झांसी की रानी कविता सारांश
झांसी की रानी कविता हिंदी की महान कवयित्री श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध कविताओं में से एक है। इस कविता के मुख्य केंद्र में झांसी की रानी है, जिस प्रकार से रानी लक्ष्मीबाई ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अपने अदम्य साहस का पुरजोर प्रदर्शन किया था उसका उल्लेख हम इस कविता में देख सकते हैं। हिंदुस्तान को आजाद कराने की पहली कोशिश में लक्ष्मीबाई ने अपने अद्भुत पराक्रम एवं कौशल का नमूना पेश करके सबको हैरान कर दिया था। रानी लक्ष्मीबाई के पराक्रम के सामने अंग्रेजों को अपना मस्तक नीचे झुकाना पड़ा था।
झांसी की रानी में यह प्रतिभा कौशल उनके बचपन से ही देखा जा सकता है जहां दूसरी लड़कियां घरेलू कामकाज और गुड्डे-गुड़ियों के खेल में अपना समय व्यतीत करती थी वहीँ यह महान विभूति तलवारबाजी के साथ अपना समय बिताया करती थी। अत्यधिक मेहनत एवं कौशल के परिणाम स्वरूप लक्ष्मीबाई को युद्ध क्षेत्र में काफी अनुभव प्राप्त हो गया था तथा उसका नमूना हम 1857 की क्रांति में देख सकते हैं।
इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे और गुरु का नाम तात्या टोपे था। बचपन में लक्ष्मीबाई को मनु या मणिकर्णिका के नाम से भी जाना जाता था। शादी के पश्चात इनके पति गंगाधर राव नेवालकर द्वारा इन्हें लक्ष्मीबाई के रूप में नामांकित किया गया। इनके पति की अकाल मृत्यु के पश्चात अंग्रेजों ने इनके गोद लिए हुए पुत्र को राजा मानने से इनकार कर दिया तत्पश्चात झांसी रियासत और अंग्रेजों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। झांसी के रियासत एवं देश को अंग्रेजों से बचाने के लिए लक्ष्मीबाई ने अपने अंतिम समय तक अंग्रेजों से पुरजोर संघर्ष किया।
झांसी की रानी सप्रसंग व्याख्या
1. सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,
चमक उठी सन सत्तावन में
वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसीवाली रानी थी ॥
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश कक्षा छठी की पाठ्यपुस्तक ‘वसंत‘ भाग 1 में संकलित ‘झांसी की रानी‘ नामक कविता से लिया गया है। इस कविता की कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान हैं। इस पद्य में हम भारतवासियों के उस आक्रोश को देख सकते हैं जो 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ था। सभी भारतवासी हिन्दुस्तान को इस पराधीनता से मुक्त करवाना चाहते थें तथा इस क्रांति के प्रमुख नेतृत्व में झाँसी की रानी का स्थान शीर्षस्थ रूप में देखा जा सकता है।
सरलार्थ – भारतवर्ष की आज़ादी की पहली लड़ाई जब प्रारंभ हुई, तो देश के राजाओं में भी कुछ हलचल हुई। उनके सिंहासन हिल गए। राजाओं के समूह अंग्रेजों पर क्रुद्ध हो गए। गुलामी के कारण जर्जर बुढ़े भारत में नया जोश पैदा हो गया था। देश के सभी लोग अपनी खोई हुई आज़ादी का मूल्य समझने लगे थे। वे समझ गए थे कि स्वतन्त्रता अमूल्य है।
इसलिए उन्होंने अंग्रेज शासकों को भारत से भगाने का निश्चय कर लिया था। भारतवर्ष के राजाओं की पुरानी तलवारे सन् 1857 में चमक उठीं अर्थात युद्ध में भाग न लेने के कारण राजाओं की तलवारों में जंग लग चुका था जोकि 1857 में पुनः चमक गई। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई उस युद्ध में वीर पुरुषों की भाँति लड़ी थी। रानी की वीरता की यह कहानी हमने (कवयित्री ने बुंदेलखंड के हरबोलों से सुनी थी।
विशेष – 1. अंग्रेजों के खिलाफ भारतवासियों के आक्रोश का वर्णन किया गया है।
