मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय | Munshi Premchand Jivan Parichay PDF

दोस्तों यदि आप मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते है तो यह आर्टिकल सिर्फ आपके लिए है। यहाँ पर आप Munshi Premchand Ke Jivan Parichay, उनकी प्रमुख रचनाएँ, कहानी कला की विशेषताएं और उनकी भाषा शैली के बारे में विस्तार से पढ़ सकते है। 

Munshi Premchand Ka Jivan Parichay

मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 मैं बनारस के निकट स्थित लमही नामक गांव में हुआ था। इनका परिवार एक साधारण कायस्थ परिवार था। इनका वास्तविक नाम धनपत राय था। इनके घर की आर्थिक दशा अच्छी नहीं थी। इनके पिता डाक विभाग में लिपिक थे। इनकी माता अस्वस्थ रहती थी। 5 वर्ष की आयु में वे माता विहीन हो गए। 14 वर्ष की आयु में पिता का साया भी इनके सिर से उठ गया। परिवार का सारा भार उनके कंधों पर आ पड़ा। 

16 वर्ष की आयु में इन्हें अध्यापक की नौकरी करनी पड़ी। नौकरी के दौरान वे डिप्टी इंस्पेक्टर के पद तक पहुंच गए। वे  स्वभाव से स्वाभिमानी एवं देश भक्त थे इसलिए इन्होंने सन 1920 ई. में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया तथा गांधी जी के आह्वान पर राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े। इन्होंने जीवन भर साहित्य-सेवा की। इन्होंने आजीविका के लिए स्वतंत्र लेखन को अपनाया तथा मुद्रणालय भी चलाया। जीवन-संघर्ष करते हुए सन 08 अक्टूबर 1936 ई. में इनका देहांत हो गया। 

प्रेमचंद के जीवन की संक्षिप्त जानकारी

नाम  मुंशी प्रेमचंद 
पूरा नाम  धनपत राय श्रीवास्तव 
उर्दू रचनाओं में नाम  नबाबराय 
जन्म  31 जुलाई 1880 ई.
जन्म स्थान  लमही ग्राम, वाराणसी उत्तर प्रदेश
पिता का नाम  अजायब राय 
माता का नाम आनंदी देवी 
पत्नी का नाम  शिवारानी देवी
पुत्र का नाम  अमृतराय, श्रीपथराय 
पुत्री का नाम कमला देवी 
विधाएँ  कहानी, उपन्यास, नाटक 
निधन  08 अक्टूबर 1936 ई.
जीवंत आयु  56 वर्ष 

प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं

 मुंशी प्रेमचंद ने आरंभ में उर्दू में लिखना शुरू किया था तथा बाद में हिंदी में लिखने लगे थे। इन्होंने ‘वरदान’, ‘सेवासदन (1918), ‘प्रेमाश्रम’ (1922), ‘रंगभूमि’ (1924), ‘कायाकल्प’ (1926), ‘निर्मला’ (1928), ‘कर्मभूमि’ (1932), ‘ गबन’ (1932), ‘ प्रेमश्रम’, ‘गोदान’ (1936), आदि 11 उपन्यासों की रचना की है तथा 300 के लगभग कहानियां लिखी हैं जिनमें ‘ कफन’, ‘पूस की रात’, ‘दो बैलों की कथा’, ‘पंच परमेश्वर’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘ शतरंज के खिलाड़ी’,  आदि प्रमुख कहानियां हैं। ‘कर्बला’, ‘ संग्राम’, ‘ प्रेम की देवी’, इनके प्रमुख नाटक हैं। कुछ विचार, विविध प्रसंग इनके प्रमुख निबंध-संग्रह है। 

प्रेमचंद की कहानी-कला की विशेषता

मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित कहानियों में मानसरोवर( आठ भागों) में संकलित है। इन्होंने अपनी कहानियों में जीवन के विभिन्न पहलुओं  का सूक्ष्म विवेचन किया है। इनकी कहानी-कला की विशेषताएं निम्नलिखित है। 

