कार्नेलिया का गीत सारांश
कार्नेलिया का गीत जयशंकर प्रसाद के चंद्रगुप्त नाटक का एक प्रसिद्ध गीत है। कार्नेलिया सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस की बेटी है। चंद्रगुप्त के युद्ध जीत जाने के पश्चात सेल्यूकस ने अपनी पुत्री का विवाह चंद्रगुप्त से कर दिया तथा इसी से उनके युद्ध की समाप्ति हो गई और उनकी दुश्मनी मित्रता में तब्दील हो गई।
विवाह के पश्चात जब कार्नेलिया चंद्रगुप्त की पत्नी के रूप में भारत आई तो वह यहां की सुंदरता को देखकर अत्यधिक प्रभावित होगी। तब वह यहां के अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर एक गीत गाती है तथा उस गीत का नाम है कार्नेलिया का गीत।
कार्नेलिया सिंधु के किनारे ग्रीक शिविर के पास वृक्ष के नीचे बैठी हुई है। वह कहती है सिंधु का यह मनोहर तक जैसे मेरी आंखों के सामने एक नया चित्रपट उपस्थित कर रहा है। इस वातावरण से धीरे-धीरे उठती हुई प्रशांत स्निग्धता जैसे हृदय में घुस रही है। लंबी यात्रा करके जैसे मैं वहीं पहुंच गई हूं जहां के लिए चली थी।
यह कितना निसर्ग सुंदर है, कितना रमणीय है। तब वह यह गीत गाती है – “अरुण यह मधुमय देश हमारा”। इस गीत में हमारे देश की गौरवगाथा तथा प्राकृतिक सौंदर्य को भारतवर्ष की विशिष्टता और पहचान के रूप में प्रस्तुत किया गया है। पक्षी भी अपने प्यारे घोंसले की कल्पना कर जिस और उड़ते हैं वही है प्यारा भारतवर्ष है अनजान को भी सहारा देना और लहरों को भी किनारा देना हमारे देश की विशेषता है सही मायने में भारत देश की यही पहचान है।
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कार्नेलिया का गीत व्याख्या
अरुण यह मधुमय देश हमारा!
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
शब्द अर्थ – अरुण – लाल / उत्साह, मधुर – मिठास, क्षितिज – जहाँ धरती-आकाश मिलते हुए नज़र आएं।
प्रसंग- प्रस्तुत गीत छायावाद के आधार स्तंभ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित चंद्रगुप्त नाटक में संकलित कारोलिया के गीत से अवतरित है। कार्नेलिया जब चंद्रगुप्त से विवाह करके भारत आती है तो वह यहां के प्राकृतिक सौंदर्य एवं गौरव गाथा का वर्णन एक गीत के माध्यम से करती है।
व्याख्या- ये हमारा भारत देश अत्यंत उत्साह से भरा हुआ है। जब इस पर सूर्य की किरणों का प्रकाश पड़ता है तब ये और भी सुंदर लगता है। इस देश में सूर्य का ये दृश्य अत्यंत मन मोहक है।
यहां पहुँचकर अनजान क्षितिज को भी सहारा मिल जाता है। कहने का तात्पर्य ये है कि भारत में अपरिचित लोगो को यानी दूर देश से आए हुए लोगों को भी अपनापन लगता है, उनको भी यहां सहारा मिलता है।
सरस तामरस गर्भ विभा पर-नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर-मंगल कुंकुम सारा!
शब्द अर्थ- तामरस – कमल, तरुशिखा – वृक्ष और उसपर खिली पत्तियां, मंगल – पवित्र / अच्छा।
व्याख्या- सूर्य के प्रकाश में खिले कमल तथा पेड़ों की कोमल पत्तियों का सौंदर्य मन मोह लेता है । ऐसा लगता है मानो सूर्य की किरणें कमल के पत्तों पर तथा तरुशिखा पर नृत्य कर रही हों। इस पावन धरती पर हर जगह हरियाली ही हरियाली है। फैली हरियाली पर सूर्य की किरणों पड़ती है तो मानो ऐसा लगता है जैसे हरियाली पर मंगल कुमकुम बिखर गया हो और सारी धरती पावन हो गई हो।
लघु सुरधनु से पंख पसारे-शीतल मलय समीर सहारे।
उङते खग जिस ओर मुँह किए-समझ नीड़ निज प्यारा।
शब्द अर्थ- सुरधनु – इन्द्रधनुष, समीर – पवन / हवा, खग – पक्षी, नीड़ – घोसला।
व्याख्या- प्रातः कालीन मलय पर्वत की सुगंधित शीतल पवन का सहारा लेते हुए इन्द्रधनुष के समान रंग बिरंगे सुंदर-सुंदर छोटे-छोटे पंखों को फैला कर पक्षी भी जिस ओर मुंह किए उड़ते दिखाईं देते है ये वही भारत देश है। यानी विभिन्न संस्कृतियों के लोग भी इस देश में आकर रहना पसंद करते हैं। उनको यहां आकर शांति मिलती है और यहां के लोग उन्हें अपना भी लेते है।
बरसाती आँखों के बादल-बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकराती अनंत की-पाकर जहाँ किनारा।
शब्द अर्थ- करुणा – दया, अनंत – जिसका कोई अंत ना हो।
व्याख्या- जिस प्रकार बादल गर्मी से तपते मुरझाए वृक्ष को वर्षा प्रदान करके नया जीवन प्रदान करते हैं उसी प्रकार भारतवासी भी करुणामय हैं। उनके अंदर भले ही कितने दुख हों, लेकिन वो बाहर से आए लोगों का दुख सुनकर उनको सुलझाने का प्रयास करते हैं, उन्हें सहारा देते हैं और उन्हें आशा की किरण दिखाते हैं। यहां विशाल समुद्र की थकी हारी लहरे भी किनारे पर आकर शांत हो जाती हैं।
हेम कुंभ ले उषा सवेरे-भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मदिर ऊँघते रहते जब-जगकर रजनी भर तारा।
शब्द अर्थ- मदिर – मस्त होकर, रजनी – रात।
व्याख्या- कवि कहता है, मानो उषा रूपी पनिहारि स्वर्ण कलश में सुख व समृद्धि रूपी जल भरकर भारत भूमि पर लुढ़का देती है अर्थात सुबह भारतवासी सुख समृद्धि से भरपूर दिखाई पड़ते हैं। रात भर जागने के कारण तारे भी नींद की खुमारी में मस्त रहते हैं, पर अब वो छिपने की तैयारी कर रहे हैं क्योंकि अब उजाला होने वाला है।
कार्नेलिया के गीत का काव्य सौंदर्य
- इस गीत में भारत की गौरव गाथा तथा अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया गया है।
- कार्नेलिया के गीत में जयाशंकर प्रसाद द्वारा अद्भुत शिल्प-सौंदर्य प्रकट किया गया है
- समीर सहारे, ’बादल बनते, ’जब जगकर’ में छेकानुप्रास अलंकार है।
- लघु सुरधनु से पंख पसारे- उपमा अलंकार है।
- बरसाती आँखों के बादल बनते जहाँ भरे करुणा जल- में रूपक अलंकार है।
- पंक्ति ‘मदिर ऊँघते रहते जब-जगकर रजनी भर तारा’ में अनुप्रास एवं मानवीकरण अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है।