2. वीर रस का आविर्भाव हुआ है।
3. काव्य में तुकबंदी प्रयाप्त रूप से देखी जा सकती है।
4. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
भावार्थ – भाव यह है कि अंग्रेजों की गुलामी सहते-सहते भारत के लोग तंग आ चुके थे। राजाओं ने सन् 1857 में रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर अंग्रेजों को देश से भगाने का निश्चय कर लिया। इस क्रांति में सम्पूर्ण भारत के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। हालाँकि इस क्रांति से हम 1857 में आजाद तो नहीं हुए लेकिन इस महासंग्राम से अंग्रेजों की नींव हिलाने का कार्य अवश्य किया था।
2. कानपुर के नाना की मुँहबोली बहन ‘छबीली’ थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी,
बरछी, दाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी,
वीर शिवाजी की गाथाएं
उसको याद जबानी थीं।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसीवाली रानी वी ॥
सरलार्थ – लक्ष्मीबाई कानपुर के नाना साहब की मुँहबोली बहन थी। सुंदर एवं चंचल होने के कारण बचपन में उसका नाम छबोली रखा गया था। वह अपने पिता की एकमात्र संतान थी। बचपन से ही लक्ष्मीबाई नाना साहब के साथ पढ़ती थी और उन्हीं के साथ खेलती थी। वह हथियारों से ही प्रेम करती थी, इसलिए चरछी, कटार, दाल को वह अपनी सहेली मानती थी। बचपन में ही लक्ष्मीबाई को छत्रपति वीर शिवाजी की वीरता की कहानियाँ जबानी याद थीं। कवयित्री कहती है कि हमने बुंदेलखंड के हरबोलों के मुँह से सुना है कि रानी लक्ष्मीबाई वीर पुरुषों की भाँति बहादुरी से लड़ी थी।
भावार्थ – भाव यह है कि लक्ष्मीबाई अपने पिता की अकेली सन्तान थी, जिसे बरछी, ढाल, कटार आदि हथियार प्रिय लगते थे। वह वीरों की कहानियाँ जबानी याद कर लेती थी।
3. लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार ,
नकली युद्ध, व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवार,
महाराष्ट्र- कुल देवी उसकी
भी आराध्य भवानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसीवाली रानी वी ॥
सरलार्थ – लक्ष्मीबाई साक्षात वीरता की अवतार थी। ऐसा लगता था कि या तो वह लक्ष्मी है या दुर्गा लक्ष्मीबाई के तलवारों के प्रहार देखकर मराठे वीर अत्यधिक प्रसन्न होते थे। नकती युद्ध करना, समूह बनाकर शत्रु की सेना को र शत्रु के किले तोड़ना और शिकार खेलना उसके प्रिय खेल थे महाराष्ट्र की कुल देवी भवानी ही लक्ष्मीबाई की पूज्य देव थी। हमने उसकी कहानी बुंदेलखंड के हरबोलों से सुनी है कि वह लक्ष्मीबाई वीर पुरुषों के समान खूब लड़ी।
भावार्थ – कहने का भाव यह है कि लक्ष्मीबाई की वीरता को देखकर मराठे प्रसन्न होते थे। यह वीरतापूर्ण कार्यों में ही रुचि रखती थी।
4. हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुभट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आई झाँसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया,
शिव से मिली भवानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसीवाली रानी थी ॥
सरलार्थ – वीरता की साक्षात मूर्ति लक्ष्मीबाई की धन-संपत्ति से भरी झाँसी में सगाई हुई। उनका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ और वे झाँसी में रानी बनकर आई। उनके विवाह के अवसर पर झाँसी के राजमहल में बधाइयाँ बज और खुशियाँ छा गईं। बुंदेलखंड के वीरों की यशोगाथा के समान रानी झाँसी आई गंगाधर राव का रानी के साथ मिलन उसी प्रकार प्रतीत हो रहा था, जिस प्रकार चित्रा को अर्जुन मिले हुए थे तथा शिव को भवानी पार्वती मिली हुई थी। कवयित्री कहती है कि हमने बुंदेलखंड के वीरों के मुँह से यह कहानी सुनी है कि रानी लक्ष्मीबाई वीर पुरुषों के समान खूब वीरता से लड़ी थी।
