ग्राम श्री कविता व्याख्या व सार | Gram Shree Kavita Vyakhya

Gram Shree Kavita Vyakhya

ग्राम श्री कविता का सार

ग्राम श्री कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत ने गाँवों की प्राकृतिक छटा का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है। खेतों में दूर-दूर तक लहलहाती फसलों, फूल-फलों से लदे हुए वृक्षों और गंगा के किनारे फैले रेत के चमकते कणों के प्रति कवि का मन आकृष्ट हो उठता है। खेतों में दूर-दूर तक मखमल के समान सुंदर हरियाली फैली हुई है। जब इस हरियाली पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं। तो यह चाँदी की भाँति चमक उठती है। हरी-भरी पृथ्वी पर झुका हुआ नीला आकाश और भी सुंदर लगता है।

जी और गेहूं की बालियों को देखकर लगता है कि धरती रोमांचित हो उठी है। खेतों में खड़ी अरहर और सनई सोने की करधनी-सी लगती हैं। सरसों की पीतिमा चारों ओर फैली हुई है। इस हरी-भरी धरती पर नीलम की कली भी सुंदर लग रही है। मटर की फलियाँ मखमली पेटियों-सी लटक रही हैं, जो अपने में मटर के बीज की लड़ियाँ छिपाए हुए हैं। चारों ओर खिले हुए रंग-बिरंगे फूलों पर तितलियाँ घूम रही हैं। आम के वृक्ष भी मंजरियों से लद गए हैं। पीपल और ढाक के पुराने पत्ते झड़ गए हैं।

ऐसे सुहावने वातावरण में कोयल भी कूक उठती है। कटहल, मुकुलित, जामुन, आडू, नींबू, अनार, बैंगन, गोभी, आलू, मूली आदि सब महक रहे हैं। कवि ने ग्रामों की प्राकृतिक छटा और वहाँ फूल-फलों से लदे वृक्षों के सौंदर्य को अंकित करते हुए पुनः कहा है कि वहाँ पीछे रंग के चित्तिरीदार मीठे जर्मरूद, सुनहरे रंग के बेर आदि फल वृक्षों पर लगे हुए हैं। पालक, धनिया, लौकी, सेम की फीलिए लाल-लाल टमाटर, हरी मिरचें आदि सब्जियाँ भी खूब उगी हुई हैं।

गंगा के किनारे पर फैली हुई सतरंगी रेत भी सुंदर लगती है। गंगा के किनारे पर तरबूजों की खेती है। गंगा के तट पर बगुले और मगरौठी बैठे हुए हैं तथा सुरखाब पानी में तैर रहे हैं। सर्दिय की धूप में ग्रामीण क्षेत्र की हँसमुख हरियाली अलसायी हुई-सी प्रतीत होती है। रात के अंधेरे में तारे भी सपनों में खोए-से नम हैं। गाँव मरकत के खुले डिब्बे-सा दिखाई देता है, जिस पर नीला आकाश छाया हुआ है। अपने शांत वातावरण एवं अनुपम सौंदर्य  से गाँव सबका मन आकृष्ट करता है।

ग्राम श्री कविता व्याख्या

फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपी जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भूतल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक!

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ कक्षा नोवी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग-1 में संकलित कविता ग्राम श्री से ली गयी है। इसके कवि श्री सुमित्रानंदन पंत जी हैं। इस कविता कवि ने प्रकृति का वर्णन किया हैं। 

व्याख्या – कवि प्रकृति का पुजारी है। वह ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक सुंदरता को देखकर भावुक हो उठता है और कहता है कि गाँवों के खेतों में दूर-दूर तक हरियाली छायी हुई है। यह मखमल की भाँति कोमल एवं सुंदर है। उस हरियाली पर जब सू की किरणें पड़ती हैं तो वह चाँदी की जाली की भांति उच्च एवं चमकदार लगने लगती है।

खेतों में खड़ी फसलों के तिनकों का हरापन ऐसा प्रतीत होता है कि मानों हरा रक्त झलक रहा हो। हरी-भरी पृथ्वी के तल पर आकाश का नीले रंग का स्वच्छ एवं पावन है।

भावार्थ – भाव यह है कि ग्रामीण अंचल में खेतों में फैली हरियाली और उस पर पड़ती हुई सूर्य की किरणों का अत्यंत मनोरम दृश्य उभरता है।

रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जो गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली!
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित परा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली !

