गजानन माधव मुक्तिबोध जीवन परिचय
श्री गजानन माधव मुक्तिबोध आधुनिक हिंदी साहित्य की नई कविता के बेजोड़ कवि थे। वे एक संघर्षशील साहित्यकार थे जो आजीवन समाज इतिहास और स्वयं से संघर्ष करते रहे। उनका जन्म 13 नवंबर सन् 1917 ई० को मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के श्योपुर नामक स्थान पर हुआ था। इनके पूर्वज पहले महाराष्ट्र में रहते थे जो बाद में मध्य प्रदेश में आकर रहने लगे। इनके पिता का नाम माधव मुक्तिबोध था। वे पुलिस में सिपाही थे। इनकी माँ बुंदेलखंड के एक किसान की बेटी थी।
मुक्तिबोध जी एक विचारक एवं घुमक्कड़ प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। ये अपने भाइयों में सबसे बड़े थे। ये शांता नामक लड़की से प्रेम करते थे। बाद में इन्होंने परिवार की मर्जी के खिलाफ़ शांता जी से शादी कर ली थी। इस घटना से इनका परिवार के सदस्यों से मतभेद हो गया। मुक्तिबोध की प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई। वे मिडिल की परीक्षा में एक बार अनुत्तीर्ण हुए लेकिन निरंतर परिश्रम करते हुए सन् 1953 ई० में नागपुर विश्वविद्यालय से एम० ए० की परीक्षा पास की।
बाद में जीविकोपार्जन के लिए मध्य प्रदेश के एक मिडिल स्कूल में अध्यापक नियुक्त हुए किंतु चार मास के बाद ही यह नौकरी छोड़ दी। तत्पश्चात् शुजानपुर में शारदा शिक्षण सदन में रहे। फिर दौलतगंज मिडिल स्कूल उज्जैन में आ गए। इस प्रकार कवि ने आजीविका हेतु कोलकाता, इंदौर, मुंबई, बंगलौर, बनारस, जबलपुर, राजनंद गाँव आदि स्थानों पर कार्य किया।
इन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया। सन् 1945 ई० में ‘हँस’ पत्र के संपादक मंडल के सदस्य के रूप में कार्य किया। 1956 से 1958 तक नया खून नामक पत्र के संपादन कार्य से जुड़े रहे। इस प्रकार मुक्तिबोध जी को जीवन में दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं। अंत में वे बीमार रहने लगे। ‘मैनिनजाइटिस’ नामक रोग ने उनके शरीर को जकड़ लिया। उन्हें उपचार के लिए भोपाल और | दिल्ली लाया गया किंतु वे स्वस्थ नहीं हुए। अंततः 11 सितंबर सन् 1964 ई० को नई दिल्ली में उनका देहांत हो गया।
रचनाएँ – मुक्तिबोध जी एक संघर्षशील साहित्यकार थे। ये बहुमुखी प्रतिभा से ओत-प्रोत रचनाकार थे। जो संघर्ष इनके जीवन में रहा वही इनके साहित्य में भी दृष्टिगोचर होता है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
काव्य संग्रह – चाँद का मुँह टेढ़ा है (सन् 1964), भूरी-भूरी खाक धूल (सन् 1964)। (ii) कहानी संग्रह — काठ का सपना, सतह से उठता आदमी।
उपन्यास – विपात्र।
समीक्षात्मक ग्रंथ – कामायनी एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्म-संघर्ष, नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, एक साहित्यिक की डायरी, समीक्षा की समस्याएँ, भारत इतिहास और संस्कृति ।
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मुक्तिबोध की साहित्यिक विशेषताएँ
‘मुक्तिबोध’ के साहित्य में सामाजिक चेतना, लोक-मंगल की भावना तथा जीवन के प्रति व्यापक दृष्टिकोण विद्यमान हैं। इनके काव्य में प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी संवेदनाओं का चित्रण मिलता है। इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
शोषक वर्ग के प्रति घृणा
