भाषा किसे कहते हैं | Bhasha Kise Kahate Hain : भाषा की परिभाषाएँ

भाषा किसे कहते हैं (Bhasha Kise Kahate Hain): दोस्तों यदि आप भाषा किसे कहते है ? इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहते है तो यह वेबसाइट सिर्फ आपके लिए ही है। यहाँ पर हमने भाषा का अर्थ, भाषा की परिभाषा का अच्छे से वर्णन किया है। हमें पूरी उम्मीद है की इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आपके भाषा से संबंधित सभी प्रश्न हल हो जायेंगे।

भाषा शब्द का अर्थ

भाषा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की ‘भाष्’ धातु से हुई है तथा जिसका अर्थ होता है कहना या बोलना। इस सन्दर्भ में बहुत से विद्वानों ने अपनी अलग-अलग परिभाषाएँ देते हुए भाषा की व्याख्या की है। भाषा का अर्थ बहुत ही व्यापक है। सिर्फ बोलने और लिखने से ही भाषा का पूर्ण अर्थ नहीं निकलता है, अपितु भाषा का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है। आइये इसको समझने का प्रयास करते है। 

भाषा किसे कहते हैं

भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी बात को किसी दूसरे व्यक्ति को बोलकर, लिखकर या संकेत के माध्यम से बताता है, तथा फिर उसकी बात को भी सुनता है तब भाषा की प्रक्रिया पूर्ण मानी जाती है।

भाषा को लिखकर, बोलकर, संकेत आदि के माध्यम से व्यवहार में लाया जाता है। इसके अतिरिक्त पशु-पक्षी भी आपस में अनेक प्रकार की ध्वनियों के द्वारा इस प्रक्रिया को पूरा करते है। किन्तु उनके इस प्रकार के व्यव्हार को भाषा नहीं कहा जाता हैं।   

इस सन्दर्भ में डॉ भोलानाथ तिवारी ने उचित ही कहा है –

“भाषा उसे कहते हैं जो बोली और सुनी जाती है और बोलना भी पशु-पक्षियों का नहीं अपितु मनुष्यों का। 

भाषा के उदाहरण

1. मोहन पत्र लिखकर अपने दिल की बात उसकी प्रेमिका को बताता है।

2. अध्यापक बच्चों को बोलकर पाठ पढ़ाता है।

2. ट्राफिक लाइट के लाल होते ही सभी साधनों का स्व्तः ही रुक जाना।

भाषा की निम्नलिखित परिभाषाएँ हैं 

1. पाणिनी के अनुसार :-

“व्यक्ता वाचि वर्णा येषां त इमे व्यक्त वाचः” अर्थात् वर्णो के द्वारा जो सार्थक वाणी व्यक्त होती है, वह भाषा कहलाती है। किन्तु यह परिभाषा अपने आप में पूर्ण नज़र नहीं आती है क्योंकि भाषा का कार्य केवल वाणी के द्वारा ही नहीं बल्कि अन्य माध्यमों द्वारा भी किया जाता है। 

2. अमरकोष के अनुसार :-

“ब्रह्मा तु भारती भाषा गीर वाक् वाणी सरस्वती।”

3. पं कामताप्रसाद के अनुसार :-

भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली-भाँति प्रकट कर सकता है तथा दूसरों के विचार स्व्यं सम्यक् रूप से समझ सकता है।

4. प्लेटो के अनुसार :-

विचार आत्मा की मूक बातचीत है, पर वही जब ध्वनि के माध्यम से होठों पर प्रकट होती है तो उसे भाषा की संज्ञा देते हैं।

5. मैक्समूलर के अनुसार :-

भाषा और कुछ नहीं है, केवल मानव की चतुर वृद्धि द्वारा आविष्कृत ऐसा उपाय है जिसकी मदद से हम अपने विचार सरलता और तत्परता से दूसरों पर प्रकट कर सकते हैं।  

भाषा के तीन भेद या प्रकार

  • मौखिक भाषा (Mokhik Bhasha)
  • लिखित भाषा (Likhit Bhasha)
  • सांकेतिक भाषा (Sanketik Bhasha)

मौखिक भाषा (Mokhik Bahasa)

भाषा का वह रूप जिसके माध्यम से हम अपने विचारों को मौखिक रूप अर्थात् मुख के द्वारा बोलकर प्रकट करते है तथा सामने वाले के विचार भी इसी प्रक्रिया माध्यम से सुनते है तब वह मौखिक भाषा कहलाता है। भाषा का यह रूप अत्यधिक प्रचलित और सुगम है जिससे हम अपने भावों को प्रकट करते है। 

मौखिक भाषा के उदाहरण :-

1. गांव के सरपंच ने अपना फैसला बोलकर सुनाया।

2. कवयित्री अपनी कविता का पाठ बोलकर करती है।

हिन्दी व्याकरण के अनुसार मौखिक भाषा की सबसे छोटी ईकाई ध्वनि हैं। 

लिखित भाषा (Likhit Bahasa)

जब हम अपने मनोभावों को लिखकर किसी दूसरे को बताते है तब उस भाषा के उस रूप को लिखित भाषा कहा जाता है। भाषा का यह रूप सर्वाधिक बाद में ग्रहण किया गया था। हर प्रकार के प्रशासनिक एवं क़ानूनी कार्य लिखित भाषा के माध्यम से ही पूर्ण किए जाते है।

लिखित भाषा के उदाहरण :-

1. प्रदीप ने अपना प्रेम-पत्र लिखकर पार्वती को भेजा है। 

2. विद्यार्थियों ने अपनी परीक्षा लिखकर दी है। 

हिन्दी व्याकरण के अनुसार लिखित भाषा की सबसे छोटी ईकाई वर्ण हैं। 

सांकेतिक भाषा (Sanketik Bahasa)

भाषा के जिस रूप के माध्यम से हम संकेतों के द्वारा बात को कहते एवं समझते है तो वह रूप सांकेतिक भाषा कहलाता है। भाषा का यह प्रकार मनुष्य के आदिकाल से ही प्रचलित है। बहुधा हम इस रूप को हमारे दैनिक जीवन में प्रयोग करते ही करते है। 

सांकेतिक भाषा के उदाहरण :-

1. कुलवंत गर्दन हिलाकर खेलने के लिए हाँ करता है। 

2. मोहन और सोहन आँखों से इशारा करके कक्षा से बाहर जाते हैं। 

सांकेतिक भाषा के लिए अन्य तीन साधनों का प्रयोग किया जाता है :-

(क) स्पर्श संकेत (Sparsh Sanket)

चोर अंधकार में एक-दूसरे को हाथ दबाकर या छूकर अपनी बात को व्यक्त करते हैं। 

(ख) दृष्टि संकेत (Drishti Sanket)

पिता ने पुत्र को आँखों के इशारों से शरारत न करने का भाव व्यक्त किया। 

(ग) श्रव्य संकेत (Shravy Sanket)

अध्यापक ने डंडे को टेबल पर ज़ोर से मारकर सभी बच्चों को पढ़ने का भाव व्यक्त किया। 

Leave a Comment