भावार्थ – इसका भाव यह है कि लक्ष्मीबाई का विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ धूमधाम से हुआ।
5. उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजयाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलानेवाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई हाय! विधि को भी नहीं दया आई,
निःसन्तान मरे राजा जी,
रानी शोक-समानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसीवाली रानी थी ॥
सरलार्थ – रानी लक्ष्मीबाई के झाँसी में आने पर राजमहल का सौभाग्य जाग गया। राजमहल में हर तरफ प्रसन्नता का प्रकाश छा गया। किंतु समय की गति से महल की खुशियाँ देखी नहीं गई। समय के साथ धीरे-धीरे मुसीबतों के बादल घिर आए। बाण चलाने वाले हाथों में चूड़ियाँ कब अच्छी लगती हैं। वस्तुतः इसी नियम के कारण तीर चलाने वाली रानी के हाथों में चूड़ियाँ अच्छी नहीं लगीं। हाय! रानी लक्ष्मीबाई विधवा हो गई। अत्यन्त दुःख की बात है कि विधाता को भी उन पर दया नहीं आई। राजा गंगाधर बिना संतान के ही मर गए। राजा की मृत्यु के कारण रानी शोक-सागर में डूब गई। कवयित्री कहती है कि हमने बुंदेलखंड के हरबोलों के मुँह से रानी लक्ष्मीबाई की पुरुषों के समान लड़ाई की कहानी को सुना है।
भावार्थ – कहने का भाव यह है कि रानी के महल में आने से हर तरफ खुशियों मनाई जा रही थीं। परंतु असमय राजा गंगाधर की मृत्यु के कारण रानी शोक-सागर में डूब गई।
6. बुझा दीप झाँसी का तब डलहोजी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झांसी आया,
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा
झाँसी हुई बिरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसीवाली रानी वी ॥
सरलार्थ – जब झाँसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई, तब अंग्रेज शासक डलहोजी मन-ही-मन बहुत अधिक प्रसन्न हुआ। उसने अनुभव किया कि झाँसी को हड़प कर अंग्रेजी राज में मिलाने का यही अच्छा अवसर है। उसने तुरंत अपनी फौजें भेजकर झाँसी के किले पर अपना झंडा फहरा दिया। अंग्रेज शासक लावारिस झांसी के उत्तराधिकारी बनकर बैठ गए। रानी ने आँसुओं भरी आँखों से देखा कि अब झाँसी सुनसान पड़ी है और उजड़ रही है। हमने यह कहानी बुंदेलखंड के हरबोलों से सुनी है कि रानी पुरुषों के समान लड़ी थी।
भावार्थ – इसका भाव यह है कि झाँसी को लावारिस समझकर लॉर्ड डलहौजी ने झाँसी पर अपना अधिकार कर लिया। झाँसी की इस बरवादी को रानी ने रोते हुए देखा।
झांसी की रानी कविता का भावार्थ
7. अनुनय-विनय नहीं सुनता है, विकट फिरंगी की माया,
व्यापारी बन दया पाहता या जब यह भारत आया,
डलहौजी ने पैर पसारे अब तो पलट गई काया,
राजाओं नवाबों को भी उसने पैरों ठुकराया,
रानी दासी बनी, बनी यह
दासी अब महारानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसीवाली रानी थी ॥
