बड़े घर की बेटी कहानी का सारांश
हिन्दी कथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित ‘बड़े घर की बेटी‘ कहानी एक चर्चित कहानी है। ग्राम्य जीवन पर आधारित कहानी में पारिवारिक सम्बन्धों एवं मानवीय मूल्यों की सफलता को चित्रित किया गया है।
कहानी का सार इस प्रकार है-
गौरीपुर ग्राम के नम्बरदार ठाकुर बेनीमाधव सिंह के दो बेटे थे। बड़े बेटे का नाम श्रीकंठ था, जो बी.ए. पास करके शहर में नौकरी करता था। वह विवाहित था। उसने अंग्रेजी पढ़ी थी, परंतु वह अंग्रेजियत का विरोधी था। फलस्वरूप गाँव वाले उसकी अत्यधिक प्रशंसा किया करते थे। वह सम्पूर्ण रूप से धार्मिक एवं भारतीय था। यह संयुक्त परिवार परम्परा में विश्वास रखता था।
छोटा लड़का लाल बिहारी सिंह दोहरे बदन का सजीला जवान था। वह अनपढ़ एवं कसरती युवक था। श्रीकंठ का विवाह एक बड़े उच्च कुल की लड़की आनन्दी से हुआ था। आनन्दी के पिता भूपसिंह एक छोटी-सी रियासत के ताल्लुकेदार थे। एक विशाल भवन एवं धन-धान्य से परिपूर्ण परिवार में आनन्दी का जीवन बीता था। आनन्दी अपने पिता की चौथी लड़की थी। आनन्दी रूपवती होने के साथ-साथ गुणवती भी थी। उसके पिता भूपसिंह उसे अत्यंत प्यार करते थे। गुणी होने के कारण ही वह अपनी ससुराल की आर्थिक स्थिति के सांचे में जल्दी ही ढल गयी थी। सब कुछ ठीक प्रकार से चल रहा था। आनन्दी खुश थी।
एक दिन आनन्दी के देवर लाल बिहारी ने चिड़ियों का मांस पकाने की बात आनन्दी को कही। मांस पक गया परंतु लाल बिहारी ने आनन्दी को दाल में कम घी डालने की वजह से धमकाना शुरू किया। जब आनन्दी ने कहा कि सारा घी तो मांस में ही पड़ गया, क्योंकि घर में घी पाव भर ही था। लाल बिहारी को भाभी पर गुस्सा आ गया। वह तुनक कर बोला,
“मैके में तो जैसे घी की नदी बहती हो।” मायके की बुराई सुनकर आनन्दी भी भड़क गयी और मुंह फेरकर बोली “हाथी मरा भी तो नौ लाख का वहाँ इतना घी नित्य नाई कहार खा जाते हैं।” यह सुनते ही लाल बिहारी गुस्से से लाल हो गया। थाली उठाकर पटक दी और बोला- “जी चाहता हैं, जीभ खींच लूं।”
आनन्दी को भी क्रोध आ गया। बोली- “वे होते तो आज इसका मजा चखा देते।”
यह सुनते लाल बिहारी आग बबूला हो गया। एक खड़ाऊ उठाकर आनन्दी की ओर जोर से फेंककर बोला- “जिसके गुमान पर फूली हुई हो, उसे भी देख लूंगा और तुम्हें भी।” आनन्दी ने खड़ाऊ रोककर अपना सिर तो बचा लिया परंतु उसकी अंगुली पर काफी चोट आयी। सबसे बड़ी चोट उसके आत्मसम्मान पर पड़ी थी। फलस्वरूप वह पत्ते की भांति कांपते हुए अपने कमरे में आकर खड़ी हो गयी……. खून का घूंट पीकर रह गयी।
श्रीकंठ प्रत्येक शनिवार घर आता था। वीरवार को यह घटना घटी थी तभी से आनन्दी ने कुछ नहीं खाया या बस वह श्रीकंठ के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। शनिवार संध्या को श्रीकंठ आया, परंतु बाहर पंचायत में व्यस्त रहा। आनन्दी को अपनी बात बताने का सुअवसर ही नहीं मिला। दो तीन घंटे आनन्दी ने बड़े कष्ट से काटे। एकांत मिलते ही लाल बिहारी ने आनन्दी से पहले श्रीकंठ से कहा, “भैया आप भाभी को समझा दीजिएगा कि मुंह संभालकर बातचीत किया करें, नहीं तो एक दिन अनर्थ हो जाएगा।” फिर आनन्दी की बारी आयी तो उसने सारी बात ज्यों की त्यों बता दी। लाल बिहारी की खड़ाऊँ मारने की बात ने श्रीकंठ को ताव में ला दिया। वह अपने पिता बेनी माधव के पास गया और अलग रहने की बात कही। इस पर बेनी माधव बोले- “क्यों?”
