Contents
माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय
माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 ई. को बाबई होशंगाबाद मध्यप्रदेश में हुआ। इनके पिता का नाम नंदलाल चतुर्वेदी था जो एक अध्यापक के रूप में कार्यरत थे। माखनलाल चतुर्वेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा ग्रामीण स्तर पर ही हुई तथा इन्होंने अपने खुद के अध्ययन से घर पर ही संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी, गुजराती आदि भाषाओं में विद्वत्ता हासिल की। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि बीसवीं सदी के शुरुआती दौर में हिंदुस्तान पराधीनता के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा था, यही कारण है कि माखनलाल चतुर्वेदी जी का अभी रुझान स्वतंत्रता आंदोलनों में शुरुआत से ही रहा तथा इन्होंने महात्मा गांधी के आंदोलनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
इनके साहित्य में भी स्वतंत्रता का यह रूप स्पष्ट रूप से हमें देखने को मिलता है। एक सफल साहित्यकार होने के साथ-साथ माखनलाल चतुर्वेदी जी एक कुशल अध्यापक भी थे। राष्ट्रीय आंदोलनों ने इन्हें इस हद तक प्रेरित किया कि इन्होंने अपनी अध्यापन की पदवी को छोड़कर पूर्ण रूप से पत्रकारिता साहित्य और राष्ट्र की सेवा में अपना योगदान दिया। माखनलाल चतुर्वेदी जी ने लोकमान्य तिलक के उद्घोष स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार से लेकर 1920 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन तथा 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। आंदोलनों में अपनी सक्रिय भूमिका के कारण इन्हें बहुत बार जेल भी जाना पड़ा।
माखनलाल चतुर्वेदी संक्षिप्त जीवनी
नाम | माखनलाल चतुर्वेदी |
जन्म | 4 अप्रैल 1889 ई. |
जन्म स्थान | बाबई, होशंगाबाद (मध्यप्रदेश) |
पिता का नाम | नंदलाल चतुर्वेदी |
माता का नाम | सुंदरीबाई |
प्रमुख सम्मान | पद्म भूषण (1963 ), देव पुरस्कार (1943) |
भाषा शैली | खड़ी बोली |
निधन | 30 जनवरी 1968 ई. |
आयु | 78 वर्ष |
माखनलाल जी साहित्यिक परिचय
माखनलाल चतुर्वेदी जी ने अपनी साहित्यिक रचनाओं के बलबूते पर हिंदी साहित्य को समृद्ध करने का कार्य किया है। हालांकि शुरुआती समय में इनकी रचनाएं भक्ति एवं आस्था से संबंधित होती थी। किंतु स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ाव के पश्चात इन्होंने राष्ट्र के प्रति प्रेम को अपनी रचनाओं में व्यक्त करने का कार्य किया है। चतुर्वेदी जी की रचनाओं में हमें राष्ट्रवाद का स्वर मुखरित होता स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
माखनलाल चतुर्वेदी की मुख्य कृतियां
हिम-किरीटिनी, हिम-तरंगिनी (कविता संग्रह), साहित्य-देवता ( गद्य काव्य) तथा कृष्णार्जुन युद्ध (नाटक)। हिम- तरंगिनी पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। राष्ट्रीयता इनके काव्य का कलेवर है तथा रहस्यात्मक प्रेम उसकी आत्मा ।
प्रमुख काव्य संग्रह
हिम तरंगिनी
समर्पण
प्रतिनिधि कविताएँ
अंजलि के फूल गिरे जाते हैं
अमर राष्ट्र
आज नयन के बँगले में
इस तरह ढक्कन लगाया रात ने
उठ महान, उपालम्भ
उस प्रभात, तू बात न माने
ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा
एक तुम हो
किरनों की शाला बन्द हो गई चुप-चुप
कुंज कुटीरे यमुना तीरे
कैदी और कोकिला
कैसी है पहिचान तुम्हारी
क्या आकाश उतर आया है
गंगा की विदाई
गाली में गरिमा घोल-घोल
गिरि पर चढ़ते
धीरे-धीर, घर मेरा है?
चलो छिया-छी हो अन्तर में
जवानी
जागना अपराध
जाड़े की साँझ
जीवन
यह मौलिक महमानी
झूला झूलै री
तान की मरोर
तुम मन्द चलो
तुम मिले, तुम्हारा चित्र
दीप से दीप जले
दूबों के दरबार में
नयी-नयी कोपलें
पुष्प की अभिलाषा
प्यारे भारत देश फुंकरण कर
रे समय के साँप
बदरिया थम-थमकर झर री !
बलि-पन्थी से
बसंत मनमाना
भाई, छेड़ो नही
मुझे, मचल मत
दूर-दूर
ओ मानी
मधुर! बादल, और बादल, और बादल
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक
मुझे रोने दो
मैं अपने से डरती हूँ सखि यह अमर निशानी किसकी है?
यह किसका मन डोला
ये प्रकाश ने फैलाये हैं
ये वृक्षों में उगे परिन्दे
यौवन का पागलपन
लड्डू ले लो, वरदान या अभिशाप?
वर्षा ने आज विदाई ली
वायु, वेणु लो, गूँजे धरा
संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं
समय के समर्थ अश्व
साँस के प्रश्नचिन्हों
लिखी स्वर-कथा
सिपाही आदि ।
माखनलाल चतुर्वेदी की कविता (पुष्प की अभिलाषा)
चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ।
चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ।
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ॥
मुझे तोड़ लेना वनमाली। उस पथ में देना तुम फेंक॥
मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने। जिस पथ जावें वीर अनेक॥
पुरस्कार एवं सम्मान
माखनलाल चतुर्वेदी जी का योगदान साहित्य के क्षेत्र में विस्मरणीय है। अपने साहित्य के बलबूते पर ही इनको बहुत बार सम्मानित भी किया गया।
- 1943 ई. में देव पुरस्कार जो उस समय हिंदी साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार समझा जाता था।
- 1963 ई. में भारत सरकार द्वारा पदमभूषण से सम्मानित किया गया। किंतु माखनलाल चतुर्वेदी जी ने यह पुरस्कार 10 सितंबर 1967 ई. को वापस लौटा दिया था। इसका कारण यह था कि इन्हें तत्कालीन दौर का राज भाषा हिंदी संबंधित विधेयक नामंज़ूर था।
निधन वर्ष
30 जनवरी 1968 को इस महान भारतीय आत्मा का निधन हो गया। माखनलाल चतुर्वेदी हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी कृतियाँ हमें आज भी प्रेरणा प्रदान कर रही हैं।
इन्हें भी पढ़े :-
कुमार विश्वास का जीवन परिचय
रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी