नमस्कार दोस्तों, आपका हमारे ब्लॉग पोस्ट पर एक बार पुनः स्वागत है। आज के इस ब्लॉग में हम बाहरवीं कक्षा की एक बहुत ही चर्चित कविता पतंग की सप्रसंग व्याख्या को पढ़ेंगे। उम्मीद है आपको हमारे द्वारा उपलब्ध करवाया गया यह कंटेंट निश्चित तौर पर पसंद आएगा। ‘पतंग’ आलोक धन्वा द्वारा रचित एक बहुत ही सुन्दर कविता है। यहाँ कवि ने प्रकृति के बारे में अत्यंत मनोहर उपमा दी है। आइये देखते है पतंग कविता की सप्रंसग व्याख्या।
पतंग कविता सप्रसंग व्याख्या
सबसे तेज़ बौछारें गई भादों गया सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साईकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए जोर-जोर से
चमकीले इशारों से बुलाते बुलाते हुए
पतंग उड़ानेवाले बच्चों के झुंड को
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके—
दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज उड़ सके
दुनिया का सबसे पतला कागज़ उड़ सके—
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके—
कि शुरु हो सके सीटियों,किलकारियों और
तितलियों की इतनी नाज़ुक दुनिया
प्रसंग :- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठय-पुस्तक आरोह भाग—२ में संकलित कवि ‘आलोक धन्वा ‘द्वारा रचित ‘पतंग’ नामक कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने प्राकृतिक परिवर्तन के साथ-साथ बाल मन की सुलभ चेष्टाओं का मनोहारी चित्रण किया है।
व्याख्या :- कवि का कथन है कि प्रकृति में निरंतर परिवर परिवर्तन हो रहे है। तन-मन को भिगो देंने वाली तेज बौछारों समाप्त हो गई हैं तथा भादों मास का अंधकार भीं समाप्त हो गया है। खरगोश की आँखों के समान और चमक से युक्त सवेरा हो गया हैं। दूसरी और उजाला भी अनेक झाड़ियों और बौछारों को पार करके आ गया हैं। शरद एक नया उजाला लेकर पदार्पण कर चुका हैं।
कवि शरद ऋतु का मानवीकरण करते हुए कहते हैं की शरद अपनी नई चमकदार साइकिल को तेज़ से चलाते हुए तथा जोर-जोर से उसकी घंटी बजाकर पतंग उड़ाने वाले बच्चों के समूह को सुंदर संकेतों के माध्यम से बुला रहा हैं|कहने का भाव हैं कि जैसे ही शरद ऋतु आती हैं तो नन्हे बच्चे अपने हाथों में पतंगे लेकर दौड़ पड़ते हैं, ऐसा लगता है कि शरद ऋतु बच्चों को मनोहर क्रीडाएं करने हेतु आमंत्रित कर रहा हो उसने अपने चमकदार संकेतों और मधुर ध्वनियों से आकाश को भी इतना कोमल बना दिया हैं कि पतंग इस असीम आकाश में ऊपर उठ सके।
कवि कल्पना करता हुआ कहता हैं की ताकि दुनिया की सबसे हल्की,कोमल और रंग-बिरंगी वस्तु उड़ सके। संसार के पहले पतले कागज़ के साथ बाँस की सबसे पतली कमानी भी इसके साथ उड़ जाए और इनको उड़ता हुआ देखकर तितलियों रूपी कोमल एवं सुंदर बच्चों की सीटियाँ और किलकारियां शुरू हो सकें। पतंगो के उड़ने के साथ ही बच्चों की इच्छाएं भी उनके साथ-साथ उड़ने लगती हैं। बच्चों के समूह आकाश में उड़ते पतंगो को देखकर प्रफुलित होकर सीटियाँ बजाने लगते हैं,किलकारियाँ मारने लगते हैं। इस मोहकता को देखकर उनके मन मे अनेक भावनाएँ जन्म लेने लगती हैं।
Patang Kavita Vyakhya
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बनाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अकसर
व्याख्या :- कवि बाल-मन की चेष्टाओं का मनोहारी चित्रण करते हुए कहता हैं की बालक जन्म से अत्यंत नाज़ुक और कोमल होते हैं। वे अपने जन्म के साथ ही कोमलता का भाव लेकर आते हैं। बच्चों की कोमलता को स्पर्श करने के लिए पृथ्वी भी लालायित रहती है। जब वे मकान की छतों को अपने कोमल पाँवो से कोमल बनाते हुए बेसुध होकर दौड़ते हैं तो पृथ्वी भी उनके बेचैन पाँवो के पास उनका स्पर्श करने हेतु घूमती हुई आती है। बच्चे अपनी किलकारियों के द्वारा सभी दिशाओं को नगाड़ो की तरह बजाते प्रतीत होते हैं। वे प्राय: वृक्ष की शाखा की भांति कोमल लचीले वेग के साथ इधर-उधर डोलते हुए से अपनी मस्ती में डूबकर झूला झूलते हुए से दौड़े आते हैं।
छतों के खतरनाक किनारो तक—
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगो की धड़कती उचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे
पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रंध्रों के सहारे
व्याख्या :- कवि कोमल बच्चों के क्रियाकलापों का चित्रण करते हुए कहते हैं कि जब बच्चे अपनी पतंगों को उड़ाने के लिए मकानों की छत्तों के खतनाक किनारो पर दौड़ते हैं तो उन्हें अन्य कोई बचाने नहीं आता बल्कि उन्हें रोमांचित शरीर का संगीत ही उनकी रक्षा करता है, उन्हें गिरने से बचाता है। कवि का अभिप्राय है कि ये कोमल बच्चे अपने इसी रोमांच के सहारे खतरनाक स्थानों को भी पार कर अपनी मंज़िल पर पहुँच जाते हैं।
जो पतंग मात्र एक धागे के सहारे असीम आकाश में उड़ रही होती है तो वह भी अपनी डोलती ऊँचाइयों से कोमल बच्चो को सहारा प्रदान करती है। ये कोमल बच्चे असीम आकाश में उड़ने वाले पतंगों के साथ-साथ अपने सुराखों के सहारे स्वयं भी उड़ रहे हैं।बाल मन भी ऊँचाइयों को छू रही पतंगों के साथ आकाश में उड़ना चाहता है।वह उनकी हदों को पार करना चाहता है। वैसे भी इन कोमल बच्चों का कोमल मन भी इन्हीं पतंगों के साथ आकाश में उड़ रहा होता है।
अगर वे कभी गिरते है छतों के खतरनाक के नारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वी और भी तेज घूमती हुई आती है
उनके बेचैन पैरों के पास।
व्याख्या– कभी का कथन है कि अगर बच्चे अपने पतंगों को उड़ातें हुए कभी तत्वों के खतरनाक किनारों से गिर जाते हैं। तत्पश्चात यदि वे बच जाते हैं तो उनमें और साहस और निडरता पैदा हो जाती है। इन खतरनाक किनारों से बचने के बाद वे और भी निडरता के साथ सुनहरे सूर्य के सामने आते हैं अर्थात बच्चे निडरता एवं साहस के साथ सूर्योदय होते ही अपने पतंग उड़ाने हेतु दौड़ पड़ते हैं। कोमल बच्चों की बाल चेष्टाओं, निडरता और साहस को देखकर पृथ्वी भी उनके बेचैन पांव के पास और भी तेज गति से घूमने लगती है।