सरलार्थ – झाँसी पर अधिकार न करने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने लॉर्ड डलहौजी से अनेक तरह से निवेदन (प्रार्थना) किया। परंतु सब बेकार गया। यह अंग्रेजों की चाल ही थी कि जो भारत में व्यापार करने की दया (भीख माँग रहे थे अर्थात भारत के राजाओं से व्यापार करने की प्रार्थना कर रहे थे। वही अंग्रेज आज डलहोजी के नेतृत्व में धीरे-धीरे अपने शासन का विस्तार कर रहे थे। अब तो सारी परिस्थितियाँ ही उनके अनुकूल हो गई। जिन राजाओं और नवाबों से अंग्रेज़ दया की भीख माँग रहे थे, आज उन्हीं को पैरों से ठुकरा रहे हैं। भारत आने पर जो अंग्रेज़ व्यापारी यहाँ की रानी लक्ष्मीबाई जैसी महारानियों, राजाओं एवं शासकों का हुक्म मानते थे, आज वही अंग्रेज यहाँ के शासक बन बैठे हैं। महारानी लक्ष्मीबाई जैसे शासक आज उनके सेवक, सेविकाएँ हैं। कवयित्री कहती है कि यह कहानी हमने बुंदेलखंड के हरबोलों से सुनी थी कि झांसी की रानी वीर पुरुषों की भाँति युद्ध में लड़ी थी।
भावार्थ – भाव यह है कि जो अंग्रेज भारत के राजाओं से व्यापार करने की प्रार्थना लिए यहाँ आए थे, आज वही यहाँ के राजा बन गए हैं तथा उन्होंने यहाँ के राजाओं को अपना गुलाम बना लिया है।
8. छिनी राजधानी देहली की, लिया लखनऊ बातों-बात,
कैद पेशवा था बिटूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजोर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात,
जबकि सिंघ, पंजाब, ब्रह्म पर अभी हुआ था वज़्र-निपात,
बंगाले, मद्रास आदि की
भी तो यही कहानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसीवाली रानी थी ॥
सरलार्थ – अंग्रेजों ने भारत की राजधानी दिल्ली को छीन लिया और उस पर अपना अधिकार कर लिया। उन्होंने लखनऊ को बड़ी आसानी से जीत लिया। बिठूर के पेशवा बाजीराव को जेल में बंद कर दिया तथा नागपुर पर आक्रमण कर दिया। अंग्रेजों की सेनाओं के सामने उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक आदि के राजाओं की क्या ताकत थी अर्थात इन सभी प्रांतों पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया। उधर सिंघ, पंजाब और म्यांमार (बर्मा) आदि प्रांतों का भी पतन हो गया। ऐसी ही कहानी बंगाल, मद्रास आदि राज्यों की भी थी अर्थात ये सभी राज्य अंग्रेजों द्वारा जीते जा चुके थे। कवयित्री कहती हैं कि हमने बुंदेलखंड के हरबोलों के मुँह से सुना है कि झांसी की रानी पुरुषों से भी अधिक वीरता से सड़ी थी।
भावार्थ – इसका भाव यह है कि अंग्रेज़ों ने भारत के लगभग सभी राज्यों पर अपना अधिकार जमा लिया।
9.रानी रोई रनिवासों में, बेगम गम से थीं बेज़ार,
उनके गहने-कपड़े बिकते वे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे-आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
‘नागपुर के ज़ेवर से लो’ ‘लखनऊ के लो नीलख हार,
यों परदे की इज्जत पर-
देशी के हाथ विकानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसीवाली रानी थी ॥
सरलार्थ – अंग्रेजों द्वारा झाँसी पर कब्जा कर लेने के कारण रानी अपने रनिवास में दुःखी थी। नवाबों की पत्नियाँ दुःख से परेशान थीं क्योंकि उनके बहुमूल्य कपड़े और गहने कलकत्ता के बाजारों में सरेआम सबके सामने बिक रहे थे। अंग्रेज़ अखबारों में बोली लगाकर गहनों के बेचने की खबरें सबके बीच पहुंचा रहे थे। नागपुर के जेवर, गहने’, लखनऊ के ‘बहुमूल्य हार’ आदि की नीलामी हो रही थी। जो गहने रानियों तथा बेगमों की शोभा थे, परदे की इज्ज़त थे, वे दूसरों के हाथों से (अंग्रेजों द्वारा) विक रहे थे। यह कहानी हमने बुंदेलखंड के हरबोलों से सुनी है कि झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई युद्ध में पुरुषों के समान लड़ी थी।
भावार्थ – इसका भाव यह है कि अंग्रेज रानियाँ तथा बेगमों के गहनों को लूटकर सरेआम बाजारों में बेच रहे थे। आभूषण महलों में रहने वाली रानियों एवं बेगमों को प्राप्त होते थे, परंतु आज वे ही सरेआम बाजारों में बिक रहे थे।
