Contents
संधि किसे कहते हैं ?
संधि का शाब्दिक अर्थ है – मिलना या जुड़ना। निकटवर्ती वर्णों के मेल से होने वाले परिवर्तन को संधि कहते हैं अर्थात जब ध्वनियाँ निकट होने पर आपस में मिल जाती हैं और एक नया रूप धारण कर लेती हैं, तब संधि मानी जाती है।
संधि के उदाहरण
विद्या + आलय = विद्यालय
दुः + जन = दुर्जन
रेखा + अंकित = रेखांकित
संधि के तीन भेद होते हैं
(क) स्वर संधि
(ख) व्यंजन संधि
(ग) विसर्ग संधि
संधि के भेदों की परिभाषा एवं उदाहरण
स्वर संधि – दो स्वरों के आपस में मेल होने से जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं; जैसे – परम + पिता = परमात्मा
स्वर संधि के पाँच उपभेद होते हैं –
1. दीर्घ संधि – जब ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आए तो दोनों मिलकर क्रमशः आ, ई, ऊ हो जाते हैं। जैसे –
अ + अ = आ
सार + अंश = सारांश
परम + अणु = परमाणु
अ + आ = आ
हिम + आलय = हिमालय
भोजन + आलय = भोजनालय
आ + अ = आ
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी
आ + आ = आ
महा + आत्मा = महात्मा
मदिरा + आलय = मदिरालय
इ + इ = ई
रवि + इंद्र = रवींद्र
कवि + इंद्र = कवींद्र
इ + ई = ई
कपि + ईश = कपीश
हरि + ईश = हरीश
ई + इ = ई
मही + इंद्र = महींद्र
नारी + इच्छा = नारीच्छा
ई + ई = ई
रजनी + ईश = रजनीश
नदी + ईश = नदीश
उ + उ = ऊ
भानु + उदय = भानूदय
सु + उक्ति + सूक्ति
उ + ऊ = ऊ
अम्बु + ऊर्मि = अम्बूर्मि
सिंधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
ऊ + उ = ऊ
वधू + उत्सव = वधूत्सव
भू + उत्सर्ग = भूत्सर्ग
ऊ + ऊ = ऊ
भू + ऊर्जा = भूर्जा
वधू + ऊर्मि = वधूर्मि
2. गुण संधि – यदि ‘अ’ और ‘आ’ के आगे ‘इ’ या ‘ई,’ ‘उ’ या ‘ऊ’, ऋ स्वर आते हैं,तो दोनों के मिलने से क्रमश: ‘ए’, ‘ओ’ ‘अर’ हो जाते हैं।
अ + इ = ए
देव + इंद्र = देवेंद्र
भारत + इंद्र = भारतेंदु
सत्य + इंद्र = सत्येंद्र
आ + इ = ए
राजा + इंद्र = राजेंद्र
यथा + इष्ट = यथेष्ट
अ + ई = ए
गण + ईश = गणेश
राज + ईश = राजेश
परम + ईश्वर = परमेश्वर
आ + ई = ए
रमा + ईश = रमेश
राका + ईश = राकेश
महा + ईश = महेश
अ + उ = ओ
वीर + उचित = वीरोचित
वसंत + उत्सव = वसंतोत्सव
पर + उपकार = परोपकार
अ + ऊ = ओ
जल + उर्मि = जलोर्मि
समुद्र + उर्मि = समुद्रोर्मि
सागर + उर्मि = सागरोर्मि
आ + उ = ओ
महा + उत्सव = महोत्सव
आ + ऊ = ओ
गंगा + उर्मि = गंगोर्मि
महा + ऊष्मा = महोष्मा
अ + ऋ = अर्
देव + ऋषि = देवर्षि
ब्रहा + ऋषि = ब्रहार्षि
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
आ + ऋ = अर्
महा + ऋषि = महर्षि
3. वृद्धि संधि – जब ‘अ’ या ‘आ’ से परे ‘ए’ या ‘ऐ’ हो तो दोनों मिलकर ‘ऐ’ हो जाते हैं और ‘ओ’ या ‘औ’ हो तो ‘औ’ हो जाता है।
अ + ए = ऐ
एक + एक = एकैक
अ + ऐ = ऐ
मत + ऐक्य = मतैक्य
धन + ऐश्वर्य = धनैश्वर्य
आ + ए = ऐ
सदा + एव = सदैव
तथा + एव = तथैव
आ + ऐ = ऐ
महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
रमा + ऐश्वर्य = रमैश्वर्य
अ + ओ = औ
परम + ओज = परमौज
जल + ओघ = जलौघ
अ + औ = औ
