प्लेटो की काव्य संबंधी अवधारणा | प्लेटो की काव्य संबंधी मान्यताएँ PDF

प्लेटो की काव्य संबंधी अवधारणा

प्लेटो पाश्चात्य समीक्षा जगत् के एक महान विद्वान थे। वे एक दार्शनिक, कवि हृदय प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति तथा आलोचक के रूप में आज भी प्रसिद्ध हैं। प्लेटो से पूर्व, होमर, हैसीयाड, अरिस्टोफनिस आदि विद्वानों के मत मिलते हैं। ये विद्वान् काव्य का लक्ष्य शिक्षा देना और आनन्द प्रदान करना मानते थे।

प्लेटो ने महान् कवियों के काव्य का अध्ययन किया था, लेकिन उसे कवि और काव्य की निन्दा करते देख हमें कुछ निराशा अवश्य होती है। परन्तु प्लेटो के युग की परिस्थितियों तथा उसकी जीवन-दृष्टि को देखने पर हम उसके विचारों को सहज रूप में समझ सकते हैं।

1. प्लेटो के कवि सम्बन्धी विचार

प्लेटो एक दार्शनिक, सत्य के उपासक और तर्क के हिमायती थे। सत्य की रक्षा के लिए उन्होंने जहाँ एक ओर दर्शन की वेदी पर अपने कवि हृदय को न्योछावर कर दिया, और वहीं दूसरी ओर अपने श्रद्धा पात्र होमर की निन्दा की। ‘दि रिपब्लिक’ में वे लिखते हैं-

“It would be wrong to honour a man at the expense of Truth.”

प्लेटो का युग 500 ई. पू. का उत्तरार्द्ध है। इस समय जनता में शासन सुधार की उत्कट भावना थी। प्लेटो स्वयं एक समाज सुधारक थे। वे प्रत्येक ऐथेन्स निवासी को आदर्श नागरिक बनाना चाहते थे। उस समय अल्पतंत्र की युवक-युवतियाँ भोग विलास में लीन रहते हुए दिग्भ्रान्त हो रही थी। वे सदूपरामर्श से दूर और मनोरंजन के पीछे भागते थे।

प्लेटो का विचार था कि उस समय की कविता केवल मनोरंजन के लिए लिखी जा रही थी। यह कविता ग्रीक लोगों के अस्वस्थ मनोवेगों को उभारती थी। उस समय का साहित्य बहुत गिर चुका था तथा सामाजिक और राजनीतिक जीवन इतना दूषित था कि प्लेटो जैसा दार्शनिक और संत स्वभाव वाला व्यक्ति यह सब देखकर व्यथित हो उठा। अतः प्लेटो ने कविता के संभावित खतरों से डरकर उसकी निन्दा की ‘The Republic में वे लिखते हैं-

‘We are very conscious of her charms, but we may not on that account betray the Truth,’

अतः हमें यह ध्यान रखना होगा कि प्लेटो ने एक दार्शनिक, समाज-सुधारक तथा शिक्षा पद्धति के संचालक के रूप में अपने विचार प्रकट किए हैं, न कि एक कवि या कलाकार के रूप में। उन्होंने इस प्रकार की कविता का विरोध किया जो कानून और न्याय का उल्लंघन करती है और सौन्दर्य और अच्छाई का विरोध करती है। The Laws’ में वे लिखते हैं-

“No poet is to compose any verses which offend the views of law and justice, of beauty and goodness, professed by the state, or to publish any composition until it has been seen and approved by the proper judges and guardians of the law.”

2. प्लेटो द्वारा सत्य की परिभाषा

प्लेटो का कथन है कि सत्य वह है जिससे व्यक्ति और समाज के नैतिक और आध्यात्मिक जीवन को बल मिलता है। इसके विपरीत जो कुछ है, वह असत्य है। इसी कसौटी को आधार बनाकर प्लेटो काव्य की परख करते हैं। वे लिखते हैं-

