भारतीय नारी पर निबंध | Essay on Indian Women in Hindi

भारतीय नारी पर निबंध: आज के इस आर्टिकल में हम भारतीय नारी/स्त्री जीवन के ऊपर निबंध को पढ़ने जा रहें है। इस निबंध को अपनी शब्द सीमा की आवश्यकता अनुसार प्रयोग में ला सकते है। 100 शब्द, 200 शब्द, 300 शब्द, 400 शब्द, 500 शब्द के आधार पर आप इस निबंध को परीक्षा या वाचन प्रतियोगिता में प्रयोग कर सकते है।

भारतीय नारी पर निबंध

भारतीय नारी पर निबंध

सृष्टि की पूर्णता पुरुष और नारी दोनों के मिलन से ही संभव है। भारतीय साहित्य और संस्कृति में पुरुष और प्रकृति को संसार का संचालन माना गया है। लेकिन नारी की भूमिका इस चिर जगत संसार में आधारस्तम्भ के रूप में है। नारी ईश्वर की शक्ति है। नारी और नर के योग से सृष्टि परिपूर्ण होती है। नारी बहु-गुण सम्पन्न है इसलिए महान दार्शनिक, विचारक, कवि उसके सामने नत्-मस्तक होते हुए दीखते हैं। नारी में दया, माया, ममता, त्याग भरा पड़ा है। उसके हृदय की गहराई और मन की ऊँचाई का पता लगाना बहुत कठिन है। भारतीय नारी में सहनशीलता, शीतलता, कोमलता, प्रचण्डता, कठोरता विद्यमान है। वह शिवा, शक्ति, चण्डी, दुर्गा क्या नहीं, सब कुछ ही तो है। विविध रूपों वाली होने के कारण ही सभी उसका आदर करते हैं।  

नारी के सम्बन्ध में राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त जी लिखते हैं –

नारी जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी
आंचल में है दूध, आँखों में पानी

प्रसाद जी कहते हैं- 

नारी ! तुम केवल श्रद्‌धा हो,
विश्वास रजत नग पगतल में ।
पीयूष स्त्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुदंर समतल में ।।

सत्युग में नारी

सत्युग में नारी पुरुष के समान पूज्य थी। वह पुरुष के साथ मिलकर यज्ञ हवन किया करती थी। सावित्री, अनुसूया जैसी विदुषियों के नाम आज भी बड़े सम्मान से लिए जाते हैं। त्रेता युग में सीता, उर्मिला के आदर्शमय जीवन की आज भी सभी सराहना करते हैं। द्वापर युग की गान्धारी, कुन्ती, द्रौपदी के संर्घषमय जीवन से सभी प्रेरणा लेते हैं। आधुनिक युग की नारी शिक्षा ग्रहण करके अपनी प्रतिभा को विकसित कर रही हैं। पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर चल रही है और कहा भी जाता है :-

जहां नारी का सम्मान होता है, वहां देवता निवास करते हैं।

नारी के रूप

नारी का पहला रूप पत्नी का है। पत्नी के रूप में वह अपने पति का, उसके माता-पिता का घर-परिवार, जीवन संवारती है। नारी का दूसरा रूप मां का है। मातृ-शक्ति अति महान है। वह बच्चों के पालन-पोषण से लेकर उसकी शिक्षा- दीक्षा उसके भविष्य तक को संवार कर उसकी जीवन नैया पार लगा देती है। नारी एक मां है, बहन है, जो भाई की संकट में रक्षा करने वाली है। एक लाडली बेटी है, इसके बिना घर सूना-सूना रहता है। कन्या को लक्ष्मी और देवी के रूप में पूजा जाता है। वह दुर्गा बन दुष्टों का दलन करने वाली है। राक्षसों के अत्याचारों को सहकर वह अपने मान-सम्मान को बचाती आई है। मुगलों और अंग्रेज़ों के शासनकाल में उस पर प्रतिबन्ध भी लगे, फिर भी अवसर मिलते ही वह रानी झांसी की तरह गर्जी, जीजाबाई की तरह कर्मठ बनी और शिवा जी जैसे पुत्र जन्मे। राजस्थान की नारीयां तो ” जौहर ” रचाया करती थीं।

नारी के गुण

नारी का एक महान गुण है – उसकी प्रेरणा शक्ति। हर सफल पुरुष के पीछे एक नारी की प्रेरणा शक्ति रही है। वह पुरुष के लिए अमृत की धारा है जो संघर्ष में उसके ताप को दूर करती है। जैसे मनु के लिए नारी श्रद्धा थी। मनुष्य जीवन में दया को मानवता का गुण स्वीकार किया गया हैं, परन्तु नारी का यह आभूषण है, क्योंकि वह ममतामयी होती है। वह अपने भाई, माता-पिता बच्चों के प्रति यह गुण दिखाती है। नारी की वाणी में मधुरता है, कोमलता है। उसके मन, वचन, कर्म में एकता है। उसके अगाध प्रेम-विश्वास की छाया में दुष्ट भी सज्जन बन जाते हैं। वह समाज का कल्याण करने के लिए छली-कपटी भी बन जाती है।

