देवसेना का गीत व्याख्या PDF / Devsena Ka Geet Vyakhya : जयशंकर प्रसाद

देवसेना का गीत कक्षा 12 में एक महत्वपूर्ण पाठ है क्योंकि परीक्षा में हर बार इससे सवाल पूछे जाते है। इस पाठ में हम देवसेना के द्वारा गाये गए एक गीत को पढ़ने जा रहे है। इस गीत के माध्यम से देवसेना अपने जीवन की पीड़ा को एक गीत के माध्यम से व्यक्त करती है। वह कहती है कि मैंने इस प्रेम के कारण अपना जीवन बर्बाद कर लिया है। आइये देखते है इस गीत का सारांश और इसकी व्याख्या।

देवसेना का गीत सारांश

‘देवसेना का गीत’ छायावाद के प्रमुख स्तंभ जयशंकर प्रसाद के स्कंदगुप्त नाटक से लिया गया है। देवसेना मालवा के राजा बंधुवर्मा की बहन है। हूणों के आक्रमण से आर्यावर्त संकट में है। देवसेना को छोड़कर उसका संपूर्ण परिवार वीरगति को प्राप्त हो जाता है। देवसेना स्कंदगुप्त को प्रेम करती है किन्तु स्कंदगुप्त मालवा के धनकुबेर की कन्या (विजया) का सपना देखता रहा।

जीवन के अंतिम क्षणों में स्कंदगुप्त देवसेना के पास प्रेम-निवेदन लेकर आता है किन्तु देवसेना इस अनुनय-विनय के लिए तैयार नहीं है। अब वह वृद्ध पर्णदत्त के साथ आश्रम में गाना गाकर भीख माँगती है और महादेवी की समाधि को परिष्कृत करती है। एक गीत के माध्यम से देवसेना अपने जीवन की पीड़ा को व्यक्त करती है तथा कहती है कि मैंने इस प्रेम के कारण अपने जीवन को बर्बाद कर लिया। यहाँ तक की मैंने प्यार की भावनाओं के कारण अपने मान-सम्मान को भी नष्ट कर दिया। वह अपने यौवन के क्रियाकलापों को याद कर रही है तथा उसकी आँखों से आँसू छलक रहें हैं।

देवसेना का गीत व्याख्या

आह ! वेदना मिली विदाई !
मैंने भ्रम-वश जीवन संचित,
मधुकरियों की भीख लुटाई।

प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ देवसेना का गीत (स्कंदगुप्त नाटक का अंश) से अवतरित हैं। इसके रचियता छायावाद के प्रमुख कवि जयशंकर प्रसाद जी हैं। देवसेना अपने जीवन के अंतिम दिनों में एक गीत के माध्यम से अपनी वेदना को प्रकट करती है तथा अपनी प्रेम की अभिलाषा पर अफ़सोस जाहिर करती है।

व्याख्या :- देवसेना जीवन भर स्कंदगुप्त से प्रेम करती रही, किन्तु स्कंदगुप्त मालवा की कन्या (विजया) का सपना देखता रहा। अब जीवन के आखरी दिनों में स्कंदगुप्त उससे विवाह करना चाहता है। परन्तु अब देवसेना ने अपने मन की इन प्रेम-भरी भावनाओं को दबा दिया हैं तथा उनसे विदा ले ली हैं। उसने अपना पूरा जीवन इस भ्रम में निकाल दिया कि कभी तो स्कंदगुप्त उसके प्रेम को समझेगा। किन्तु अब उसने अपनी प्रेम-रूपी इस अभिलाषा की भीख को लौटा दिया है।

छलछल थे संध्या के श्रमकण,
आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण। 
मेरी यात्रा पर लेती थी –
नीरवता अनंत अँगड़ाई।

व्याख्या :- अब देवसेना के जीवन की शाम आ गयी है अर्थात बुढ़ापा आ गया है। उसका पूरा जीवन दुःखों से भरा है, अब वह इन दुःखों से लड़ती-लड़ती थक गयी है। देवसेना का सम्पूर्ण जीवन संघर्ष करते-करते बीत गया, किन्तु उसे आसुओं के अलावा कुछ नहीं मिला। उसे अपने जीवन की सम्पूर्ण यात्रा में एकेलापन ही सहन करना पड़ा।

श्रमित स्वप्न की मधुमाया में,
गहन-विपिन की तरु-छाया में,
पथिक उनींदी श्रुति में किसने-
यह विहाग की तान उठाई।

