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सभी साथियों का हिन्दीशाला के एक और नए पोस्ट में स्वागत है। आज के इस आर्टिकल में हम हिंदी के महनीय कवि आलोक धन्वा के बारे में पढ़ने जा रहें है। इस पोस्ट में हम उनके जीवन परिचय, प्रमुख सम्मान, प्रमुख रचनाएँ, आलोक धन्वा की साहित्यिक विशेषताएँ, आलोक धन्वा की भाषा शैली आदि के बारे पढ़ेंगे।
आलोक धन्वा जीवन परिचय
श्री आलोक धन्वा समकालीन हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि माने जाते हैं। ये सामाजिक चेतना से ओत-प्रोत कवि हैं। इनका जन्म सन् 1948 ई० में बिहार राज्य के मुंगेर जिले में हुआ था। इनकी साहित्य सेवा की भावना के कारण उन्हें राहुल सम्मान से अलंकृत किया गया। इनको बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् का साहित्य सम्मान और बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान से भी सम्मानित गया है।
प्रमुख सम्मान
राहुल सम्मान, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् का साहित्य सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, पहल सम्मान।
आलोक धन्वा प्रमुख रचनाएँ
आलोक धन्वा एक साहित्य प्रेमी व्यक्ति हैं। एक कवि के रूप में उन्हें विशेष ख्याति प्राप्त है। उनकी लेखनी अबाध गति से साहित्य-सृजन हेतु चल रही है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
काव्य – जनता का आदमी (उनकी पहली कविता है जो सन् 1972 में प्रकाशित हुई) भागी हुई लड़कियाँ, ब्रूनों की बेटियाँ, गोली दागो पोस्टर आदि । ब्रूनों की बेटियाँ से कवि को बहुत प्रसिद्धि प्राप्त हुई है।
काव्य संग्रह – दुनिया रोज बनती है। (एकमात्र-संग्रह है)- (सन् 1998)
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आलोक धन्वा की साहित्यिक विशेषताएँ
आलोक धन्वा समकालीन काव्य-जगत् के विशेष हस्ताक्षर हैं। ये एक संवेदनशील व्यक्ति हैं। इनका साहित्य समकालीन समाज की संवेदना से ओत-प्रोत है। ये सातवें आठवें दशक के जन आंदोलनों से अत्यंत प्रभावित हुए। इसलिए इनके काव्य में समाज का यथार्थ चित्रण मिलता है। इनके साहित्य में राष्ट्रीय चेतना का भाव प्रमुख झलकता है। इन्होंने अपने साहित्य में भारतीय संस्कृति एवं समाज का अनूठा चित्रांकन प्रस्तुत किया है।
इनके मन में अपने देश के प्रति गौरव की भावना है। यही गौरवपूर्ण भावना इनके साहित्य में झंकृत होती है। आलोक धन्वा बाल मनोविज्ञान के कवि हैं। इन्होंने भाग-दौड़ की जिंदगी में उपेक्षित बाल मन को जांच-परखकर उसका अनूठा चित्रण किया है। दुनिया रोज बनती है। काव्य संग्रह की पतंग कविता में बाल सुलभ चेष्टाओं एवं क्रियाकलापों का सजीव एवं मनोहारी अंकन हुआ है। इन्होंने अपने साहित्य में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली भाषा का प्रयोग किया है। इसके साथ-साथ इसमें संस्कृत के तत्सम तद्भव साधारण बोलचाल और विदेशी भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।
आलोक धन्वा की भाषा शैली
इनके काव्य में कोमलकांत पदावली का भी सजीव चित्रण हुआ है। इनकी अभिधात्मक शैली भावपूर्ण है। प्रसाद गुण के साथ-साथ माधुर्य गुण का भी समायोजन हुआ है। इनकी भाषा शैली में अनुप्रास, स्वभावोक्ति, पदमैत्री, स्वरमैत्री, यमक, उपमा, रूपक, मानवीकरण आदि अलंकारों का प्रयोग मिलता है।- आलोक धन्वा समकालीन काव्यधारा के प्रमुख कवि हैं। इनका समकालीन हिंदी कविता में प्रमुख स्थान है।