“जब कई प्राणियों और वस्तुओं की एक सामान्य संज्ञा होती है तो हम कल्पना कर लेते हैं कि उनका एक सामान्य आदर्श (Idea) या रूप (form) होगा। ईश्वर ऐसे ही सामान्य आदर्श का कर्त्ता है न कि विशेष आदर्श का। यही सामान्य आदर्श सत्य है। संसार में व्याप्त सौन्दर्य, शिवत्व, सत्य और आनन्द का आदर्श एक-एक है।”

ये पुनः कहते हैं कि ईश्वर ही मूल सत्य का कर्त्ता है। ईश्वर के सत्य की अनुकृति यह संसार है और संसार का अनुकरण ही काव्य है। इस प्रकार प्लेटो के अनुसार काव्य सत्य से तीन गुना दूर है और अनुकरण के सिद्धान्त के अनुसार समीप है। काव्य को सत्य से दूर मानने के पीछे कुछ कारण हैं।

इन्हीं कारणों के फलस्वरूप प्लेटो ने काव्य और सत्य की विवेचना की। प्लेटो के काल में जो काव्य-कृतियाँ लिखी जा रही थीं उनमें जीवन का अनुदात्त और अवांच्छनीय रूप ही वर्णित था। उस समय कविता केवल मनोरंजन की वस्तु बनकर रह गई थी। अकसर रंगमंच पर पात्रों को रोते-पीटते तथा शोक आदि भावनाओं को व्यक्त करते हुआ दिखाया जाता था। प्लेटो का कहना था कि वास्तविक जीवन में हम इन बातों को पसंद नहीं करते।

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3. पलंग का उदाहरण

प्लेटो का विचार था कि अनुकरण का सिद्धान्त अज्ञानता से उत्पन्न होता है। जतः कविता भी अज्ञान से उत्पन्न तथा सत्य से दूर है। अपने विचार को स्पष्ट करने के लिए वे पलंग का उदाहरण देते हैं। वे कहते हैं कि ईश्वर एक पलंग की रचना करता है, वह पलंग आदर्श होता है। बढ़ई एवं चित्रकार इसका अनुकरण करके पलंग बनाते हैं।

परन्तु वे वास्तविक पलंग के रूप से परिचित नहीं हैं। फिर भी वे अनुकरण करते हैं। सत्य उसी आदर्श पलंग में निवास करता है जिसका कर्त्ता ईश्वर है। शेष पलंग असत्य हैं। इसी सन्दर्भ में प्लेटो ने त्रासदी की भी चर्चा की है। त्रासदी का लेखक अपने अनुकार्य से परिचित नहीं होता। इसलिए वह उसका स्वरूप अंकित नहीं कर पाता।

प्लेटो के अनुसार कवि यश और कीर्ति का अभिलाषी है। वह पाठकों की वासनाओं को उत्तेजित कर उन्हें आवेगपूर्ण बना देता है। इस प्रकार से वह लोकप्रिय बनना चाहता है। कवि आत्मा के सत्य का उद्घाटन करने के लिए काव्य नहीं लिखता, बल्कि प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए काव्य लिखता है। इस प्रकार वह उत्तेजित करने वाले साहित्य का निर्माण करता है। त्रासदी के बारे में वे लिखते हैं—

“त्रासदी का कवि हमारे विवेक को नष्ट कर हमारी वासनाओं को जागृत कर, उनका पोषण करता है और उन्हें पुष्ट करता है। अतः काव्य का सत्य वास्तविक सत्य से दूर है।”

संक्षेप में प्लेटो के अनुसार-

(क) मूल सत्य एक है, अखंड है और ईश्वर उस सत्य का कर्त्ता है।
(ख) यह वस्तु जगत् उस परम सत्य का अंश नहीं, अनुकरण है।
(ग) कलाकार अनुकरण का अनुकरण करता है। अतः कवि वर्णित सत्य मूल सत्य से तिगुना दूर
(घ) जो लोग यह कहते हैं कि होमर आदि कवि सत्य के ज्ञाता हैं वे इन कवियों द्वारा धोखा दिए गए हैं। कवि सत्य के ज्ञाता न होकर अनुकर्त्ता होता है।
(ङ) सभी कलाकारों की भाँति त्रासदीकार भी अनुकर्त्ता है। । अतः वह मूल सत्य से तिगुना दूर है।