वन + औषधि = वनौषधि
परम + औषध = परमौषध
आ + ओ = औ
महा + ओजश्वी = महौजस्वी
महा + ओघ = महौघ
आ + औ = औ
महा + औषध = महौषध
महा + औदार्य = महौदार्य
4. यण संधि – यदि इ,ई,उ,ऊ,और ऋ के बाद भिन्न स्वर आए तो इ/ई का ‘य’,उ/ऊ का ‘व’और ऋ का ‘र’हो जाता है।
इ + अ = य
अति + अधिक = अत्यधिक
यदि + अपि = यधपि
इ + आ = या
इति + आदि = इत्यादि
ई + आ = या
सखी + आगमन = सख्यागमन
इ + उ = यु
उपरि + उक्त = उपर्युक्त
प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर
इ + ऊ = यू
नि + ऊन = न्यून
वि + ऊह = व्यूह
इ + ए = ये
प्रति + एक = प्रत्येक
उ + अ = व
सु + अच्छ = स्वच्छ
अनु + अय = अन्वय
उ + आ = वा
सु + आगत = स्वागत
गुरु + आदेश = गुर्वादेश
उ + इ = वि
अनु + इति = अन्विती
उ + ए = वे
अनु + एषण = अन्वेषण
ऊ + आ = वा
वधू + आगमन = वध्वागमन
ऋ + आ = रा
मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा
पितृ + अनुमति = पित्रानुमति
5. अयादि संधि – जहाँ ए/ऐ ओ/औ के बाद कोई भिन्न स्वर आता है,तो इनके स्थान पर क्रमश: ए का अय,ऐ का आय,ओ का अव तथा औ का आव हो जाता है।
ए + अ = अय
ने + अन = नयन
चे + अन = चयन
ऐ + अ = आय
नै + अक = नायक
ऐ + इ = आयि
गै + इका = गायिका
कै + इक = कायिका
ओ + अ = अव
पो + अन = पवन
हो + अन = हवन
औ + उ = आवु
भौ + उक = भावुक
औ + अ = आव
पौ + अन = पावन
(ख) व्यंजन संधि – व्यंजन ध्वनि से परे कोई स्वर या व्यंजन आने से जो परिवर्तन होता है,उसे व्यंजन संधि कहते हैं; जैसे— जगत + नाथ = जगन्नाथ।
व्यंजन संधि के नियम इस प्रकार हैं—
1.वर्ग के पहले वर्ण का तीसरे वर्ण में परिवर्तन—यदि क, च, ट, त, प्,वर्ण से परे कोई स्वर या वर्ग का तीसरा-चौथा वर्ण या य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो,तो पहले वर्ण का उसी वर्ण का तीसरा वर्ण हो जाता है।
वाक् + दत्ता = वाग्दत्ता
वाक् + ईश = वागीश
षट् + आनन = षडानन
दिक् + अंबर = दिगंबर
दिक् + गज = दिग्गज
सत् + गुण = सद्गुण
सत् + गति = सदगति
अप + धि = अब्धि
सत् + वाणी = सदवाणी
2. वर्ग के पहले वर्ण का पंचम वर्ण में परिवर्तन – यदि वर्ग के पहले वर्ण से परे कोई अनुनासिक अर्थात ‘न’ या ‘म’ हो,तो पहला वर्ण उसी वर्ग का अनुनासिक वर्ण हो जाता है।
वाक् + मय = वाङ्मय
जगत + नाथ = जगन्नाथ
षट + मास = षण्मास
सत + मार्ग = सन्मार्ग
चित + मय = चिन्मय
उत + मत = उन्मत
सत + मति = सन्मति
उत + नायक = उन्नायक
उत + मेष = उन्मेष
उत + यत = उधत
3. ‘त’ सम्बन्धी नियम –
(क) ‘त’ के बाद यदि ‘ल’ हों तो ‘त’ ‘ल’ में बदल जाता है।
उत + लेख = उल्लेख
उत + लास = उल्लास
तत + लीन = तल्लीन
(ख) ‘त’ या ‘द’ के बाद ज/झ हो,तो त,द ‘ज’ में बदल जाता है।
सत + जन = सज्जन
उत + ज्वल = उज्ज्वल
जगत + ननी = जगज्जननी
विपत + जाल = विपज्जाल
(ग) ‘त’ के बाद यदि ट/ड में बदल जाता है।
तत + टीका = तट्टीका
उत + डयन = उड्डयन
(घ) ‘त’ के बाद यदि ‘श’ हो तो ‘त’ का ‘च’ और ‘श’ का ‘छ’ हो जाता है।
उत + श्वास = उच्छवास
उत + शिष्ट = उच्छीष्ट
(ड़) ‘त’ के बाद यदि ‘च/छ’ हो तो ‘त’ का ‘च’ हो जाता है।
