एक कुत्ता और एक मैना सारांश | Ek Kutta Or Ek Maina Summary in Hindi

एक कुत्ता और एक मैना सारांश

एक कुत्ता और एक मैना निबंध हजारीप्रसाद द्विवेदी की सुप्रसिद्ध रचना है। लेखक ने भावात्मक शैली का सफल प्रयोग करके साधारण घटनाओं को श्रेष्ठ रचना का रूप दिया है। विषय-विस्तार न होते हुए भी यह रचना भावों का गुंफित रूप है। संपूर्ण निबंध में गुरुदेव रविंद्रनाथ का व्यक्तित्व झलकता है। लेखक ने गुरुदेव से भेंट की एक घटना का स्वानुभूति के आधार पर भावात्मक शैली में उल्लेख किया है। एक दिन गुरुदेव ने निश्चय किया कि वे आश्रम को त्यागकर अन्यत्र रहना चाहते हैं। वे श्रीनिकेतन के पुराने तीन- मंजिले मकान में आकर रहने लगे।

उन दिनों ऊपर जाने के लिए लोहे की चक्रदार सीढ़ियों का प्रयोग करना पड़ता था। वृद्धावस्था में वहाँ पहुंचना बड़ा कठिन कार्य था। फिर भी बड़ी कठिनाई से उन्हें वहाँ ले जाया जा सका। लेखक ने छुट्टियों में गुरुदेव के दर्शन करने की ठान ली। यहाँ लेखक ने ‘दर्शन’ शब्द का प्रयोग साभिप्राय किया है। जब भी लेखक किसी बाहर के व्यक्ति लेकर की उनके पास जाता था तो कहा करता था,

“एक भद्र लोक आपनार दर्शनेर जन्य ऐसे छेन।”

इस पर गुरुदेव मुसकरा देते थे कि दर्शनार्थी है क्या ? वे तो लेखक को भी दर्शनार्थी ही कहा करते थे। उस पुराने भवन में गुरुदेव अकेले ही रहते थे। इसलिए वहाँ आश्रम जैसी भीड़-भाड़ नहीं थी। जब लेखक गुरुदेव से भेंट करने हेतु पहुँचा तो वे छिपते हुए सूर्य को बड़ी तल्लीनता के साथ देख रहे थे। यह एक संयोग ही था कि उसी समय एक कुत्ता जिसने शांतिनिकेतन में गुरुदेव का साहचर्य प्राप्त किया था, अपनी प्राण शक्ति के बल पर उनका अनुपम एवं स्वर्गीय सान्निध्य प्राप्त करने हेतु वहाँ आ पहुँचा।

गुरुदेव ने उस पर अपना अमृतस्पर्शी हाथ फेरा। उस अपूर्व सुख की अनुभूति कुते की अर्द्धखुली आँखें और उसके रोम-रोम से उमड़ रहा स्नेह बता रही थीं। कैसी अजीब बात है कि उस कुत्ते को किसी ने न मार्ग दिखाया, न बताया था, पर वह अपने सेहदाता के पास दो मील चलकर पहुँच गया। बाद में गुरुदेव से इस कुत्ते को लक्ष्य करके ‘आरोग्य’ में इस भाव की एक कविता लिखी थी। कुते की करुण दृष्टि के भीतर उन्होंने स्नेह-भाव के महान सत्य को देखा था, जबकि मानव मानव में स्नेहभाव को नहीं देख सकता।

उन्होंने यह भी बताया है कि कैसे यह भक्त कुत्ता उनकी उपासना के समय उनके आसन के पास चुपचाप बैठा रहता है और पूजा के बाद अपना स्नेहपूर्ण हाथ उस पर फेरते हैं तो यह आनंद से पुलकित हो उठता है। कुत्ता वास्तव में चैतन्यशील प्राणी है। वह अहैतुक प्रेम की भावना को भली भांति समझता था तथा अपनी करुणा की दृष्टि से आत्मसमर्पण के भाव को प्रकट करता है । गुरुदेव ने वाणी विहीन की करुण दृष्टि में एक महान सत्य के दर्शन किए हैं।

इसलिए द्विवेदी जी कहा है,

“कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता”।

इसके साथ ही लेखक ने एक और आश्चर्यजनक घटना का उल्लेख भी किया है। जय गुरुदेव की चिताभस्म को कलकते के आश्रम में लाया गया तो यह कुता बड़े सहज भाव से वहाँ आश्रमवासियों के साथ बड़े उदास भाव से उत्तरायण तक गया। हो सकता है कि उसे भी गुरुदेव के न रहने का दुख हो।

