गजल व्याख्या : फिराक गोरखपुरी | कक्षा – 12 NCERT Hindi Core

इस पोस्ट में आप फिराक गोरखपुरी द्वारा लिखित गजल काव्य भाग की व्याख्या को पढ़ सकते है। यह काव्य भाग कक्षा 12th NCERT में शामिल किया गया है। परीक्षा के संदर्भ में इसकी व्याख्या आपके लिए काफी महत्वपूर्ण है। इसीलिए आपको इसे अच्छे से पढ़ लेना चाहिए।

गजल व्याख्या फिराक गोरखपुरी

नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोले हैं
या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोले हैं

शब्दार्थ – नौरस = वसंत ऋतु। गुंचे = फूल की कलियाँ। नाजुक =कोमल। गिरहें = बंधन, गाँठें, गुत्थियाँ। बू = खुशबू, महक, गंध। गुलशन = बाग-बगीचा, उद्यान। 

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश आरोह भाग-2 में संकलित कवि फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘गजल’ से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने बसंत ऋतु के आगमन पर वातावरण में छाए अपूर्व सौंदर्य का चित्रण किया है। 

व्याख्या – कवि का कथन है कि बसंत ऋतु फूल की कलियों की पंखुड़ियों की कोमल गाँठों को खोल देती है या उद्यान में फूलों के रंगों की खुशबू उड़ने के लिए अपने पंखों को तोलती है। कवि का अभिप्राय यह है कि बसंत ऋतु के आगमन पर नौरस फूल की कलियों की पंखुड़ियों की कोमल गुत्थियों को खोल देती है। फूल की कलियाँ अपनी गाँठों को खोलकर खिल उठते हैं या ऐसा प्रतीत होता है जैसे बाग में खिले हुए फूलों के रंगों की खुशबू उड़ जाने हेतु अपने पंखों को खोल रहें हों। संपूर्ण बाग में फूलों की सुंदरता और खुशबू फैल जाती है।

तारे आँखें झपकावें हैं जर्रा जर्रा सोये हैं
तुम  भी सुनो हो यारो! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं

शब्दार्थ – जर्रा जर्रा = कण-कण। शब = रात, निशा, रात्रि।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘फ़िराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से अवतरित है। इसमें गोरखपुरी ने रात्रि में तारों के टिमटिमाते सौंदर्य का चित्रण किया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि रात्रि के गहन अंधकार में प्रकृति का कण-कण सोया हुआ है। संपूर्ण वातावरण में सन्नाटा छाया हुआ है। लेकिन इस गहन अंधकार में भी तारे टिमटिमा रहे हैं। अपनी आँखें झपका कर अपूर्व सौंदर्य प्रस्तुत कर रहे हैं। कवि लोगों को संबोधन करते हुए कहते हैं कि हे प्यारो ! तुम सब सुनो ! रात्रि में चारों ओर छाया हुआ सन्नाटा कुछ रहस्य कहता है। हमें कुछ-न-कुछ अवश्य बोलता है।

हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं

शब्दार्थ – इक= एक। लेखे है = लेती है।

प्रसंग – यह पद्म ‘फिराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से लिया गया है। इसमें कवि ने चित्रित किया है कि इस दुनिय में मनुष्य अपनी किस्मत को रोता रहता है।

व्याख्या – कवि कहता है इस जहाँ में इनसान हो या उसकी किस्मत दोनों को एक ही कार्य मिला है। वह काम है कि समय-समय पर इनसान किस्मत की रो लेता है और किस्मत इनसान को रो लेती है अर्थात् कवि का अभिप्राय यह है कि इस संसार में आदमी अपनी किस्मत को रोता रहता है। वह अपना कर्म सत्य निष्ठा और परिश्रम से नहीं करता। आजीवन किस्मत के सहारे होकर उसे ही दोष देता रहता है।

जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें
मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं

शब्दार्थ – काश = इच्छा आदि को प्रकट करने का, सूचनार्थ शब्द।

प्रसंग – यह पद्म ‘फिराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से लिया गया है। 

व्याख्या – कवि का कथन है कि इस दुनिया के लोग जो मुझको बदनाम करना चाहते हैं, मेरे ऊपर बदनामी का दाग लगाना चाहते हैं। कवि यह कामना करता है कि ऐसे लोग जो मुझे निरंतर बदनाम करते हैं, काश, वे केवल इतनी-सी बात सोच सकें कि बदनाम करके वे मेरा रहस्य खोल रहे हैं या फिर अपने रहस्य समाज को बता रहे हैं। कवि का अभिप्राय यह है कि इस समाज में दूसरों को वही लोग बदनाम करते हैं, जो स्वयं पहले से ही बदनाम होते हैं और ऐसा करके वे दूसरों को बदनाम नहीं करते बल्कि अपने रहस्यों को ही खोल कर बताते हैं।

ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ले हैं

शब्दार्थ – कीमत =मूल्य। अदा = चुकाना। बदुरुस्ती-ए-होशो हवास = विवेक के साथ दुरुस्त करना। दीवाना = प्रेमी ,चाहने वाला। 

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ आरोह भाग-2′ में संकलित कवि ‘फ़िराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से ली गई हैं। इनमें कवि ने प्रेम की कीमत अदा करने का चित्रण किया है।

व्याख्या – कवि अपनी प्रिया को संबोधित करके कहता है कि हम पूरे विवेक के साथ और पूरे होशो हवास में प्रेम  की कीमत भी चुका देते हैं और हम तुम्हारा सौदा करने वाला अर्थात् तुम्हें खरीद कर अपने पास रखने वाला दीवाना भी बनने को तैयार हैं।

