यमराज की दिशा कविता व्याख्या | Yamraj Ki Disha Kavita Vyakhya

यमराज की दिशा कविता का सार

यमराज की दिशा’ श्री चंद्रकांत देवताले की प्रमुख रचना है। कवि ने प्रस्तुत कविता में सभ्यता के विकास की। खतरनाक दिशा की ओर संकेत करते हुए बताया है कि जीवन-विरोधी ताकतें चारों ओर फैलती जा रही हैं। कवि ने बताया है कि बचपन में उसकी माँ ने उसे दक्षिण की ओर पैर करके सोने को अपशकुन बताया था। वह बताती रहती थी कि ईश्वर से उसकी मुलाकात होती रहती है।

उसकी सलाह से ही वह जीवन जीने और दुःख सहन करने के मार्ग खोज लेती है। इसीलिए उसने यह बताया था कि दक्षिण दिशा मृत्यु की दिशा है। इसलिए उधर पैर करके सोना यमराज को कुछ करना है। माँ ने पूछने पर यमराज के घर का पता भी बताया था कि तुम जहाँ भी हो वहाँ से दक्षिण की ओर यमराज का घर है। बचपन में माँ के उपदेश का कवि पर प्रभाव अवश्य पड़ा। वह कभी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके नहीं सोया तथा दक्षिण दिशा में खूब घूमा, किंतु उसका कोई छोर नहीं था, अन्यथा वह यमराज जी का घर भी देख लेता।

किंतु आज के जीवन में जिधर भी पैर करके सोओ वह दक्षिण दिशा ही हो जाती है, क्योंकि सभी दिशाओं में यमराज के बड़े-बड़े महल हैं। वहाँ वे एक साथ अपनी दहकती आँखों सहित विद्यमान हैं। कवि की माँ अब नहीं रही और न ही यमराज के निवास की निश्चित दिशा ही रही। अब हर दिशा यमराज की दिशा हो गई है। आज हमें उनका सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। 

Yamraj Ki Disha Kavita Vyakhya

माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं।
कहना मुश्किल है।
पर वह जताती थी जैसे
ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और दुख बरदाशत करने के
रास्ते खोज लेती है

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ कक्षा नोवी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग-1 में संकलित कविता यमराज की दिशा से ली गयी है। इसके कवि श्री चंद्रकांत देवताले जी हैं। 

व्याख्या – प्रस्तुत कवितांश में कवि ने बताया है कि बचपन से वह माँ से यही सुनता आया था कि उसकी माँ की ईश्वर से मुलाकात होती थी। कवि का मानना है कि उसकी माँ की ईश्वर से मुलाकात होती थी या नहीं यह कहना बड़ा मुश्किल है, किंतु वह सदा यही दिखावा करती थी कि उसकी मुलाकात ईश्वर से होती रहती है। ईश्वर से प्राप्त सलाहों से ही वह जीवन में आने वाले दुःखों और जीवन जीने के मार्ग खोज लेती है।

भावार्थ – इन पंक्तियों में कवि का जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण व्यक्त हुआ है।

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माँ ने एक बार मुझसे कहा था-
दक्षिण की तरफ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
उसने बताया था-
तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में

व्याख्या – प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने यमराज के संबंध में फैले अंधविश्वास पर प्रकाश डालते हुए बताया है कि उसकी माँने उसे दक्षिण की ओर पैर न करके सोने का उपदेश दिया था। उनका विश्वास था कि वह मृत्यु की दिशा है। इसलिए उधर पैर करके सोकर मृत्यु के देवता यमराज को नाराज करने में कोई बुद्धिमत्ता नहीं है।

कहने का तात्पर्य है कि दक्षिण की ओर पैर करके नहीं सोना चाहिए। उससे यमराज को गुस्सा आ जाता है। उस समय कवि बहुत छोटा था, जब उसने अपनी माँ से यमराज के घर का पता पूछा था उसकी माँ ने केवल इतना ही बताया था कि हम जहाँ भी हों, वहां से दक्षिण दिशा में ही यमराज का घर होता है।

भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने समाज में फैले अंधविश्वासों पर करारी चोट की है।

माँ की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया
और इससे इतना फायदा जरूर हुआ
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा
में दक्षिण में दूर-दूर तक गया
और मुझे हमेशा माँ याद आई
दक्षिण को लाँघ सेना संभव नहीं था
होता छोर तक पहुँच पाना
तो यमराज का घर देख लेता

व्याख्या – प्रस्तुत कवितांश में कविवर देवताले ने माँ के उपदेश के प्रभाव का वर्णन करते हुए बताया कि माँ के समझाने के पश्चात वह कभी भी दक्षिण की ओर पैर करके नहीं सोचा। इससे वह यमराज के कोप से बचा या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता, किंतु एक लाभ अवश्य उसे हुआ कि दक्षिण दिशा पहचानने में उसे कहीं भी, कभी भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा अर्थात वह सहज ही दक्षिण दिशा को पहचान लेता है।

कवि ने पुनः अपने जीवन के विषय में बताया है कि उसने अपने जीवन में दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक यात्राएं की हैं। वहाँ उसे सदा अपनी माँ की याद आती रही। कचि के लिए दक्षिण दिशा को पार करके जाना संभव नहीं था, क्योंकि उसका कोई किनारा ही नहीं था। यदि दक्षिण दिशा को सीप पाना संभव होता तो कवि अवश्य ही यमराज का घर भी देख लेता, किंतु कवि ऐसा कभी नहीं कर पाया।

भावार्थ – इन पंक्तियों में कवि ने इस अंधविश्वास का खंडन किया है कि यमराज का घर दक्षिण दिशा में होता है।

पर आज जियर भी पैर करके सोओ
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं।
माँ अब नहीं है
और यमराज की दिशा भी वह नहीं रही
जो माँ जानती थी।

व्याख्या – कवि ने बताया है कि उसकी मां का कहना था कि दक्षिण दिशा यमराज की दिशा है। इसलिए उधर पैर करके नहीं सोना चाहिए। किंतु कवि का तर्क है कि आज के युग में जिस भी दिशा की ओर पैर करके सोएँ, वही दक्षिण दिशा हो जाती है। कहने का तात्पर्य है कि हमारे चारों ओर यमराज ही यमराज हैं। सभी दिशाओं में यमराज के सुंदर भवन हैं अर्थात चारों ओर यमराज की भाँति ही लोगों को मारने वाले शोषक लोग विद्यमान हैं, जो सुंदर महलों में रहते हैं।

ये सबके सब अपनी दहकती (क्रोध) से जलती हुई हुई आँखों सहित विराजमान हैं। कवि ने पुनः कहा है कि आज वह माँ नहीं रही, जो यमराज के विषय में, उसकी दिशा के विषय में बताती थी। यमराज की दिशा भी वह नहीं रही, जो माँ जानती थी अर्थात यमराज केवल दक्षिण में ही नहीं रहता, वह सर्वत्र रहता है। 

भावार्थ – प्रस्तुत पद्यांश में आज की सभ्यता की दोषपूर्ण स्थिति का उल्लेख किया गया है।

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