श्रीकंठ ने कहा, “मुझे भी अपनी प्रतिष्ठा का कुछ ख्याल है। आपके घर में अब अन्याय और हठ का प्रकोप हो रहा है।” उसने कहा कि लाल बिहारी ने आनन्दी के साथ बुरा व्यवहार किया है, जो मेरे और मेरी पत्नी के लिए असहनीय है।
अतः मैं बंटवारा चाहता हूँ। मैं अब लाल बिहारी का मुंह भी नहीं देखना चाहता। ठाकुर बेनी माधव ने बड़े बेटे श्रीकंठ को शान्त करने का भरसक प्रयास किया, परंतु श्रीकंठ अपनी बात पर अड़ा रहा।
अपने बड़े भाई का आदर करने वाला लाल बिहारी दरवाजे की चौखट पर चुपचाप खड़ा बड़े भाई की बातें सुन रहा था। उसके दिमाग में भाई के प्यार और स्नेह की स्मृतियाँ चक्कर काटने लगीं। भाई के मुख से बंटवारे की बात सुनकर लाल बिहारी को पश्चाताप और आत्मग्लानि होने लगी। वह फूट-फूटकर रोने लगा। वह रोते-रोते रुंधे गले से अपनी भाभी के द्वार पर पहुंच कर बोला,
“भाभी, भैया ने निश्चय किया है कि तह मेरे साथ इस घर में नहीं रहेंगे। अब वे मेरा मुंह नहीं देखना चाहते, इसलिए मैं जाता हूँ। उन्हें मैं मुंह न दिखाऊंगा। मुझसे जो अपराध हुआ, उसे क्षमा करना।”
जिस समय लाल बिहारी सिर झुकाए आनन्दी से प्रार्थना कर रहा था उसी समय आंखें लाल किए श्रीकंठ भी आ गया। लाल बिहारी को देखकर उसने आंखे फेर ली और कतराकर निकल गया। लाल बिहारी को रोते देखकर आनन्दी को भी पश्चाताप हो रहा था।
वह श्रीकंठ से लाल बिहारी को रोकने के लिए कहती है-
“भीतर बुला लो मेरी जीभ को आग लगे। मैंने कहाँ से झगड़ा उठाया।” श्रीकंठ ने कोई उत्तर नहीं दिया। इतने में लाल बिहारी ने फिर कहा- “भाभी भैया से मेरा प्रणाम कह दो।” वे मेरा मुंह नहीं देखना चाहते, इसलिए मैं अपना मुंह नहीं दिखाऊँगा।
लाल बिहारी जब शीघ्रता से दरवाजे की ओर मुड़ा तो आनन्दी ने उसे कसम देकर रोक लिया। इस पर लाल बिहारी ने कहा- “जब तक भैया मुझे माफ नहीं करते, तब तक में इस घर में कदापि नहीं रहूँगा।” श्रीकंठ का हृदय पिघल गया। दोनों भाई फूट-फूटकर रोने लगे।
लाल बिहारी ने सिसकते हुए कहा-
“भैया अब कभी मत कहिएगा कि तुम्हारा मुंह न देखूंगा। इसके सिवा आप जो सजा देंगे, में सहर्ष स्वीकार करूंगा।” दोनों भाइयों को गले मिलते देखकर श्री बेनी माधव सिंह ने कहा- “बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं। बिगड़ता काम बना लेती हैं।”
सारे गाँव में आनन्दी के व्यवहार और बड़ेपन की बात फैल गयी। सभी ने आनन्दी की उदारता को खूब सराहा कि, “बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं। “