आत्मत्याग की भावना

उसकी आत्मत्याग की भावना उसे सभी गुणों से ऊपर उठा देती है। वह शुद्ध हृदय से प्रेम करके अपनों के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर देती है। इसी कारण वह पूजनीय है, अभिनन्दनीय है। वह सारी सृष्टि को अपने में आत्म सात किए हुए है। वह भविष्य की निर्माता है-भावी समाज की पालिका है, इसलिए इसके पुत्र- पुत्रियां भी महान है। पाश्चात्य नारी कभी भी भारतीय नारी की तुलना में नही ठहर सकती।

नारी पर शिक्षा का प्रभाव

आज की नारी पर शिक्षा का प्रभाव अधिक हो रहा है। बड़े दुख की बात है कि वह अपने विकास के लिए पश्चिम की ओर देखने लगी है। इसलिए उसमें कुछ चारित्रिक पतन भी हुआ है। वह अपनी मर्यादाओं से बाहर आना चाहती हैं। वह बाहरी चमक-दमक से प्रभावित हो रही है। फिर भी अपने मूल गुणों से वंचित नहीं हुई है। वह आज भी आदर्श माता, आदर्श पुत्री, आदर्श पत्नी है। वह पुरुष की प्रेरणा- शक्ति है। वह पुरुष के साथ हर क्षेत्र में उतर पड़ी है और अपनी प्रतिभा का परिचय देकर अपने भारतीय गुणों का परिचय दे रही है।

स्वतंत्र भारत में नारी की भूमिका

भारतीय नारी ने आजाद भारत में जो तरक्की की है, उससे देश का विकास हो रहा है अब नारी पुरुष के समान राष्ट्रपति, मन्त्री, डॉक्टर, वकील, जज, शिक्षिका, प्रशासनिक अधिकारी आदि सभी पदों और सभी क्षेत्रों में नारियाँ आसानी से काम रही हैं। सारे देश में नारी-शिक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है। नारी सशक्तिकरण की अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं, फिर भी नारी को वैदिक काल में जो सम्मान और प्रतिष्ठा व्याप्त थी, वह आधुनिक शालीन नारी को अभी तक नही मिली है। आजाद भारत की नारी नितान्त पूर्ण आजादी चाहती है, पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण कर वह मोडर्न बनना चाहती है। इस तरह के आचरण से भारतीय नारी के ट्रेडिशनल आदर्शों की कमी हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों की नारी अभी भी कुरीतियों से फंसी हुई हैं। पिछड़े वर्ग के लोगों में स्त्री का शोषण उत्पीड़न लगातार चल रहा है। इन सब बुराइयों को दूर करने में नारी की भूमिका अहम है।

आधुनिक नारी

आधुनिक काल के आते आते – नारी चेतना का भाव उत्कृष्ट रूप में जाग्रत हुआ । युग-युग की दासता से पीड़ित नारी के प्रति एक व्यापक सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाने लगा। बंगाल में राजा राममोहन राय और उत्तर भारत में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने नारी को पुरुषों के अनाचार की छाया से मुक्त करने को क्रान्ति का बिगुल बजाया। अनेक कवियों की वाणी भी इन दुःखी नारियों की सहानुभूति के लिए अवलोकनीय है । आधुनिक युग में नारी को विलासिनी और अनुचरी के स्थान पर देवी माँ, सहचरी और प्रेयसी के गौरवपूर्ण पद प्राप्त हुए । नारियों ने सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं साहित्यिक सभी क्षेत्रों में आगे बढ़कर कार्य किया । विजयलक्ष्मी पण्डित, कमला नेहरू, सुचेता कृपलानी, सरोजिनी नायडू, इन्दिरा गाँधी, सुभद्राकुमारी चौहान, महादेवी वर्मा आदि के नाम विशेष सम्मानपूर्ण हैं ।

निष्कर्ष

नारी को देवी माँ का स्वरुप माना जाता है। परिवारों और समाज को भी नारी और उसके अस्तित्व का सम्मान करना होगा। आज नारी हर कार्य में पुरुषों से भी बेहतर साबित हो रही है और अपनी एक अलग पहचान बना रही है। सदियों से चल रही कुप्रथाओं   को तोड़कर वह हौसलों की नई उड़ान भर रही है। नारी ही इस जगत में वह शक्ति है जो सब सहनशीलता की प्रतिमूर्ति है। एतएव हमें नारी का सदैव सम्मान करना चाहिए। 

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