बच्चे काम पर जा रहे है कविता व्याख्या | Bacche Kaam Par Ja Rahe Hain

Bacche Kaam Par Ja Rahe Hain Summary

बच्चे काम पर जा रहे है कविता का सार

बच्चे काम पर जा रहे है कविता में बच्चों के बचपन छिन जाने की पीड़ा व्यक्त हुई है। कवि ने कहा है कि प्रातःकाल में ही बच्चे काम करने के लिए जा रहे हैं। उस समय कोहरा पड़ रहा है, परंतु बच्चे काम पर जा रहे हैं। कवि को यह इस समय की अत्यंत भयानक पंक्ति लगी है। इसे एक पंक्ति की भाँति नहीं, अपितु एक प्रश्न की भाँति लिखा जाना चाहिए। कवि ने प्रश्न किया है कि बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं। क्या उनके खेलने, पढ़ने के साधन नष्ट हो गए हैं। यदि ऐसा ही है तो दुनिया में फिर बचा ही क्या है। यदि ऐसा होता तो यह विश्व के लिए भयानक होता। इससे भी बुरी या भयानक बात यह है कि सभी वस्तुएँ यथावत हैं, लेकिन बच्चों को उनसे दूर रहने के लिए विवश किया जा रहा है। फिर दुनिया की एक नहीं, हजारों सड़कों से बहुत छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं।

बच्चे काम पर जा रहे है कविता व्याख्या 

कोहरे से टैंकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति  है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिया जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तिया कक्षा नोवी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग-1 में संकलित कविता बच्चे काम पर जा रहे है से ली गयी है।  इस कविता के कवि राजेश जोशी जी हैं। कवि ने कविता में बाल श्रम की समस्या का वर्णन किया हैं।

व्याख्या – कवि ने बताया है कि सुबह-सुबह कोहरे से ढकी हुई सड़क पर छोटे-छोटे बच्चे काम करने के लिए जा रहे हैं। कवि ने पुनः इस पंक्ति पर जोर देते हुए कहा है ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं, यह एक गंभीर बात है। कवि ने इस पंक्ति को इस युग की भयानक पंक्ति बताया है, क्योंकि यह पंक्ति बाल-श्रम की भयानक एवं गंभीर समस्या की ओर संकेत करती है। इस पंक्ति को पूरे विवरण के साथ लिखना चाहिए अथवा इसे एक प्रश्न के रूप में लिखा जाना चाहिए- ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे कहने का भाव है कि हमें इस प्रश्न पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए कि यह समय बच्चों के खेलने एवं पढ़ने का है, काम करने का नहीं है।

भावार्थ – प्रस्तुत पद्यांश में ‘बाल-श्रम  की समस्या को गंभीरता से उठाया गया है।

क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंद
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलोने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आंगन
खत्म हो गए हैं एकाएक

व्याख्या – कवि ने बाल-श्रम की समस्या पर विचार करते हुए कहा है कि बच्चों को काम पर क्यों भेजा जा रहा हैं। क्या बच्चों के खेलने की सब गेंदें आकाश में चली गई है या फिर सभी रंग-बिरंगी अर्थात सुंदर-सुंदर पुस्तकों को दीमक ने नष्ट कर दिया। है, जिससे बच्चों को पढ़ाने की अपेक्षा उन्हें काम पर भेजा जा रहा है। इसी प्रकार कवि ने कहा है कि क्या उनके खेलने के सभी खिलौने नष्ट हो गए हैं और जिन विद्यालयों के भवनों में बच्चे पढ़ने के लिए जाते हैं क्या वे सब भूकंप में गिरकर नष्ट हो गए है जो बच्चों को विद्यालयों में भेजने की अपेक्षा काम पर भेजा जा रहा है। क्या सारे मैदान, सभी बाग-बगीचे और घरों के आंगन जहाँ बच्चे खेला करते थे, सब-के-सब अचानक नष्ट हो गए हैं।

भावार्थ – इन पक्तियों में कवि ने ‘बाल-श्रम’ की समस्या की और पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया है।

तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में ?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह
कि सारी चीजें हस्बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।

व्याख्या – कवि ने आधुनिक युग की समस्या बाल-श्रम का वर्णन करते हुए कहा है कि यदि बच्चों के विकास के साधन ही नष्ट हो गए तो दुनिया में फिर बचा ही क्या है ? यदि सचमुच में ही ऐसा हो जाता अर्थात बच्चों के व्यक्तित्व के विकास के साधन समाप्त हो जाते तो बहुत भयानक बात होती। किंतु कवि का मत कुछ अलग है। वह कहते हैं कि इससे भी भयानक यह है कि वे सब वस्तुएँ अथवा साधन यथावत बने हुए हैं अर्थात बच्चों के विकास के साधन विद्यमान हैं और संसार की हजारों सड़कों पर बहुत छोटे-छोटे बच्चे प्रतिदिन काम पर जाते हैं अर्थात उन्हें काम की अपेक्षा पढ़ने जाना चाहिए था।

भावार्थ – प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने ‘बाल-श्रम’ की समस्या का व्यंग्यात्मक शैली में वर्णन किया है।

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