पाश्चात्य विद्वानों द्वारा भाषा की परिभाषा | भाषा के संदर्भ में पाश्चात्य विद्वानों का मत

आज के इस आर्टिकल में हम पाश्चात्य विद्वानों द्वारा भाषा के संदर्भ में दी गई परिभाषाओं की चर्चा आपके साथ करने जा रहे हैं। यदि आप यूजीसी नेट जेआरएफ की तैयारी कर रहे हैं तो यह विषय आपके लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस संबंध में बहुत बार सवाल सीधे-सीधे पूछ ले जाते हैं। इसलिए आपको यह पता होना चाहिए कि किस विद्वान ने कौन सी परिभाषा दी है।

पाश्चात्य विद्वानों द्वारा भाषा की परिभाषा

(1) “भाषा और कुछ नहीं है, केवल मानव की चतुर बुद्धि द्वारा आविष्कृत एक ऐसा उपाय है जिसकी मदद से हम अपने विचार सरलता और तत्परता से दूसरों पर प्रकट कर सकते हैं और जो चाहते हैं कि इसकी व्याख्या प्रकृति की उपज के रूप में नहीं, बल्कि मनुष्य कृत पदार्थ के रूप में करना उचित है।” मैक्समूलर

(2) “ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों का प्रकटीकरण ही भाषा है।” – हेनरी स्वीट

(3) “भाषा उस स्पष्ट, सीमित तथा सुसंगठित ध्वनि को कहते हैं जो अभिव्यंजना के लिए नियुक्त की जाती है।” – क्रोचे

(4) “भाषा एक प्रकार का चिह्न है, चिह्न से तात्पर्य उन प्रतीकों से है, जिनके द्वारा मनुष्य अपना विचार दूसरों पर प्रकट करता है। ये प्रतीक भी कई प्रकार के होते हैं। जैसे नेत्रग्राह्य, श्रोतग्राह्य एवं स्पर्शग्राह्य । वस्तुतः भाषा की दृष्टि से श्रोतग्राह्य प्रतीक ही सर्वश्रेष्ठ हैं।” – वांद्रेये

(5) “मनुष्य ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा अपना विचार प्रकट करता है। मानव मस्तिष्क वस्तुतः विचार प्रकट करने के लिए ऐसे शब्दों का निरन्तर उपयोग करता है। इस प्रकार के कार्य-कलाप को ही भाषा की संज्ञा दी जाती है।” – ओतो येस्पर्सन

(6) “विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जिन व्यक्त एवं स्पष्ट ध्वनि संकेतों का व्यवहार किया जाता है, उन्हें भाषा कहते हैं।” – गार्डिनर

(7) “भाषा यादृच्छिक ध्वनि संकेतों की वह प्रणाली है जिसके माध्यम से मानव परस्पर विचारों का आदान-प्रदान करता है।” – ब्लॉख तथा ट्रेगर

(8) “भाषा यादृच्छिक ध्वनि संकेतों की यह पद्धति है जिसके द्वारा मानव समुदाय परस्पर सहयोग एवं विचार-विनिमय करते हैं।” खुतेवाँ

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