10. कुटियों में यी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था, अपने पुरखों का अभिमान,
नाना पुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चंडी का कर दिया प्रकट आह्नान,
हुआ यज्ञ प्रारंभ उन्हें तो
सोई ज्योति जगानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसीवाली रानी थी ॥
सरलार्थ – अंग्रेजों के शासन काल में एक ओर गरीब जनता जहाँ कठिन मुसीबतों में दिन बिता रही थी, वहीं दूसरी ओर महलों की इज्जत धूल में मिल रही थी। वीर सैनिक अंग्रेजों के सामने कमजोर भले ही थे, पर उनके मन में अपने पूर्वजों का गर्व कूट-कूट कर भरा था। नाना धूपंत और पेशवा अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए आवश्यक सामार जुटा रहे थे। इधर चंचल स्वभाव वाली लक्ष्मीबाई महल तथा राज्य की स्त्रियों में देवी दुर्गा के राम-चांडी रूप को जगा रही थी अर्थात स्त्रियों को युद्ध का प्रशिक्षण देकर अपनी सेना में शामिल कर रही थी। देवी दुर्गा के आह्वान के लिए यज्ञ प्रारंभ हुआ।प्रारंभ हुए यज्ञ के माध्यम से देशवासियों में अपनी खोई हुई स्वतंत्रता को पुनः याद दिलाने की ज्योति जगानी थी। यह कहानी हमने बुंदेलखंड के हरबोलों के मुँह से सुनी थी कि झाँसी वाली रानी अंग्रेजों के विरुद्ध पुरुषों के समान लड़ी थी।
भावार्थ – कहने का भाव यह है कि अंग्रेजी शासन के प्रति बगावत की चिंगारी फैलने लगी थी।
11. महलों ने दी आग, झोपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थीं,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर में भी
कुछ हलचल उकसानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसीवाली रानी थी ॥
सरलार्थ – महलों में रहने वाले राजाओं ने आजादी रूपी आग को जलाया जिसकी लपटों को गरीब तथा निर्धन लोगों ने सुलगाने का कार्य किया। इस प्रकार स्वतंत्रता प्राप्ति की चिंगारी भारतीय जनमानस के हृदय की भावना थी। दूसरे शब्दों में, आजादी प्राप्ति का जुनून, जोश देशवासियों के हृदय से निकल रहा था। झांसी और दिल्ली जाग चुकी थी तो लखनऊ में यह जोश आग की लपटों के समान फैल रहा था। मेरठ, पटना और कानपुर में आज़ादी प्राप्त करने की बात सबके दिलों में थी। जबलपुर और कोल्हापुर के लोगों में यह बात भरनी थी अर्थात् उनको प्रेरित करना था। यह कहानी हमने हरबोलों के मुँह से सुनी थी कि झाँसी वाली रानी अंग्रेजों के खिलाफ पुरुषों के समान लड़ी थी।
भावार्थ – भाव यह है कि अंग्रेजों से देश को आजाद कराने का जुनून प्रत्येक भारतवासी के हृदय से निकल रहा था।
12. इस स्वतंत्रता-महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधुपन्त, ताँतिया, चतुर अजीमुल्ला सरनाम,
अहमद शाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास-गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम,
लेकिन आज जुर्म कहलाती,
उनकी जो कुरबानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसीवाली रानी वी ॥
सरलार्थ – देश के आजादी रूपी इस महायज्ञ में श्रेष्ठ वीरों को अपनी कुर्बानी देनी पड़ी। उनमें नाना धुंधुपन्त, ताँतिया, अजीमुल्ला, अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवर सिंह जैसे वीर सैनिक थे। भारतवर्ष की सवतंत्रता के इतिहास में आकाश में इनका नाम सूरज चाँद की तरह हमेशा अमर रहेगा। अंग्रेज उनकी कुर्बानी, त्याग और बलिदान को जुर्म कहते थे। यह कहानी हमने हरबोलों के मुँह से सुनी थी कि झाँसी वाली रानी ने अंग्रेजों से पुरुषों की भाँति लड़ाई लड़ी।