इसी प्रकार लेखक एक अन्य प्रसंग का उल्लेख करते हुए बताता है कि नए-नए शांतिनिकेतन में आए थे और एक पुराने अध्यापक के साथ गुरूदेव के साथ घूमने लगे तो गुरूदेव ने लक्ष्य किया कि आश्रम के कौए क्या हो गए ? उनकी आवाज सुनाई ही नहीं देती। लेखक ने महसूस किया कि सचमुच कई दिनों से आश्रम में कौए नहीं दिख रहें हैं। बाद में द्विवेदी जी ने लक्ष्य किया कि कौए कभी-कभी प्रवास को चले जाते हैं। इसी प्रकार की दूसरी पटना है-लंगड़ी मैना के संबंध में।

गुरुदेव ने उसे देखकर कहा-

देखते हो, यह यूथ  है। रोज फुटती है, ठीक यहीं आकर मुझे इसकी चाह में एक करुण भाव दिखाई देता है।

गुरुदेव के कहने पर लेखक उस सेना में निहित करुण-भाव को अनुभव कर सका था। बाद में लेखक ने अपने अनुभव के आधार पर पाया कि गना करुणा भाव दिखाने वाली पती नहीं है। वह दूसरों पर अपनी अनुकंपा दिखाने वाली है। जिस मकान में लेखक महोदय रहते थे, उसकी दीवारों में चारों और सुख थे उन सुखों में मैना का एक गृहस्थी जमाना था। लेखक द्वारा दीवार में इंट लगा देने पर खाली स्थान का उपयोग करने में कोई कसर न छोड़ते थे।

अपना सारा काम बड़े उत्साह व परिश्रम से करते थे। इतना परिश्रम करने पर भी वे सदैव प्रसन्नचित्त रहते थे और उनके गान परिपूर्ण होते थे, पति-पत्नी में अगाध प्रेम था। पर उस मैना में गुरुदेव ने करुणा भाव की अनुभूति की थी। इस भाव से परिपूर्ण गुरुदेव ने एक कविता लिखी थी। गुरुदेव ने अपने हृदय साम्राज्य में विचरण करके उस मैना की करुण दशा का अनुमान किया था। वह बेचारी किसी परिस्थिति विशेष में पड़कर अपने प्रिय से विमुक्त हो चुकी थी। एक दिन वह मैना उड़ गई।

उपयुक्त विरोचन को देखते हुए कहा जा सकता है कि कवि की दृष्टि में जो मर्मभेदी शक्ति होती है, उसके दर्शन अन्यत्र नहीं हो सकते। कवि केवल मानव के हृदय की ही बात नहीं समझते, अपितु मानवेतर पशु-पक्षियों की स्नेह भावना को भी सहज भाव से अनुभव कर सकते हैं। ये अपनी इस मर्मभेदी दृष्टि से यह बता देते हैं कि मूक प्राणी भी अपने सहज ज्ञान से मानव को महान सत्य के दर्शन करा सकते हैं।

एक कुत्ता और एक मैना पाठ प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़ कहीं और रहने का मन क्यों बनाया?
उत्तर – वस्तुतः गुरुदेव का स्वास्थ्य अच्छा नहीं था। शांतिनिकेतन में उन्हें मिलने वाले बहुत से लोग आते थे। वे पूर्णतः आराम नहीं कर पाते थे। इसलिए उन्होंने ऐसे स्थान को चुना या कहीं और रहने का निर्णय लिया कि जहाँ उन्हें कोई तंग न कर सके। यही कारण है कि उन्होंने शांतिनिकेतन को त्यागने और श्रीनिकेतन के पुराने तिमंजिले मकान में कुछ दिन रहने का मन बनाया।

प्रश्न 2. मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – प्रस्तुत पाठ में लेखक ने कई उदाहरण देकर यह सिद्ध किया है कि मूक प्राणी भी मनुष्य की भांति ही संवेदनशील होते हैं। जब गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर श्रीनिकेतन में रहते थे तो वहाँ उनका शांतिनिकेतन में रहने वाला कुत्ता बिना किसी की सहायता के उनको मिलने चला आया था। गुरुदेव के हाथ का स्पर्श पाकर वह आधी आँखें बंद करके आनंद की अनुभूति करने लगा था।

