प्रयोजनमूलक हिन्दी का अर्थ एवं इसके विभिन्न भेदों का वर्णन PDF

प्रयोजनमूलक हिन्दी का अर्थ

प्रयोजन का शाब्दिक अर्थ होता है उद्देश्य अर्थात किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रयोग की जाने वाली हिंदी को हम प्रयोजनमूलक हिन्दी कहते है। यह भाषा सामान्य हिन्दी से सर्वथा अलग प्रकार की भाषा है, इसलिए इसे हम हिन्दी भाषा न कहकर प्रयोजनमूलक हिन्दी कहते हैं।

इस भाषा का प्रयोग अनेक दृष्टियों से किया जाता है। उदारहण के लिए किसी ऑफिस कार्य, व्यावसायिक कार्य आदि के सन्दर्भ में। इन्हीं के आधार पर प्रयोजनमूलक हिन्दी का वर्गीकरण किया जाता है। नीचे के सेक्शन में आप इसको विस्तार से पढ़ सकते है। यह प्रश्न बहुधा प्रतियोगी परीक्षा में पूछा जाता है इसलिए आपको इसे अच्छे से समझ कर याद कर लेना चाहिए। 

प्रयोजनमूलक हिन्दी का वर्गीकरण

अनेक दृष्टियों को आधार बनाकर प्रयोजनमूलक हिन्दी का वर्गीकरण किया जा सकता है, जिसका विवेचन इस प्रकार है-

1. कार्यालयी हिन्दी

कार्यालयी हिन्दी से हमारा अभिप्राय उस हिन्दी भाषा से है जिसका प्रयोग विभिन्न कार्यालयों में दैनिक कामकाज के लिए किया जाता है। विद्वानों ने कार्यालयी हिन्दी के लिए ‘कार्मिकी, अनुप्रयोजनात्मक, व्यावहारिक, प्रयोजनमूलक तथा कामकाजी हिन्दी आदि शब्दों का प्रयोग किया है।

इन सभी नामों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि प्रयोजनमूलक हिन्दी से हमारा अभिप्राय उस हिन्दी भाषा से है जिसका प्रयोग दैनिक व्यवहार, वाणिज्य, व्यापार, प्रशासन, पत्राचारं विज्ञान, रसायन शास्त्र आदि क्षेत्रों में होता है। यहाँ यह जान लेना आवश्यक है कि साहित्यिक भाषा और कार्यालयी भाषा में काफी अन्तर है। साहित्यिक भाषा में भाषा के शिल्प पक्ष को सजाने-संवारने की कोशिश की जाती है, लेकिन कार्यालयी भाषा में एक निश्चित शब्दावली का ही प्रयोग है।

2. व्यावसायिक हिन्दी

बैंकों, मण्डियों तथा वाणिज्य व्यापार आदि में जिस हिन्दी भाषा का प्रयोग होता है, उसे हम व्यावसायिक हिन्दी भाषा कह सकते हैं। वाणिज्यिक प्रयोजनमूलक हिन्दी में मुद्रास्फीति, उत्पादन, पूँजी, सहकारिता आदि शब्दों का प्रयोग होता है। इसके अन्तर्गत वाणिज्यिक पत्राचार, शेयर बाजार, किरयाना बाजार, सर्राफ बाजार आदि आर्थिक शब्दावली का भी प्रयोग किया जाता है।

आज हमारे बैंकों में वाणिज्यिक हिन्दी भाषा के असंख्य शब्दों का खुलकर प्रयोग होने लगा है, जिससे हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार को विशेष बल प्राप्त हुआ है। समाचार-पत्रों के व्यापार प्रश्नों पर “सोना लुढ़का”, “चाँदी भड़की” अथवा “दालें नरम” या “गेहूँ के भाव फिसले” आदि शब्दावली के प्रयोग अवश्य मिलते हैं। विशेषकर शेयर बाजार से सम्बन्धित शब्दों का प्रयोग होता है।

