उषा कविता के रचनाकार शमशेर बहादुर सिंह जी हैं। उन्होंने अपनी इस कविता में प्रकृति की अत्यधिक उपमा को प्रकट किया है। प्रकृति को मानव क्रिया करते हुए दिखाया जाने पर मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है। यह कविता सीबीएसई बोर्ड (12th Class) के बच्चों के लिए काफी लाभदायक है क्योकिं इस कविता से परीक्षा में सवाल पूछे जाते ही है। यहां पर आप उषा कविता सप्रसंग व्याख्या के साथ उसके प्रश्न-उत्तर भी पढ़ सकते हैं।
उषा कविता सप्रसंग व्याख्या
प्रातः नभ था— बहुत नीला, शंख जैसे,
शोर का नभ,
राख से लीपा हुआ चौका,
(अभी गिला पड़ा है।)
बहुत काली सिल
जरा से लाल केसर से
कि जैसे धूल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित कविता ‘उषा’ से लिया गया है। इसमें कवि ने उषा काल के नभ का शब्द चित्र प्रस्तुत किया है।
व्याख्या- कवि का कथन है कि प्रातः कालीन आकाश मनमोहक नीलिमा से सुशोभित हो रहा था। यह गहरे नीले शंख के समान नीला प्रतीत होता है। इस प्रकार सूर्योदय से पूर्व के आकाश ने आकर्षक रूप धारण कर लिया था। आकाश की नीलिमा के कारण उसका सौंदर्य शंख के समान बन गया था। नीले आकाश में सफेद रंग की हल्की चमक को देखकर कवि को लगा— जैसे किसी ग्रहिणी ने सुबह होते ही राख से चौका लिप रखा है , जो अभी गिला पड़ा है अर्थात प्राकृतिक सौंदर्य में पवित्रता झलक रही थी। अथवा ऐसा लगता है जैसे लाल केसर से युक्त सिल को धो दिया गया है, अर्थात वह बहुत निर्मल हो लेकिन उस पर केसर की आभा दिखाई दे रही हो अथवा ऐसा लगता है जैसे स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दिया गया हो।
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नील जल में या
किसी की गौर, झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और…..
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।
व्याख्या- नीला आकाश मानो नीला जल है। सूर्य का आकाश में प्रकट होना ऐसा लगता है मानो कोई सुंदरी नीले जल से बाहर आती हुई रह-रह कर अपने गोरे रंग की आभा बिखरा रही है अर्थात उसमें उज्जवलता का समावेश हो। सूर्य के प्रकट होने से उषा का जादू के समान यह सौंदर्य समाप्त हो रहा है।
उषा कविता प्रश्न उत्तर
प्रश्न1. कविता के किन उपमानो को देखकर यह कहा जा सकता है की ‘उषा’ कविता गांव की सुबह का गतिशील शब्द चित्र है ?
उत्तर– प्रयोगवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह ने गतिशील बिंब योजना का प्रयोग करते हुए गांव की सुबह का सुंदर शब्द चित्र प्रस्तुत किया है। बहुत सुबह पूर्व दिशा में दिखाई देने से पहले वह नीले शंख के समान प्रतीत हो रहा था। उसका रंग ऐसा लग रहा था जैसे किसी गांव की महिला ने चूल्हा जलाने से पहले राख से चौका पोत दिया था। उसका रंग गहरा था।
कुछ देर बाद हल्की-सी लाली ऐसे दिखाई दी जैसे काली सिल पर जरा-सा लाल केसर डाला हो और फिर उसे धो दिया हो या किसी ने स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दी हो। आकाश के नीले पन में सूर्य ऐसे प्रकट हुआ जैसे नीले जल में किसी का गोरा सुंदर शरीर झिलमिलाता हुआ प्रकट हो रहा हो। लेकिन सूर्य के दिखाई देते ही यह सारा प्राकृतिक सौंदर्य मिट गया। कवि के द्वारा प्रस्तुत बिंब योजना गतिशील है और उससे पल-पल बदलते गांव के प्राकृतिक दृश्य की सुंदरता प्रकट हो पाई है।
प्रश्न2. सूर्योदय से उषा का कौन-सा जादू टूट रहा है ?
उत्तर– उषा का उदय आकर्षक होता है। नीले गगन में फैलती प्रथम सफेद लाल प्रातः काल की किरणें हृदय को बरबस अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है। उसका बरबस आकृष्ट करना ही जादू है। सूर्य उदित होते ही यह भव्य प्राकृतिक दृश्य सूर्य की तरुण किरणों में आहत हो जाता है। उसका सम्मोहन और प्रभाव नष्ट हो जाता है।
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प्रश्न3. भोर के नभ को राख से लीपा गया चौका क्यों कहा गया है ?
