हजारी प्रसाद द्विवेदी जीवन परिचय। Hazari Prasad Dwivedi Jivani PDF

नमस्कार प्यारे साथियों, हिंदीशाला के एक और नए पोस्ट में आज हम आपका परिचय एक ऐसे कवि से करवाने जा रहें है जो हिंदी साहित्य में अपना एक विशेष स्थान रखता है। आज हम पढ़ने जा रहें है हजारी प्रसाद द्विवेदी जीवन परिचय, उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं साहित्यिक विशेषताएं पर भी एक नज़र डालेंगे। 

Hazari Prasad Dwivedi Jivani

हजारी प्रसाद द्विवेदी जीवन परिचय

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार माने जाते हैं। उनका जन्म वर्ष 1907 ई. में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के आरत दुबे छपरा नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी था, जो संत स्वभाव के व्यक्ति थे। द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा पठानी स्कूल में हुई। इनको 1952-53  में काशी नागरी प्रचारणी सभा का अध्यक्ष बनाया गया 

हजारी प्रसाद द्विवेदी काशी विश्वविद्यायल से अध्ययन के बाद शांतिनिकेतन में 20 वर्ष तक कार्य किया यहां पर इनके ऊपर टैगोर के मानवतावादी दर्शन का अधिक प्रभाव पड़ा। इनकी मूल चेतना विराट मानवतावाद हैं।

उन्होंने काशी महाविद्यालय से शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात वर्ष 1930 ई. में ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त की। इसी वर्ष ये शांति निकेतन में हिंदी अध्यापक के पद पर नियुक्त हुए।  इसी पद पर रहते हुए इनका रविंद्र नाथ ठाकुर, क्षिति मोहन सेन, आचार्य नंदलाल बसु आदि महानुभाव से संपर्क हुआ।

वर्ष 1950 ई. में ये  काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष पद पर चुने गए। वर्ष 1960 ई.मैं उनको पंजाब विश्वविद्यालय,चंडीगढ़ के हिंदी विभागाध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। तत्पश्चात यहां से अवकाश लेकर यह भारत सरकार की हिंदी विषयक समितियों एवं योजनाओं से जुड़े रहे।

लखनऊ विश्वविद्यालय ने इन्हें डी. लिट. की मानद उपाधि से अलंकृत किया। ‘आलोक पर्व’ पर इनको साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। भारत सरकार ने इनकी साहित्य साधना को परखते हुए इनको पदम भूषण की उपाधि से सुशोभित किया। 19 मई  1979 ई. में दिल्ली में ये अपना उत्कृष्ट साहित्य सौंप कर चिर निंद्रा में लीन हो गए।

हजारी प्रसाद द्विवेदी संक्षिप्त जीवनी

नाम हजारी प्रसाद द्विवेदी
बचपन का नाम  वैद्यनाथ द्विवेदी
जन्म वर्ष  19 अगस्त 1907 ई.
जन्म स्थान  दुबे छपरा (बलिया) उत्तर प्रदेश
पिता का नाम अनमोल द्विवेदी
माता का नाम ज्योतिष्मती
गुरु का नाम रवींद्रनाथ टैगोर
पत्नी का नाम भगवती देवी
प्रमुख सम्मान  पद्म भूषण (1957 ), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1973 )
देहांत वर्ष 19 मई 1979 ई.
देहांत स्थान  दिल्ली, भारत
जीवंत आयु 71 वर्ष 

प्रमुख रचनाएँ

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने उपन्यास, निबंध,आलोचना आदि अनेक विधाओं पर लेखनी चलाकर हिंदी-साहित्य को समृद्ध किया है। उनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं —

निबंध–संग्रह

अशोक के फूल, कल्पलता, विचार और वितर्क, कुटज, विचार-प्रवाह, आलोक पर्व, साहित्य सहचर, प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद।

उपन्यास

बाणभट्ट की आत्मकथा, चारुचंद्रलेख, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा।

आलोचनात्मक साहित्यतेतिहास

हिंदी साहित्य की भूमिका, हिंदी साहित्य का आदिकाल, हिंदी साहित्य : उद्भव और विकास, सूर-साहित्य, कबीर, मध्यकालीन बोध का स्वरूप, नाथ संप्रदाय, सहज साधना, मृत्युंजय रवीन्द्र, कालिदास की लालित्य योजना।

ग्रंथ संपादन

संदेश-रासक, पृथ्वीराज रासो, नाथ-सिद्धों की बानियाँ।

पत्रिका–संपादन

विश्व भारती, शांतिनिकेतन।

साहित्यिक विशेषताएं

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी एक श्रेष्ठ आलोचक होने के साथ-साथ प्रसिद्ध निबंधकार भी थे। उनका साहित्य कर्म भारत के सांस्कृतिक इतिहास की रचनात्मक परिणीति है। वे एक श्रेष्ठ ललित निबंधकार थे। उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है।

देश-प्रेम की भावना 

द्विवेदी जी का साहित्य देश-प्रेम की भावना से ओत-प्रोत है। उनकी मान्यता है कि जिस दिन में हम पैदा होते हैं उसके प्रति प्रेम करना हमारा परम धर्म है। उस देश का कण-कण हमारा आत्मीय है। उस मिट्टी के प्रति हमारा अटूट संबंध है। इसलिए इनके साहित्य में अपने देश के प्रति मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि जब  तक हम अपनी आंखों से अपने देश को देख लेना नहीं सीख लेते तब तक इसके प्रति हमारे मन में सच्चा और स्थायी प्रेम उत्पन्न नहीं हो सकता। मेरी जन्मभूमि निबंध में उन्होंने लिखा है कि “ यह बात अगर छिपाई भी तो कैसे छिप सकेगी कि मैं अपनी जन्मभूमि को प्यार करता हूं।’’