4. अनुकरण संबंधी विवेचन

इस संबंध में यह प्रश्न उठाया गया है कि कवि सत्य का ज्ञाता है अथवा नहीं। प्लेटो तो अपनी बात स्पष्ट कर चुके हैं कि काव्य सत्य की अभिव्यक्ति न होकर अनुकरण का अनुकरण है। ऐसी स्थिति में कवि सत्य का सृजक नहीं हो सकता। हाँ, अनुकर्ता हो सकता है।

परन्तु जो लोग यह मानते है कि कवि सत्य का ज्ञाता है वे लोग कवियों के सम्पर्क में आकर ठगे गए हैं और उनकी काव्य रचनाओं पर सम्मोहित हो गए हैं। इन काव्य रचनाओं का अनुशीलन करते समय ये भूल जाते हैं कि कवि वर्णित सत्य (अनुकरण) मूल सत्य से तिगुना दूर है। वे लिखते हैं-

“Perhaps they may have come across imitators and been deceived by them, they have not remembered when they saw their works that these were thrice removed from the truth and could easily be made without any knowledge of the truth, because they are appearances only and not realities.”

5. चित्रकार की चर्चा

इसी सन्दर्भ में प्लेटो चित्रकार की चर्चा करते हैं। चित्र बनाने वाले चर्मकार (चित्रकार) स्वयं धर्म कला से अनभिज्ञ होता है। फिर भी उसके द्वारा बनाया गया चित्र वास्तविकता का भ्रम पैदा करता है। इसी सन्दर्भ वे लिखते भी हैं-

The images of a poet are phantoms which are far removed from the reality.”

ऐसे ही होमर आदि कवि अपने काव्य में विषयों का छायानुकरण करते हैं। ये केवल अनुकर्त्ता होते हैं, सत्य के ज्ञाता नहीं होते। चित्रकार या कलाकार एक दर्पण के समान है। कवि शब्दों और वाक्यांशों से ही विषय को रूप-रंग देता ।

उसके पास केवल उतना ही ज्ञान होता है जितना अनुकरण के लिए आवश्यक है। पाठक या श्रोता भी कवि के समान अज्ञानी होते हैं। वे भी कवि के शब्दों के आधार पर निर्णय कर लेते हैं। इस प्रकार प्लेटो के अनुसार कवि केवल अनुकर्ता है, सत्य का ज्ञाता नहीं।

6. सकाव्य के गुण

प्लेटो काव्य में सरलता पर बल देते हैं। सरलता का अर्थ है-न्याय के सिद्धान्त का पालन। वे कहते भी हैं-

“Nothing must be tolerated which does not express the sovereign image of Justice:”

प्लेटो का विचार था कि काव्य में उद्देश्य की एकता, अन्विति तथा लयात्मकता होनी चाहिए। वे स्पष्ट कहते हैं कि काव्य के विषय का सम्बन्ध धर्म और नीति से सम्बन्धित होना चाहिए। उसमें देवताओं तथा राष्ट्र के वीरों के सद्कर्मों का वर्णन भी आना चाहिए। इसलिए प्लेटो कवियों को परामर्श देते हैं कि वे अपने काव्य में देवताओं के सद्गुणों का वर्णन करें।

ये सद्गुण हैं-सच्चाई, शील और दृढ़ता। इसी संबंध में प्लेटो ने सद् साहित्य और असद् साहित्य की भी चर्चा की है। सद् साहित्य में देव स्तुति और सज्जन की प्रशंसा रहती है। परन्तु असद् साहित्य में यथार्थ का निराकरण होता है तथा दंत कथाएँ रहती हैं। इसी संदर्भ में प्लेटो ने कल्पना अर्थात् fantasy का विरोध किया।

उनका विचार था कि कवि कल्पना से झूठे बिम्ब और चित्र बनाता है। ये बिम्व और चित्र आत्मा को उदात्त नहीं बना सकते। प्लेटो भाव उच्छलन के भी विरुद्ध थे। प्लेटो रंगमंच पर कलाकार का रोना अच्छा नहीं समझते थे, क्योंकि सामान्य स्थिति में रोना एक लज्जाजनक कार्य है। प्लेटो ने कवि की तीन विशेषताओं पर बल दिया-

