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आज के इस लेख में हम हिंदी निबंध की श्रेणी में विद्यार्थी जीवन पर निबंध को शामिल करने जा रहें है। छोटी कक्षा के बच्चों के लिए निबंध से जुड़े हुए सवाल परीक्षा में पूछे जाते है। इसलिए स्टूडेंट्स यहाँ से निबंध कला को सीख सकते है और अपने ज्ञान एवं परीक्षा परिणाम में इजाफ़ा कर सकते है।
विद्यार्थी जीवन
छात्र राष्ट्र की सबसे बड़ी सम्पत्ति है। ये देश का भविष्य तथा आशा होते हैं। देश का भविष्य इन्हीं पर निर्भर करता है। देश के जितने महान नेता, कार्यकर्ता, समाज सुधारक एवं धार्मिक पुरुष हुए हैं, वे इस अवस्था से निकले हैं। छात्रों की योग्यता एवं शक्ति में सन्देह करना भारी भूल है।
ये अपने जीवन के विविध सोपानों को सफलतापूर्वक पार करते हुए नव रत्न बनते हैं। यदि उनका उचित मार्गदर्शन किया जाए तो ये शिवा, प्रताप, गुरू गोबिंद सिंह बनकर दांत खट्टे करते हैं, सुभाष एवं भगत सिंह के समान बनकर शत्रु के नाक में दम कर देते हैं; गांधी तथा नेहरू बनकर राजनीति के क्षेत्र में डंका बजा देते हैं।
स्वामी दयानंद, विवेकानंद एवं श्रद्धानंद के आदर्शों को जीवित करने की शक्ति केवल छात्रों में ही है। मनुष्य के जीवन की चार मुख्य अवस्थाएँ मानी गई हैं। उनमें पहली अवस्था विद्या प्राप्त करने की है। इसे ही विद्यार्थी जीवन कहते हैं। पढ़ना-लिखना, कला कौशल सीखना, बुद्ध विद्या में निपुण होना, ज्ञान प्राप्त करना, अच्छे संस्कार अपनाना, इसी आयु पूरी तरह संभव होता है क्योंकि बाल, किशोर और युवा अवस्था में बुद्धि तीव्र, मन निर्मल, मस्तिष्क साफ एवं बलवान और शरीर स्वस्थ होता है।
हृदय में उत्साह और उमंग होने से आशाएँ भरी हुई होती हैं। विद्यार्थी जीवन, जीवन की सबसे मीठी, सुन्दर और आनन्दमय अवस्था होती है। विद्यार्थी जीवन मुख्यता पांच वर्ष से लेकर में पच्चीस वर्ष तक होता है परन्तु धन्य हैं वे लोग जो जीवन भर विद्यार्थी और जिज्ञासु बने रहकर अपना ज्ञान बढ़ाते रहते हैं।
जीवन की नींव
विद्यार्थी जीवन मनुष्य के सारे जीवन की नींव है। नींव पक्की हो तो उसके ऊपर भवन भी पक्का बनता है। यदि नींव कच्ची रह जाये तो इसके ऊपर भवन देर तक नहीं टिकता। इसी प्रकार विद्यार्थी जीवन में यदि विद्या भली-भांति प्राप्त न की जाए तो भविष्य में मनुष्य का जीवन सूना-सूना, अधूरा और पिछड़ा हुआ रह जाता है। विद्यार्थी को जीवन में चिन्ता ज़रा भी नहीं होती।
विद्यार्थी सदा प्रसन्न रहते हैं। हंसते खेलते उनका समय बीतता है। चेहरे पर चमक और ताज़गी होती है। उन्हें आनंद मग्न देखकर बड़े-बड़े लोग विद्यार्थी जीवन के लिए कई बालक, बहुत से किशोर तथा अनेक युवक इस जीवन की महत्ता को नहीं जानते। वे अपनी इस सुनहरी अवस्था को व्यर्थ गंवा देते हैं।
उन्हें पता नहीं कि ऐसा अमूल्य समय फिर हाथ नहीं आएगा, बाद में केवल पछताना पड़ेगा। उन्हें जान लेना चाहिए कि विद्यार्थी जीवन का एक-एक पल कीमती होता है। अन्दर की शक्तियाँ इसी जीवन में फलती-फूलती है। इसलिए इस जीवन में बड़ी लगन और रुचि से विद्याएँ सीखनी चाहिए।
