एक गीत सप्रसंग व्याख्या | Ek Geet Saprasang Vyakhya : Harivansh Rai

नमस्कार दोस्तों। आज की इस पोस्ट में हम 12th क्लास की कविता ‘एक गीत’ की व्याख्या को पढ़ने जा रहें है। इस कविता की रचना हरिवंश राय बच्चन जी है । EK Geet Vyakhya | Harivansh Rai Bachchan। दिन जल्दी-जल्दी ढलता है व्याख्या । बच्चे प्रत्याशा में होंगे व्याख्या | मुझसे मिलने को कौन विकल व्याख्या।

एक गीत सप्रसंग व्याख्या

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

शब्दार्थ – ढलता है = अस्त होता है, पथ रास्ता, मंजिल = लक्ष्य, जहाँ पहुँचना है। पंथी = राही, पश्चिक, राहगीर ।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह- भाग-2’ में संकलित कवि श्री हरिवंशराय द्वारा रचित एक गीत नामक कविता से अवतरित किया गया है। बच्चन जी हालावाद के प्रवर्तक तथा आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि माने जाते हैं। इस काव्यांश में कवि ने समय के व्यतीत होने के साथ-साथ पथिक के मंजिल पर पहुँचने तथा उसे प्राप्त करने के जज्बे का चित्रण किया है।

व्याख्या – कवि का कथन है कि समय परिवर्तनशील है जो निरंतर चलायमान अवस्था में रहता है। वह कभी भी नहीं रुकता। समय के इसी परिवर्तन और अभाव को देखकर दिन में चलने वाला पथिक भी यह सोचकर अत्यंत शीघ्रता से चलता है कि कहीं जीवन रूपी रास्ते में ही रात न हो जाए जबकि उसकी मंजिल भी अधिक दूर नहीं है।

कवि का कहने का अभिप्राय यह है कि मानव जीवन क्षणभंगुर है अतः समय बहुत कम है जो अत्यंत तेजी से गुजरता हुआ चलता है। मनुष्य रूपी यात्री को यह चिंता रहती है कि कहीं उसके लक्ष्य को प्राप्त करने से पहले ही उसके रास्ते में रात न हो जाए। यह सोच वह अत्यंत शीघ्रता से चलता है। कवि कहता है कि दिन अति शीघ्रता से व्यतीत होता है।

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बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे-
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

शब्दार्थ – प्रत्याशा = आशा। नीड़ों से = घाँसलों से झाँकना = देखना। परों में =पंखों में। 

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित ‘एक गीत’ नामक कविता से अवतरित किया गया है जिसके रचयिता श्री हरिवंशराय बच्चन’ जी हैं। इस काव्यांश में कवि ने अपनी मंजिल की राह पर गए पक्षियों (प्राणियों) के अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य भाव का चित्रण किया है।

व्याख्या – कवि का कथन है कि अपने जीवन मार्ग पर चलते हुए पक्षी अपनी मंजिल की तरफ अग्रसर हैं। इसी मार्ग पर बढ़ते हुए यदि उन्हें अपने बच्चों का ध्यान आ जाए, उन्हें लगे कि उनके बच्चे घाँसलों में उनकी राह देख रहे होंगे और उनके आने की आशा मन लिए घौंसलों से झाँक रहे होंगे।

यह ध्यान उन चिड़ियों के पंखों में न जाने कितनी चंचलता भर देता है अर्थात् जब भी चिड़ियों को अपने बच्चों की याद आती है तो उनके पंखों में अपने बच्चों की वत्सलता के कारण और अधिक चंचलता और चपलता छा जाती है। कवि कहता है कि दिन अत्यंत शीघ्रता से व्यतीत हो रहा है।

मुझसे मिलने को कौन विकल ?
मैं होऊँ किसके हित चंचल ?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

शब्दार्थ – विकल = व्याकुल। हित = के लिए। शिथिल करना= सुस्त करना, मंद करना। उर = हृदय।विह्वलता = व्याकुलता ।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित ‘एक गीत’ से अवतरित है जिसके रचयिता हरिवंशराय बच्चन जी हैं। इस काव्यांश में कवि ने प्राणी की व्याकुलता का चित्रण किया है।

व्याख्या – कवि का कथन है कि अपने जीवन रूपी पथ पर चलता हुआ प्राणी चिंतन करता है। वह अपने मन ही मन में सोच रहा है कि इस समय मुझसे मिलने के लिए कौन व्याकुल हो रहा है ? ऐसा कौन है जिसके लिए मैं चंचल हो रहा हूँ। जीवन मार्ग में अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ते हुए मुझसे मिलने के लिए कौन व्याकुल हो रहा है तथा मैं भी किसके लिए दुःखी हो रहा हूँ।

कवि कहता है जब-जब पथिक के हृदय में यह प्रश्न उठता है तो यह प्रश्न उसके पाँवों को कमज़ोर कर देता है, उन्हें सुस्त बना देता है तथा राही के हृदय में अपार व्याकुलता भर देता है अर्थात् जीवन रूपी मार्ग पर अग्रसर होते हुए जब भी पथिक को किसी का ध्यान आता है तो वह उसके पैरों को सुस्त कर उसके हृदय में व्याकुलता भर देता है। कवि कहता है कि दिन अत्यंत शीघ्रता से व्यतीत हो रहा है। समय शीघ्र गुज़र रहा है।

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