हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय | Harishankar Parsai Jivani PDF

 Harishankar Parsai Jivani

श्री हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय

श्री हरिशंकर परसाई हिंदी के जाने माने लेखक हैं। हरिशंकर परसाई जी अपने व्यंग लेखन के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध थे।  इनका जन्म 22 अगस्त, 1922 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी नामक गांव में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। उन्होंने बाद में नागपुर विश्वविद्यालय से एम०ए० हिंदी की परीक्षा उत्तीर्ण की।

आरंभ में कुछ वर्षों के लिए उन्होंने अध्यापन कार्य किया, किंतु सन 1947 में अध्यापन कार्य को त्यागकर लेखन कार्य को ही जीवन-यापन का साधन बना लिया। उन्हीं दिनों श्री परसाई जी ने वसुपा नामक पत्रिका का संपादन आरंभ किया था, किंतु घाटे के कारण उसे बंद करना पड़ा। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैं।

इनकी सुप्रसिद्ध रचना ‘विकलांग श्रद्धा का दौर‘ पर साहित्य अकादमी द्वारा इन्हें पुरस्कृत भी किया गया। आजीवन साहित्य रचना करते हुए श्री परसाई जी 1995 ई. में इस नश्वर संसार को त्यागकर स्वर्गलोक में जा पहुंचे।

हरिशंकर परसाई संक्षिप्त जीवनी

नाम श्री हरिशंकर परसाई
जन्म 22 अगस्त, 1922
जन्म स्थान जमानी (होशंगाबाद) मध्यप्रदेश
पिता का नाम जुमक लालू प्रसाद
माता का नाम चम्पा बाई
काल या अवधि आधुनिक काल
निधन 1995 में
प्रमुख रचना हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव

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प्रमुख रचनाएँ

श्री हरिशंकर परसाई जी ने बीस से अधिक रचनाएँ लिखीं। उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं

कहानी-संग्रह – ‘हंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे।

उपन्यास – ‘रानी नागफनी की कहानी’, ‘तट की खोज।

निबंध-संग्रह – ‘तब की बात और थी”, “भूत के पाँव पीछे’, ‘पगडंडियों का जमाना’, ‘सदाचार का तावीज़’, “शिकायत मुझे भी है’, ‘बेईमानी की परत आदि।

व्यंग्य-संग्रह – वैष्णव की फिसलन’, ‘तिरछी रेखाएँ’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ आदि।

साहित्यिक विशेषताएँ

श्री परसाई जी व्यंग्य लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाओं में व्यंग्य केवल व्यंग्य के लिए नहीं होते, अपितु व्यंग्य के माध्यम से वे समाज में फैली हुई बुराइयों, भ्रष्टाचार व अन्य समस्याओं पर करारी चोट करते हैं। इसी प्रकार वे अपनी व्यंग्य रचनाओं में केवल मनोरंजन ही नहीं करते, अपितु सामाजिक जीवन के विविध पक्षों पर गंभीर चिंतन भी प्रस्तुत करते हैं।

उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज की कमजोरियों और विसंगतियों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। उनका व्यंग्य साहित्य हिंदी में बेजोड़ है। उनका शिष्ट एवं सधा हुआ व्यंग्य आलोचनात्मक एवं कटु सत्य से भरपूर होने के कारण पाठकों के लिए ग्राह्य होता है।

परसाई जी ने उच्च स्तर के व्यंग्य लिखकर व्यंग्य को हिंदी में एक प्रमुख विद्या के रूप में स्थापित किया है। इनकी व्यंग्य रचनाओं की अन्य प्रमुख विशेषता है कि वे पाठक के मन में कटुता या कड़वाहट उत्पन्न न करके समाज की समस्याओं पर चिंतन-मनन करने व उनके समाधान खोजने के लिए प्रेरित करती हैं।

भाषा-शैली

निश्चय ही श्री परसाई जी ने व्यंग्य विधा के अनुकूल सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। वे व्यंग्य-भाषा के प्रयोग में अत्यंत कुशल हैं। वे शब्द-प्रयोग के भी महान मर्मज्ञ थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में भाषा का भाव एवं प्रसंग के अनुकूल प्रयोग किया है। उनकी भाषा में लोकप्रचलित मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग भी किया गया है। उन्होंने तत्सम तद्भव शब्दों का प्रयोग भी किया है। तत्सम तद्भव शब्दों के साथ-साथ अरबी-फारसी व अंग्रेजी शब्दावली का सार्थक एवं सटीक प्रयोग भी देखने को मिलता है।

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