जीवन को सफल बनाने के मुख्य रहस्य
कर्त्तव्य पालन, आज्ञाकारी होना, ब्रह्मचर्य, संयम, कुसंगति से बचना, खेल तमाशों का त्याग, व्यायाम, उत्तम स्वास्थ्य, गुरू और माता-पिता के प्रति श्रद्धा, ईश्वर भक्ति, आलस्य का त्याग एवं समय का सदुपयोग ।
स्वास्थ्य की देखभाल
विद्या ग्रहण करते हुए अपने स्वास्थ्य का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए व्यायाम और खेलकूद आवश्यक है। कई विद्यार्थी पुस्तकों के कीड़े बनकर अपना स्वास्थ्य बिगाड़ लेते हैं। पढ़ने और खेलने दोनों में समयानुसार भाग लेकर निपुण बनना हितकर है। शिक्षा एवं खेलों में समन्वय की आवश्यकता है।
तमाशे, व्यर्थ की गप्पें दुर्व्यसन आदि से बचने वाले विद्यार्थी का जीवन ही चमकता है। जो विद्यार्थी इनके अधीन हो जाता है वह स्वयं अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारता है। अपना भविष्य धुंधला कर लेता है।
महात्मा गांधी का कथन है कि विद्यार्थी जीवन में पान, सिग्रेट तथा शराब की बुरी आदतें डालना आत्मघात करना है।
सुसंस्कारों का आत्मसात
विद्यार्थी जीवन कच्चे घड़े के समान होता है। इस अवस्था में जैसे संस्कार डाले जाएं वे पक्के हो जाते हैं। यह सोचकर विद्यार्थी को सदा अच्छे और सच्चे साथी तथा मित्र बनाने चाहिए क्योंकि वे जीवन को ऊँचा और सुखी बना देते हैं। बुरे साथी और आचरणहीन मित्र विद्यार्थी की जीवन नैया को डुबो देते हैं।
मितव्ययी एवं कर्तव्यी
विद्यार्थी को मितव्ययी होना चाहिए। संभल कर खर्च करने वाले विद्यार्थी माता-पिता पर बोझ नहीं बनते, स्वयं ऋण से बचकर सदा सुखी रहते हैं। मर्यादा का ध्यान रखना विद्यार्थी का परम् कर्त्तव्य है। उसे निर्लज्ज नहीं बनना चाहिए। हंसी मज़ाक एक सीमा तक ही अच्छा होता है। हाँ झूठी शर्म, दब्बूपन छोड़ देना चाहिए। साहस, वीरता तथा निडरता से विद्यार्थी की विशेषताएँ बढ़ती हैं।
अनुशासनहीनता से परे
उपद्रव, हिंसा, तोड़-फोड़, उदंडता भरे आन्दोलनों में पड़ने से विद्यार्थी जीवन का गौरव नष्ट हो जाता है। विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता के कारण आज सारा वातावरण दूषित हो गया है। इन बातों से विद्या प्राप्ति में बड़ी बाधाएँ आ रही हैं। आज भारत ही नहीं लगभग सारा संसार ही छात्रों की अनुशासनहीनता से परेशान है। यह अनुशासनहीनता छात्र वर्ग एवं राष्ट्र दोनों के लिए घातक है। आज तो ऐसे छात्रों की आवश्यकता है जो आदर्श जीवन से मोह करने वाले हों।
निष्कर्ष
विद्यार्थी जीवन अमृत से भरा जीवन है। यही बाद में जीवन को बनाता या बिगाड़ता है। इसी के आधार पर अच्छे नागरिक उत्पन्न होते हैं। इसी के सहारे राष्ट्र में राष्ट्रप्रियता बढ़ती है। महान् नेता बनने के अंकुर इसी अवस्था में उगते हैं। अतः अपने विद्यार्थी जीवन का सदुपयोग करना छात्र का परम कर्तव्य होना चाहिए।