तेरे गम का पासे अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं

शब्दार्थ – गम = दुःख, पीड़ा, वेदना। पासे अदब है = सम्मान करता है, विनय स्वीकृत है। खयाल = ख्याल।

प्रसंग – यह पद्म’ आरोह भाग-2′ में संकलित कवि फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘गजल’ से लिया गया है। इसमें कवि ने हृदय में स्थित प्रेम की पीड़ा का वर्णन किया है।

व्याख्या – काँव प्रिया को संबोधन करते हुए कहता है कि मैं तेरे हृदय में स्थित पीड़ा का सम्मान करता हूँ। मैं स्वीकार करता हूँ कि तेरे हृदय में शमों का सागर उमड़ रहा है लेकिन में पूर्णतः तुम्हारी और समर्पित नहीं हो सकता क्योंकि मुझे कुछ दुनिया का भी ख्याल है। है प्रिया । मैं तुम्हारे गमों को समझता हूं लेकिन समाज के ख्याल से मैं पूर्ण रूप से तुम्हारी और समर्पित नहीं हो सकता। कवि कहता है है प्रिया । मेरा भी तुम्हारे जैसा हाल है। मेरे हृदय में भी पीड़ा, दर्द है। मैं तो अपने दर्द को दुनिया से छिपाकर चुपके-चुपके एकांत में से लेता है। अर्थात् कहीं दुनिया कोई संदेह न करने लगे इसलिए मैं तुम्हें समर्पित नहीं हो सकता और न ही अपने दर्द को खुलकर से सकता हूँ बल्कि किसी एकांत स्थल पर चुपके-चुपके अपने मन की पीड़ा को से लेता हूँ।

फितरत का कायम है तवाजुन आलमे-हुस्नो-इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं

शब्दार्थ – फितरत = स्वभाव, प्रकृति, आदत। तवाजून = संतुलन। आलमे-हुस्नो-इश्क = हुस्नो इश्क का आलम, खुद को स्वयं को अपने आप को। 

प्रसंग – प्रस्तुत पद्म आरोह भाग-2 में संकलित कवि गोरखपुरी द्वारा रचित ‘गजल’ से अवतरित है। इसमें कवि ने मोहब्बत में डूबे आशिक की मनोव्यथा का चित्रण किया है।

व्याख्या – कवि का कथन है कि मोहब्बत का नशा आज तक भी छाया हुआ है। हुस्न-ए-इश्क का यह आलम है कि उसमें प्रिया के स्वभाव का आज तक भी संतुलन कायम है। कवि के कहने का अभिप्राय यह है कि प्रिया से विरह हुए इतना समय हो गया लेकिन आज तक भी उसकी आदत हुस्नो-इश्क में समायी हुई है। कवि कहता है कि इस वियोगावस्था में मैं अपने आप को जितना भूल जाता हूँ उतना ही अपनी प्रिया को प्राप्त कर लेता हूँ। प्रिया के प्रेम की वियोगावस्था में अपने को जितना खोजने का प्रयास करता हूँ मुझे और अधिक प्रिया को अनुभूति होने लगती है।

आबो-ताब अश्आर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो
ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं 

शब्दार्थ – आवो ताबे अशआर = चमक-दमक के साथ। बैतों = शेरों।

प्रसंग – यह पद्म फ़िराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘गजल’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने प्रिया को संबोधन करके जगाने का प्रयास किया है।

व्याख्या – कवि प्रिया को संबोधन करते हुए कहता है कि हे प्रिय ! तुम मुझे पूरी चमक-दमक के साथ पूर्ण बात मत हो क्योंकि तुम्हारे पास भी दो आँखें हैं। तुम भी अपनी आँखों से इस चमक-दमक को निहार सकती हो। ये सब कुछ देख सकती हो। कवि संदेह प्रकट करके कहते हैं कि ये जगमगाते शेरों की चमक है या फिर हम मोती बिखरा रहे हैं।

ऐसे में तू याद आए है अंजुमने-मय में रिंदों को
रात गए गर्दू पै फ़रिश्ते बाबे-गुनह जग खोले हैं

शब्दार्थ – अंजुमने मय = शराब की महफ़िल रिंदों को शराबियों को फरिश्तों देवता, देवदूत गर्दू = आकाश, = बाबे-गुनाह पाप का अध्याय जग = संसार।

प्रसंग – ये पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘फ़िराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से ली गई हैं। इनमें कवि ने अपने प्रियजन की यादों का बखान किया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि हे प्रिय ! तू इस विरहावस्था में ऐसे याद आती है जैसे शराब की महफिल में शराबियों को शराब की याद आती है तथा जैसे अर्धरात्रि में आकाश में देवदूत संपूर्ण संसार के पाप का अध्याय खोलते हैं 

सदके फ़िराक एजाजे-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज़
इन गजलों के परदों में तो ‘मीर’ की गजलें बोले हैं

शब्दार्थ – सदके फिराक = फिराक सदके जाता है। एजाजे-सुखन = बेहतरीन (प्रतिष्ठित) शायरी।

प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘फ़िराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित गजल से अवतरित किया गया है। इसमें गोरखपुरी ने प्रतिष्ठित शायर मीर के प्रति श्रद्धा भाव अभिव्यक्त किए हैं। 

व्याख्या – कवि कहता है कि प्रतिष्ठित शायरी की ये आवाज कैसे चुरा ली, इस पर फ़िराक सदके जाता है अर्थात् अपने को न्योछावर करता है। कवि अपनी गजलों को महान शायर मोर के प्रति समर्पित करते हुए कहता है कि मेरी इन गजलों में तो प्रतिष्ठित शायर मीर की गजलें बोलती हैं। शायर मीर से ही प्रभावित होकर मैंने ये गज़लें लिखी हैं।

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