इन्हें भी पढ़े :-
कफ़न कहानी का मूलपाठ
बड़े घर की बेटी कहानी सार

विषय की विभिन्नता

मुंशी प्रेमचंद की कहानियों के वर्ण्य-विषय अत्यंत विस्तृत है। इन्होंने जीवन के लगभग सभी पहलुओं पर लेखनी चलाई है। इनकी कहानियों के विषय की व्यापकता को देखते हुए डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है

“प्रेमचंद सदियों से पद दलित अपमानित और शोषित कृषकों की आवाज थे। पर्दे में कैद, पद-पद पर लाँछित,अपमानित और शोषित नारी जाति की महिमा के वे जबरदस्त वकील थे, गरीबों और बेकसों के महत्व के प्रचारक थे।’”

अगर आप उत्तर भारत की समस्त जनता के आचार-विचार, भाषा-भाव,रहन- सहन,आशा-आकांक्षा, सुख-दुख और सूझ-बुझ जानना चाहते हैं तो प्रेमचंद से उत्तम परिचायक आपको नहीं मिल सकता। इनकी कहानियों में तत्कालीन समाज का सजीव चित्र देखा जा सकता है।

गांधीवादी विचारधारा का प्रभाव

मुंशी प्रेमचंद के संपूर्ण साहित्य पर गांधीवादी विचारधारा का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस विषय में प्रेमचंद्र जी स्वयं लिखते हैं–

“मैं दुनिया में महात्मा गांधी को सबसे बड़ा मानता हूं। उनका उद्देश्य भी यही है कि मजदूर और कास्तकार सुखी हों। महात्मा गांधी हिंदू-मुसलमान की एकता चाहते हैं। मैं भी हिंदी और उर्दू को मिलाकर हिंदुस्तानी बनना चाहता हूं।”

यही कारण है कि प्रेमचंद की कहानियों में गांधीवादी विचारों की झलक सर्वत्र देखी जा सकती है। उनके पात्र गांधीवादी आदर्शों पर चलते हैं और उनका समर्थन करते हैं।

मानव-स्वभाव का मनोविश्लेषण

मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में जहां अपने पात्रों के बाह्य आकार व रूप-रंग का वर्णन किया है,वही उनके मन  का भी सूक्ष्म विवेचन वह विश्लेषण किया है। वे मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से मुक्त कहानी को उत्तम मानते थे। मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के विषय मैं इन्होंने लिखा है– ‘वर्तमान आख्यायिका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण,जीवन के यथार्थ और स्वाभाविक चित्रण को अपना ध्यये समझती है।’’ 

ग्राम्य–जीवन के प्रति सहानुभूति

प्रेमचंद्र जन-जीवन के कथाकार थे। इन्होंने कथा- साहित्य को जन-जीवन से जोड़ने का महान कार्य किया है। इन्होंने ग्राम्य-जीवन के प्रति अपनी विशेष सहानुभूति व्यक्त की है। इन्होंने अपनी कहानियों में गांवों के गरीबों किसानों, काश्तकारों, मजदूरों, दलितों और पीड़ितों के प्रति विशेष संवेदना दिखाई है। इनके जीवन की विभिन्न समस्याओं को अभीव्यक्त किया है।

पात्र एवं चरित्र-चित्रण

मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में पात्रों का चरित्र-चित्रण और पात्रों के चरित्र का विकास अत्यंत स्वभाविक रूप में किया गया है। उनके अधिकांश पात्र वर्ग पात्र हैं। वे  किसी ना किसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हुए देखे जा सकते हैं। इनके पात्र अपने वर्ग के सुख-दुख राग-विराग आदि सभी स्थितियों मैं उसका प्रतिनिधित्व करते हुए पाए जाते हैं। पात्र का चरित्र-चित्रण अत्यंत सजीव एवं मनोवैज्ञानिक है।

आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद

मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में आदर्श और यथार्थ का अद्भुत समन्वय है। वे यथार्थ का चित्रण करते हुए सदा आदर्श पर दृष्टि रखते हैं। उनकी स्पष्ट धारणा है कि साहित्यकारों को नग्नताओं का पोषक में बंन कर मानवीय स्वभाव की उज्जवलताओं को दिखाने  वाला होना चाहिए। उन्होंने समाज की विभिन्न समस्याओं के समाधान में आदर्श को अपनाया है।