इसी प्रकार वही कुत्ता गुरुदेव की चिताभस्म के कलश के पास आकर कुछ क्षणों के लिए चुपचाप बैठ गया। इसी प्रकार लंगड़ी मैना भी अन्य मैनाओं की भाँति चहकती नहीं थी। बहुत ही करुण दृष्टि से शांतिनिकेतन में रहती थी, क्योंकि उसका साथी इस दुनिया में नहीं रहा था। अतः इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि मूक प्राणी भी मनुष्य की भाँति ही संवेदनशील होते हैं।

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प्रश्न 3. गुरुदेव द्वारा मैना को करके लिखी गई कविता के मर्म को लेखक कब समझ पाया।
उत्तर – गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी गई कविता के मर्म को कवि उस समय समझ पाया जब मैना वहाँ उड़कर अन्यत्र चली गई थी। तब लेखक समझ सका था कि कवि की दृष्टि कितनी मर्मभेदी होती है।

प्रश्न 4. प्रस्तुत पाठ एक निबंध है। निबंध गद्य-साहित्य की उत्कृष्ट किया है, जिसमें लेखक अपने भावों और विचारों को कलात्मक और साहित्यपूर्ण शेती में अभिव्यक्त करता है। इस निबंध में उपर्युक्त विशेषताएँ कहाँ सकती है किन्हीं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की रचना एक कुत्ता और एक मैना एक उत्कृष्ट ललित निबंध है। इसमें भाव व विचारों की अभिव्यक्ति कलात्मकतापूर्ण हुई है। संपूर्ण निबंध ही कलात्मक एवं लालित्यपूर्ण शैली में रगत है।

उदाहरण इस निबंध की निम्नलिखित पंक्तियाँ दृष्टव्य है-

(1) उन दिनों तुहियों थीं। आश्रम के अधिकांश लोग बाहर चले गए थे। एक दिन हमने सपरिवार उनके ‘दर्शन’ की नी दर्शन को मैं जो यहाँ विशेष रूप से दर्शनीय बनाकर लिख रहा हूँ, उसका कारण यह है कि गुरुदेव के पास जब कभी में जाता या तो प्रायः यह मुसकरा देते थे कि ‘दर्शनार्थी है क्या? इन पंक्तियों में लेखक का भाव अत्यंत लालित्यपूर्ण शैली में व्यक्त हुआ है।

(2) इसी प्रकार लेखक ने भारतीय दर्शकों के स्वभाव का उल्लेख भी अत्यंत मार्मिकतापूर्ण एवं कलात्मक शैली में किया है. “यहाँ यह दुख के साथ कह देना चाहता हूँ कि अपने देश के दर्शनार्थियों में इतने प्रगल्भ होते थे कि समय-असमय, स्थान- अस्थार, अवस्था अनवस्था की एकदम परवा नहीं करते थे और रोकने पर भी आ ही जाते थे। ऐसे “दर्शनार्थियों’ से गुरुदेव भीत भीत से रहते थे।

(3) कुले के संबंध में लेखक के विचार अत्यंत आत्मीयतापूर्ण एवं कलात्मकता से युक्त हैं- “ठीक उसी समय उनका कुत्ता धीरे-धीरे ऊपर आया और उनके पैरों के पास खड़ा होकर पूँछ हिलाने लगा। गुरुदेव ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा। यह आंखें मूंदकर अपने रोम-रोम से उस स्नेह-रस का अनुभव करने लगा। गुरुदेव ने हम लोगों की ओर देखकर कहा, “देखा तुमने यह आ गए। कैसे इन्हें मालूम हुआ कि मैं यहाँ हूँ, आश्चर्य है। और देखो, कितनी परितृप्ति इनके चेहरे पर दिखाई दे रही है।”

(4) मैना का प्रसंग भी अत्यंत कलात्मक एवं लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त किया गया है-पति-पत्नी जब कोई एक तिनका लेकर सूराख में रखते हैं तो उनके भाव देखने लायक होते हैं। पत्नी देवी का तो क्या कहना। एक तिनका से आई तो फिर एक पैर पर खड़ी होकर जरा पंखों को फटकार दिया, चोंच को अपने ही परों से साफ कर लिया और नाना प्रकार की मधुर और विजयद्यपी वाणी में गान शुरू कर दिया। हम लोगों की तो उन्हें कोई परवाह ही नहीं रहती।”

