Contents
- संविधान द्वारा स्वीकृत 22 भाषाएँ
- संविधान में हिंदी भाषा की स्थिति
- अनुच्छेद 343
- अनुच्छेद 344
- अनुच्छेद 345
- अनुच्छेद 346
- अनुच्छेद 347
- अनुच्छेद 348
- अनुच्छेद 349
- अनुच्छेद 350
- अनुच्छेद 351
- विधान मण्डलों की भाषा
- सन् 1950 ई० के बाद हिन्दी की प्रगति
- दो स्थायी आयोग
- राजभाषा से सम्बन्धित महत्वपूर्ण अधिनियम
- कार्यालयों के तीन वर्ग क्षेत्र
संविधान में हिंदी भाषा की स्थिति: 14 सितम्बर, 1949 ई० को भारत के संविधान में हिन्दी को राजभाषा (Official Language) की मान्यता प्रदान की गई। भारतीय संविधान के भाग-17 में अनुच्छेद 343-351 तक राजभाषा का संविधान में प्रावधान किया गया है तथा संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई हैं।
संविधान द्वारा स्वीकृत 22 भाषाएँ
1. असमिया, 2. बंगला, 3. गोडो, 4. डोगरी, 5. गुजराती,
6. हिन्दी, 7. कन्नड़ 8. कश्मीरी, 9. कोंकणी, 10. मैथिली,
11. मलयालम, 12. मणिपुरी,13. मराठी,14. नेपाली,
15. उड़िया, 16. पंजाबी, 17. संस्कृत, 18. सन्थाली,
19. सिन्धी, 20. तमिल, 21. तेलगु, 22. उर्दू ।
संविधान में हिंदी भाषा की स्थिति
मूल संविधान में 14 भाषाएँ थीं। संविधान (21वाँ संशोधन) अधिनियम, 1967 द्वारा सिन्धी के जोड़े जाने पर यह संख्या 15 हो गई थी। 71 वें संशोधन अधिनियम, 1992 से कोंकणी, नेपाली और मणिपुरी को सम्मिलित कर दिए जाने पर यह संख्या 18 हो गई है। 92वें संशोधन अधिनियम 2003 ने इसमें बोडो, डोगरी, मैथिली और सन्याली को सम्मिलित कर दिया गया है। जिससे अब यह संख्या बढ़कर 22 हो गई है।
संविधान में हिंदी भाषा की स्थिति इस प्रकार है :-
अनुच्छेद 343
संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी तथा भारतीय अंकों का रूप अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा। किन्तु संविधान में अनुमति प्रदान की गई कि 15 वर्ष की अवधि अर्थात् 1965 ई० तक अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता रहेगा तथा इस अवधि की समाप्ति के बाद भी संसद विधि द्वारा अंग्रेजी भाषा या अंकों के देवनागरी रूप का ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग कर सकेगी जो विधि में विनिर्दिष्ट किया जाएँ।
अनुच्छेद 344
राष्ट्रपति पाँच वर्ष के बाद और उसके बाद हर 10 वर्ष की समाप्ति पर राजभाषा आयोग का गठन करेगा। आयोग का कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को निम्नलिखित के बारे में सिफारिश करे-
(1) शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग ।
(2) शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी के प्रयोग पर निर्बन्धन ।
(3) उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में और संघ की और राज्य की अधिनियमितियों के उनके अधीन बनाए गए अधीनस्थ विधान के पाठों में प्रयोग की जाने वाली भाषा ।
(4) संघ के किसी एक या अधिक विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए वाले अंकों के रूपा (5) संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच या एक राज्य और जाने दूसरे राज्य के बीच पत्रादि की भाषा। आयोग से यह अपेक्षा की गई कि वह भारत की औद्योगिक सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का और लोक सेवाओं के सम्बन्ध में अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के व्यक्तियों के न्यायसंगत दावों और हितों का सम्यक ध्यान रखेगा।
अनुच्छेद 345
किसी राज्य का विधान मण्डल, विधि द्वारा, उस राज्य में इस्तेमाल होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिन्दी को उस राज्य सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंगीकार कर सकता है। जब तक ऐसा नहीं के किया जाता, अंग्रेजी का प्रयोग उसी प्रकार किया जाता रहेगा जिस प्रकार उससे ठीक पहले किया जा रहा था।
अनुच्छेद 346
संघ में शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए जाने के लिए तत्समय प्राधिकृत भाषा अर्थात् अंग्रेजी एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच तथा किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की भाषा होगी। यदि दो या अधिक राज्य यह करार करते हैं कि उन राज्यों के बीच पत्रादि की भाषा हिन्दी होगी तो ऐसे पत्रादि के लिए उस भाषा का प्रयोग किया जा सकेगा।
अनुच्छेद 347
यदि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह माँग करे कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को उस राज्य में दूसरी भाषा के रूप में मान्यता दी जाए तो राष्ट्रपति उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में शासकीय प्रयोजन के लिए उस भाषा को मान्यता देने का उपबन्ध कर सकता है।
अनुच्छेद 348
