विचार आते हैं / गजानन माधव मुक्तिबोध

विचार आते हैं लिखते समय नहीं बोझ ढोते वक़्त पीठ पर सिर पर उठाते समय भार परिश्रम करते समय चांद उगता है व पानी में झलमलाने लगता है हृदय के पानी में विचार आते हैं …

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लकड़ी का रावण / गजानन माधव मुक्तिबोध

दीखता त्रिकोण इस पर्वत-शिखर से अनाम, अरूप और अनाकार असीम एक कुहरा, भस्मीला अन्धकार फैला है कटे-पिटे पहाड़ी प्रसारों पर; लटकती हैं मटमैली ऊँची-ऊँची लहरें मैदानों पर सभी ओर लेकिन उस कुहरे से बहुत दूर …

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सबला / अभय मौर्य

कीकर की एक सहेली है, पास खेत में काम करती है । हो चूर थकान से दोपहर में, बैठ छाँव में साँस लेती है । कीकर को हो गया है लगाव उससे, वह भी पाती …

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झूठ के पाँव / Juth Ke Paavn / अभय मौर्य

कहते हैं झूठ के पाँव नहीं होते । पर मुहावरा पलट जाता है तब जब झूठ बोलने वाला कोई मामूली बुढ़ऊ न होकर, है जाने-माने, लंबे-तगड़े साठ-बरसिया अठारह वर्ष की चुलबुली-सी बच्ची से प्रेम लीला …

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किसान / Kisan Kaivta / अभय मौर्य

तब मैं उम्र में बहुत छोटा था, ढोर चराता और घास ढोता था । मैंने देखा था मेरे बाब्बू हल जोतकर, बैठे थे हुक्का पीने धूल-धूसरित होकर । आ धमका तभी इक मोटा लाला पिल-पिला, …

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खटर-पटर मत कर / Khatar-Patar Mat Kar / अनंतप्रसाद रामभरोसे

खटर-पटर मत कर दी चुहिया, खटर-पटर मत कर! तेरी खटर-पटर से मम्मी हो जाती है तंग, फिर भी बाज न आती हो तुम करने से हुड़दंग। क्यों शैतानी दिखलाती हो, तुम मेरे ही घर! कुटुर-कुटुर …

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बच्चा होना, कितना अच्छा / अनंतप्रसाद रामभरोसे

बच्चों के संग बच्चा होना कितना अच्छा लगता है! कभी खेल में हँसना गाना ता-ता थैया नाच दिखाना, और कभी नाराज सभी से हो जाना, फिर मुँह लटकाना। झूठ-मूठ ऊँ-ऊँ कर रोना कितना अच्छा लगता …

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दोहे-1-10 / अर्जुन कवि

अर्जुन अनपढ़ आदमी, पढ्यौ न काहू ज्ञान । मैंने तो दुनिया पढ़ी, जन-मन लिखूँ निदान ।। ना कोऊ मानव बुरौ, ब्रासत लाख बलाय। जो हिन्दू ईसा मियाँ, भेद अनेक दिखाय ।। बस्यौ आदमी में नहीं, …

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