कविता शीर्षक : मैं एक कविता लिखूंगा
मैं एक कविता लिखूंगा, पर उसमें तुम्हारा नाम नहीं लिखूंगा ।।
तुम्हारे मीठे झूठ के साथ, मैं अपने बुरे कारनामें भी ज़रूर लिखूंगा, महज़ तुम्हारे नहीं मैं अपने गुनाहों के किस्से भी भरपूर लिखूंगा ।।
मैं एक कविता लिखूंगा, पर उसमें तुम्हारा नाम नहीं लिखूंगा ।।
तुम्हारे लिए मेरे जज्बातों की तड़प को ज्यों का त्यों लिखूंगा, तुम्हारे कपोलों के गड़ियाली नीर का दाम भी सौ का सौ लिखूंगा ।।
मैं एक कविता लिखूंगा, पर उसमें तुम्हारा नाम नहीं लिखूंगा ।।
तुम्हारे बरताव के डगमग रवैए से आहत मैं मेरा क्षीण आत्मसम्मान लिखूंगा ।।
तुम्हारा रंग-रूप, आकर-विकार, प्रेम-द्वेष और जो रह गया वो भी सब लिखूँगा।
लेकिन तुम्हारा नाम नहीं लिखूंगा ।।
अंतत: मैं अपनी कविता के सार का विरोधाभास लिखूंगा, और एक आख़िरी बार तुम्हारा नाम लिखूंगा ।।
और फिर अदालतों में बैठे उन जजों की तरह मैं तुम्हारे नाम पर कलम तोड़ तुम्हें हमेशा के लिए भुला दूँगा।।
फिर मैं,
भौर लिखूंगा,
दोपहर लिखूंगा,
शाम लिखूंगा,
रात लिखूंगा,
अंगार लिखूंगा,
सबाब लिखूंगा,
जाम लिखूंगा,
जाम तो बार बार लिखूंगा,
दरियादिली लिखूंगा,
दोस्ती लिखूंगा,
देश लिखूंगा,
विदेश लिखूंगा,
दुनिया के हर परिधान का भेष लिखूंगा,
मैं सब कुछ लिखूंगा,
पर फिर कभी गलत आदमी पर अपने जज्बे जाया नहीं करूंगा ।।
मैं एक कविता लिखूंगा, लेकिन उसमें तुम्हारा नाम नहीं लिखूंगा, उसमें तुम्हारा नाम नहीं लिखूंगा ।।