व्याख्या – प्रस्तुत कवितांश में कवि ने बताया है कि गेहूं और जो के पौधों की निकली बालियों को देखने से ऐसा लगता है जैसे उनके माध्यम से धरती रोमांचित हो उठी है अर्थात अपने हृदय की प्रसन्नता को व्यक्त कर रही है। खेतों में उगी अरहर की फलियाँ और फल ऐसे लगते हैं कि मानों सोने से निर्मित सुंदर करवनी धारण कर रखी हो।

इसी प्रकार दूर-दूर तक खेतों में | पीली-पीली सरसों फूली हुई है। उसके फूलों की सुगंध चारों ओर उड़ रही है। इस हरी-भरी धरती पर नीलम की सुंदर कलियाँ और नीले रंग के फूलों से लदी अलसी भी झाँकती हुई-सी लगती है।

भावार्थ – कवि के कहने का भाव है कि धरती पर उगी हुई गेहूं और जी की फसलें, अरहर और सरसों के फूल वहाँ के सौंदर्य को बढ़ा देते हैं। हरे-भरे खेतों में नीलम और अलसी के फूल भी सुंदर लगते हैं।

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रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही सखियों मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटक
ठीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती है रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते हों फूल स्वयं
उड़ उड़ वृतों से वृंतों पर !

व्याख्या – प्रस्तुत काव्यांश में कविवर सुमित्रानंदन पंत ने गांवों के खेतों में उगी फसलों और वहाँ की प्राकृतिक छटा का वर्णन किया है। कवि का कथन है कि मटर की फसल के पौधों पर तरह-तरह के फूल खिले हुए हैं। उनके मध्य मटर की फलिए लटकी हुई हैं, जो मखमली पेटियों के समान लगती हैं।

उन पेटियों (मटर की फलियों) में मटर के दानों की लड़ियों छिपी हुई हैं अर्थात मटरों की फलियों में मटरों की दोनों पंक्तियाँ विद्यमान हैं। कवि ने पुनः बताया है कि वहाँ विभिन्न रंगों के सुंदर फूलों पर विभिन्न रंगों वाली तितलियाँ उड़ रही हैं। वहीं इतने अधिक फूल हैं कि ऐसा लगता है कि फूल स्वयं फूले नहीं समा रहे फूल स्वयं फूलों  के समूह पर गिर रहे हैं।

भावार्थ – कवि के कहने का भाव यह है कि गाँवों के खेतों में खड़ी मटर की फसलें अत्यंत शोभायमान हैं और रंग-रंग के फूलों की अत्यधिक संख्या होने के कारण वहाँ का वातावरण सुंदर एवं सुगंधित बना हुआ है।

अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपत के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़, नींबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली !

व्याख्या – प्रस्तुत कवितांश में कवि ने ग्रामीण क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन करते हुए कहा है कि अब यहाँ आम के वृक्ष की टहनियाँ चाँदी और सुनहरे रंग के बीर से लद गई हैं अर्थात आम की टहनियों पर बौर उग आया है जिससे उन पर फल लगने की आशा हो गई है। इस समय दाक और पीपल के वृक्षों के पते झड़ रहे हैं।

ऐसे सुहावने एवं सुंदर वातावरण में कोयल भी मस्ती में भरकर कूक उठती है। इसके अतिरिक्त कटहल के पेड़ भी महक उठे हैं। जामुन पर भी चीर लग गया है। जंगल में छोटे-छोटे बेरों वाली झाड़ियाँ या बेरियाँ भी झूल उठी हैं। आडू, नींबू, अनार, जालू, गोभी, बैंगन, मूली आदि फल और सब्जियों खूब उगे हुए हैं। 

भावार्थ – कवि के कहने का भाव है कि बसंत ऋतु में विभिन्न प्रकार के फलों के वृक्षों पर फल-फूल लग जाते हैं। वातावरण अत्यंत प्रसन्नतामय बन जाता है। ऐसे में कोयल भी अपनी मधुर ध्वनि से उसमें रस घोल देती है।

पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ी,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अवली से तरु की डाल जड़ी!
लहलह पालक, महमह धनिया,
लोकी औ’ सेम फल, फैल
मखमली टमाटर हुए लाल
मिरचों की बड़ी हरी वेली!

