साथी हाथ बढ़ाना / साहिर लुधियानवी / वसंत भाग-1 कक्षा-6 का पाठ-7 NCERT

हिंदीशाला के इस नए ब्लॉग में आज हम आपके सामने ‘साहिर लुधियानवी‘ द्वारा रचित ‘साथी हाथ बढ़ाना‘ नामक गीत से लिया गया है। यह गीत वसंत भाग-1 के कक्षा-6 का पाठ-7 NCERT में संकलित है। मूल रूप से यह गीत ‘नया दौर‘ नामक फिल्म के लिए लिखा गया था। यह गीत आज़ादी के बाद के समय का लिखा हुआ है तथा इस गीत के माध्यम से कवि भारत के लोगों को एक साथ मिलकर काम करने का संदेश देता है और कहता है कि हम सबको मिल जुलकर कार्य करना चाहिए ताकि हम अपने देश के विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकें। 

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साथी हाथ बढ़ाना व्याख्या 

साथी हाथ बढ़ाना
एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना।
साथी हाथ बढ़ाना।
हम मेहनतवालों ने जब भी मिलकर कदम बढ़ाया
सागर ने रस्ता छोड़ा, परबत ने सीस झुकाया
फौलादी हैं सीने अपने, फौलादी हैं बाँहें
हम चाहें तो चट्टानों में पैदा कर दें राहें
साथी हाथ बढ़ाना।

कठिन शब्दों के अर्थ – बोझ = भार, वजन। कदम = पैर। परबत = पहाड़। सीस = सिर। फौलादी = लोहे के समान मजबूत। राहें = रास्ते ।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘वसंत’ भाग 1 में संकलित ‘साथी हाथ बढ़ाना‘ नामक गीत से लिया गया है। इसके रचयिता सुप्रसिद्ध गीतकार ‘साहिर लुधियानवी’ हैं। इस पद्यांश में बताया गया है कि परिश्रम करने बालों के सामने बड़ी से बड़ी मुश्किलें भी नहीं टिकतीं।

सरलार्थ – कवि ने लोगों को एक साथ मिलकर काम करने की प्रेरणा देते हुए कहा है कि है साथी अपने हाथ का सहारा दूसरों को भी देना। यदि व्यक्ति अकेला काम करता है तो वह थक जाता है। इसलिए उसके काम के बोझ को बाँट लेना चाहिए जिससे वह भी साथ चल सके। हे साथी! तुम लोगों की मदद करना परिश्रम करने वाले लोगों ने एक साथ जब भी किसी कठिन से कठिन काम को करने का निश्चय किया उनको समुद्र ने अपने-आप रास्ता दिया। उनकी मेहनत के सामने पहाड़ भी झुक गए अर्थात उनकी सभी मुश्किलें दूर हो गई। हम लोगों के सीने तथा भुजाएँ लोहे के समान मजबूत हैं, जिससे हम कठिन से कठिन काम कर लेंगे और मुश्किलों पर विजय प्राप्त कर लेंगे।

भावार्थ – भाव यह है कि हमें प्रत्येक कार्य मिलकर करना चाहिए। मनुष्य के परिश्रम के सामने बड़ी से बड़ी मुश्किलें भी समाप्त हो जाती हैं।

मेहनत अपने लेख की रेखा, मेहनत से क्या डरना
कल गैरों की खातिर की, आज अपनी खातिर करना
अपना दुख भी एक है साथी अपना सुख- भी एक
अपनी मंजिल सच की मंज़िल, अपना रस्ता नेक
साथी हाथ बढ़ाना।

कठिन शब्दों के अर्थ – लेख = भाग्य। कल = बीता हुए समय। गैरों = परायों, दूसरों। खातिर = के लिए। मंजिल = लक्ष्य। सच = सच्चाई। रस्ता = रास्ता। नेक = अच्छा।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘वसंत’ भाग 1 में संकलित ‘साथी हाथ बढ़ाना‘ नामक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता सुप्रसिद्ध गीतकार ‘साहिर लुधियानवी’ हैं। इस पद्यांश में बताया गया है कि मनुष्य को परिश्रम से नहीं डरना चाहिए क्योंकि परिश्रम के द्वारा ही सभी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की जा सकती है।

सरलार्थ – कवि ने परिश्रम करने वाले अपने साथियों से कहा है कि मेहनत करना तो हमारी किस्मत की रेखा है, फिर मेहनत करने से हम क्यों डरें कल तक हमने अपने जमींदार मालिकों के लिए मेहनत की है। आज हमें अपने आजाद देश के लिए मेहनत करनी है। हे साथियो! हम सभी मेहनत करने वाले साथियों का दुःख हम सबका दुःख है और सुख भी हम सबका समान है। अपना लक्ष्य तो सच्चाई का लक्ष्य है। इसके साथ ही अपना रास्ता भी अच्छाई का रास्ता है। इसलिए हे साथी! तुम एक-दूसरे की सहायता करना।

भावार्थ – भाव यह है कि मनुष्य को हर समय परिश्रम करना चाहिए। परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य अपनी मंजिल को प्राप्त कर सकता है।

एक से एक मिले तो कतरा बन जाता है दरिया
एक से एक मिले तो जुर्रा, बन जाता है सेहरा
एक से एक मिले तो राई, बन सकती है परबत
एक से एक मिले तो इंसां, बस में कर से किस्मत
साथी हाथ बढ़ाना।

कठिन शब्दों के अर्थ – कतरा = बूँद। दरिया = नदी। जर्रा = रेत के कण। सेहरा = रेगिस्तान। राई = सरसों का दाना। इंसा = आदमी। बस = अपने अधीन। किस्मत = तकदीर। 

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘वसंत’ भाग 1 में संकलित ‘साथी हाथ बढ़ाना’ नामक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता सुप्रसिद्ध गीतकार ‘साहिर लुधियानवी’ हैं। इन पंक्तियों में बताया गया है कि एक साथ मिलकर काम करने से मनुष्य अपनी किस्मत को अपने वश में कर सकता है।

सरलार्थ – कवि ने एकता के विषय में बताते हुए कहा है कि जिस प्रकार पानी की एक-एक बूंद से नदी बन जाती है. रेल का एक-एक महीन कण मिलकर रेगिस्तान बन जाता है। एक-एक महीन छोटा-सा राई का दाना मिलकर बहुत बड़ा पहाड़ बन जाता है; उसी प्रकार इंसान मिल-जुलकर कार्य करें तो अपनी किस्मत अपने वश में कर सकते हैं अर्थात असंभव कार्य को भी संभव कर सकते हैं। हे साथी! तुम एक-दूसरे को सहारा अवश्य देना ।

भावार्थ- भाव यह है कि मनुष्य को हर समय परिश्रम करना चाहिए। परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य अपनी मंज़िल को प्राप्त कर सकता है।

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