मुक्तिबोध जी मार्क्सवादी चिंतन से प्रेरित कवि हैं। उन्होंने समाज के पूँजीपति वर्ग के प्रति घृणा भाव व्यक्त किए हैं। इनकी अनेक कविताओं में उस व्यवस्था के प्रति गहन आक्रोश अभिव्यक्त किया गया है जो मज़दूरों, निर्धनों का शोषण करके ऐशो-आराम का जीवन जी रहे हैं। ‘पूंजीवादी समाज के प्रति’ इनकी ऐसी ही कविता है जिसमें प्रगतिवादी भावना दृष्टिगोचर होती है।
शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति
मुक्तिबोध ने शोषक वर्ग के प्रति गहन आक्रोश तथा शोषित वर्ग के प्रति विशेष सहानुभूति प्रकट की है। कवि समाज के दीन-हीन निर्धन लोगों को आर्थिक शोषण से मुक्त करना चाहता है। इन्होंने अपनी अनेक कविताओं में शोषण के शिकार नारी शिशु और मजदूरों का सजीव और मार्मिक अंकन किया है।
समाज का यथार्थ चित्रण
मुक्तिबोध जी भ्रमणशील व्यक्ति थे अतः उन्होंने समाज को बहुत नजदीकी में देखा। इसलिए उनके काव्य में समाज का यथार्थ बोध होता है। उनके काव्य में भोगे हुए यथार्थ की अभिव्यंजना हुई है। कवि ने समकालीन समाज में फैली विसंगतियों कुरीतियों, शोषण, अमानवीय मूल्यों का यथार्थ चित्रण किया है।
निराशा, वेदना एवं कुंठा का चित्रण
मुक्तिबोध की प्रारंभिक रचनाओं में उनका व्यक्तिगत चित्रण हुआ है। इसी प्रवृत्ति के कारण इनकी अनेक कविताओं में निराशा, वेदना, कुंठा आदि का चित्रण हुआ है। मुक्तिबोध आजीवन संघर्षरत रहे। उन्हें पग-पग पर ठोकरें खानी पड़ी। इसी संघर्ष व वेदना के उनके काव्य में दर्शन होते हैं। कवि ने अपनी वेदना को संत-चित वेदना इसलिए कहा है क्योंकि वे समाज की विसंगतियों, शोषण वेदना को अपने भीतर घटित होते देखते हैं। इन्होंने आजीवन जिस वेदना, कुंठा, दुःख, पीड़ा को झेला उसी का सजीव चित्रांकन अपनी कविताओं में किया हैं।
वर्गहीन समाज का चित्रण
मुक्तिबोध मार्क्सवादी चेतना से प्रेरित कवि हैं। वे समाज में शोषक वर्ग को समाप्त कर वर्गहीन समाज की स्थापना करना चाहते हैं। यही भावना उनकी अनेक कविताओं में प्रकट होती है। जहाँ वे पूँजीपति समाज का साम्राज्य समाप्त करना चाहते हैं। उनकी कविताएँ जन विरोधी समाज व्यवस्था के विरुद्ध संघर्षशील हैं। कवि ने अपने काव्य में शोषण, वर्ग-भेद को मिटाकर एक स्वस्थ एवं वर्गहीन समाज की कल्पना की है।
बिंब विधान
मुक्तिबोध का बिंब विधान अत्यंत श्रेष्ठ है। इस दृष्टि से इनका काव्य अत्यंत समृद्ध है। इनकी संपूर्ण कविताएं बिंबमयी हैं। इन्होंने सामाजिक यथार्थ, विसंगति, त्रासदी, वेदना आदि के सजीव चित्र उपस्थित किए हैं। इन्होंने अपने काव्य में दृश्य, ध्वनि, स्पर्श, स्थिर, गत्यात्मक, प्राकृतिक, वैज्ञानिक आदि अनेक बिंबों का सजीव चित्रण किया है।
मुक्तिबोध की भाषा शैली
क्तिबोध की काव्य कला की महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि उन्होंने मानव जीवन की जटिल संवेदनाओं और अंतद्वंवों की सृजनात्मक अभिव्यक्ति के लिए फैटेसियों का कलात्मक उपयोग किया है। मुक्तिबोध सामान्य जन जीवन में प्रचलित शब्दावली से युक्त भाषा का प्रयोग किया है। भाषा की मौलिकता इनकी काव्य-कला की प्रमुख विशेषता है।
इनकी भाषा में संस्कृत की तत्सम शब्दावली का प्रयोग है तो अंग्रेजी, उर्दू अरबी, फारसी आदि भाषाओं के शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। इनकी भाषा पाठक को वास्तविक मर्म सौंपने का कार्य करती है। इनकी शैली भावपूर्ण है। इसके साथ-साथ आत्मीय व्यंजनात्मक, चित्रात्मक, व्यंग्यात्मक, प्रतीकात्मक आदि शैलियों के भी दर्शन होते हैं।