जब तक संसद विधि द्वारा उपबन्ध न करे, तब तक उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी भाषा में होगी। इसके अलावा संघ तथा राज्यों के स्तरों पर सभी विधेयकों, संशोधनों, अधिनियमों, अध्यादेशों, आदेशों, नियमों, विनियमों तथा उपनियमों के प्राधिकृत पाठ भी केवल अंग्रेजी में ही होंगे। लेकिन किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में हिन्दी भाषा के प्रयोग को या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त किसी भाषा के प्रयोग को प्राधिकृत कर सकेगा। लेकिन अनिवार्य है कि निर्णय डिक्रियाँ तथा आदेश अंग्रेजी में ही दिये जाते रहेंगे।
अनुच्छेद 349
संविधान के प्रारम्भ से 15 वर्ष की अवधि के दौरान प्रयोग की जाने वाली भाषा के लिए उपबन्ध करने वाला कोई विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति, जोकि वह राजभाषा आयोग तथा भाषा समिति के प्रतिवेदन पर विचार करके देगा, के बाद ही संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है।
अनुच्छेद 350
1. प्रत्येक व्यक्ति किसी शिकायत को दूर करने के लिए संघ या राज्य के किसी अधिकारी या प्राधिकारी को, यथास्थिति, संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन देने का हकदार होगा।
2. किसी राज्य में भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा के लिए उचित प्रबन्ध किया जाएगा।
3. भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए राष्ट्रपति एक विशेष अधिकारी नियुक्त करेगा। यह अधिकारी उस वर्ग के भाषायी हितों की रक्षोपायों से सम्बन्धित राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देगा तथा राष्ट्रपति इसे संसद में रखवाएगा और सम्बन्धित राज्यों की सरकारों को भिजवाएगा।
अनुच्छेद 351
संघ को यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार करे, उसका विकास करे ताकि वह भारत की मिली-जुली संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्ताक्षेप किए बिना आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं के प्रयुक्त रूप शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो, वहाँ उसके शब्द भण्डार के लिए मुख्यतया संस्कृत से और गौणतया अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे ।
विधान मण्डलों की भाषा
संविधान के भाग-5 के अनुच्छेद 120 में संसद की भाषा का उपबन्ध है। उसमें कहा गया है कि संसद कार्य हिन्दी या अंग्रेजी में किया जाएगा। लेकिन यथास्थिति सदर का पीठासीन अधिकारी किसी सदस्य को उसकी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने अनुमति दे सकता है।
अंग्रेजी संविधान के भाग-6 के अनुच्छेद 210 में राज्य विधान मण्डलों की भाषा का उपबन्ध है। राज्य के विधानमण्डल में कार्य राज्य की राजभाषा या हिन्दी अथवा में किया जाएगा। किसी सदन का पीठासीन अधिकारी किसी सदस्य को उसकी मातृ-भाषा में सदन को सम्बोधित करने की अनुमति दे सकता है।
सन् 1950 ई० के बाद हिन्दी की प्रगति
- राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद) ने सन् 1955 ई० में बाल गंगाधर (बी० जी०) खो की अध्यक्षता में ‘राजभाषा आयोग’ का गठन किया। इस आयोग में 21 सदस्य थे।
- ‘राज्यभाषा आयोग’ ने अपना प्रतिवेदन 1956 में दिया जो संसद के सम 1957 में रखा गया।
- ‘राजभाषा आयोग’ की सिफारिशों की समीक्षा करने के लिए सन् 1957 ई० में गोविन्द बल्लभ पंत की अध्यक्षता में संयुक्त संसदीय राजभाषा समिति का गठन किया गया।
संयुक्त संसदीय समिति में 30 सदस्य थे जिनमें लोक सभा के 20 तथा राज्य सभा के 10 सदस्य थे। इसने अपना प्रतिवेदन 1959 ई० में दिया।
संयुक्त संसदीय समिति के सुझावों पर ध्यान देते हुए राष्ट्रपति ने ‘दो स्थायी आयोगों की स्थापना की।
दो स्थायी आयोग
आयोग | मंत्रालयों का नाम |
राजभाषा (विधायी) आयोग
वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग |
विधि मंत्रालय (वर्ष 1961 ई.)
शिक्षा मंत्रालय (वर्ष 1961 ई.) |
सन् 1976 ई० में ‘राजभाषा (विधायी) आयोग’ को समाप्त कर दिया गया था।
राजभाषा से सम्बन्धित महत्वपूर्ण अधिनियम
अधिनियम | वर्ष |
राजभाषा अधिनियम
राजभाषा संकल्प प्राधिकृत पाठ (केन्द्रीय विधि) अधिनियम राजभाषा नियम |
1963 (1967 में संशोधित)
1968 1973 1976 |
- राजभाषा अधिनियम, 1963 में कुल 9 धाराएँ हैं।
- राजभाषा नियम, 1976 में कुल 12 नियम है।
- राजभाषा नियम, 1976 के अधीन केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों को तीन वर्ग क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।
कार्यालयों के तीन वर्ग क्षेत्र
क वर्ग के क्षेत्र | ख- वर्ग के क्षेत्र | ग-वर्ग के क्षेत्र |
पत्र-व्यवहार हिन्दी में ही किये जाएँ | पत्र-व्यवहार में द्विभाषिक नीति | पत्र-व्यवहार अंग्रेजी में ही किए जाएँ |
उत्तर- प्रदेश | पंजाब | उड़ीसा |
मध्य प्रदेश | गुजरात | उत्तरपूर्वी क्षेत्र |
राजस्थान | महाराष्ट्र | द्रविड़ भाषी क्षेत्र |
बिहार | चंडीगढ़ | पश्चिम बंगाल |
हिमाचल प्रदेश | अंडमान-निकोबार | — |
हरियाणा | — | — |
दिल्ली | — | — |
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