प्रश्न 5. आशय स्पष्ट कीजिए- इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता।
उत्तर – निबंधकार ने इन पंक्तियों में बताया है कि कवि की दृष्टि अत्यंत गहन संवेदनशील एवं सूक्ष्मदर्शी होती है। निबंधकार एक मैना को देखकर उसे अन्य मेनाओं जैसा समझता है, जबकि कविवर रवींद्रनाथ टैगोर उसकी आँखों में करुणा के भाव को अनुभव करते हैं जो मनुष्य मनुष्य के भीतर अनुभव नहीं कर सकता। कहने का भाव है कि भाषाहीन प्राणियों के भीतर भी विज्ञान मानव-सत्य के भाव होते हैं, किंतु उसे कवि की मर्मभेदी दृष्टि ही देख सकती है।

प्रश्न 5. आशय स्पष्ट कीजिए- इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता।
उत्तर – निबंधकार ने इन पंक्तियों में बताया है कि कवि की दृष्टि अत्यंत गहन संवेदनशील एवं सूक्ष्मदर्शी होती है। निबंधकार एक मैना को देखकर उसे अन्य मेनाओं जैसा समझता है, जबकि कविवर रवींद्रनाथ टैगोर उसकी आँखों में करुणा के भाव को अनुभव करते हैं जो मनुष्य मनुष्य के भीतर अनुभव नहीं कर सकता। कहने का भाव है कि भाषाहीन प्राणियों के भीतर भी विज्ञान मानव-सत्य के भाव होते हैं, किंतु उसे कवि की मर्मभेदी दृष्टि ही देख सकती है।

Ek Kutta Aur Ek Maina Question Answer

प्रश्न 6. पशु-पक्षियों से प्रेम इस पाठ की मूल संवेदना है। अपने अनुभव के आधार पर ऐसे किसी प्रसंग से जुड़ी रोचक घटना को कलात्मक शैली में लिखिए।
उत्तर – निश्चय ही पशुपक्षियों में बहुत प्रेमभाव होता है तथा करुणामय दृष्टि भी बात पिछले वर्ष की गर्मियों की छुट्टियों को है। जून का महीना था। मुझसे गलती से मेरा जर्मन शेफर्ड कुत्ता छत पर रह गया। उसे लू लगने के कारण खून के दस्त लग गए। जब मुझे पता चला तो बहुत देर हो चुकी थी। मैं उसे देखकर घबरा गया कि अब क्या होगा ? वह गिरता पड़ता किसी प्रकार नीचे आया और मेरी और टकटकी लगाकर देखने लगा। मुझे लगा कि वह मुझे कह रहा हो कि मेरी यह दशा तुम्हारी गलती के कारण हुई है।

वह मेरे पास आकर बैठ गया। मैंने उसके सिर पर हाथ फेरा तो उसने आँख बंद कर ली और उसे लगा कि अब वही हो जाएगा। मैं उसे तुरंत डॉक्टर के पास से गया। डॉक्टर ने उसे इंजेक्शन लगाया और पीने के लिए दवा दी। मैं रात भर उसे बर्फ वाला पानी पिलाता रहा। सुबह होते-होते वह कुछ ठीक हो गया। जब में सोकर उठा तो सात बज चुके थे। उठकर क्या देखता हूँ कि वह मेरी चारपाई के पास पहले से खड़ा था। मेरे उठते ही उसने अपना मुख मेरे घुटनों पर रख दिया और पूँछ हिलाता रहा। उसके मन में मेरे लिए कितना स्नेह था उसका वर्णन नहीं किया जा सकता, केवल अनुभव किया जा सकता है। लेखक ने ठीक है कहा है कि भाषाहीन प्राणियों में भी प्रेम व करुणा की भावना होती है।

परीकक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. “एक कुत्ता और एक मैना’ पाठ में लेखक ने क्या संदेश दिया है? सार रूप में उत्तर दीजिए।
उत्तर – इस निबंध में द्विवेदी जी ने स्पष्ट किया है कि कवि की दृष्टि मर्मभेदी होती है। वह मानव के अंदर की ही नहीं, अपित पशु-पक्षियों के हृदय की बात भी समझने में सक्षम होती है। गुरुदेव ने इसे अहेतुक स्नेह माना जहाँ एक विवेकशील तथा ज्ञानी मनुष्य भी दूसरे मनुष्य के भीतर का हाल ठीक से नहीं जान सकता, वहाँ ये मूक प्राणी अपने सहज ज्ञान से मनुष्य को महान सत्य का बोध करा देते हैं। लेखक का कहना है कि सूक्ष्म दृष्टि तथा सहानुभूति के सहारे किसी के भी हृदय में उतरा जा सकता है।

