विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध | Vidyarthi Aur Rajniti Par Nibandh

विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध

विद्यार्थी और राजनीति

भूमिका:- संसार में सभी वस्तुओं में विद्या ही सर्वश्रेष्ठ है। इसी विद्या को चाहने वाले को हौ विद्यार्थी कहते हैं। विद्यार्थी जीवन में ही विद्यार्थी का सर्वागीण विकास होता है क्योंकि शरीर और मन के विकास का दूसरा नाम ही शिक्षा है।

शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से विद्यार्थी स्कूल, कालेज अथवा विश्वविद्यालय में प्रवेश करते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या विद्यार्थीकाल में केवल विद्या ही ग्रहण करनी चाहिए अथवा इसके साथ-साथ उसे राजनीति में भी भाग लेना चाहिए? क्या एक विद्यार्थी का राजनीति में भाग लेना उचित है या अनुचित ?

वास्तव में राष्ट्र के निर्माण में विद्यार्थियों की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। केवल वही देश प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है जिस की युवाशक्ति या विद्यार्थी अपनी क्षमता का एक-एक कण देश की प्रगति के लिए दाँव पर लगाता है। जीवन के भोग विषयों को त्याग कर, केवल राष्ट्र हित साधक, स्वार्थशून्य भाव भरकर यह राष्ट्रोत्थान कार्य सफल करने का साहस केवल विद्यार्थी वर्ग ही कर सकता है।

स्वाधीनता आन्दोलन के समय में भी विद्यार्थियों ने बढ़ चढ़ कर सक्रिय राजनीति में भाग लिया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर असंख्य विद्यार्थियों ने अपनी कालेज की पढ़ाई छोड़कर देश के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू आदि विद्यार्थी काल में ही क्रान्तिकारी बने।

1942 में जब ‘अंग्रेज़ो भारत छोड़ो’ का नारा सारे देश में गुंजायमान हुआ विद्यार्थियों ने इस में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। कितने ही विद्यार्थी स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर अपने आपको न्यौछावर करने के लिए तैयार थे। उस समय सभी के हृदयों में एक ही भावना काम कर रही थी कि हमने हर कीमत पर देश को अंग्रेज़ो की गुलामी से मुक्त करवाना है।

आज का विद्यार्थी कालेज में केवल राजनीति शास्त्र का अध्ययन ही नहीं करता, बल्कि राजनीति के क्षेत्र में पूरी तरह से खुलकर भाग भी लेने लग पड़ा है। आजकल विद्यार्थी और राजनीति में गहरा सम्बन्ध भी स्थापित हो गया है। स्कूलों, कालेजों में राजनीतिकों ने अपने अपने दलों के दल विद्यार्थी नेताओं में भी बना लिए है।

“यह राजनीति खुलकर तब सामने आती है जब कालेजों या विश्वविद्यालयों में विद्यार्थी नेताओं के चुनाव होते हैं।”

विश्वविद्यालयों में तो राजनीति इतनी प्रवेश कर चुकी है कि विद्यार्थी अपनी इच्छानुसार परीक्षाएँ देते हैं और हड़तालें करवा देते हैं। राजनीति की दलदल में फंसकर विद्यार्थी अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं और अपनी शिक्षा को बीच में ही छोड़ देते हैं।

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या विद्यार्थियों को राजनीति में प्रवेश लेना चाहिए या नहीं ? यदि विद्यार्थियों को राजनीति में प्रवेश लेना चाहिए तो क्यों और यदि नहीं तो क्यों नहीं ?

राजनीति में प्रवेश से लाभ

1. राजनीति में प्रवेश करने पर विद्यार्थियों में राजनीतिक चेतना पैदा होती है। यह राजनैतिक चेतना स्वतन्त्र राष्ट्र के लिए तथा उसके नागरिकों का एक आवश्यक गुण है। किसी भी देश का विद्यार्थी जितना राजनीतिक रूप से सजग होगा, उतना ही वह राष्ट्र प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होगा। विश्व में जितनी भी क्रान्तियाँ हुई हैं उन सबके पीछे विद्यार्थी वर्ग का ही हाथ था।

2. छात्रों में नेतृत्व शक्ति का विकास होता है। छात्रों में सही नेतृत्व विकसित होने से वे अनुयायियों को सही मार्ग प्रदर्शन कर देश की उन्नति में योगदान दे सकते हैं।

3. छात्रों में राजनीति के प्रवेश से राजनेताओं में एक भय सा पैदा हो जाता हैं। वह भ्रष्टाचार और अनाचार जैसे दुष्कृत्यों को छोड़कर सही कार्य करते हैं।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विद्यार्थियों को राजनीति में प्रवेश लेना चाहिए ताकि नवयुवकों के नेतृत्व में राष्ट्र अधिक उन्नति कर सके।

राजनीति में प्रवेश से हानियाँ

1. विद्यार्थी जब सक्रिय राजनीति में प्रवेश कर लेता है तो वह अपने वास्तविक उद्देश्य अर्थात् विद्याध्ययन से विमुख हो जाता है। विद्यार्थीकाल ही ऐसा काल है जिसमें विद्या प्राप्त की जा सकती है।

2. विद्यार्थी जीवन कच्चे घड़े के समान होता है और राजनीतिक दल इस बात का लाभ उठाकर, विद्यार्थी उनकी चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर दलगत राजनीति में फंस जाते हैं जोकि देश की प्रगति में बाधक बनता है क्योंकि विद्यार्थी का दृष्टिकोण बहुत ही सीमित होकर रह जाता है।

3. राजनीति में प्रवेश के बाद कई बार इतने अनुशासनहीन एवं उश्रृंखल हो जाते हैं कि वे विवेकहीन होकर राष्ट्रीय सम्पत्ति को नुक्सान पहुँचाने में भी नहीं हिचकिचाते।

निष्कर्ष

अतः कहा जा सकता है कि आज के विद्यार्थी ही कल के नेता हैं। वही इस राष्ट्र के आधार स्तम्भ हैं। इसलिए राष्ट्र स्तम्भ जितना मज़बूत होगा, उतना ही हमारा राष्ट्र मज़बूत होगा। यदि उसमें थोड़ी सी भी कमज़ोरी हुई तो सम्पूर्ण राष्ट्र मन्दिर ढह जाएगा। इसलिए विद्यार्थी अति उत्तम होने चाहिएं तभी वे अपने कन्धों पर राष्ट्र मन्दिर को सुरक्षित रख पाएँगे।

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