(क) प्राकृतिक शक्ति,
(ख) आवश्यक नियमों का ज्ञान,
(ग) अभ्यास ।

इस प्रकार प्लेटो ने सद् साहित्य के निर्माण पर बल दिया। ऐसा साहित्य ही मानव के स्वभाव का सच्चा चित्र प्रस्तुत कर सकता है। कवि ऐसा साहित्य लिखे, जो मानव समाज में जो कुछ भी महान् है, उसकी वृद्धि करे।इस प्रकार हम देखते हैं कि प्लेटो कला या काव्य के विरोधी नहीं थे और न ही उन्होंने सद् कवियों का बहिष्कार किया।

उन्होंने केवल उसी कला या काव्य की निन्दा की, जो अपने कर्तव्य को नहीं समझती या गलत समझती है। कुछ शर्तों के साथ प्लेटो ने त्रासदी को भी स्वीकार किया। ‘कौमुदी’ में वे ऐसे पात्रों को रखना चाहते हैं जिन्हें देखकर हम दुर्गुणों से बचने की कोशिश कर सकें। इस प्रकार प्लेटो ने काव्य के बारे में एक नीतिशास्त्री के रूप में विवेचन किया, काव्य मर्मज्ञ के रूप में नहीं।

7. दोष (त्रुटियाँ)

प्लेटो की यह बात ठीक कही जा सकती है कि कवि सत्य से कुछ कम रचना करता है लेकिन वह यह भूल जाता है कि वह सत्य से कुछ अधिक भी देता है। कवि अपनी कल्पना के वैभव द्वारा कुरूप को सुन्दर तथा सत्य को प्रिय बनाता है। प्लेटो की सबसे बड़ी त्रुटि यह है कि उन्होंने काव्य कला में विद्यमान सृजनशीलता को नहीं समझा।

उन्होंने काव्य को हृदय का व्यापार न मानकर केवल अनुकरण पर बल दिया और आत्म तत्त्व की उपेक्षा की। पुनः प्लेटो ने काव्य को समाज कल्याण की दृष्टि से ही देखा। ऐसा करते समय उन्होंने कला के ‘सुन्दर पक्ष’ की ओर ध्यान न देकर केवल ‘शिव पक्ष’ की ओर ध्यान दिया। उन्होंने कला या काव्य के बारे में केवल नीतिशास्त्र की दृष्टि से सोचा।

नीतिशास्त्र का काम उपदेश देना है। कलाकृति उपदेश नहीं देती। यही कारण है कि उनके अपने शिष्य अरस्तु, इंग्लैंड के सिडनी तथा शैले ने भी प्लेटो का विरोध किया। लेकिन हमें इसके पीछे प्लेटो के काल की परिस्थितियों पर भी ध्यान देना होगा। प्लेटो मूलतः समाज सुधारक और दार्शनिक थे। इसलिए उनकी दृष्टि मूलतः वस्तुपरक थी।

इस संदर्भ में डॉ. सत्यदेव चौधरी ने उचित ही लिखा है-

”इन दोषों के होते हुए भी प्लेटो ने कुछ मूल सत्यों की ओर इंगित अवश्य किया है। उसने कवि के जिस आत्म-विस्मरण की बात कही है उसका अर्थ यदि यह मान लिया जाए कि कवि उस समय काव्य के वर्ण्य से तादात्म्य स्थापित कर लेता है, उसमे पूर्णतः लीन हो जाता है तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं सकती।

प्रतिभा के संबंध में भी उसके मत को यदि अर्थ में लिया जाए कि कविता लिखने की शक्ति प्रत्येक व्यक्ति में न होकर केवल उन्हीं में होती है जिन पर ईश्वर की कृपा हो तब यह बात भी स्वीकार की जा सकती है।”

प्लेटो की देन

प्लेटो से पहले यूनान में काव्य और दर्शन के मध्य काफी विरोध चल रहा था। प्लेटो ने पहली बार उस विरोध का विवेचन किया। उन्होंने पहली बार काव्य और दर्शन के बारे में गंभीर चिंतन किया। प्लेटो के समय में यूनानी जीवन में काफी नैतिक पतन हो रहा था।