व्याख्या – कवि ने खेतों में लगी सब्जियों एवं वृक्षों पर लगे फलों का वर्णन करते हुए कहा है कि अमरूद के पेड़ों पर तो अमरूदों पर अब लाल-लाल चिह्न पड़ गए हैं। इनसे पता चलता है कि अमरूद अब पक गए हैं। इसी प्रकार बेरियों पर सुनहरे Rang के मीठे-मीठे बेर लगे हुए हैं। आँवले के वृक्ष की टहनियों पर आँवले भी लदे हुए हैं अर्थात अत्यधिक मात्रा में लगे हुए हैं। से में खड़ी पालक लहक रही है और धनिया भी सुंदर लग रहा है लौकी और सेम की बेलें फैली हुई हैं जिन पर लौकियाँ और से की फलियाँ लगी हुई हैं। अब मखमली टमाटर भी पककर लाल रंग के हो गए हैं। मिरचों के पौधों पर भी अत्यधिक बड़ी-बड़ी ह मिरचें लगी हुई हैं।

भावार्य – कवि के कहने का भाव है कि ग्रामीण अंचल में तरह-तरह के फलदार वृक्ष हैं जो वहाँ के लोगों को स्वादिष्ट पत देते हैं। खेतों में भी तरह-तरह की सब्जियां उगाई जाती हैं।

बालू के सोपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अंगुली की कंपी से बगुले
कलंगी संवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाव,
पुलिन पर मगरौठी रहती सोई

व्याख्या – प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने गंगा तट के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहा है कि गंगा के किनारे बिछी हुई सतरंगी रेत व हवा के कारण बनी हुई लहरें साँपों के समान लगती हैं। गंगा के तट पर उगी हुई पास अत्यंत सुंदर लगती है। वहाँ पर किसानों द्वारा तरबूजों की फसल उगाई गई है। अपने पाँव के पंजे से अपने सिर की कलंगी संवारते हुए बगुले अत्यंत सुंदर लगते हैं। चक्रवाक पक्षी गंगा के पानी में तैर रहे हैं और गंगा किनारे बैठी मगरौठी सोई रहती है।

भावार्थ – कवि के कहने का भाव है कि गंगा के किनारे पर फैली रेत, तरबूजों की फसल और हरी-भरी घास के साथ-साथ यहाँ पर तरह-तरह के पक्षी क्रीड़ा करते हुए अत्यंत सुंदर लगते हैं।

हंसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी अधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में खोए
मरकतहिंसा खुला ग्राम
जिस पर नीलम नम आधादन
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन

व्याख्या – कवि ने ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक छटा का उल्लेख करते हुए कहा है कि यहाँ की समुख हरियाली सर्दी औ धूप में ऐसी लग रही है मानों यह धूप सेंकने से अनमाई हुई-सी अथवा खोई हुई-सी है। रात के अंधेरे में वही हरियाली भीगी हुई-सी लगती है और नीले नम पर रात्रि को चमकते हुए तारे स्वप्नों में खोए हुए-से लगते हैं। सर्दी को ऋतु में चमकती हुई पर पन्ना नामक का खुला हुआ हिब्बा-सा प्रतीत होता है। उस पर नीले का आकाश छाया हुआ होने के कारण और भी आकर्षक बन पड़ा है। हिमांत में अत्यंत सुंदर, शांत और अनुपम गाँव अपनी शोभा से सबके मन को आकृष्ट करने वाला है।

भावार्थ- कवि के कहने का भाव है शिव के आसपास छाई हुई हरियाली सदी की धूप में अत्यंत सुंदर लगने लगती है। रात को नीले आकाश में चमकते तारे भी मनमोहक लगते हैं पूप में चमकता हुआ गांव तो और भी आकर्षक लगता है

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