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आज के इस नए ब्लॉग पोस्ट में हम हिंदी के एक सुप्रसिद्ध कवि राहुल सांकृत्यायन के जीवन परिचय, उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं भाषा शैली के बारे में पढ़ने जा रहें है। हिंदी के विद्यार्थियों के लिए राहुल सांकृत्यायन (Rahul Sankrityayan) को पढ़ना बहुत ही आवश्यक है। इसलिए आपको इनके बारे अवश्य जान लेना चाहिए।
राहुल सांकृत्यायन जीवन परिचय
राहुल सांकृत्यायन आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गाँव में सन् 1893 ई० में हुआ था। इनका मूल नाम केदारनाथ पांडेय था। शुरू से इनके स्वभाव में घुमक्कड़ी प्रवृत्ति विद्यमान थी। इसी कारण बाद में वे साधु बन गए और नाम पड़ा दामोदर। इन्होंने आरंभिक शिक्षा रानी की सराय गाँव में ग्रहण की थी। इन्होंने मिडिल की परीक्षा निजामाबाद के मिडिल स्कूल से पास की और संस्कृत सीखने काशी आ गए।
ये स्वभाव से ही घुमक्कड़ थे। इन्होंने संपूर्ण भारत की और लगभग एक तिहाई विश्व के महत्त्वपूर्ण देशों की यात्राएँ कीं। श्रीलंका, तिब्बत, नेपाल, ईरान, चीन, जापान, मंचूरिया, इंग्लैंड, सोवियत संघ आदि देशों की यात्राओं ने इनके जीवन-दर्शन और दिशा को निर्मित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अत्यंत कठिन परिस्थितियों में एक से अधिक बार तिब्बत की यात्रा करके वे दुर्लभ प्राचीन भारतीय ग्रंथों की प्रतियाँ खोजकर लाए। अनेक वर्षों तक वे रूस में भारतीय दर्शन के अध्यापक रहे। सन् 1930 में इन्होंने श्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म ग्रहण किया, तब इनका नाम राहुल सांकृत्यायन हुआ। सन् 1963 ई० में इनका निधन हो गया।
नाम | राहुल सांकृत्यायन |
मूल नाम | केदारनाथ पांडेय |
जन्म | सन् 1893 ई० |
जन्म स्थान | पन्दहा ग्राम, ज़िला आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) |
पिता का नाम | गोवर्धन पाण्डेय |
माता का नाम | कुलवन्ती देवी |
पत्नी का नाम | कमला सांकृत्यायन |
पुरस्कार | साहित्य अकादमी पुरस्कार (1958), पद्म भूषण (1963) |
निधन | सन् 1963 ई० |
जीवंत आयु | 70 वर्ष |
राहुल सांकृत्यायन की प्रमुख रचनाएँ
राहुल जी सही अर्थों में महापंडित थे। उन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य की अधिकांश विधाओं को समृद्ध किया है। इनके द्वारा रचित पुस्तकों की संख्या लगभग 150 है। मेरी जीवन यात्रा (छह भाग), दर्शन दिग्दर्शन, बाइसवीं सदी, जय यौधेय, बोल्गा से गंगा, भागो नहीं दुनिया को बदलो, दिमागी गुलामी, घुमक्कड़ शास्त्र आदि इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।
इन्होंने आदि हिंदी की कहानियाँ, दक्खिनी हिंदी काव्य-धारा और हिंदी काव्य-धारा प्रस्तुत कर हिंदी साहित्य की लुप्तप्राय सामग्री का उद्धार किया। वे बौद्ध धर्म के विख्यात विद्वान् और व्याख्याता थे। इन्होंने बौद्ध धर्म के अनेक ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद किया जिसमें मज्झिम निकाय, दीर्घनिकाय और विनय पिटक प्रमुख हैं।
राहुल सांकृत्यायन की भाषा-शैली
राहुल सांकृत्यायन आलोचक, भाषाशास्त्री, समाजचिंतक, इतिहास वेत्ता और गद्यकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनका पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, तिब्बती, चीनी, जापानी, रूसी एवं सिंहली भाषाओं पर अधिकार था। इनमें विषय एवं भाव के अनुरूप भाषा प्रयोग की अद्भुत क्षमता थी। ‘ल्हासा की ओर’ यात्रा-वृत्तांत में लेखक ने सहज, सरल भाषा तथा रोचक शैली में अपनी तिब्बत यात्रा का वर्णन किया है।
लेखक ने बोलचाल के पलटन, आबाद, बरतन, तकलीफ़, फ़ौजी आदि शब्दों के अतिरिक्त परित्यक्त, भद्र, मनोवृत्ति, श्वेत, शिखर आदि तत्सम प्रधान तथा खोटी, चोडी, डाँडा, थुक्पा, कन्जुर आदि देशज शब्दों का भी प्रयोग किया है। शैली में चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है, जैसे- ” आप दो बजे सूरज की ओर मुँह करके चल रहे हैं, ललाट धूप से जल रहा है और पीछे का कैधा बर्फ़ हो रहा है।”