दोस्तों यदि आप “कविता के बहाने” की सप्रंसग व्याख्या बहुत ही सरल भाषा में जानना चाहते हैं तो यह ब्लॉग पोस्ट सिर्फ आपके लिए ही है। इस आर्टिकल में आप कविता के बहाने कविता के मूलभाव/प्रतिपाद्य एवं कवि के सन्देश को अच्छे से समझ सकते हो। यह कविता ‘इन दिनों’ काव्य संग्रह से अवतरित है।
इस रचना के माध्यम से कवि कविता के बारे में बताता है कि किस तरह कविता की उड़ान असीमित होती है। कविता तो हज़ारों वर्षों के बाद भी अपनी प्रांसगिकता को सिद्ध कर देती है। कविता की उड़ान और चिड़िया की उड़ान पर बहुत अंतर होता है। ठीक उसी प्रकार से फूल के खिलने और कविता के खिलने में भी पर्याप्त अंतर पाया जाता है।
कविता के बहाने सप्रसंग व्याख्या
कविता एक उड़ान हैं चिड़िया के बहाने
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने
बाहर भीतर इस घर, उस घर
कविता के पंख लगा उड़ने के माने
चिड़िया क्या जाने ?
प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियां आरोह भाग-2 में संकलित कविता ‘कविता के बहाने‘ से ली गई है जिसके रचयिता ‘श्री कुंवर नारायण‘ हैं।कविता को मन की उड़ान स्वीकार किया जाता है। उड़ती तो चिड़िया भी है लेकिन उसकी उड़ान की एक निश्चित सीमा होती है किन्तु कविता की उड़ान की कोई सीमा नहीं होती। वह तो हज़ारों साल के बाद भी अपनी प्रांसगिकता को सिद्ध कर देती है।
व्याख्या :- कवि का कथन है कि चिड़िया की उड़ान के समान कविता की भी एक उड़ान होती है, किंतु चिड़िया की उड़ान तो सीमित है पर कविता की उड़ान असीमित होती है अर्थात कविता एक बार लिखी जाती है और अनंत काल तक इसी प्रकार सर्वत्र अपनी उड़ान भरती रहती है अर्थात एक बार लिखी जाने के बाद सदा-सदा के लिए पढ़ी जाती है।
उसकी अर्थ छवि और शब्द छवि सदैव सर्वत्र विराजमान रहती है वह अपने कल्पना रूपी पंख लगा कर यहां-वहां सब जगह बाह्य एवं आंतरिक जगत में भी अपनी उड़ान भरती रहती है। कल्पना रूपी पंख लगा कर गोचर एवं अगोचर जगत में उड़ने का क्या अर्थ होता है इसे केवल कविता ही जानती है। इस अहसास को चिड़िया कभी नहीं जान सकती। असीमित उड़ान की जो अनुभूति कविता को होती है वह चिड़िया को कभी भी नहीं हो सकती क्योकिं उसकी उड़ान तो सीमित ही है।
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Kavita Ke Bahane Vyakhya
कविता एक खिलना है फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला फूल क्या जाने
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
बिना मुरझाए महकने के माने
फूल क्या जाने?
व्याख्या :- कवि कहता है कि कविता फूलों की तरह खिलती है और जिस प्रकार फूल खिलने के बाद अपनी खुशबू और सौंदर्य को वातावरण में बिखेर देता है, ठीक उसी प्रकार कविता भी अपनी भाव रूपी खुशबू से सबको आनंद देती है। किंतु फूल तो केवल सूर्योदय होने पर खिलता- महकता और सूर्यास्त होने पर बिखर जाता है।
किन्तु कविता एक बार बनकर-खिलकर अनंत काल तक खिलती-महकती रहती है। वह अपनी भाव-संवेदनाओं से पाठकों को रस प्रदान करती रहती है। कविता अपनी महक से सब जगह खुशबू ही बिखेरती है। वह सदैव बिना मुरझाए अपना सौंदर्य और खुशबू बिखेरती रहती है । इस प्रकार बिना मुरझाए अनंत काल तक महकने का क्या अर्थ होता है इसे केवल कविता ही जान पाती है फूल नहीं।
कविता एक खेल है बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने।
व्याख्या :- कवि कहता है कि कविता बच्चों के खेल की तरह है, कविता भी शब्दों का खेल है। बच्चे अपने खेल में मगन हो बाहर-भीतर की परवाह नहीं करते। वे कभी इस घर तो कभी उस घर खेलते हुए शैतानी करते रहते है। बच्चें अपनी मनमोहक क्रीड़ाओं एवं लीलाओं से सब घर एक कर देते है अर्थात वे अमीर-गरीब, स्री-पुरुष, छोटा-बड़ा, जाति-पाँति आदि का कोई भेद नहीं रखते है। ठीक उसी प्रकार से कविता भी होती है। कवि के लिए सम्पूर्ण संसार एक सामान है, वह भी अपनी रचना में किसी प्रकार का वैर-द्वेष नहीं करता है।