3. तकनीकी हिन्दी

हिन्दी का तकनीकी प्रकार्य आज हमारे लिए असंख्य चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रहा है। विज्ञान, विधि इंजीनीयरी, चिकित्सा शास्त्र आदि विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोजनमूलक हिन्दी अपना स्थान बना चुकी है। इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग, हिन्दी टेलेक्स, इन्टरनेट, फैक्स, पेजर, टेलीप्रिंटर आदि शब्दों का खुलकर प्रयोग होने लगा है।

आवश्यकतानुसार आज नवीन पारिभाषिक शब्दों का भी प्रयोग होने लगा है। कभी-कभी आवश्यकता पड़ने पर नए शब्दों का निर्माण भी कर लिया जाता है। जिससे हिन्दी की शब्दावली में वृद्धि होने लगी है। सच्चाई तो यह है कि तकनीकी हिन्दी के विकास के कारण अन्य प्रान्तीय भाषाएँ पिछड़ती चली जा रही हैं और हिन्दी निरन्तर आगे बढ़ रही है। 1

4. जनसंचारी हिन्दी

आज जनसंचार के क्षेत्र में काफी परिवर्तन हो चुका है। आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्रकारिता, विज्ञापन आदि के क्षेत्र में प्रयोजनमूलक हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग होने लगा है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विकास में प्रयोजनमूलक हिन्दी का विशेष योगदान है। इस क्षेत्र में संक्षिप्त शब्दावली का अधिकाधिक प्रयोग होने लगा है। कई बार तो पत्रकार एक शब्द के प्रयोग द्वारा बहुत कुछ कह जाते हैं। यथा- “खुशहाल किसान, भारी वर्षा से सब गड़बड़, उत्तर प्रदेश से कांग्रेस का सफाया या भारतीय जनता पार्टी में हलचल आदि।”

5. समाजी हिन्दी

यह हिन्दी प्रायः सामाजिक कार्यक्रमों में प्रयुक्त होती है। देश के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक सम्मेलनों और सभाओं में इस प्रकार की प्रयोजनमूलक हिन्दी का प्रयोग किया जाता है। समाजी हिन्दी में हम प्रायः ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं जो सामान्य जनता की समझ में आ सकें। विशेषकर, राजनीतिक सम्मेलनों की भाषा साहित्यिक हिन्दी भाषा से सर्व अलग प्रकार की होती है। इसमें वक्ता अपने विरोधियों पर व्यंग्य करने के लिए विशिष्ट शब्दों का प्रयोग करते हैं।

इसी प्रकार धार्मिक सम्मेलनों एवं सभा की भाषा राजनीतिज्ञों की भाषा से तनिक हटकर होती है। धर्माचार्य अपने धर्म के अनुसार भाषा का प्रयोग करते हैं। इनकी भाषा में सर्वत्र धार्मिकता का पुट रहता है। पौराणिक आख्यानों का उल्लेख करते समय सन्दर्भ ग्रन्थों से सूक्तियों, श्लोकों एवं नीति कथनों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार सामाजिक कार्यक्रमों की में प्रायः सामान्य हिन्दी भाषा का ही प्रयोग किया जाता है। इसमें संस्कृत के तत्सम, तद्भव, देशज तथा अंगेजी और उर्दू के शब्दों का भी मिश्रण रहता है।

Prayojanmulak Hindi Ka Vargikaran PDF

नीचे के सभी प्रश्नों का उत्तर यही है। 

प्रयोजनमूलक हिन्दी का वर्गीकरण किन आधारों पर किया जा सकता है? प्रयोजनमूलक हिन्दी का वर्गीकरण कीजिए।  प्रयोजनमूलक हिन्दी का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके विभिन्न भेदों पर प्रकाश डालिए ।
प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रयोग के आधार पर उसके भेद उपभेदों पर प्रकाश डालिए ।

Leave a Comment