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उमाशंकर जोशी जीवन परिचय
उमाशंकर जोशी बीसवीं सदी के गुजराती काव्य के प्रमुख कवि एवं निबंधकार माने जाते हैं। इनका जन्म सन् 1911 ई० में गुजरात में हुआ था। उमाशंकर जोशी प्रतिभावान कवि और साहित्यकार थे। 1931 में प्रकाशित काव्य संकलन ‘विश्वशांती’ से उनकी ख्याति एक समर्थ कवि के रूप में हो गई थी। काव्य के अतिरिक्त उन्होंने साहित्य के अन्य अंगों, यथा कहानी, नाटक, उपन्यास, आलोचना, निबंध आदि को भी पोषित किया।
आधुनिक और गांधी युग के साहित्यकारों में उनका शीर्ष स्थान है। जोशी जी अध्यापक और संपादक रहे। वे गुजरात विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष थे। फिर वहां के वाइस चांसलर भी बने। उन्हें राज्यसभा का सदस्य नामजद किया गया था। साहित्य अकादमी का अध्यक्ष बनाया गया। 1979 में वे शांतिनिकेतन के विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त किए गए। उन्हें अनेक विश्वविद्यालयों ने डी.लिट्. की मानद उपाधियां दीं। सन् 1988 में इनका निधन हो गया था।
उमाशंकर जोशी संक्षिप्त जीवनी
नाम | उमाशंकर जोशी |
जन्म | 21 जुलाई, 1911 ई० |
जन्म स्थान | साबरकांठा ( गुजरात ) |
उपनाम | वासुकी |
पुरस्कार | साहित्य अकादमी पुरस्कार (1973) ज्ञानपीठ पुरस्कार (1987) |
प्रमुख रचनाएँ | विश्वशांति, गंगोत्री |
निधन | 19 दिसम्बर 1988 |
जीवंत आयु | 77 |
प्रमुख रचनाएँ
जोशी जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार माने जाते हैं। वे गुजराती कविता के प्रमुख कवि होने के साथ-साथ गुजराती निबंधकार के रूप में बेजोड़ हैं। उन्होंने कविता, निबंध, कहानी आदि अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
इन्हें भी पढ़े :-
बगुलों के पंख – उमाशंकर जोशी
छोटा मेरा खेत – उमाशंकर जोशी
एकांकी – विश्व शांति, गंगोत्री, निशीथ, प्राचीना, आतिथ्य, वसंत वर्षा, महाप्रस्थान अभिज्ञा ।
कहानी – सापनाभारा, शहीद।
उपन्यास – श्रावणी मेणो, विसामो
निबंध – पार कांजण्या ।
संपादन – गोष्ठी, उघाड़ीबारी, क्लांतकवि, म्हारासॉनेट, स्वप्नप्रयाण।
अनुवाद – अभिज्ञानशाकुंतलम्, उत्तरामचरितम् ।
पत्रिका संपादन – संस्कृति ।
साहित्यिक विशेषताएँ
श्री जोशी ने बीसवीं शताब्दी की गुजराती कविता को नई दिशा प्रदान की है। उन की कविता में नया स्वर है और नई यंत्रियां हैं। वे परंपरा से जुड़कर भारतीय जीवन मूल्यों की स्थापना करना चाहते हैं। वे भारतीय रंगों से पूरी तरह रंगे हुए हैं। कवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से पाठक को प्रकृति के विभिन्न रंगों से परिचित कराया है।
उन्होंने प्रकृति को नई शैली के माध्यम से व्यक्त किया है। उन्होंने साहित्य की अन्य विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है और उन्हें विकसित होने में सहायता दी है। इनका संबंध भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई से भी रहा है इसलिए उन विचारों की छाप इनकी कविता पर स्पष्ट रूप से है। उन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान कई बार जेल यात्रा भी की थी।
भाषा शैली
कवि छायावादी काव्यधारा से गहरे प्रभावित हैं। गुजराती होने के कारण इन्होंने प्रादेशिकता के प्रभाव को अपनी कविता में प्रस्तुत किया है। इन्होंने मानवतावाद, सौंदर्य और प्रकृति चित्रण पर विशेष रूप से लेखनी चलाई है। अपनी भावना प्रधान कविता में इन्होंने कल्पना को इस प्रकार संयोजित किया है कि विचार मानव जीवन के लिए ठोस आधार के रूप में प्रस्तुत हो पाने में समर्थ सिद्ध हुए हैं – कल्पना के रसायनों को पी कर बीज गल गया है, निःशेष शब्द में अंकुर फूटे, पल्लव पुण्यों से नमित हुआ। स्पष्ट रूप से इनकी कविता पर प्रगतिवादी काव्यधारा का सीधा प्रभाव नहीं है पर मानवी जीवन की पीड़ा से ये निश्चित रूप से प्रभावित हुए हैं। इन्हें समाज में प्रभावित कर कविता लिखने की प्रेरणा ही थी।