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नमस्कार प्यारे साथियों, आज के इस ब्लॉग में हम हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत के जीवन परिचय के बारे में पढ़ने जा रहें है। हिंदी साहित्य के छायावाद को समृद्ध करने वाले सुमित्रानंदन पंत जी ने अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य को एक अलग पहचान देने का कार्य किया है। आइये पढ़ते है इनके जीवन परिचय, प्रमुख रचनाएँ, साहित्यक विशेषताएँ तथा इनके साहित्य की भाषा शैली के बारे में।
सुमित्रानंदन पंत जीवन परिचय
कविवर सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के सुकुमार कवि के रूप में माने जाते हैं। आधुनिक हिंदी कवियों में पंत जी का श्रेष्ठ स्थान है। इनका जन्म 20 मई 1900 ई. को उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक गांव में हुआ। जन्म के 6 घंटे बाद ही उनकी माता जी का देहांत हो गया। उनका पालन-पोषण दादी, बुआ और पिताजी की देख-रेख में हुआ।
पंत जी की आरंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई। सन 1919 में पंत जी शिक्षा के लिए इलाहाबाद के म्योर सेंट्रल कॉलेज में भर्ती हो गए। वे असहयोग आंदोलन से इतने प्रभावित हुए कि बिना परीक्षा दिए ही उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और आंदोलन में भाग लेने लगे। आंदोलन में भाग लेने के साथ-साथ उन्होंने काव्य-रचना और स्वाध्याय भी जारी रखा।
पंत जी ने छंद रचना चौथी कक्षा में ही आरंभ कर दी थी परंतु उनका वास्तविक कवि-कर्म कॉलेज में प्रारंभ हुआ। उन्होंने सन 1938 मे ‘रूपाभ’ पत्रिका निकाली, जिसकी प्रगतिशील साहित्य के विकास और प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका रही। सन 1950 से 1957 तक वे आकाशवाणी के हिंदी परामर्शदाता रहे। पंत जी को सोवियत भूमिका नेहरू पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पंत जी का निधन सन 28 दिसंबर 1977 ई. में हो गया।
Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay
नाम | सुमित्रानंदन पंत |
वास्तविक नाम | गोसैन दत्त |
जन्म | 20 मई 1900 ई. |
जन्म स्थान | कौसानी, उत्तराखंड |
पिता का नाम | गंगा दत्त पंत |
माता का नाम | सरस्वती देवी |
प्रमुख रचनाएँ | सन्ध्या, तितली, ताज, मानव, बापू के प्रति, मिट्टी का गहरा अंधकार, ग्राम श्री आदि। |
पुरस्कार | पद्म भूषण (1961), ज्ञानपीठ अवार्ड (1969), साहित्य अकैडमी अवॉर्ड (1960) |
निधन | 28 दिसम्बर 1977 ई. |
प्रमुख रचनाएं
पंत जी ने अनेक काव्य ग्रंथों एवं अन्य ग्रंथों की रचना करके हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। उनकी प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं —
(1). काव्य ग्रंथ – ‘ वीणा’, ‘ ग्रंथि’, ‘ पल्लव’, ‘ गुंजन’, ‘ युगांत’, ‘ युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्ण किरण’, ‘सवर्ण धूलि’, ‘ वाणी’, ‘ कला और बूढ़ा चांद’ आदि।
(2). काव्य रूपक – ‘ शिल्पी’, ‘ रजत-शिखर’, और ‘सौवर्ण’
(3). उपन्यास – ‘ हार’
(4). कहानी संग्रह – ‘ पांच कहानियां’
काव्यगत विशेषताएं
