सांझा सीर नाटक का सार / Sanjha Seer Natak Summary

सांझा सीर नाटक का सार 

सांझा सीर नाटक का सार

साझा सीर श्री रामफल चहल द्वारा रचित एक उल्लेखनीय नाटक है जो आज के भौतिकवाद युग के कारण लोगों की परिवर्तित मानसिकता पर प्रकाश डालता है। मानसिंह का छोटा भाई धर्म सिंह नगरीय चकाचौंध और भौतिकवाद से प्रभावित होकर अपने भाई की उपेक्षा करके उसकी खून-पसीने की कमाई को बर्बाद करता है और पढ़ाई की ओर कोई ध्यान नहीं देता।

धर्मसिंह नगर में रहकर शिक्षा प्राप्त कर रहा है। अपने भाई से मिलने के लिए मानसिंह तैयार होता है। वह देसी घी का डिब्बा लेकर जब छात्रों के होस्टल में जाता है तो वहाँ कमरे में उसे अपना भाई धर्मसिंह नहीं मिलता। साथ के कमरे में रहने वाला धर्मसिंह का सहपाठी राज उसे बताता है कि धर्मसिंह बी. ए. बाइनल में नहीं है। वह तो तीन साल से फेल हो रहा है और अभी 11वीं क्लास में पढ़ रहा है। राज से ही मानसिंह को पता चलता है कि उसका भाई धर्मसिंह शहर में रहकर फिल्में देखता है और लड़कियों के पीछे घूमता है। एक बार तो उसे विश्वास ही नहीं होता। आखिर मानसिंह ने जब अपने भाई को डाँटते हुए उससे पूछताछ की, तब धर्मसिंह ने राज को झूठा बताया। लेकिन जब मानसिंह ने उसे फिर डाँटा तो उसने स्वीकार कर लिया कि वह ठीक से पढ़ाई नहीं कर रहा। मानसिंह ने उसे बताया कि वह कर्जा लेकर उसे पैसे भेजता है। अपने बच्चों का पेट काटकर वह उसे पढ़ाने की कोशिश कर रहा है लेकिन धर्मसिंह ने उसकी सारी आशाओं पर पानी फेर दिया। आखिर मानसिंह अपने भाई को वापस गाँव चलने के लिए कहता है। लेकिन धर्मसिंह ने गाँव लौटने से इन्कार कर दिया और कहा कि वह नगर में रहकर कोई काम-धन्धा करेगा अन्ततः मानसिंह अपने गाँव वापस चला गया।

जब धनकौर ने मानसिंह से अपने देवर के बारे में पूछा तो मानसिंह ने कुछ कुछ दिनों बाद धर्मसिंह का पत्र आया कि वह पुलिस में भर्ती हो गया है। यह समाचार सुनकर धनकौर ने कहा कि अब तो धर्मसिंह पढ़ाई का सारा कर्जा उतार देगा। उधर, गेहूँ पककर तैयार हो जाती है तो धनकौर अपने पति मानसिंह से एक पैंडल और सूट बनवाने के लिए कहती है। मानसिंह ने कहा कि गेहूँ बेचकर वह यह काम भी कर देगा। कुछ समय के बाद धर्मसिंह अपनी पत्नी शान्ति के साथ गाँव नें आता है। तब मानसिंह ने धर्मसिंह से कहा कि वह शहर जाकर गेहूँ बेच दे और धनकौर को शहर से खरीददारी करवा दे | नहीं बताया।

लेकिन धर्मसिंह अपनी पत्नी शान्ति को लेकर गेहूँ बेचने नगर चला गया। गेहूँ के पैसे से उसने अपनी पत्नी शान्ति के लिए पैंडल और सूट बनवा दिया। इसी बात को लेकर शान्ति और धनकौर में झगड़ा हो गया। धर्मसिंह भी अपनी पत्नी के समर्थन में बोलने लगा। तब मानसिंह ने कहा कि उसने अपने पिता की मृत्यु के बाद कर्जा लेकर धर्मसिंह को पढ़ाया-लिखाया, इसलिए अब धर्मसिंह को मानसिंह के बेटे रमेश को पढ़ाना-लिखाना चाहिए। इस पर धर्मसिंह ने उत्तर दिया कि उसके तो माँ-बाप मर गए थे। इसलिए मानसिंह ने उसे पाल-पोसकर बड़ा किया और पढ़ाया-लिखाया, लेकिन रमेश का पिता अभी जिन्दा है। इसलिए रमेश की जिम्मेदारी उसे स्वयं उठानी चाहिए। इस पर मानसिंह क्रोधित होकर कहा कि वह घर बार छोड़कर हरिद्वार में संन्यासी बन जाएगा। यह कहकर वह घर से निकल गया। यह सब देखकर शान्ति को भी पश्चात्ताप होने लगा। वह यह सोचकर घबरा गई कि अब सारी जिम्मेदारी उसके पति पर आ गई। उसने अपने पति को समझाया कि वह मानसिंह को रोके । अन्ततः शान्ति और धर्मसिंह मानसिंह अपनी क्षमा-याचना करते और कहते कि साथ रहने में ही लाभ है और इससे हमारी इज्जत बनी रहेगी। अलग-अलग होने में दोनों भाइयों की हानि होगी।

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