उत्तर– भोर के नभ का रंग नीला होता है, पर साथ ही उसमें सफेदी भी बिखरी होती है। राख से लिपे हुए चौके मैं भी नीलिमा अथवा श्यामलता के साथ सफेदी का मिश्रण होता है। यही कारण है कि कवि ने भोर के नभ को राख से लिपे चौके की संज्ञा दी है। राख के ताजे लीपे चौके में नमी भी होती है। भोर के नभ में भी है गीलापन है।
प्रश्न4. ‘उषा’कविता में प्रातः कालीन आकाश में पवित्रता, निर्मलता और उज्जवलता के लिए प्रयुक्त कथनों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– पवित्रता— जिस स्थान पर मंगल कार्य करना हो, उसे राख से लिप कर पवित्र बना लिया जाता है। लीपे हुए चौके के समान ही प्रातः कालीन आकाश भी पवित्र है।
निर्मलता— कालापन मलिन अथवा दोषपूर्ण माना जाता है। उस को निर्मल बनाने के लिए उसे जल आदि से धो लेते हैं। जिस प्रकार काली सिल पर लाल केसर रगड़ने से तथा बाद में उसे धोने से उस पर झलकने वाली लालीमा उसकी निर्मलता की सूचक बन जाती है, उसी प्रकार प्रातः कालीन आकाश भी हल्की लालिमा से युक्त होने के कारण निर्मल दिखाई देता है।
उज्जवलता— जिस प्रकार नीले जल में गोरा शरीर उज्जवल चमक से युक्त तथा मोहक लगता है उसी प्रकार प्रातः कालीन आकाश भी उज्जवल प्रतीत होता है।
Usha Kavita Question Answer
प्रश्न5. ‘उषा’ कविता का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— प्रात:काल का दृश्य बड़ा मोहक होता है। उस समय श्यामलता, श्वेतिमा तथा लालिमा का सुंदर मिश्रण दिखाई देता है। रात्रि की नीरवता समाप्त होने लगती है। प्रकृति में नया निखार आ जाता है। आकाश में स्वच्छता निर्मलता तथा पवित्रता व्याप्त दिखाई देती है। सरोवरों तथा नदियों के स्वच्छ जल में पड़ने वाले प्रतिबिंब बड़े आकर्षक तथा मोहक दिखाई देते हैं। अकाश लीपे हुए चौके के समान पवित्र, हल्की लाल केसर से युक्त सील के समान तथा जल में झलकने वाली गौरी देह के समान दिखाई देता है।
प्रश्न6. ‘उषा’ कविता के आधार पर अपनी कल्पना में संध्या के सौंदर्य का चित्रण कीजिए।
उत्तर– जिस प्रकार सूर्योदय से पूर्व का दृश्य बड़ा आकर्षक होता है, उस प्रकार संध्या के समय सूर्य के डूबने से पूर्व का दृश्य भी बड़ा मोहक होता है। पक्षी अपने पंख फैलाकर अपने-अपने नीड़ों की ओर उड़े जा रहे होते हैं। चरवाहे अपने पशुओं को लेकर घरों को लौट रहे होते हैं। उस समय आकाश मे श्वेतिमा,लालिमा तथा श्यामलता का मिश्रण दिखाई देता है। संध्या का क्षण प्रतिक्षण परिवर्तित होने वाला यह आकर्षण दर्शक की दृष्टि को बांध लेता है। कुछ ही क्षणों के बाद यह दृश्य समाप्त हो जाता है और चारों और हल्का-हल्का अंधेरा छाने लगता है।
प्रश्न7. ‘उषा’ शीर्षक कविता के माध्यम से प्रयोगवादी काव्य का शिल्प किस प्रकार प्रकट हो पाया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– शमशेर बहादुर सिंह की कविता में प्रयोगवादी काव्य का शिल्प अति सजीवता से प्रकट हो पाया है। इसमें नए बिंब नए प्रतीक और नए उपमान कविता के साधन बने हैं। पुराने उपमानों को भी कवि ने नया रंग देने का प्रयत्न किया है। प्रकृति में होने वाला परिवर्तन मानव जीवन का सजीव चित्र बन कर प्रकट हुआ है। कवि ने प्रात:के आसमान को धरती के साथ जोड़ने में प्राप्त की है। सूर्य उगते ही अपनी जिन रंग-छटाओ को प्रस्तुत करता है उन्हें कवि ने गाँव के सजीव वातावरण से जोड़ा दिया है। आसमान में जैसे-जैस रंग बदलते दिखाई दिए है वैसे-वैसे गाँव के घर में भी प्रकट हुए है। वहाँ भी सील है,राख से लीपा हुआ चौका है,स्लेट की कालिमा है और रंग-बिरंगे चॉक के थामने वाले आदृश हाथ भी है। कविता में प्रयोगवादी काव्य का शिल्प अनूठे ढंग से अभिव्यक्त हो पाया है।
प्रश्न8. कवि की बिंब-योजना की विशिष्टता क्या है ? लिखिए।
उत्तर–कवि की बिंब-योजना गतिशील है और उसमे प्रकृति की गति को शब्दों में बांधने की अद्भुत क्ष्मता है। चाक्षुक बिंब-रचना में कवि को विशेष निपुणता प्राप्त है, इसी माध्यम से उसने प्रभावपूर्ण रंग-योजना की सृष्टि है।