प्रकृति-प्रेम का चित्रण 

द्विवेदी जी के हृदय में प्रकृति के प्रति अपार प्रेम है। उनके निबंध साहित्य में उनका प्रकृति से अनन्य प्रेम प्रकट होता है। उन्होंने अपने अनेक निबंधों में प्रकृति के मनोरम और भावपूर्ण चित्रण अंकित किए हैं। अशोक के फूल, बसंत आ गया है, नया वर्ष आ गया, शिरीष के फूल आदि में प्रकृति के अनूठे रूप का चित्रण हुआ है। कहीं-कहीं इन्होंने प्रकृति के चेतन रूप का भी अंकन किया है। इनके अनुसार प्रकृति चेतन और भाव से भरी हुई है। इन्होंने प्रकृति के माध्यम से भारतीय संस्कृति के भी दर्शन किए हैं।

मानवतावादी दृष्टिकोण

मानवतावादी दृष्टिकोण भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। अनादि काल से ‘ वसुधैव कुटुंबकम’ भारतीय संस्कृति का आदर्श है। द्विवेदी जी के निबंधों में मानवतावादी विचारधारा का अनूठा चित्रण मिलता है। इन्होंने अपने निबंधों में मानव कल्याण को प्रमुख स्थान दिया है। इन्होंने मानव-मात्र के कल्याण की कामना की है। इन्होंने मानव को परमात्मा की सर्वोत्तम कृति माना है। संसार की प्रत्येक वस्तु का प्रयोजन मानव कल्याण है। वह मनुष्य को ही साहित्य का लक्ष्य मानते हैं।

समाज का यथार्थ चित्रण 

द्विवेदी जी ने समकालीन समाज का यथार्थ चित्रण किया है। उन्होंने अपने कथा-साहित्य में जाति-पाती,मजहब के नाम पर बंटे समाज की समस्याओं की वर्णन किया है।इन्होंने स्त्री को सामाजिक अन्याय का सबसे बड़ा शिकार माना है तथा उनके पीड़ा का गहन विश्लेषण करके उनके प्रति श्रद्धा अभिव्यक्त की है।

भारतीय संस्कृति के प्रति आस्था

द्विवेदी जी की भारतीय संस्कृति के प्रति गहन आस्था थी। उन्होंने भारत देश को महामानव समुद्र की संज्ञा दी है। अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की सनातन परंपरा है। इसे द्विवेदी जी ने मुक्त कंठ से स्वीकार किया। इनके निबंधों में भारतीय संस्कृति की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण तथा भारतीय संस्कृति की महानता इनके निबंध साहित्य का आधार है। इन्हें संसार के सभी लोगों में मानव संस्कृति के दर्शन होते हैं।

प्राचीन और नवीन का अद्भुत समन्वय

 द्विवेदी जी के निबंध साहित्य में प्राचीनता और नवीनता का अद्भुत समन्वय है। उन्होंने प्राचीन ज्ञान, जीवन दर्शन और साहित्य सिद्धांतों को नवीन अनुभवों से मिलकर प्रस्तुत किया है।

विषय की विविधता

द्विवेदी जी ने अनेक विषयों को लेकर अपने निबंधों की रचना की है। उन्होंने अनेक विषयों पर सफल देखनी चलाई है। उन्होंने ज्योतिष, संस्कृति, प्रकृति, नैतिक, समीक्षात्मक आदि अनेक विषयों को अपनाकर निबंधों की रचना की है।

ईश्वर में विश्वास

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखते थे।वे एक आस्तिक पुरुष थे। यही भाव उनके निबंधों में भी दृष्टिगोचर होता है। उन्होंने स्वीकार किया है कि ऐसी कोई परम शक्ति अवश्य है जो इसके पीछे कर्म करती हैं। उन्होंने माना है कि ईश्वर अनादि, अनंत, अजन्मा, निर्गुण,होकर भी अपने प्रभाव को प्रकट करता है। वह इस संसार का जन्मदाता है। लेखक के शब्दों में “ इस दृश्य मानसून दरिया के उस पार इस आसमान जगत के अंतराल में कोई एक शाश्वत सत्ता है जो इसे मंगल की ओर ले जाने के लिए कृत निश्चय है।

भाषा-शैली

द्विवेदी जी हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ निबंधकार थे। उनकी भाषा तत्सम प्रधान साहित्यिक है। इन्होंने पांडित्य प्रदर्शन को कहीं भी अपने साहित्य में स्थान नहीं दिया है। इन्होंने अपनी रचनाओं में सरल, साधारण सुबोध और सार्थक शब्दावली का प्रयोग किया है। वे कठिन को भी सरल बनाने में सिद्धहस्त है। हिंदी की गद्य शैली को जो रूप उन्होंने दिया है वह हिंदी के लिए वरदान है। उन्होंने अपने निबंधों में विचारात्मक,भावात्मक,व्यंग्यात्मक,शैलियों को अपनाया है।

वस्तुतः आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी  हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ निबंधकार थे। उनका निबंध साहित्य में ही नहीं बल्कि समस्त साहित्य में अपूर्व स्थान है। 

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