व्याख्या :- अब जब देवसेना ने स्कंदगुप्त के प्रेम के सपने देखना बंद कर दिए तब वह आकर उससे प्रेम का निवेदन कर रहा है। वह देवसेना को पाना चाहता है, किन्तु इस समय स्कंदगुप्त का निवेदन देवसेना को ऐसा लगता है कि जैसे कोई मुसाफ़िर थककर पेड़ की छाया में विश्राम कर रहा है और उसे नींद से भरी दशा में कोई गीत सुनाई पड़ जाएँ। अब देवसेना पूर्ण रूप से थक गयी है तथा उसे इस अवस्था में कोई भी संगीत या प्रेम-निवेदन सुख नहीं पहुँचा सकता।

Devsena Ka Geet Vyakhya

लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी,
रही बचाए फिरती कबकी। 
मेरी आशा आह ! बावली,
तूने खो दी सकल कमाई। 

व्याख्या :- देवसेना अपनी जवानी की अवस्था में स्वयं को हमेशा लोगों की प्यासी नजरों से बचाये रखती थी क्योकिं उसे लगता था कि कभी तो स्कंदगुप्त उसके प्रेम को समझेगा। इसी प्रेम की आशा के चलते उसने अपने जीवन की सारी पूंजी खो दी तथा उसका सम्पूर्ण जीवन दुःखों में व्यतीत हुआ।

चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर,
प्रलय चल रहा अपने पथ पर। 
मैनें निज दुर्बल पद-बल पर,
उससे हारी-होड़ लगाई। 

व्याख्या :- देवसेना के जीवन-रूपी रथ पर प्रलय चला आ रहा है।  वह जानती है कि उसके पद कमज़ोर है और वह हार जाएगी किन्तु फिर भी वह संघर्ष कर रही है। उसका जीवन दुःखों से भरा हुआ है किन्तु फिर भी वह लड़ रही है। देवसेना शरीरिक एवं आत्मिक रूप से क्षीण हो चुकी है किन्तु फिर भी उसने हार नहीं मानी है।

लौटा लो यह अपनी थाती 
मेरी करुणा हा-हा खाती 
विश्व ! न संभलेगी यह मुझसे 
इससे मन की लाज गवाई। 

व्याख्या :- देवसेना स्कंदगुप्त से कहती है कि तुम अपनी इस प्रेम रूपी धरोहर को अपने पास ही रख लो क्योंकि अब वह इसे संभाल पाने में सक्षम नहीं है। मेरी करुणा ने मुझे बहुत कमज़ोर बना दिया है, इसी प्रेम के कारण मैंने अपने मान-सम्मान को भी खत्म कर दिया है। इसलिए वह प्रेम-रूपी करुणा से अब दूर रहना चाहती है।

विशेष :- इस कविता में देवसेना की आंतिरक वेदना को दिखाया गया है। उसकी मन की स्थति का यथार्थ वर्णन हुआ है। काव्य में शुद्ध-साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है जिसमे तत्सम शब्दों की प्रधानता है। उपमा, रूपक, अनुप्रास, मानवीकरण आदि अलंकारों का सुन्दर प्रयोग किया गया है। कविता में लयात्मकता विद्यमान है। छायावादी कविता होने के कारण इसमें गौण रूप भी देखा जा सकता है।

देवसेना का गीत प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1. “मैने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई” – पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-  “मैने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई” इस पंक्ति से कवि का आशय है कि जीवन में देवसेना ने यह सोचा था कि वह स्कंदगुप्त को पा लेगी।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ उसने बस जीवन भर सिर्फ उनकी यादें जोड़ी है। उनको पाने की लालसा में पूरा जीवन निकाल दिया पर अब उसने अपने आप को देश सेवा के लिए समर्पित कर दिया है। अब उसके मन से प्रेम की भावना खत्म हो गई है।