प्रेमचंद के साहित्य की भाषा-शैली

प्रेमचंद्र अपनी  सरल, और साहित्यिक भाषा के लिए प्रसिद्ध है। इन्होंने लोक भाषा को ही थोड़े सुधार के साथ साहित्य का रूप दिया है। प्रेमचंद उर्दू से हिंदी लेखन में आए थे। इसलिए उनकी भाषा में उर्दू शब्दों का भी सार्थक एवं सटीक प्रयोग हुआ है। मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग इनकी भाषा मैं देखते ही बनता है। सूक्तियों के प्रयोग के लिए वे बेजोड़ हैं। प्रेमचंद जी ने अपनी कहानियों में भावानुकूल एवं पात्रानुकूल भाषा का सफल प्रयोग किया है।

पात्र जिस मानसिक अवस्था और शैक्षिक स्तर का होता है ,उसी के अनुसार शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। कहानी में संवाद-योजना करके इन्होंने नाटकीयता  के गुण का भी समावेश कर दिखाया है। प्रेमचंद जी की भाषा मार्मिक एवं हृदय को छू लेने वाली है। व्यंग्य करने में इन्हें अद्भुत सफलता प्राप्त है। इनमें प्रेरणा देने की शक्ति के साथ-साथ पाठक को चिंतन में लीन करने की अभी अद्भुत क्षमता है। इन गुणों के आधार पर हम इन्हें हिंदी कथा साहित्य का महान लेखक एवं सम्राट कह सकते हैं।

प्रेमचंद के उपन्यासों पर टिप्पणी

प्रेमचंद मूलतः कृषक जीवन के रचनाकार हैं। किसान की अपनी भूमि से कितनी आत्मीयता होती है, इसका चित्रण वे रंगभूमि और प्रेमाश्रम में करते हैं। किसानों पर ब्रिटिश साम्राजयवाद, बड़े व्यापारियों, छोटे व्यापारियों आदि सबका भार था। छोटे किसानों के साथ छोटे जमींदारों की भी हालत बिगड़ रही थी।

गोदान में उनहोंने दिखाया है कि छोटा किसान किस तरह क्रमशः भूमिहीन होकर मज़दूर बनने पर विवश हो रहा है। भूमि पर आश्रित ज़मींदार राय साहब की भी आर्थिक स्थिति खोखली है। प्रेमचंद ने पूंजीवाद के दुष्प्रभावों का चित्रण भी किया है।

सामंती व्यवस्था भारत में दीर्घकाल तक बनी रही। इससे समाज को वर्ण-व्यवस्था और नारी-पीड़न के प्रभाव भोगने पड़े। प्रेमचंद वर्ण व्यवस्था का खंडन करते हैं। नारी पराधीनता को सेवासदन में बहुत अच्छी तरह चित्रित किया गया है। प्रेमचंद समझते थे कि नारी-शोषण स्वर्ण समाज में ज्यादा है, क्योंकि वह नारी आर्थिक दृष्टि से पुरुष पर आश्रित होती है। सेवासदन की सुमन भारतीय कथा साहित्य की पहली नारी पात्र है, जो यह बात समझती है और इसके विरूद्ध विद्रोह करती है।

प्रेमचंद की महानता इस बात से प्रकट हो जाती है कि उन्होंने तिलस्मी और ऐयारी कथा साहित्य के पाठकों को सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक समस्याओं पर आधारित कथा साहित्य की ओर मोड़ कर उनकी रूचि में अभूतपूर्व परिष्कार किया। प्रेमचंद की भाषा न किताबी हिंदी है और न किताबी उर्दू, वह महज हिंदी भाषा है।

प्रेमचंद के उपन्यासों में पात्रों और घटनाओं को इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि वे हमारे देखे-सुने से लगते हैं उनके उपन्यासों में स्वभाव और परिस्थिति के टकराहट से पात्रों का चरित्र-विकास होता है, जो समकालीन हिंदी कथा साहित्य में नई बात थी।

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