भावार्थ – इसका भाव यह है कि देश को आजाद कराने में नाना, ताँतिया आदि ने अपनी कुर्बानी दी थी जिसको अंग्रेज लोग अपराध की संज्ञा देते थे।
झांसी की रानी कविता कक्षा 6
13. इनकी गाथा छोड़ चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेन्ट वॉकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद्व असमानों में,
जख्मी होकर वॉकर भागा,
उसे अजब हैरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसीवाली रानी थी ॥
सरलार्थ – हम भारतवासी उन राज्यों की बात छोड़ दें जिन्होंने अंग्रेजों के सामने घुटने टेक दिए। आओ अब झांसी के मैदानों में चलें, जहाँ लक्ष्मीबाई पुरुष योद्धाओं के बीच पुरुष बनकर खड़ी है अर्थात् पुरुषों से बढ़कर वीर योद्धा के रूप में है। जब लेफ्टिनेन्ट वॉकर अपने सैनिकों को लेकर सी के युद्ध के मैदान में जा पहुँचा तो रानी ने उससे युद्ध करने के लिए अपनी तलवार खींच ली। उसके बाद असमान योद्धाओं के बीच मासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में लेफ्टिनेंट वॉकर पाय होकर भागा यह रानी की वीरता को देखकर आशार्य में था की की धीरता की कहानी हमने बुंदेलखंड के हरबोलों से सुनी थी कि यह योद्धा की भाँति लड़ी थी।
भावार्थ – भाव यह है कि रानी की वीरता को देखकर लेफ्टिनेंट वॉकर आश्चर्य में पड़ गया।
14. रानी बड़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थककर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार,
अंग्रेज़ों के मित्र सिंघिया
ने छोड़ी राजधानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसीवाली रानी थी ॥
सरलार्थ – वॉकर को पराजित करके रानी लक्ष्मीबाई सौ मील का सफर तय करके कालपी आ पहुँची। वहाँ पर उनका घोड़ा वककर धरती पर गिर पड़ा और तुरंत मर गया। उधर यमुना के तट पर अंग्रेज रानी के हाथों पराजित हो गए। रानी विजयी होकर आगे बढ़ी और ग्वालियर को भी जीत लिया। ग्वालियर के राजा सिंधिया अंग्रेजों के दोस्त थे। उन्होंने रानी की वीरता से डरकर अपनी राजधानी छोड़ दी तथा भाग खड़े हुए। कवयित्री कहती है कि हमने बुंदेलखंड के हरबोलों से रानी लक्ष्मीबाई की वीरता के विषय में सुना था कि ये पुरुषों के समान लड़ी थी।
भावार्थ – इन पंक्तियों का भाव यह है कि रानी का घोड़ा कालपी में मर गया, फिर भी रानी ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंनेअंग्रेजों को हराकर ग्वालियर पर अपना अधिकार कर लिया।
15. विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिय सन्मुख था, उसने मुँह की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी,
मुँह खूब लड़ी मर्दानी वह तो
पर, पीछे ह्यूरोज़ आ गया,
हाय ! घिरी अब रानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसीवाली रानी थी ॥
सरलार्थ – रानी की विजय तो अवश्य हुई, परंतु दोबारा अंग्रेजों की सेना रानी को घेरती हुई आ पहुँची। इस बार सामने से आ रही टुकड़ी का नेतृत्व जनरल स्मिथ कर रहा था। वह एक बार रानी से हार चुका था। उधर रानी के साथ उसकी दो सहेलियाँ करना और मंदरा भी आई थीं। उन दोनों वीरांगनाओं ने युद्ध के मैदान में भारी मार-काट मचाई। परंतु दूसरी तरफ से जनरल ह्यूरोज अपनी सेना लेकर आ पहुँचा। हाय रानी लक्ष्मीबाई, स्मिथ और ह्यूरोज के बीच घिर गई। पवित्री कहती है कि हमने हरबोलों के मुँह से सुना है कि युद्ध के मैदान में रानी लक्ष्मीबाई पुरुषों के समान लड़ी थी।
