
राम के चरन में चित लागा।”

घर-बार और परिवार छोड़कर चले गए महादेव को ग्राम के लोग अब ‘आत्माराम कहकर याद करने लगे, आज भी करते हैं।

Leave a Comment