दोस्तों यदि आप हिंदी नेट जेआरएफ की तैयारी कर रही हैं तो भाषा का टॉपिक आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होने वाला है। आज के इस आर्टिकल में हम यह पढ़ने जा रहे हैं कि भाषा के संदर्भ में भारतीय विद्वानों ने किस प्रकार की परिभाषाएं दी हैं।
भारतीय विद्वानों द्वारा भाषा की परिभाषा
‘भाषा’ शब्द संस्कृत ‘भाष’ धातु से निष्पन्न है जिसका अर्थ है ‘भाष व्यक्तायां वाचि’ अर्थात् व्यक्त वाणी ‘भाष्यते व्यक्तवान् रूपेण अभिव्यज्यते इति भाषा अर्थात् भाषा उसे कहते हैं जो व्यक्त वाणी के रूप में अभिव्यक्ति की जाती है।
भारतीय विद्वानों द्वारा भाषा की परिभाषा इस प्रकार दी गयी है :-
(1) “व्यक्ता वाचि वर्णा येषा त इमे व्यक्तवाचः” अर्थात् जो वाणी वर्गों में व्यक्त हो उसे भाषा कहते हैं।”- पतंजलि
(2) “भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली भाँति प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार आप स्पष्टतया समझ सकते हैं।”- कामता प्रसाद ‘गुरु’
(3) “मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा और मति का आदान-प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि संकेतों का जो व्यवहार होता है उसे भाषा कहते “हैं।” – डॉ० श्याम सुन्दरदास
(4) “भाषा मनुष्यों की उस चेष्टा या व्यापार को कहते है, जिससे मनुष्य अपने उच्चारणोपयोगी शरीरावयवों से उच्चारण किये गये वर्णात्मक या व्यक्त शब्दों द्वारा अपने विचारों को प्रकट करते हैं।” – डॉ० मंगलदेव शाखी
(5) “जिन ध्वनि चिह्नों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय करता है, उनको समष्टि रूप से भाषा कहते हैं।” – बाबू राम सक्सेना
(6) “अर्थवान, कण्ठोद्गीर्ण ध्वनि समष्टि ही भाषा है।” – सुकुमार सेन
(7) “भाषा निश्चित प्रयत्न के फलस्वरूप मनुष्य के मुख से निःसृत वह सार्थक ध्वनि समष्टि है, जिसका विश्लेषण और अध्ययन हो सके।” – डॉ० भोलानाथ तिवारी
(8) “भाषा यादृच्छिक, रूढ़ उच्चारित संकेत का वह प्रणाली है जिसके माध्यम से मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय सहयोग अथवा भावाभिव्यक्ति करते हैं।” – आचार्य देवेन्द्र नाथ शर्मा।
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