सामाजिक मूल्यों का विघटन होता जा रहा था। इसलिए प्लेटो ने काव्य सत्य की चर्चा की और नैतिक मूल्यों की स्थापना की। काव्य आलोचना के क्षेत्र में प्लेटो की सबसे बड़ी देन थह है कि उन्होंने साहित्य सिद्धान्तों का दार्शनिक विवेचन किया। इसलिए उन्होंने कहा, ‘काय में न्याय, सत्य और सौन्दर्य अधिकाधिक रहना चाहिए।’

काव्य में उनका दृष्टिकोण आदि से अन्त तक नीतिशास्त्री का दृष्टिकोण है। उन्होंने सत्काव्य की व्याख्या करके नीतिशास्त्रीय सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला। वे कला का मूल्यांकन भी तथ्यात्मक दृष्टि से कर पाए इसलिए उन्होंने काव्य का केवल वस्तुपरक विवेचन ही किया।

प्लेटो के काव्य संबंधी विचार भी मौलिक हैं। आगे चलकर इन विचारों ने काव्य की प्रकृति को भी प्रभावित किया। कला में अनुकरण की बात सबसे पहले प्लेटो ने की। उन्होंने पहली बार बताया कि कलाएँ परस्पर सम्बद्ध होते हुए भी भिन्न हैं। कलाओं के दो भेद-ललित कलाएँ और उपयोगी कलाएँ आज भी काफी महत्त्व रखती हैं। यही नहीं, प्लेटो ने काव्य में आदर्श, सौन्दर्य और सत्य की प्रतिष्ठा स्थापित की और ये बातें प्लेटो के बाद भी बहुत देर तक मान्य रहीं।

प्लेटो के काव्य सिद्धान्तों में विरेचन सिद्धान्त के संकेत भी पाए जाते हैं। प्लेटो ने अरस्तू से पहले ही यह बात कह दी थी कि काव्य के माध्यम से अमुक्त मनोवेगों की अभिव्यक्ति होती है भोग और अनुभावन होता है। यही नहीं, प्लेटो ने करुण रस के आस्वादन पर भी संकेतात्मक शैली में अपने विचार प्रकट किए हैं।

कुछ लोगों ने प्लेटों पर यह आरोप लगाया है कि वे काव्य को उपदेश या शिक्षा का माध्यम मात्र समझते थे। परन्तु यह सही नहीं है। उनकी दृष्टि में काव्य का पहला प्रमुख कार्य प्रभावित करना है, उपदेश देना नहीं। प्लेटो “कला-जीवन के लिए” और “कला कला के लिए” दोनों सिद्धान्तों के बारे में तटस्थ होकर सोचते हैं।

प्लेटो का विचार केवल इतना था कि मानव के चरित्र में जो श्रेष्ठ है, महानू और उदात्त है वही काव्य का विषय होना चाहिए। काव्य सत्य, सार्वभीम और सर्वकालिक होना चाहिए। शैली और भाषा के बारे में भी उनके विचार मौलिक हैं। उनका स्पष्ट कहना था कि शैली कवि के चरित्र का प्रतिबिम्ब है और कवि पर समकालीन परिस्थितियाँ का प्रभाव पड़ता है।फिर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्लेटो पाश्चात्य काव्य शास्त्र के प्रथम उल्लेखनीय आचार्य है। उनका केवल ऐतिहासिक ही नहीं काव्यशास्त्रीय महत्त्व भी है।

प्लेटों ने परवर्ती काव्य

शास्त्रियों को काफी उपयोगी सामग्री प्रदान की। विशेषकर, अनुकरण के बारे में उनके विचार प्रशंसनीय हैं। उन्हीं से प्रेरणा लेकर अरस्तू ने अनुकरण सिद्धान्त पर प्रकाश डाला। पाश्चात्य विद्वान् एटकिंस ने उनके विषय में कहा है-

“…..it may fairly be said that with him literary theory really begins. What he did was to make later criticism possible; he set men thinking, he gave inspiration, direction to critical effort, and at the same time he supplied ideas for generations to come.”

Plato Ki Kavya Sambandhi Avdharna PDF

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