सुमित्रानंदन पंत बहुमुखी प्रतिभा शाली साहित्यकार थे।उन्होंने विभिन्न साहित्य विधाओं पर सफलतापूर्वक कलम चलाई है। वे युगीन काव्य धारा और विचारधाराओं से प्रभावित रहे और उन्होंने इन सब विचारधाराओं पर काव्य रचना भी की। वे जहां एक सफल छायावादी कवि है, वही प्रगतिवादी प्रवृतियां भी उनके काव्य मैं देखी जा सकती है।प्रगतिवाद के पश्चात उनका झुकाव अध्यात्मवाद की ओर हुआ। वे अपनी अंतिम काव्य यात्रा में तो पूर्णत है अध्यात्मा वादी बन गए थे। उनके काव्य पर विवेकानंद, अरविंद और भारतीय उपनिषदों का अत्यंत गहरा प्रभाव है। उनके काव्य की प्रमुख प्रवृतियां इस प्रकार हैं—
प्रकृति-वर्णन
पंत जी को ‘ प्रकृति का सुकुमार कवि’ माना जाता है। वे स्वयं लिखते हैं — “कविता लिखने की प्रेरणा मुझे सबसे पहले प्रकृति निरीक्षण से मिली है, जिसका श्रेय है मेरी जन्मभूमि कुर्मांचल प्रदेश को है।’’ प्रकृति ने उनको कल्पना, भावना और सौंदर्यनुभूति प्रदान की है। प्रकृति-प्रेम उनके स्वभाव का अभिन्न अंग है। उन्होंने प्रकृति को जड़ ना मानकर चेतन माना है। कवि ने उसमें प्रेयसी का रूप देखा है। यही कारण है कि उनकी कविता में प्रकृति के सुकुमार, सुकुमार और रमणीय चित्र उपलब्ध होते हैं। उनकी ‘ बादल’, ‘ संध्या’, ‘ एक तारा’, ‘ परिवर्तन’ आदि रचनाओं में प्रकृति के असंख्य चित्र भरे पड़े हैं।
प्रेम और सौंदर्य का उद्घाटन
पंत जी एक छायावादी कवि है। अंतः उनके काव्य में प्रेम और सौंदर्य का समुचित उद्घाटन हुआ है। कहीं कवि प्रकृति से प्रेम करता हुआ दिखाई देता है तो कहीं मानव से और कहीं ईश्वर से।जगत और प्रकृति के विशाल आंगन में कवि अनेक प्राकृतिक उपकरणों द्वारा अपनी सौंदर्य-भावना को व्यक्त करता हुआ दिखाई देता है। वस्तुतः सौंदर्य-वर्णन में कवि की वैयक्तिक प्रेम संबंधी अनुभूति कई स्थलों पर दिखाई देती है।
स्वानुभूत सुख-दुख की अभिव्यक्ति
पंत जी ने काव्य में स्वानुभूत सुख-दुख की अभिव्यक्ति भी दृष्टिगोचर होती है। पंत जी की विशेषता यह है कि वे अपने काव्य को निजी सुख दुख के साथ जोड़ने का प्रयास करते हैं।
मानवतावाद का स्वर
पंत जी के काव्य का स्वर मानव-मन और मानवतावाद का स्वर है। कवि अपने स्वर को जाति,धर्म देश और काल के बंधनों में कैद नहीं करना चाहता,बल्कि वह समूची मानव जाति के मंगल की कामना करता है। उसके काव्य का मुख्य विषय ही मानव है।
अध्यात्मवादी दृष्टिकोण
यद्यपि पंत जी कार्ल मार्क्स से काफी प्रभावित हुए और प्रगतिवाद की ओर उनका झुकाव भी हुआ, परंतु शीघ्र ही वे गांधीवादी की ओर आकर्षित हुए। यद्यपि उन्होंने कुछ कविताएं गांधी जी के सम्मान के रूप में भी लिखी तथापि उनके प्रवर्ती काव्य पर सर्वाधिक प्रभाव अरविंद-दर्शन और भारतीय उपनिषदों का है।
सुमित्रानंदन पंत के साहित्य की भाषा-शैली
पंत जी ने अपने निरंतर प्रयासों से खड़ी बोली को सजाया और संवारा है तथा काव्य के कला-पक्ष को नई क्रांति प्रदान की है। डॉ नगेंद्र के अनुसार, “ पंत की कला का विश्लेषण करना कठिन है, उनकी रंगीन कला इतनी कोमल है कि विश्लेषण करते ही तितली के पंखों की भांति बिखर जाती है।”
पंत जी वाणी के सम्राट हैं। शब्दों की आत्मा का उनको सही ज्ञान है। कब, कहां और किस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करना है, इसका उनको समुचित ज्ञान है। उनकी भाषा परिमार्जित, कोमल और संगीतमयी है। पुनरुक्ति प्रकाश, वीप्सा, श्लेष, यमक, अनुप्रास, उत्प्रेक्षा, उपमा, रूपक आदि पारंपरिक अलंकारों के साथ-साथ कवि ने मानवीकरण और विशेषण-विपर्यय जैसे नवीन अलंकारों का भी सफल प्रयोग किया है।
उन्होंने भाषा की प्रकृति को ध्यान में रखकर मात्रिक छंदों का अधिक प्रयोग किया है। कहीं-कहीं मुक्त छंद और अंग्रेजी के छंदों का भी प्रयोग है।