प्रश्न 2. पठित पाठ के आधार पर बताइए कि आपको कुत्ता और मेना में से कौन अधिक पसंद है और क्यों ?
उत्तर – पठित निबंध में लेखक ने कुत्ता और मैना दो मूक प्राणियों का उल्लेख किया है। पठित पाठ के आधार पर कहा जा सकता है कि हमें कुत्ता अधिक पसंद है। कुत्ता बिना किसी की सहायता के दो मील दूर मार्ग टूटता हुआ अपने स्वामी के पास आता है और उनका स्नेह पाकर आनंदविभोर हो उठता है।

इतना ही नहीं, गुरुदेव की मृत्यु के पश्चात उनकी चिताभस्म के साथ-साथ चलता है और कुछ पल चुपचाप उसके पास बैठकर नीट जाता है मैना एक चंचल स्वभाव का पक्षी होता है, किंतु पाठ में जिस मैना का उल्लेख किया गया है वह लंगड़ी थी और समूह से अलग रहती थी उसकी आंखों में करुणा का भाव था। वह एकाएक शांतिनिकेतन को छोड़कर अन्यत्र चली 1 गई। इन दोनों घटनाओं से सिद्ध होता है कि कुत्ता स्वामिभक्त एवं स्नेहशील मूक प्राणी है। इसलिए वह हमें पसंद है।

प्रश्न 3. कुत्ते को तिमंजिले मकान पर देखने की घटना को स्मरण करके लेखक के मन में कैसे विचार उठे ? सार रूप में लिखिए।
उत्तर – लेखक जब गुरुदेव को मिलने के लिए श्रीनिकेतन के निमंजिले मकान पर पहुंचा तभी वहाँ एक कुत्ता आ गया जो शांतिनिकेतन में गुरुदेव के पास रहता था। गुरुदेव ने जब उसके सिर पर हाथ रखा तो वह आनंदविभोर हो उठा। इस घटना को स्मरण करके लेखक के मन में निम्नलिखित विचार उठे थे-

तब मेरे सामने श्रीनिकेतन के तितल्ले पर की वह पटना प्रत्यक्ष-सी हो जाती है। वह आंख मूंदकर अपरिसीम आनंद, वह “मूक हृदय का प्राणपण आत्मनिवेदन’ मूर्तिमान हो जाता है। उस दिन मेरे लिए यह एक छोटी-सी घटना थी, आज वह विश्व की अनेक महिमाशाली घटनाओं की श्रेणी में बैठ गई है। एक आश्चर्य की बात इस प्रसंग में उल्लेख की जा सकती है।

जब गुरुदेव का चिताभस्म कलकत्ते से आश्रम में लाया गया, उस समय भी न जाने किस सहज बोध के बल पर वह कुत्ता आश्रम के द्वार आया और चिताभस्म के साथ अन्यान्य जाश्रमवासियों के साथ शांत-गंभीर भाव से उत्तरायण तक गया। आचार्य क्षितिमोहन सेन सबके आगे थे। उन्होंने मुझे बताया है कि यह चिताभस्म के कलश के पास थोड़ी देर चुपचाप बैठा भी रहा।”

प्रश्न 4. ‘एक कुत्ता और एक मैना’ पाठ की भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर – आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी हिंदी एवं संस्कृत के महान विद्वान थे। उन्होंने इस निबंध में तत्सम प्रधान भाषा का प्रयोग किया है। भाषा शुद्ध साहित्यक हिंदी है। द्विवेदी जी ने प्रसंगानुकूल अन्य भाषाओं के शब्दों का प्रयोग भी इस निबंध की भाषा में किया है। इस निबंध की भाषा-शैली विषय के अनुकूल बंधकर चलती है। भाषा में सरलता, सहजता और सुबोधता जैसे गुण भी हैं। कहीं-कहीं संवादों का प्रयोग भी किया गया है। वाक्य छोटे एवं सरल हैं। कहीं-कहीं बड़े-बड़े व लंबे वाक्य हैं, किंतु वे जटिल नहीं हैं। लोकप्रचलित मुहावरों का प्रयोग भी किया गया है।

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