उत + चारण = उच्चारण
सत + चरित्र = सच्चरित्र
(च) ‘त’ के बाद ‘ह’ हो तो ‘त’ का ‘द’ और ‘ह’ का ‘ध’ हो जाता है।
उत + हार = उद्धार
पत + हति = पध्दति
4. ‘छ’ संबंधी नियम— जब किसी शब्द के अंत में स्वर हो और आगे के शब्द का पहला वर्ण ‘छ’ हो,तो ‘छ’ का ‘च्छ’ हो जाता है।
अनु + छेद = अनुच्छेद
वि + छेद = विच्छेद
परी + छेद = परिच्छेद
5. ‘म’ संबंधी नियम— जब पहले शब्द के अंतिम वर्ण ‘म’ के आगे दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण (य, र, ल, व) या (श, ष, स, ह) या अन्य स्पर्श व्यंजन हो, तो ‘म’ स्थान पर पंचम वर्ण अथवा अनुस्वार हो जाता है।
सम + चय = संचय
सम + योग = संयोग
सम + हार = संहार
सम + भव = संभव
6. ‘न’ का ‘ण’ संबंधी नियम— यदि ऋ, र, ष के बाद ‘न’ व्यंजन आता है तो ‘न’ का ‘ण’ हो जाता है।
परि + नाम = परिणाम
राम + अयन = रामायण
मर + न = मरण
7. ‘स’ का ‘ष’ संबंधी नियम— यदि ‘स’ से पहले ‘अ’, ‘आ’ से भिन्न स्वर हो तो ‘स’ का ‘ष’ हो जाता है।
अभि + सेक = अभिषेक
नि + सेध = निषेध
वि + सम = विषम
(3). विसर्ग संधि— विसर्ग के बाद यदि स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं ;जैसे नि:गुण = निर्गुण।
विसर्ग का ‘ओ’ होना– विसर्ग से पहले यदि ‘अ’ हो और बाद में ‘अ’ अथवा वर्ग का तीसरा, चौथा,पाँचवा अक्षर या य, र, ल, व आ जाए तो विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ हो जाता है।
यश: + गान = यशोगान
मन: + भाव = मनोभाव
सर: + ज = सरोज
मन: + विकार = मनोविकार
विसर्ग का ‘र’ होना— यदि विसर्ग से पहले ‘अ’, ‘आ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो और आगे का तीसरा, चौथा, पाँचवा अक्षर या य, र, ल व अथवा स्वर हो, तो विसर्ग का ‘र’ हो जाता है।
नि: + आशा = निराशा
दु: + उपयोग = दुरूपयोग
दु: + लभ = दुर्लभ
आशी: + वाद = आशीर्वाद
विसर्ग का ‘श’ होना— विसर्ग से पहले यदि कोई स्वर हो और बाद में ‘च’ या ‘छ’ हो तो विसर्ग का ‘श’ हो जाता है।
नि: + चल = निश्चल
नि: + छल = निश्छल
नि: + चय = निश्चय
दु: + चरित्र = दुश्चरित्र
विसर्ग का ‘स’ होना— विसर्ग के बाद यदि ‘त’ या ‘स’ हो तो विसर्ग का ‘स’ हो जाता है।
नि: + संतान = निस्संत्तान
नि: + तेज = निस्तेज
दु: + साहस = दुस्साहस
विसर्ग का ‘ष’ होना— विसर्ग से पहले इ/उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग का ‘ष’ हो जाता है।
नि: + कलंक = निष्कलंक
दु: + कर = दुष्कर
नि: + फल = निष्फल
बहि: + कार = बहिष्कार
विसर्ग का लोप —
(क) यदि विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो,तो विसर्ग का लोप हो जाता है; जैसे अत: + एव = अतएव
(ख) विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो विसर्ग लुप्त हो जाता है और स्वर दीर्घ हो जाता है।
नि: + रोग = नीरोग
नि: + रस = नीरस
नि : + रव = नीरव
7. विसर्ग यथारूप — यदि विसर्ग के आगे क, प, में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग यथारूप रहता है।
अंत: + करण = अंत:करण
प्रात: + काल = प्रात:काल
अध: + पतन = अध:पतन