संचार किसे कहते है
मनुष्य अपने आप में संचार, संचारक एवं प्रचारक है। मनुष्य समुदाय का प्रमुख आधार संचार है। मनुष्य आंगिक एवं कायिक, वाचिक रूप में जो हाव-भाव, संकेत, अभिनय, वाणी आदि द्वारा अपने मन की भाव-संवेदनाओं का आदान-प्रदान करता है, उसे ही संचार कहा जाता है। संचार के द्वारा ही मनुष्य एक-दूसरे के साथ सम्बन्ध प्रस्थापित करता है जिससे मनुष्य समाज की निर्मिति होती है। सामाजिक सम्बन्ध बनाने तथा उसे विकसित करने में संचार की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
संचार एक अनवरत प्रक्रिया है जो सदैव सामाजिकों में विद्यमान रहती है। धरती पर जहाँ मनुष्य है, वहाँ संचार है। दोनों एक सिक्के के दो पहलू बन चुके हैं। मानव की विकासावस्था के प्रत्येक कालखण्ड में संचार विकसित हुआ है। प्रारम्भिक अवस्था में विकसित होते हुए मनुष्य ने वाणी की खोज की। विभिन्न प्रकार की आवाजों को शब्द रूप दिये और संचार का स्वरूप बदलता गया। मनुष्य में यह भावना विद्यमान होती है कि मुझे सब कुछ जानना है। वह जितनी जानकारी संग्रहीत करता है उतना ही सुरक्षित होता है। वह सूचना को जैसे प्राप्त करता है वैसे प्रेषित भी करता है। यही मानव समाज का मूलाधार है।
मैकब्राइड आयोग ने कहा है कि “संचार जीवन का जीवन्त सजीव रूप है । यह सामाजिक गतिविधि और सभ्यता की अभिव्यक्ति को गति देता है। यह लोगों को सहज रूप में प्रेरणा देता है। अपनी रंग-बिरंगी प्रक्रिया, पद्धतियों और व्यवस्था की जानकारियाँ देता है। वह नियन्त्रण और अधिकार रखता है। सामान्य जानकारियों और विचारों का रचयिता है : सन्देशों के आदान-प्रदान द्वारा एकता की भावना को शक्ति प्रदान करता है। इन विचारों को क्रिया में रूपान्तरित करता है।
मानव-अस्तित्व के लिए विन्रमतापूर्वक सौंपे गए दायित्व की आवश्यकताओं और भावनाओं की रचनात्मकता या विनाश की अभिव्यक्ति है। संचार ज्ञान,संगठन-शक्ति की अभिव्यक्ति है। मनुष्य-पूर्व की स्मृति और उसकी उदार, आकांक्षा का प्रतिफल है, जो अच्छे जीवन के लिए सतत प्रयत्नशील रहा है। जैसे-जैसे विश्व प्रगति कर रहा है, संचार का दायित्व जटिल और गूढ़ होता जा रहा है।
समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों में बिखरे लोग एक-दूसरे को सूचनाएँ प्रेषित करते हैं। यह कार्य संचारक-सन्देश-प्रापक के भीतर सम्पन्न होता है। जिन्हें हम संचार-माध्यम कहते हैं वह बहुपयोगी है। सन्देश के आदान-प्रदान की प्रक्रिया को सम्पन्न करते हैं। इन माध्यमों को जानने से पहले संचार किसे कहते हैं? यह देखना आवश्यक है।
संचार का अर्थ
संचार शब्द लैटिन Communis से उत्पन्न हुआ है जो अंग्रेजी में Communication के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। जिसका अर्थ है to make common, to import, to transmit अर्थात् सूचनाओं का भागीदारी के रूप में निर्माण एवं प्रेषण करना। संस्कृत में इस शब्द की उत्पत्ति ‘चर’ धातु से मानी जाती है और इसका अर्थ है ‘चलना’ विचार या सूचनाओं के रूप में निरन्तर होने वाली ‘संचरण’ की प्रक्रिया संचार कही जाती है। संचरण या सम्प्रेषण में मनुष्य अपनी अनुभूतियाँ सामान्यतः बोलकर, लिखकर, चित्रों, बिम्बों, संगीत के रूप में प्रस्तुत करता है। ये चीजें मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित करती हैं और उसे सामाजिक बनाती हैं।
संचार की परिभाषा
संचार की विभिन्न परिभाषाएँ विद्वानों ने दी हैं-
ऑक्सफर्ड डिक्शनरी :-“विचारों, जानकारी आदि का विनिमय, किसी और तक पहुँचना या बाँटना, चाहे वह लिखित, मौखिक या सांकेतिक हो।” 2. हावलैण्ड–“संचार एक ऐसी शक्ति है जो एक संचारक द्वारा सम्प्रेषण के जरिए दूसरे व्यक्तियों को व्यवहार बदलने हेतु प्रेरित करता है।” 3. विलबर श्राम – “जब हम संचार करते हैं तो हमारी कोशिश किसी सूचना, विचार या अभिव्यक्तियों को आपस में बाँटने की होती है।”
लूमिक और बीगल :- “संचार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सामाजिक व्यवस्था के द्वारा सूचना, निर्णय और निर्देश दिए जाते हैं और यह एक मार्ग है जिसमें ज्ञान, विचारों और दृष्टिकोणों को निर्मित अथवा परिवर्तित किया जाता है।”
मैगीनसन :- “संचार समानुभूति की प्रक्रिया या श्रृंखला है, जो कि व्यक्तियों और संस्थाओं को सूचना द्वारा जोड़ती है। इसलिए इसका परिणाम समानुभूति के रूप में मिलता है।”
श्रीकान्त सिंह :- “मानव के आविर्भाव के साथ ही सम्प्रेषण का भी आविर्भाव हुआ। यह मानव-समाज ही नहीं वरन्, पशु-पक्षी समाज में भी किसी-न-किसी रूप में विद्यमान रहता है। जीवों के लिए जिस प्रकार वायु आवश्यक है उसी प्रकार मानव समाज के लिए सम्प्रेषण सम्प्रेषण के अभाव में मानव समाज की परिकल्पना सम्भव नहीं ।”
रेड फील :- “संचार तथ्यों एवं विचारधाराओं के मानव विनिमय का विस्तृत क्षेत्र होता है। टेलीफोन, तार, रेडियो अथवा अन्य तकनीकी साधन संचार नहीं होते ।”
लुण्डबर्ग :- “संचार प्रक्रिया व्यक्तियों के सम्पर्क के साथ प्रारम्भ होती है, पर सम्पर्क ही संचार नहीं है। संचार की प्रक्रिया के लिए अर्थों का प्रेषण होना आवश्यक है। वैकल्पिक पारस्परिक प्रेरणाओं एवं प्रेरणाओं के प्रत्युत्तरों के आधार पर संचार प्रक्रिया पूरी होती है।”
एम.पी. एण्डरसन :-“संचार वह प्रक्रिया है जिसमें हम दूसरों को समझने का प्रयत्न करते हैं और इस प्रयास में दूसरे हमें समझने का प्रयास करते हैं। यह गतिशील, निरन्तर परिवर्तनशील तथा सम्पूर्ण परिस्थितियों में विभिन्न स्वरूप प्राप्त करने वाली प्रक्रिया है।”
जी. गर्बनर :- “संचार संवाद तथा प्रतीकों की सामाजिक अन्तःक्रिया है।”
जाल्टमेन :- “संचार वह प्रक्रिया है जिसमें स्रोत द्वारा सन्देश एक या अधिक या अधिक गन्तव्यों तक पहुँचाया जाता है।”