भागु होआ गुरि संतु मिलाइिआ / अर्जुन देव

भागु होआ गुरि संतु मिलाइिआ।।
प्रभु अबिनासी घर महि पाइिआ।।
सेवा करी पलु चसा न विछुड़ा जन नानक दास तुमारे जीउ।।1।।
हउ घोली जीउ घोलि घुमाई जन नानक दास तुमारे जीउ।।2।।

अर्जुन देव अन्य कविताएँ