बगुलों के पंख व्याख्या | Buglo Ke Pankh Vyakhya : उमाशंकर जोशी

बगुलों के पंख व्याख्या

नभ में पाँती बंधे बगुलों के पंख,
चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।
हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
वह तो चुराए लिए जातीं मेरी आँखें
नभ में पाँती-बंधी बगुलों की पाँखें।

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शब्दार्थ :- नभ = आकाश। पाँती-बंधे = पंक्ति में बंधे हुए पंक्तिबद्ध। कजरारे = काले-काले। साँझ = संध्या। सतेज = तेजस्वी, उज्ज्वल, तेजयुक्त। श्वेत = सफेद काया = शरीर। हौले-हौले = धीरे-धीरे। निज = माया से अपनी माया से। तनिक = थोड़ा-सा, जरा। पाँखे = पंख ।

प्रसंग :- प्रस्तुत पद्म हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘उमाशंकर जोशी’ द्वारा रचित ‘बगुलों के ‘पंख’ नामक कविता से अवतरित है। जोशी जी गुजराती कविता के प्रसिद्ध कवि हैं। इस पद्य में कवि ने आकाश में उड़ते पक्षियों के सौंदर्य में चित्रात्मक वर्णन के साथ-साथ उसका अपने मन पर पड़ने वाले अटूट प्रभाव का भी सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या :- कवि का कथन है कि असीम आकाश में बगुले पंक्तिबद्ध होकर उड़ रहे हैं। इन बगुलों के सफ़ेद पंख अत्यंत सुंदर एवं मनमोहक हैं। वे सफ़ेद पंखों से युक्त आकाश में उड़ते बगुले मेरी आँखों को चुरा लिए जा रहे हैं। अर्थात् कवि का कहने का अभिप्राय यह है कि इन नयनाभिराम पंक्ति में बंधे बगुलों के सुंदर-सुंदर पंखों ने मेरे नेत्रों को चुरा लिया है। अर्थात् उनकी अद्भुत सुंदरता मेरी आँखों में बस गई है। इन काले बादलों से भरे आकाश में पंक्ति बनाकर उड़ते हुए बगुलों के पंख काले बादलों के ऊपर तैरती साँझ को श्वेत काया के समान प्रतीत होते हैं।

कवि कहता है कि वह दृश्य इतना सुंदर है कि जो मुझे अपने माया रूपी सौंदर्य से धीरे-धीरे अपने आकर्षण में बाँध रहा है अर्थात् मुझे अपनी ओर खींच रहा है। कवि आग्रह करते हैं कि कोई उस माया को थोड़ा-सा रोके। यह आकाश में उड़ते पंक्तिबद्ध बगुलों के पंखों को सुंदरता निरंतर मेरी आँखों को चुरा कर लिए जाती है अर्थात् उन सफ़ेद बगुलों का पंक्तिबद्ध सौंदर्य मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रहा है और मेरी आँखें उसी ओर लगी हुई हैं।

  • विशेष :-  इस पद्य में कवि ने आकाश में उड़ते पक्षियों के सौंदर्य में चित्रात्मक वर्णन के साथ-साथ उसका अपने मन पर पड़ने वाले अटूट प्रभाव का भी सजीव चित्रण किया है।
  • ‘बंधे बगुलों’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • सम्पूर्ण कविता में मानवीकरण अलंकार है।
  • भाषा सरल, सहज, साहित्यिक खड़ी बोली है।

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