भावार्थ – इसका भाव यह है कि रानी की वीरता से अंग्रेज तिलमिला उठे। उनको पराजित करने के लिए स्मिथ तथा यूरोज दोनों ने अपनी सेनाओं सहित एक-साथ उन पर आक्रमण किया।
16. तो भी रानी मार-काटकर चलती बनी सैन्य के पार,
किंतु सामने नाला आया, या यह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गए सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे होने लगे वार पर वार,
घायल होकर गिरी सिंहनी
उसे वीर-गति पानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसीवाली रानी थी ॥
सरलार्थ – यद्यपि रानी लक्ष्मीबाई ह्यूरोज तथा स्मिथ की सेनाओं से घिर गई थी, फिर भी वह अपने सामने की सेना को चीरती हुई मार-काट मचाकर सेना के पार पहुँच गई। किंतु सामने एक नाला आ गया रानी का घोड़ा नया था, इसलिए नाले को पार करने में वह अड़ गया। इतने में रानी का पीछा करते हुए अंग्रेज सैनिक आ गए और दोनों ओर से वार-पर-वार होते चले गए। शेरनी-सी रानी घायल होकर गिर गई, जिससे उन्हें वीरगति प्राप्त हुई। कवयित्री कहती है कि हमने बुंदेलखंड के हरबोलों से सुना है कि रानी लक्ष्मीबाई वीर पुरुषों के समान लड़ी थी।
भावार्थ – इसका भाव यह है कि घोड़े के अड़ जाने के कारण ही रानी को वीरगति प्राप्त हुई।
17. रानी गई सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको
जो सीख सिखानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसीवाली रानी थी ॥
सरलार्थ – रानी का स्वर्गवास हो गया, वह वीरगति को प्राप्त हो गई। अब उनके शरीर के लिए चिता सजाना ही उनकी दिव्य सवारी थी अर्थात उन्हें चिता पर लिटा दिया गया। तेजस्विनी रानी का तेज आग के तेज से मिल गया क्योिं यह तेज की सच्ची अधिकारी थी अर्थात रानी की चिता को आग लगा दी गई। रानी की आयु केवल 25 वर्ष की थी और 23 वर्षों में उन्होंने जिस वीरता को दिखाया, उससे लगता है कि वह मनुष्य नहीं, कोई अवतारी थीं। वह स्वतंत्रता है। देवी बनकर हमें जीवित करने आई थीं। वह हमें बलिदान का मार्ग दिखा गई और हमें स्वतंत्रता प्राप्ति की सीख देकर ची गईं। कवयित्री कहती है कि बुंदेलखंड के हरबोलों के मुँह से हमने यह कहानी सुनी है कि वह पुरुषों जैसी रानी बड़ी वीरता के साथ लड़ी।
भावार्थ – भाव यह है कि रानी लक्ष्मीबाई एक असाधारण महिला थीं, जो अपने बलिदान से देशवासियों को देश के लिए मर-मिटने की शिक्षा दे गई।
18. जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी,
तेरा स्मारक तू ही होगी,
तू खुद अमिट निशानी थी ।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसीवाली रानी थी ॥
सरलार्थ – अंत में कवयित्री ने कहा है कि हे रानी! आप स्वर्ग जाइए। उपकार को याद रखने वाले हम सभी भारतवासी आपका यह बलिदान याद रखेंगे। आपका यह बलिदान कभी नष्ट न होने वाली आजादी के प्रति हमें सचेत करता रहेगा। इतिहास चाहे कुछ भी न कहे तथा सच्चाई का गला घोंट दिया जाए, अंग्रेजों द्वारा विजय प्राप्त कर ली जाए या ये झाँसी को गोली से नष्ट कर दें, परंतु भारतवासी यह बलिदान कभी नहीं भूल सकेंगे। हे रानी! अपना स्मारक आप स्वयं होंगी अर्थात भारत के लोगों को आपकी याद में स्मारक बनवाने की आवश्यकता नहीं है। आप तो स्वयं कभी न मिटने वाली निशानी हैं। कवयित्री कहती है कि यह कहानी हमने बुंदेलखंड के हरबोलों के मुँह से सुनी थी कि झाँसी की रानी युद्ध के मैदान में पुरुषों के समान अत्यंत वीरता से लड़ी थी।
भावार्थ – कहने का भाव यह है कि रानी लक्ष्मीबाई की स्वतंत्रता संग्राम में दी गई कुर्बानी को देशवासी कभी नहीं भूलेंगे। उनकी याद ही देशवासियों में देश-प्रेम की भावना जगाएगी।