प्रश्न 2. “मैने निज दुर्बल पद – बल पर,उससे हारी – होड़ लगाई” इन पंक्तियों में दुर्बल पद बल और ‘ हारी होड़ ‘ में निहित व्यंजना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- देवसेना को आजीवन विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा जब उसके परिवार पर आक्रमण हुआ तो उसके भाई समेत पूरा परिवार वीर गाती को प्राप्त हुआ तब वह अकेली पड़ गई उसका कोई सहारा नहीं था तो उसके आगे मात्र एक ही रास्ता था कि वो देश सेवा को अपना ले क्यों कि स्कंदगुप्त भी उसे ठुकरा चुके थे। इसलिए वह अपनी विपरीत परिस्थितियों के साथ जीने लगी और परिस्थितियों इतनी प्रबल थी को वह उनके आगे हार गई उसने परिस्थितियों से लड़ने की लिए जो होड़ लगाए यहां उसकी बात की गई है अर्थात परिस्थितियों से उसने मुकाबला किया लेकिन वो जीत नहीं पाई।

प्रश्न 3. कवि ने आशा को बावली क्यों कहा है?
उत्तर- कवि ने आशा को बावली इसलिए कहा है जब जीवन के अंतिम क्षण में स्कंदगुप्त देवसेना से आकर प्रेम का इज़हार करता है तब देवसेना सोचती है कि जीवन में जब उसे स्कंदगुप्त की जरूरत थी उस समय तो उसने स्कंदगुप्त ने निवेदन अस्वीकार कर दिया पर अब जब वो अपना जीवन देश प्रेम में लगा चुकी है। अब स्कंदगुप्त वापिस आ रहे है वह इस समय अपनी आशा को बावली कहकर उन्हें चुप करती है कि आशा तुम क्यों पागल हुई जा रही हो मैं अपना कर्तव्य नहीं छोड़ सकती, अगर मैने ऐसा किया तो मेरा अब तक की त्याग और तपस्या भंग हो जाएगी उसका प्रण उसकी निष्ठा उसके लिए सबसे ऊपर है।

प्रश्न 4. देवसेना की हार या निराशा के क्या कारण हैं?
उत्तर- देवसेना महाराजा बंदू वर्मा की बहन है। उसका सारा परिवार वीरगती को प्राप्त होता है। वह अपने शादी के सपने को साकार करने के लिए स्कंदगुप्त के शरण में जाती है पर वो धन कुबेर की कन्या विजया से प्राप्त करता है और वह देवसेना के प्रेम को अस्वीकार कर देते है। देवसेना का जीवन संकटों से भरा है किन्तु वह जीवन की विपरीत परिस्थितियों में जीती तो है तथा उनसे होड़ भी लगाती है। किन्तु वह हार जाती है क्योंकि विपरीत परिस्थितियां इतनी प्रबल है कि उसके जीवन में निराशा व्याप्त हो जाती है।

प्रश्न 5. काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

श्रमित स्वप्न की मधुमाया में,
गहन-विपिन की तरु-छाया में,
पथिक उनींदी श्रुति में किसने-
यह विहाग की तान उठाई।

भाव सौंदर्य :- इन पंक्तियों में भाव यह है कि जैसे कोई मुसाफ़िर थककर पेड़ की छाया में विश्राम कर रहा है और उसे नींद से भरी दशा में कोई गीत सुनाई पड़ जाएँ। अब देवसेना पूर्ण रूप से थक गयी है तथा उसे इस अवस्था में कोई भी संगीत या प्रेम-निवेदन सुख नहीं पहुँचा सकता।

शिल्प सौंदर्य :- 1. सरल, सहज, शुद्ध खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
2. तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।
3. पंक्तियों में लयात्मकता एवं संगीतात्मकता है।
4. करुण एवं श्रृंगार के वियोग रस का प्रयोग हुआ है।
5. काव्य में मधुर गुण विद्यमान है।

Devsena Ka Geet Poem PDF File

Devsena Ka Geet FAQ:-

प्रश्न 1. देवसेना का गीत के लेखक कौन है ?
उत्तर- जयशंकर प्रसाद

प्रश्न 2. देवसेना किसकी बेटी थी ?
उत्तर- देवसेना को अक्सर इंद्र की बेटी, देवताओं के राजा के रूप में वर्णित किया जाता है। वह इंद्र के द्वारा कार्तिकेय के साथ विवाह कर लेते है।

प्रश्न 3. देवसेना के भाई का नाम क्या है ?
उत्तर- देवसेना के भाई का नाम बाहुबली है।

प्रश्न 4. देवसेना कहाँ की राजकुमारी थी?
उत्तर- देवसेना मालवा की राजकुमारी थी।

प्रश्न 5. देवसेना किससे प्रेम करती थी ?
उत्तर- देवसेना सम्राट स्कंदगुप्त से प्रेम करती थी।

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